मदन मोहन मालवीय महामना का शिक्षा सिद्धान्त | Education Principle of Madan Mohan Malaviya Mahamana

 मदन मोहन मालवीय महामना का शिक्षा सिद्धान्त

मदन मोहन मालवीय महामना का शिक्षा सिद्धान्त | Education Principle of Madan Mohan Malaviya Mahamana


 मदन मोहन मालवीय महामना का शिक्षा सिद्धान्त

  • महामना सही अर्थों में शिक्षा को सर्वाधिक प्रभावशाली शक्ति मानते थे । वे भारत के सांस्कृतिक-सामाजिक और राजनीतिक-आर्थिक पराभव का कारण भारतीयों की निरक्षरता एवं अशिक्षा को मानते थे उनका कहना था कि "यदि देश का अभ्युदय चाहते हो तो सब प्रकार से यत्न करो कि देश में कोई बालक या बालिका निरक्षर न रहे।" उनके अनुसार देश की दुर्दशा को समाप्त करने का एकमात्र साधन साक्षरता एवं शिक्षा है । अतः उन्होंने अपने जीवन के अधिक महत्वपूर्ण भाग को शिक्षा में लगाया ।

 

  • महामना शिक्षा को मानव-जीवन के सर्वागींण विकास का साधन मानते थे। उनकी दृष्टि में शिक्षा वह है जो विद्यार्थी की शारीरिकबौद्धिक तथा भावात्मक शक्तियों को परिपुष्ट और विकसित कर सके तथा भविष्य में किसी व्यवसाय द्वारा ईमानदारी से जीवन-निर्वाह करने के योग्य बना सके । महामना शिक्षा के द्वारा युवा वर्ग को कलात्मक और सौन्दर्यपूर्ण जीवन के लिए तैयार करना चाहते थे । वे शिक्षा को राष्ट्रप्रेम जागृत करने वाली शक्ति बनाना चाहते थे ताकि नई पीढ़ी निस्वार्थ भाव से समाज एवं राष्ट्र की सेवा कर सके।

 

  • मदन मोहन मालवीय शिक्षा को मानव मात्र का अधिकार मानते थे तथा इसका समुचित प्रबन्ध करना राज्य का कर्त्तव्य मानते थे। वे शिक्षा की एक ऐसी राष्ट्रीय प्रणाली विकसित होते देखना चाहते थे जिसमें प्रारम्भिक और माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा निःशुल्क हो। वे कहते थे "सब स्तर पर शिक्षा का ऐसा प्रबन्ध हो कि कोई बच्चा निर्धन होने के कारण उससे वंचित न रह पाये।" उनका मानना था कि शिक्षा के व्यापक विस्तार से सामाजिक कुरीतियों और आर्थिक विषमताओं को दूर किया जा सकता है।

 

  • महामना पुरूषों की शिक्षा से अधिक महत्वपूर्ण स्त्रियों की शिक्षा को मानते थे। इसका कारण यह है कि वे ही देश की भावी संतान की मातांए हैं। उनकी इच्छा थी कि राष्ट्रीय कार्यक्रम के आधार पर स्त्रियों को इस तरह शिक्षित किया जाये कि उनमें प्राचीन तथा आधुनिक संस्कृतियों के बेहतर पक्षों का समन्वय हो। वे नारियों को इतना सबल बनाना चाहते थे कि वे भारत के पुनर्निमाण में वे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।

 

मदन मोहन मालवीय के अनुसार  शिक्षा का उद्देश्य

 

जैसा कि पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि महामना को शिक्षा में वह शक्ति दिखती थी जो व्यक्तिसमाज और राष्ट्र तीनों के विकास के लिए आवश्यक है। इसके लिए उन्होंने शिक्षा के व्यापक उद्देश्य निर्धारित किए।

 

1. व्यक्तित्व का सर्वागींण विकास 

महामना शिक्षा के द्वारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास चाहते थे। केवल बौद्धिक विकास को वे अर्थहीन मानते थे । विद्यार्थी के बौद्धिकशारीरिकमानसिक एवं भावात्मक पक्षों के समन्वित विकास को महामना ने शिक्षा का परम लक्ष्य माना ।

 

2. शारीरिक विकास 

महामना का मानना था कि दुर्बल शरीर वाले व्यक्ति सबल राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते। उनके अनुसार शिक्षा व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य शारीरिक विकास है। 'मेरा बचपननामक लेख में महामना ने लिखा "स्वास्थ्य के तीन खम्भे हैं- आहारशयन और ब्रह्मचर्य। तीनों की युक्तिपूर्वक सेवन करने से स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।" वे चाहते थे कि प्रत्येक विद्यार्थी पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करे तथा प्रतिदिन नियम से व्यायाम करे । उनका मानना था कि ब्रह्मचर्य ही व्यक्ति को आत्मबल देता हैजिसके द्वारा व्यक्ति संसार में सब कष्टों और कठिनाईयों का साहस के साथ सामना कर सकता है।

 

3. चरित्र गठन हेतु शिक्षा 

महामना की दृष्टि में चरित्र गठन शिक्षा का सर्वप्रमुख उद्देश्य है । विनम्रता विहीन ज्ञानउनकी दृष्टि में निरर्थक है । वे व्यक्ति के उत्कर्ष और राष्ट्र की उन्नति के लिए उज्ज्वल चरित्र को बौद्धिक तथा व्यवसायिक विकास से कहीं अधिक महत्वपूर्ण मानते थे। उनके अनुसार सदाचार मनुष्य का परमधर्म हैउसका पालन मनुष्य का पुनीत कर्तव्य तथा उसकी वृद्धि उसका पुरुषार्थ है।

 

4. राष्ट्रीयता की भावना का विकास 

महामना मालवीय ने शिक्षा के एक महत्वपूर्ण उद्देश्य राष्ट्रभक्ति की भावना का विकास बताया। उनके अनुसार शिक्षित व्यक्ति को राष्ट्र के प्रति निःस्वार्थ भक्ति भाव रखना चाहिए। उन्होंने कहा "यह भारत हमारा देश है। सभी बातों के विचार से इसके समान संसार में कोई दूसरा देश नहीं है। हमको इस बात के लिए कृतज्ञ और गौरवान्वित होना चाहिए कि उस कृपालु परमेश्वर ने हमें इस पवित्र देश में पैदा किया।" 

महामना ने भारतीय राष्ट्रीयता का आधार हिन्दुत्वमाना। अतः वे हिन्दुत्व पर आधारित राष्ट्रभक्ति की शिक्षा का उद्देश्य बनाना चाहते थे । यहाँ यह तथ्य उल्लेखनीय है कि महामना की 'हिन्दूकी धारणा बड़ी व्यापक थी । भारत के सभी निवासियों को वे हिन्दू मानते थे । वस्तुतः हिन्दुत्व को वे एक श्रेष्ठ जीवन शैली के रूप में देखते थे। वे हिन्दुत्व पर आधारित भारतीय संस्कृति का हर तरह से विकास करना चाहते थे ।

 

5. सेवा भावना का विकास

 

महामना की दृष्टि में सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है। वे सभी जीवों में ईश्वर का अंश देखते थे। उनका मानना था कि पीड़ितवंचितदुखी व्यक्ति की सेवा वस्तुतः ब्रह्म प्राप्ति का सबसे उपयुक्त साधन है। वे विद्यार्थी में सेवा एवं सदाचार का भाव प्रारम्भ से ही विकसित करना चाहते थे ।

 

इस प्रकार महामना मदन मोहन मालवीय ने शिक्षा का अत्यन्त ही विस्तृत उद्देश्य रखा। वे शिक्षा द्वारा राष्ट्रभक्तसदाचारीचरित्रवानस्वावलम्बी भारतीय नागरिक का निर्माण करना चाहते थे।

 

मदन मोहन मालवीय महामना के अनुसार  पाठ्यक्रम

 

  • पाठ्यक्रम का निर्माण शैक्षिक आदर्शों और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। पाठ्यक्रम से ही इस तथ्य का निर्धारण होता है कि किस स्तर पर किस चीज की शिक्षा देनी है। पाठ्यक्रम कोई निर्धारित वस्तु नही है जो हर समय हर स्थान पर एक जैसी रहे। हर समाज और देश अपनी आवश्यकतानुसार पाठ्यक्रम निर्धारित करता है। अर्थात् देशकाल और परिस्थिति के अनुसार पाठ्यक्रम का निर्माण होता है और नई परिस्थितियों में पाठ्यक्रम में संशोधन और परिमार्जन होता रहता है। 

  • महामना ने यह महसूस किया कि संकुचित पाठ्यक्रम द्वारा राष्ट्रीय उद्देश्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अतः उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में अत्यन्त ही लचीले पाठ्यक्रम को अपनाया। महामना ने अपने विश्वविद्यालय में प्राचीन से लेकर अर्वाचीन- सभी उपयोगी विषयों को स्थान देने का प्रयास किया। महामना देश के विकास हेतु विज्ञान की शिक्षा आवश्यक मानते थेअतः उन्होंने आधुनिक विज्ञान की शिक्षा पर जोर दिया। 

  • व्यक्ति आत्मनिर्भर बने अतः बुनाईरंगाईधुलाईधातुकर्मकाष्ठकलामीनाकारी आदि की शिक्षा पर मालवीय ने बल दिया। भारत एक कृषि प्रधान देश है अतः महामना ने इस ओर विशेष ध्यान देते हुए कृषि के आधुनिकतम उपकरणों के प्रयोग की शिक्षा की उच्चतम व्यवस्था की। वे चाहते थे कि माध् यमिक स्तर पर कृषि सम्बन्धी शिक्षा दी जाये तथा उच्च स्तर पर भी इस विषय में अनुसन्धान किये जाये । 

  • इसके साथ-साथ महामना ने चिकित्सा विज्ञानआयुर्वेदनक्षत्र विज्ञानभाषा आदि सभी की शिक्षा पर जोर दिया जिससे विद्यार्थी अपनी रूचि के अनुसार शिक्षा प्राप्त कर सके। महामना ने वस्तुतः बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को प्राचीन एवं नवीन ज्ञान का संगम स्थल बना दिया। प्राचीन भारतीय आयुर्वेद के साथ आधुनिक शल्यशास्त्र का मेलआयुर्वेदिक औषधियों का वैज्ञानिक परीक्षण तथा उन पर अनुसन्धानविभिन्न विषयों पर प्राच्य और पाश्चात्य ज्ञान का तुलनात्मक और समन्वयात्मक अध्ययनप्राचीन भारतीय संस्कृतिदर्शनशास्त्रसाहित्य और इतिहास के गम्भीर अध्ययन-अध्यापनवेद-वेदांग तथा संस्कृत साहित्य की शिक्षा के अतिरिक्त आधुनिक ज्ञान-विज्ञानधातु विज्ञानखनन कार्यइंजीनियरिंग तथा कृषि विज्ञान का अध्ययन इसकी विशेषता थी । 

  • महामना मालवीय चाहते थे कि विद्यालय में संगीतकाव्यनाट्यकलाचित्रकलामूर्तिकलावास्तुकला आदि ललितकलाओं की शिक्षा का प्रबन्ध हो। उनके विचार में कला विहीन जीवन शुष्क और नीरस होता हैजबकि ललितकलाओं का ज्ञान उनको परखने की क्षमता तथा शुद्ध भावनाओं के साथ उनके प्रति अभिरूचि और उनका सम्यक अभ्यास जीवन को सरस और आनन्दमय बनाता है।

 

  • महामना के अनुसार धार्मिक शिक्षा ही चरित्र निर्माण का आधार . अतः वे शिक्षा में धर्म को उचित स्थान देना चाहते थे। पर धर्म का उनका संप्रत्यय अत्यन्त ही उदार था। वे धार्मिक असहिष्णुता के विरूद्ध थे। जिस धर्म की शिक्षा वे देना चाहते थे उसके संदर्भ में वे कहते हैं "धर्म यह है कि प्राणी को प्राणी के साथ सहानुभूति होएक-दूसरे को अच्छी अवस्था में रखकर प्रसन्न हों और गिरी हुई अवस्था में सहायता दें।"

 

 मदन मोहन मालवीय महामना के अनुसार अध्यापकों एवं छात्रों के कर्तव्य

 

वे विश्वविद्यालय के माध्यम से काशी को सरस्वती की अमरावती बना देने का पावन उद्देश्य रखते थे। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने अध्यापकों के निम्नलिखित कर्तव्य बताये

 

  • धर्म और शास्त्र का पालन करेंगे। 
  • सदाचारी रहेंगे 
  • देश सेवा के कार्यों में रत रहेंगे। 
  • विद्यार्थी के सर्वांगिण विकास हेतु हर संभव प्रयास करेंगे। 
  • छात्रों को निम्नलिखित कार्यों हेतु निर्देश दिये गये व्यायाम करके शरीर को बलशाली बनायें । 
  • पहले स्वास्थ्य सुधारें फिर विद्या पढ़ें । 
  • शाम को खेलेंमैदान में विचरें। 
  • जल्दी भोजन करें और नियम से नित्य अध्ययन करें। 
  • धार्मिक उत्सवोंएकादशी कथा तथा गीता प्रवचनों आदि में उपस्थित रहें । 
  • अपनी रक्षा आप करें। 
  • समय के पाबन्द बनें और इसे नष्ट न करें।

 

महामना अध्यापकों में उच्च चरित्र देखना चाहते थे ताकि छात्र उनसे प्रेरणा ग्रहण कर स्वंय चरित्रवानसदाचारी और समाजसेवी बन सके। इसी उद्देश्य से विश्वविद्यालय को आवासीय बनाया गया। इस प्रकार महामना अध्यापक एवं विद्यार्थी दोनों से ही उत्तम चरित्र और श्रेष्ठ व्यवहार की आशा रखते थे।

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