फ्रेडरिक फ्रोबेल के अनुसार किण्डरगार्टन | फ्रेडरिक फ्रोबेल के अनुसार शिक्षण विधि |Friedrich Fröbel Education Method in Hindi

 फ्रेडरिक फ्रोबेल के अनुसार  किण्डरगार्टन

फ्रेडरिक फ्रोबेल के अनुसार  किण्डरगार्टन | फ्रेडरिक फ्रोबेल के अनुसार शिक्षण  विधि |Friedrich Fröbel Education Method in Hindi


 फ्रेडरिक फ्रोबेल के अनुसार  किण्डरगार्टन

अपने जीवन के बाद के वर्षों को फ्रोबेल ने किण्डरगार्टन की स्थापना की और विकास में लगाया। यही उसकी प्रसिद्धि का कारण भी है । किण्डरगार्टन शब्द जर्मन भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ 'किण्डरअर्थात् बालक तथा 'गार्टनअर्थात बाग होता है। फ्रोबेल के सिद्धान्त के अनुसार इस उद्यान में बालक पौधेपाठशाला बगीचा तथा शिक्षक माली होता है।

 

'किण्डरगार्टननाम फ्रोबेल के मस्तिष्क में 1840 ई0 में आया जब वह बसन्त ऋतु में एक दिन अपने मित्रों के साथ किलहाउ से बेन्कनड्रग जा रहा था। उसने एक पहाड़ी से रीने नदी की घाटी को देखा जो उसे एक अतिसुन्दर बगीचे की तरह मनमोहक लगी। वह चिल्ला उठा "मुझे मिल गया । मेरी •संस्था का नाम किण्डरगार्टन होगा।" यद्यपि वास्तविक रूप में 1843 ई0 के पहले किण्डरगार्टन की स्थापना नहीं की गई पर उपर्युक्त घटना के आधार पर किण्डरगार्टन की स्थापना का वर्ष 1840 बताया जाता है।

 

 फ्रेडरिक फ्रोबेल के अनुसार शिक्षण  विधि

 

फ्रोबेल ने निम्नलिखित शिक्षण विधियों के प्रयोग पर जोर दिया-

 

(i) खेल विधि : 

फ्रोबेल प्रथम शिक्षाशास्त्री हैं जिन्होंने शिक्षा में खेल को महत्व को समझते हुए उसका उपयोग किया। उनके अनुसार खेल बालक की स्वभाविक क्रिया है और इसमें उन्हें आत्माभिव्यक्ति का अवसर मिलता है। फ्रोबेल के अनुसार खेल के द्वारा ही शिशु सर्वप्रथम संसार में अपने मौलिक रूप को प्रस्तुत करता है।

 

(ii) आत्मक्रिया विधि : 

फ्रोबेल आत्मक्रिया विधि या स्वयं कर के सीखने की विधि को शिक्षा में महत्वपूर्ण मानता है। इसमें बालक स्वयं क्रिया करता है और सीखता है। इसके लिए उन्होंने अपनी किण्डरगार्टन पद्धति में अनेक प्रकार के उपहारों का विकास किया जिनमें गोलाकारआयताकारबेलनाकारघनाकारवर्गाकार तथा त्रिभुजाकार आकृति के लकड़ीलोहे एवं ऊन से बनी वस्तुएं मुख्य हैं I

 

(iii) स्वतंत्र एवं निरन्तर सीखने की विधि : 

फ्रोबेल सीखने के लिए स्वतंत्रता एवं निरन्तरता को आवश्यक मानता है। उसके अनुसार बच्चों को स्वयं सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए तथा इनकी स्वतंत्रता में बाधा उत्पन्न नहीं करना चाहिए।

 

(iv) वस्तुओं से सीखने की विधि : 

फ्रोबेल की यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है। उसके अनुसार बच्चे अमूर्त संप्रत्ययों की तुलना में मूर्त एवं ठोस वस्तुओं से कम ही समय में प्रभावशाली ढंग से सीखते हैं। वर्तमान समय में श्रव्य दृश्य सामग्रियों का शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में उपयोग किया जाता है। फ्रोबेल ने इसके स्थान पर उपहारों का उपयोग किया।

 

 फ्रेडरिक फ्रोबेल के अनुसार अध्यापक का कार्य 

किण्डरगार्टन या बालोद्यान के प्रवर्तक फ्रोबेल के अनुसार अध्यापक का कार्य है- गीतोंखेलों और चित्रों आदि का सही चयन करना। गीत गाते हुएखेल खेलते हुएचित्रों को देखते तथा बनाते समयबालक-बालिकाएं भी भाषा का प्रयोग करते हैं। फ्रोबेल का यह मानना था कि विद्यार्थियों को शिक्षण-अधिगम में गीतगति और रचना तीन स्वतंत्र इकाइयाँ नहीं है। ये एक- दूसरे से अलग महत्वहीन हैं।

 

फ्रोबेल अनुसार बालक की खेल प्रवृतियों का ठीक दिशा में संचालन किया जाना चाहिए । समुचित निर्देशन के आभाव में खेल एक उद्देश्यहीन क्रिया बनकर रह जाती है। खेल का उचित दिशा में संचालन में अध्यापकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। शिक्षक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किण्डरगार्टन (बालोद्यान) पद्धति में बालक-बालिकाएं इस प्रकार खेलें कि उनका स्वभाविक विकास हो सके।

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