हरबर्ट स्पेन्सर के प्रमुख कार्य एवं सिद्धान्त |Major Works and Principles of Herbert Spencer

हरबर्ट स्पेन्सर के प्रमुख कार्य एवं सिद्धान्त 

Major Works and Principles of Herbert Spencer

हरबर्ट स्पेन्सर के प्रमुख कार्य एवं सिद्धान्त |Major Works and Principles of Herbert Spencer

हरबर्ट स्पेन्सर के प्रमुख कार्य एवं सिद्धान्त

स्पेन्सर ने अपने तथ्यों को सीधे निरीक्षण से प्राप्त किया था न कि अध्ययन से । उसने अपनी पहली किताब 'सोशल स्टेटिक्सको केवल जोनाथन डायमंड की किताब पढ़कर लिखा । मनोविज्ञान (दि प्रिन्सिपल्स ऑफ साइकोलॉजी) केवल ह्यूममेन्सेल तथा रीड को पढ़कर लिखा । जीवविज्ञान (बायोलॉजी) केवल कारपेन्टर के कोम्परेटिव फिजियोलॉजी पढ़कर लिखा । सोसियोलॉजी बिना काम्टे या टेलर को पढ़े लिखाएथिक्स बिना काँट और मिल को पढ़े लिखा। निरीक्षण पर आधारित होने के कारण स्पेन्सर के कार्य अधिक मौलिक है . 

 

स्पेन्सर ने 1852 में 'परिकल्पना का विकासया 'दि डेवलपमेन्ट ऑफ हाइपोथिसिस' की रचना की । परिकल्पना ही वैज्ञानिक अध्ययन का आधार है। 1852 में ही उन्होंने 'दि थ्योरी ऑफ पॉपुलेशनकी रचना की जिसमें उन्होंने इस सिद्धान्त को स्वीकार किया कि अस्तित्व के संघर्ष में सर्वाधिक उपयुक्त ही सुरक्षित रहता है। 1855 में मनोविज्ञान का सिद्धान्त (दि प्रिन्सिपल्स ऑफ साइकोलॉजी) प्रकाशित हुआइसमें उन्होंने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया कि 'जितना ही अधिक समूह या जीव विकसित होगा उतना ही कम उसका जन्म दर होगा। 1857 में स्पेन्सर ने अपने प्रसिद्ध निबन्ध 'प्रोग्रेसइट्स लॉज एण्ड कॉज' में कहा कि "हर जीवित चीज की शुरूआत समरूप से होती है और उनका विभिन्न रूपों में विकास होता है ।'फर्स्ट प्रिन्सीपल' 1862 में प्रकाशित हुई जो ग्रहोंजीवन एवं मानव के उत्थान एवं पतनविकास तथा विघटन की शास्त्रीय गाथा है। इसके द्वितीय एवं तृतीय खंड का प्रकाशन 1872 में हुआ। इसके पूर्व, 1860 में 'एडुकेशनइंटलेक्चुअलमोरल एण्ड फिजीकलप्रकाशित हुई। इसमें वैज्ञानिक रूझान की मूल प्रवृति प्रारम्भ से ही दिखती है । अध्ययन हेतु विषयों के उपयुक्त चयन पर स्पेन्सर ने इस कार्य में अत्यधिक जोर दिया ।

 

1858 में जब स्पेन्सर अपने निबन्धों के संकलित रूप में प्रकाशन हेतु सुधार कर रहे थे- तो उनके मन में अचानक यह अन्तर्दृष्टि आई कि 'विकास के सिद्धान्त का जीव विज्ञान के साथ सभी विज्ञानों में उपयोग किया जा सकता है। यह केवल विभिन्न जीवों का ही नहीं वरन् ग्रहोंसामाजिक एवं राजनीतिक इतिहासनैतिक एवं सौन्दर्यबोधक प्रत्ययों की भी व्याख्या कर सकता है।"

 

दि प्रिन्सिपल्स ऑफ साइकोलॉजी (1873 ) दो खंडों में प्रकाशित हुआ- इनमें सिद्धान्तों की प्रचुरता है पर प्रमाणों की दृष्टि से ये कमजोर है।

 

दि प्रिन्सिपल्स ऑफ सोसियोलॉजी का पहला भाग दि स्टडी ऑफ सोसियोलॉजी 1873 में प्रकाशित हुई। स्पेन्सर इस नए विषय के प्रति उत्साही थे। सामाजिक घटनाओंविषयों में भी कारण - परिणाम का सिद्धान्त को वे प्रभावी मानते थे । उनका कहना था कि प्रागैतिहासिक मानव के जीवन में धर्म केन्द्रीय स्थान रखता है। औद्योगिक समाज में प्रजातंत्र और शांति की संभावना अधिक होती है। औद्योगिक समाज ही युद्धों से समाज को मुक्त कर सकता है। कुछ राष्ट्र कार्य से जीते हैं (औद्योगिक समाज) और कुछ युद्ध से (परम्परागत समाज) ।

 

स्पेन्सर ने इतिहास की सर्वथा नवीन व्याख्या की। उनके अनुसार इतिहास मानवों को कार्य करते देखता है न कि युद्धरत राजाओं कोयह व्यक्तित्वों का रिकार्ड नहीं रह जाता है वरन् महान आविष्कारों तथा नए विचारों का इतिहास बन जाता है।

 

स्पेन्सर साम्यवादी विचारधारा का कट्टर विरोधी था वह इस कल्पना मात्र से घृणा करता था कि विश्व पर श्रमिकों का राज्य होगा।

 

दि प्रिन्सिपल्स ऑफ एथिक्स 1893 में प्रकाशित हुई। स्पेन्सर के अनुसार नई नैतिकता जीव विज्ञान पर आधारित होनी चाहिए। स्पेन्सर के अनुसार "कोई भी नैतिक संहिता जो प्राकृतिक चयन तथा अस्तित्व के लिए संघर्षकी परीक्षा पर खरा नहीं उतरतावह प्रारम्भ से ही निरर्थक और बेकार है ।"

 

स्पेन्सर के महत्वपूर्ण विचारों को उनके ही वाक्यों के माध्यम से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। कुछ प्रमुख वाक्य : "उच्चतम व्यवहार वह है जो जीवन का अधिकतम विस्तार तथा पूर्णता को प्राप्त करता है ।"

 

नैतिकता कला की ही तरहअनेकता में एकता प्राप्त करना हैउच्चतम प्रकार का मानव वह है जो अपने में अधिकतम प्रकार की जटिलता तथा जीवन की पूर्णता को जोड़ लेता है।"

 

"सामान्यतः आनन्द जीव विज्ञानी दृष्टि से उपयोगी होने का द्योतक है एवं कष्टजीव विज्ञानी दृष्टि से खतरनाक कार्यों का संकेत करता है ।"

 

न्याय का सूत्र है "प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र है अपनी इच्छा के अनुरूप कार्य करने के लिएशर्त है कि वह दूसरे की बराबर की स्वतंत्रता को बाधित न करे ।"

 

जैसे-जैसे युद्ध कम होता जाता है व्यक्ति का राज्य के द्वारा नियंत्रण के बहाने कम होते जाते हैं। तथा स्थायी शांति की दशा में राज्य का कार्य केवल समान स्वतंत्रता को आघात पहुँचने से रोकने का कार्य रह जाता है। व्यक्ति की ही तरह राष्ट्रों के मध्य व्यापार स्वतंत्र होना चाहिए। "व्यक्ति का अधिकार" से तात्पर्य है- समान आधार पर जीवनस्वतंत्रता और खुशी पाने का अधिकार ।"

 

स्पेन्सर व्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे पर आश्चर्यजनक ढंग से वे महिलाओं को राजनीतिक अधिकार नहीं देने के पक्ष में थे। स्पेन्सर के सिद्धान्तों की अनेक बिन्दुओं पर आलोचना हुई। मशीन के युग में होने के कारणमशीनीकरण या यंत्रीकरण को उन्होंने अनिवार्य मान लिया । स्पेन्सर ने एक वैज्ञानिक की भाँति निरीक्षण से प्रारम्भ कियावैज्ञानिक की ही तरह परिकल्पना का निर्माण करता था लेकिन एक अवैज्ञानिक की तरह प्रयोग नहीं करता थान ही निष्पक्ष निरीक्षण करता थापर अपने पक्ष में आकड़ों को इकट्ठा करता था.  

स्पेन्सर ने ऐसे समय में लिखा जब इंग्लैंड के तुलनात्मक अलगाव ने उसे शांति का समर्थक बना दिया और वाणिज्य तथा उद्योग में सर्वोच्चता ने उन्हें स्वतंत्र व्यापार का प्रबल समर्थक बना दिया । 

उसने राज्य द्वारा वित्तीय सहायता से शिक्षण संस्थाओं के संचालन का विरोध किया ।

 

वह व्यक्ति के नितान्त निजीपन का प्रबल समर्थक था - राज्य द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम उसको अपनी स्वतंत्रता पर आक्रमण लगता था । फर्स्ट प्रिन्सिपल के प्रकाशन के साथ ही स्पेन्सर अपने समय का सर्वाधिक प्रसिद्ध दार्शनिक के रूप में प्रतिष्ठित हो गया । उस काल की वह युगचेतना का द्योतक बन गया। न केवल समस्त यूरोप के विचारों को स्पेन्सर ने प्रभावित किया - वरन् कला एवं साहित्य के यथार्थवादी आन्दोलन को भी प्रभावित किया। 1869 में स्पेन्सर का फर्स्ट प्रिन्सिपुल- आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पाठ्य पुस्तक के रूप में स्वीकृत हुआ ।

 

1903 में अपनी मृत्यु के समय स्पेन्सर का विचार था कि उसका कार्य व्यर्थ गया। लेकिन यह सत्य नहीं है। उसकी लोकप्रियता में सामयिक गिरावट प्रत्यक्षवाद के विरूद्ध अंग्रेज- हीगलवादी प्रतिक्रिया के कारण आई थी । उदारवाद के विकास ने उन्हें फिर अपनी शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ दार्शनिकों में सर्वप्रमुख बना दिया । विल डुरांट के अनुसार अपने युग का प्रतिनिधित्व दाँते के समय से किसी भी दार्शनिक ने उस पूर्णता से नहीं किया जिस समग्रता से स्पेन्सर ने किया। उनका कार्य आश्चर्यजनक ढंग से ज्ञान के अत्यन्त ही विशाल क्षेत्र को समाहित करता है ।

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