हरबर्ट स्पेन्सर का शिक्षा सिद्धान्त | स्पेन्सर के सिद्धान्त की सीमायें| Herbert Spencer's Theory of Education

 हरबर्ट स्पेन्सर का शिक्षा सिद्धान्त (Herbert Spencer's Theory of Education)

हरबर्ट स्पेन्सर का शिक्षा सिद्धान्त |Herbert Spencer's Theory of Education
 

 हरबर्ट स्पेन्सर का शिक्षा सिद्धान्त

जैसा कि हमलोग पहले ही देख चुके हैं हरबर्ट स्पेन्सर न तो अधिक अध्ययन करता था और न ही एक वैज्ञानिक की तरह प्रयोग करता था । पर उसके विचार मौलिक थे । उसने यूरोप की शास्त्रीय भाषाओंलैटिन तथा ग्रीक का विरोध किया। उदार शिक्षा की जगह वह वास्तविक भौतिक वस्तुओं एवं विज्ञान से सम्बन्धित ज्ञान की शिक्षा देना चाहता था । स्पेन्सर का विचार क्षेत्र अत्यन्त ही व्यापक था जिसमें वह लघु नक्षत्र की उत्पत्ति से लकर मानव मस्तिष्क की संरचना एवं क्रिया का अध्ययन करना चाहता था । स्पेन्सर ने शिक्षा को जीव विज्ञान से जोड़ते हुए कहा "शिक्षा शरीर के अवयवों को उन्नत करती है तथा उन्हें जीवन के योग्य बनाती है ।"

 

स्पेन्सर का शिक्षा सिद्धान्त रूसो के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त से प्रभावित है। स्पेन्सर रूसो की ही तरह 'प्राकृतिक परिणामों द्वारा शिक्षापर बल देता है। साथ ही वह स्त्री को राजनीतिक अधिकार देने का विरोधी है और स्वस्थ गृहिणी के अतिरिक्त उसे अन्य किसी भूमिका में देखने को तैयार नहीं है. 

 

स्पेन्सर ने विभिन्न विषयों के तुलनात्मक महत्व पर गंभीरता से विचार किया और 'कौन सा ज्ञान उपयोगी है?' के व्यापक प्रश्न को उठाते हुए उसका समाधान ढूँढ़ने का प्रयास किया है। स्पेन्सर के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य है पूर्ण जीवन की तैयारी तथा व्यक्ति का कल्याण ।

 

"पूर्ण जीवन के लिए तैयार करना शिक्षा की जिम्मेदारी है तथा किसी शैक्षिक पाठ्यक्रम के मूल्यांकन की एकमात्र विवेक युक्त विधि है कि यह इस कार्य के सम्पादन में किस हद तक सक्षम है ।"

 

पूर्ण जीवन की तैयारी है -

1) ऐसे ज्ञान को प्राप्त करना जो व्यक्ति और सामाजिक जीवन के विकास के अनुकूल हो तथा (2) इस ज्ञान के उपयोग की शक्ति का विकास करना। कौन सा ज्ञान सर्वाधिक योग्य / उपयुक्त है- यह रूसो तथा बेकन दोनों के लिए अहम प्रश्न है। स्पेन्सर इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर देते हैं

 

(अ) ऐसा ज्ञान जो प्रत्यक्ष रूप से आत्मसंरक्षण हेतु आवश्यक है जैसे शरीर विज्ञानस्वास्थ्य विज्ञानभौतिक शास्त्ररसायन शास्त्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। 

(ब) ऐसा ज्ञान जो अप्रत्यक्ष रूप से आत्मसंरक्षण को बढ़ाता है जैसे भोजन प्राप्तिवस्त्र एवं आवास से सम्बन्धित कला एवं विज्ञान .  

(स) संतान की देखभाल - आश्चर्य की बात है कि पशु के संतानोत्पत्ति पर ध्यान दिया जाता हैपुल या बाँध या जूते बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। लेकिन यह मान लिया जाता है कि बिना किसी विशेष ज्ञान या प्रशिक्षण के माता- पिता एवं अध्यापक बच्चे के पालन पोषण में सक्षम हैं।  

(द) राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन का ज्ञानताकि बच्चा भविष्य में कुशल नागरिक एवं पड़ोसी बन सके। सबसे अंत में आता है साहित्यकलासौन्दर्यशास्त्रविदेशी भाषायेंजो जीवन के अवकाश के क्षण के लिए हैं- शिक्षा के अवकाश को भी इनको भरना चाहिए। इस तरह से प्रथम तीन आवश्यकताओं के लिए प्राकृतिक विज्ञान आवश्यक है अतः सामाजिक विज्ञानजो कि चतुर्थ आवश्यकता को पूरा करता है से अधिक महत्वपूर्ण है । इस तरह से 'उदारशिक्षा या सांस्कृतिक विषयोंजो कि उस समय विद्यालय का संपूर्ण पाठ्यक्रम था को कम महत्वपूर्ण माना गया। इस तरह से पुनर्जागरण द्वारा भाषा एवं साहित्य पर दिए गए जोर की स्पेन्सर ने उपेक्षा की ।

 

 हरबर्ट स्पेन्सर के शिक्षण सिद्धान्त 

स्पेन्सर अपने शिक्षण सूत्रों का आधार पेस्टोलॉजी के शिक्षण सिद्धान्त को बनाते है। स्पेन्सर के प्रमुख शिक्षण सूत्र है:-

 

i. सरल से जटिल की ओर : 

स्पेन्सर के अनुसार विषय के चयन एवं अध्यापन कार्य सरल से जटिल की ओर बढ़ना चाहिए। इससे सीखना सरलरूचिकर एवं उत्साहवर्द्धक होता है।

 

ii. ज्ञात से अज्ञात की ओर : 

शिक्षण कार्य को बोधगम्य बनाने हेतु यह आवश्यक है कि शिक्षण कार्य में अध्यापक ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़े। शिक्षण में प्रस्तावना कौशल इसी सूत्र पर आधारित है।

 

iii. स्थूल से सूक्ष्म की ओर : 

स्पेन्सर ने बच्चों को गिनती सिखाने हेतु वास्तविक वस्तुओं को गिनने का अभ्यास कराने को कहा। साथ ही कागजों को काँट-छाँट कर विभिन्न आकारों की वास्तविक जानकारी देने के उपरांत ही बच्चों को ज्यामिति पढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए. 

 

इसके अतिरिक्त स्पेन्सर ने अन्य सिद्धान्त भी प्रतिपादित किएजैसे मानवता के विकास के क्रम की शिक्षा देनी चाहिए। साथ ही स्पेन्सर ने शिक्षण में प्रयोगात्मक तरीकों को अपनाने पर बल दिया। प्रयोग के द्वारा विद्यार्थी वास्तविक ज्ञान प्राप्त करते हैं। उसका मानना था कि बच्चों को सीखाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। इससे बच्चों की सीखने की रूचि समाप्त हो जाती है। स्पेन्सर ने शिक्षा को रूचिकर तथा मनोरंजक बनाने पर बल दिया। इसका उच्चतम रूप बौद्धिक अभ्यास है . 

 

 हरबर्ट स्पेन्सर के  पाठ्यक्रम 

जैसा कि हमलोग देख चुके हैं स्पेन्सर पहला विचारक था जिसे विभिन्न विषयों को उपयोगिता के आधार पर क्रमबद्ध किया। उसने शिक्षा का उद्देश्य मानव को सम्पूर्ण जीवन के लिए तैयार करना बताया । इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए स्पेन्सर ने विज्ञान की शिक्षा को आवश्यक बताया। शिक्षा के द्वारा ही मानव की आवश्यकतायें - बौद्धिकनैतिकशारीरिक की पूर्ति की सकती है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु स्पेन्सर ने निम्नलिखित विषयों के अध्ययन को महत्वपूर्ण मानाः- 

(i) आत्मसंरक्षण या रक्षा हेतु ज्ञान:

  • शरीर विज्ञानस्वास्थ्य विज्ञानस्वच्छताभौतिक शास्त्ररसायन शास्त्र आदि ।

 

(ii) अप्रत्यक्ष रूप से आत्मसंरक्षण से जुड़े विषय : 

  • भोजन प्राप्तिवस्तु एवं आवास से सम्बन्धित विज्ञान एवं कला । इनमें गणितरसायन शास्त्रकृषिमशीन आदि का अध्ययन ।

 

(ii) शिशु - पालन हेतु 

  • बाल मनोविज्ञान तथा गृहशास्त्र । 

(iv) राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन हेतु ज्ञान: 

  • इतिहाससमाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र । 

(v) अवकाश के समय कार्य :

  • स्पेन्सर ने साहित्यकलाकाव्य आदि को महत्व प्रदान नहीं किया है पर अवकाश के क्षणों के सदुपयोग को ध्यान में रखते हुए इन विषयों को पाठ्यक्रम में स्थान दिया है। 
  • स्पेन्सर ने नैतिकता की शिक्षा प्राकृतिक परिणाम के आधार पर ही का सुझाव दिया। इससे बच्चे में व्यावहारिक एवं स्थायी नैतिकता का विकास हो सकता है।

 

  • स्पेन्सर ने शारीरिक शिक्षा को आवश्यक बताया। भोजन में पोषक तत्व जैसे- प्रोटीनविटामिन किस मात्रा में उपलब्ध हो यह भी स्पेन्सर ने निश्चित किया। पौष्टिक भोजनबेहतर स्वास्थ्यव्यायामस्वच्छता आदि को स्पेन्सर ने शिक्षा एवं व्यक्ति के जीवन के लिए आवश्यक माना ।

 

 स्पेन्सर के सिद्धान्त की सीमायें

 

स्पेन्सर के उपयोगितावादी सिद्धान्त की आलोचना की गई है। इसने शिक्षा के परम्परागत महत्व को समाप्त कर दिया । इस सिद्धान्त का पूर्णतः खंडन हुआ कि 'जो विषय व्यावहारिक महत्व प्राप्त कर लेता है उसका शैक्षिक महत्व समाप्त हो जाता है। लेकिन जो व्यवहार को प्रभावित करता हैजीवन स्तर को सुधारता हैमानव को व्यक्तिगत ढंग से या सामूहिक रूप में लाभान्वित करता है वही 'उपयोगितावादहै ।

 

यह कहा जाता है कि स्पेन्सर ने जीवन के श्रेष्ठ- तत्व 'संस्कृतिका  बलिदान किया - निम्न चीजों के लिए - व्यावहारिक लाभ हेतु। इसके विपरीत उन्होंने सांस्कृतिक तत्वों को एक नए ढंग से महत्व प्रदान किया। उन्होंने कहा ज्ञान के इन सभी पक्षों / स्तरों पर जोर दिया जाना चाहिए और सबों को इन्हें क्रम से प्राप्त करने का अवसर मिलना चाहिए।

 

स्पेन्सर की एक आलोचना यह भी की जाती है कि शिक्षा जीवन के लिए तैयारी नहीं है वरन् यह जीवन है। स्पेन्सर ने ज्ञान का महत्व जीवन की तैयारी के लिए माना ।

 

स्पेन्सर के लेख 'इंटलेक्चुअल एडुकेशनमें विधि के बारे में विस्तृत चर्चा करते हैं। इसमें वे पेस्टोलॉजी के सिद्धान्तों का विस्तार करते हैं- शिक्षा का विकास / विस्तार - सरल से जटिलस्थूल से सूक्ष्मअनुभव / प्रयोग से बुद्धिसंगत या युक्तिमूल इनमें स्पेन्सर कुछ भी जोड़ता नहीं है। रूसो के सिद्धान्त सभी नैतिक प्रशिक्षण का मूल बच्चे अपने कार्यों के प्राकृतिक परिणाम के अनुभव से नैतिक शिक्षा प्राप्त करे- को स्पेन्सर ने स्वीकार किया ।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.