भारतीय राजनीतिक चिंतन में कौटिल्य के योगदान पर प्रकाश डालिए? | MPPSC Old Question With Answer

भारतीय राजनीतिक चिंतन में कौटिल्य के योगदान पर प्रकाश डालिए।

भारतीय राजनीतिक चिंतन में कौटिल्य के योगदान पर प्रकाश डालिए? | MPPSC Old Question With Answer
 

 प्रश्न (MPPSC  2017 Paper IV)

भारतीय राजनीतिक चिंतन में कौटिल्य के योगदान पर प्रकाश डालिए।


उत्तर- 

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन की तरह ही कौटिल्य ने भी राजतंत्र की संकल्पना को अपने चिंतन का केन्द्र बनाया है। वह लौकिक मामलों में राजा की शक्ति को सर्वोपरि मानता है, परन्तु कर्तव्यों के मामलों में वह स्वंय धर्म में बंधा है। वह धर्म का व्याख्याता नहीं बल्कि रक्षक है। कौटिल्य ने राज्य को अपने आप साध्य मानते हुए सामाजिक जीवन में उसे सर्वोच्च स्थान दिया है। राज्य का हित सर्वोपरि है जिसके लिए कई बार वह नैतिकता के सिद्धान्तों को भी परे रख देता है।

 

कौटिल्य के अनुसार राज्य का उद्देश्य केवल शान्ति व्यवस्था तथा सुरक्षा स्थापित करना नहीं, वरन व्यक्ति के सर्वोच्च विकास में योगदान देना है। 


कौटिल्य के अनुसार राज्य के कार्य हैं-  

(1) सुरक्षा सम्बन्धी कार्य- 

बाह्य शत्रुओं तथा आक्रमणकारियों से राज्य को सुरक्षित रखना, आन्तरिक व्यवस्था, न्याय की रक्षा तथा दैवी (प्राकृतिक आपदाओं) विपत्तियों तथा बाढ़, भूकम्प, सूखा, आग, महामारी, घातक जन्तुओं से प्रजा की रक्षा राजा के कार्य हैं।

 

(2) स्वधर्म का पालन कराना 

स्वधर्म के अन्तर्गत वर्णाश्रम धर्म (वर्ण तथा आश्रम पद्धति) पर बल दिया गया है । यद्यपि कौटिल्य, मनु की तरह धर्म को सर्वोपरि मानकर राज्य को धर्म के अधीन नहीं करता, किन्तु प्रजा द्वारा धर्म का पालन न किए जाने पर राजा धर्म का संरक्षण करता है।

 

(3) सामाजिक दायित्व- 

राजा का कर्तव्य सर्वसाधारण के लिए सामाजिक न्याय की स्थापना करना है। सामाजिक व्यवस्था का समुचित संचालन तभी सम्भव है, जबकि पिता-पुत्र, पति-पत्नी, गुरु-शिष्य आदि अपने दायित्वों का निर्वाह करें। विवाह विच्छेद की स्थिति में वह स्त्री-पुरुष के समान अधिकारों पर बल देता है। स्त्रीवध तथा ब्राह्मण हत्या को गम्भीर अपराध माना गया है।

 

(4) जनकल्याण के कार्य

कौटिल्य के राज्य का कार्य-क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। वह राज्य को मानव के बहुमुखी विकास का दायित्व सौंपकर उसे आधुनिक युग का कल्याणकारी राज्य बना देता है। उसने राज्य को अनेक कार्य सौंपे हैं। जैसे- बाँध, तालाब व सिंचाई के अन्य साधनों का निर्माण, खानों का विकास, बंजर भूमि की जुताई, पशुपालन, वन्य विकास आदि। इनके अलावा सार्वजनिक मनोरंजन राज्य के नियंत्रण में था। अनाथों, निर्धनों, अपंगों की सहायतास्त्री सम्मान की रक्षा, पुनर्विवाह की व्यवस्था आदि भी राज्य के दायित्व थे।

 

इस प्रकार कौटिल्य का राज्य सर्वव्यापक राज्य है। जन-कल्याण तथा अच्छे प्रशासन की स्थापना उसका लक्ष्य है, जिसमें धर्म व नैतिकता का प्रयोग एक साधन के रूप में किया जाता है।

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