ऐतिहासिक व्यक्तित्व: दारा शिकोह का जीवन परिचय |Dara Shikoh Short Biography in Hindi

 ऐतिहासिक व्यक्तित्व: दारा शिकोह का जीवन परिचय 

ऐतिहासिक व्यक्तित्व: दारा शिकोह का जीवन परिचय |Dara Shikoh Short Biography in Hindi

 

दारा शिकोह मुगल बादशाह शाहजहाँ और मुमताज महल का सबसे बड़ा पुत्र था. शाहजहाँ को अपने चारों बेटे दाराशिकोह शाहशुजाऔरंगजेब और मुराद बख्श में से सबसे प्रिय दारा शिकोह था और उसकी दारा से यही आत्मीयता अंत में उसके और दारा के पतन का कारण बनी.

 

दारा शिकोह का जीवन परिचय 

 

  • दारा शिकोह का जन्म ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की भूमि अजमेर में 20 मार्च, 1615 में हुआ थाजिनसे उनके पिता शाहजहाँ ने एक बेटे के लिए प्रार्थना की थी. 
  • अपने चारों पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र दारा को मुगल साम्राज्य के भावी शासक के रूप में तैयार किया गया और महल ही उनका घर था. यद्यपि उनके भाइयों को प्रशासक के रूप में सुदूर प्रांतों में प्रतिनियुक्त किया गयाकिन्तु अपने पिता की आंखों के तारेदारा को शाही दरबार में ही रखा गया. 
  • सुदूर के धूल धूसरित प्रांतों और प्रशासन कार्यों से दूर रखे जाने के कारण दारा अपना समय आध्यात्मिक खोज में लगा सके. उन्होंने छोटी उम्र में ही सूफी रहस्यवाद और कुरान में गहरी रुचि और दक्षता विकसित कर ली थी. 
  • 25 वर्ष की आयु में दारा ने अपनी पहली पुस्तकसफीनात-उल-औलिया लिखी जो कि पैगम्बर और उनके परिवारखलीफाओं तथा भारत में लोकप्रिय 5 प्रमुख सूफी संघों से सम्बन्ध रखने वाले संतों के जीवन का विवरण देने वाला एक संक्षिप्त दस्तावेज है. 
  • दारा शिकोह को उनके पीर (आध्यात्मिक मार्गदर्शक) मुल्ला शाह द्वारा सूफियों के कादरी संघ में दीक्षित किया गया. 
  • दारा की कृतियों में 'सकीनात-उल औलिया', 'रिसाला-ए-हकनुमा ( सच्चाई का कम्पास)शाथियात या हसनत गुल- आरिफिनऔर 'इक्सिर-ए-आजमशामिल हैं. उन्होंने 'जुग बशिस्तऔर 'तर्जुमा-ए-अकवाल-ए-वासिलीभी शुरू किया. 
  • उनका मानना था कि सभी ज्ञात शास्त्रों का एक वह सामान्य सोत होना चाहिए जो कि कुरान में उम्म-उल-किताब (किताब की माँ) के रूप में उल्लिखित है. इस प्रकार वे भारत की आध्यात्मिक परम्पराओं हेतु इस्लाम के अनुकूलन के लिए एक महान साहित्यिक आन्दोलन का हिस्सा बन गए. 
  • दारा ने न केवल अन्य धर्मों के साहित्य को पढ़ाबल्कि उन धर्मों के विद्वानों के साथ वे बातचीत भी करते थे और उनका सम्मान भी करते थे. 'मुकालिमा-ए-दारा शिकोह व बाबा लालदारा शिकोह और उन बाबा लाल के बीच एक आध्यात्मिक चर्चा को दर्शाता हैजिन्हें बाद में पंजाब के हिन्दू रहस्यवादी लाल दयाल के रूप में माना गया. इन दोनों का परिचय मुल्ला शाह के माध्यम से हुआ था. उनके बीच होने वाले वार्तालाप में हिन्दू धर्म के विभिन्न पहलुओं और इसे प्रोत्साहित करने वाले तपस्वी जीवन के बारे में दारा की जिज्ञासा दिखती है. आगे जाकर सूफी शहजादे बाबा लाल को 'परिपूर्ण', बताते हुए कहते हैं कि प्रत्येक समुदाय में ईश्वर की समझ रखने वाले और 'परिपूर्णहैंजिनकी कृपा से भगवान उस समुदाय को मुक्ति प्रदान करते हैं. 
  • 42 वर्ष की आयु तकदारा 'मजमा उल-बहरेन' (दो महासागरों का मिलना ) लिखने वाले थे. इस 55 पृष्ठ के दस्तावेज में दारा विश्लेषणात्मक रूप से इस्लाम और हिन्दू धर्म के पहलुओं की तुलना करते हैं और उनके मूलभूत मूल्यों में प्रचुर समानताएं निकालते हैं. दारा द्वारा अपने बहुसंख्यक धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे बड़ी प्रशंसाकृति 'सिर-ए-अकबर' (महान रहस्य) थाजो कि उपनिषदों के 50 अध्यायों का अनुवाद था. 
  • सम्राट् की आसन्न मृत्यु की अफवाहों ने 6 भाई-बहनों के बीच उत्तराधिकार के युद्ध की चिन्गारी को भड़का दिया.  दारा 1658-59 में के युद्ध में हार गया. पराजित शहजादे ने अफगानिस्तान के दादर में शरण माँगीलेकिन उनके मेजबान ने उनके भाई औरंगजेब को उनके बारे में सूचना दे कर उन्हें धोखा दे दिया. 
  • दारा कोचिथड़ों में दिल्ली लाया गया. इसके बाद उन्हें जंजीरों से बाँधकर और कलंकित करके शाही राजधानी की गलियों में एक मादा हाथी के ऊपर बिठा कर उनका जुलूस निकाला गया. औरंगजेब के उलेमा द्वारा स्वधर्म त्याग का आरोप लगा करदारा को 9 सितम्बर, 1659 में मार दिया गया और उसके शव को एक हाथी की पीठ पर लाद कर दिल्ली के शहर के प्रत्येक बाजार और गली में प्रदर्शित किया गया था. 
  • इतिहासकारों ने अक्सर दारा शिकोह को एक दुखद व्यक्ति के रूप में चित्रित किया हैजो भारत के इतिहास के वृत्तांतों में अपने ही भाइयों के आगे फीका पड़ गयालेकिन जो धार्मिक रूढ़िवादी युग में आशा की एक झिलमिलाहट था.

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