योग के प्रमुख आसान और उनके लाभ |प्रमुख योगासन के नाम विधि और लाभ | Yog Ke Aasan Vidhi aur Laabh

योग के प्रमुख आसान और उनके लाभ ,प्रमुख योगासन के नाम विधि और लाभ 


ताड़ासन  

ताड़ासन


ताड़ासन विधि


  • खड़े होकर दोनों पैर एक साथहाथ की अंगुलियों को आपस में फंसाकर पलटकर सर के ऊपर रखिए; 
  • सामने दीवार में एक बिंदु निश्चित कीजिएजिसमें अपनी चेतना को केन्द्रित रखते हुएश्वास लेते हुएहाथों को ऊपर उठाइयेऔर सीधा कीजिएएड़ी उठाते हुए पंजों के बल खड़े होने का प्रयास कीजिए, 
  • श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे नीचे आइए। इस क्रिया को 5 बार कीजिए । खिंचाव अनुभव कीजिएविश्राम कीजिए, 
  • अभ्यास के प्रभाव को जानने का प्रयास कीजिए

 

2. कटि-चक्रासन

 

कटि-चक्रासन

कटि-चक्रासन विधि

 

  • दोनों पैरों को एक फुट तक खोलकर सीधे खड़े हो जाएं। 
  • दोनों हाथों को कंधे की ऊँचाई तक लाते हुए सामने ले आयें । 
  • इस अवस्था में दोनों हाथों की हथेलियां आमने-सामने रहेंगी। इसके पश्चात कमर को मोड़ते हुए बांई ओर घूमें। 
  • इस अवस्था में बायां हाथ मोड़कर कमर पर लगाएं और दायां हाथ आधा मोड़कर अपने वक्षस्थल पर लगाएं। 
  • इसी प्रकार दूसरी तरफ से इसका अभ्यास करें ।

 

कटि-चक्रासन के लाभ 

  • यह आसन भी शंख प्रक्षालन की क्रिया का महत्वपूर्ण आसन है। 
  • इसके अभ्यास से कमर रबड़ की तरह लचीली हो जाती है। 
  • कंधेबाजू व कमर पतली हो जाती है 
  • महिलाओं व मधुमेह रोगियों के लिए अच्छा आसन है। 


सिद्धासन

 

सिद्धासन

सिद्धासन विधि

 

  • जमीन पर दरीचटाई अथवा कंबल बिछाकर बैठ जाएं और पैर आगे की ओर फैला लें । 
  • अब बायां पाँवघुटने से मोड़ें और हाथों से पकड़ते हुए उसका तलादाईं जंघा से मिला दें 
  • इसी प्रकार दायां पांव घुटने से मोड़ें और उसे बाईं ऐड़ी के जोड़ परजननेन्द्रियों के समीप रखें । 
  • दोनों हाथ (ज्ञान मुद्रा) घुटनों पर रखें । 
  • कमरगर्दन और सिर सीधा रखें।

 

सिद्धासन के लाभ

 

  • इस आसन के अभ्यास से सभी नस-नाड़ियाँ शुद्ध होती हैं । 
  • मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ती है और दिमाग तेज़ होता है। 
  • जोड़ों का कड़ापन (विशेषकर कमरकूल्हे और घुटने) दूर होता है। 
  • मेरुदण्ड में रक्त का संचार सुगमता से होता है।

 

पद्मासन

 

पद्मासन

पद्मासन विधि

 

  • दाहिने पांव को बायें जांघ पर रखें; 
  • अब बायें पांव को उठाकर दांयी जांघ पर रखें; 
  • कमरगर्दन और सिर सीधा रखें; 
  • दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा में घुटनों पर रखें।

 

पद्मासन के लाभ

 

  • पाचन शक्ति बढ़ाता है, 
  • जोड़ों का कड़ापन दूर होता हैएकाग्रता बढ़ती है, 
  • इसके प्रभाव से शरीर कमल के समान खिल जाता हैयानि स्वस्थ हो जाता है।

 

वज्रासन

 

वज्रासन

वज्रासन विधि


  • दोनों पाँव घुटने से मोड़ते हुए बैठ जाएं; 
  • पैर का अग्र भाग नितम्ब (कूल्हे) के नीचेइस प्रकार रखें कि ऐड़ी ऊपर की ओर रहे और दोनों पंजे आपस में मिले रहें; 
  • दोनों हाथ जंघा पर रखें; 
  • कमर और गर्दन बिल्कुल सीधा रखें; 
  • आँखें खुली रखें और सामने देखें; 
  • श्वास सामान्य रखें।

 

वज्रासन के लाभ

 

  • जिन बुर्जुगों को अपचपेट में भारीपन और बदहज़मी की शिकायत रहती हों उन्हें यह आसन भोजन के तुरंत बाद अवश्य करना चाहिए; 
  • इस आसन के नियमित अभ्यास से शरीर वज्र के समान कठोर हो जाता है; 
  • गठियाकमर और घुटनों के रोग के लिए यह बहुत लाभकारी है। 
  • वज्रासन ही अकेला एक आसन है जो भोजन के तुरंत बाद किया जाता है।

 

शशांकासन

 

शशांकासन

शशांकासन विधि

 

  • सर्व प्रथम वज्रासन में बैठना चाहिए। 
  • दोनों पैरों के घुटनों को एक-दूसरे से दूर फैलाएं। 
  • इस प्रकार बैठें कि पैरों के अंगूठे एक-दूसरे से मिले हों । 

  • दोनों हथेलियों को घुटनों के बीच जमीन पर रखें। 
  • श्वास को बाहर छोड़ते हुए दोनों हथेलियों को सामने की ओर स्वयं से दूर ले जाएं। 
  • आगे की ओर झुकते हुए ठुड्डी को जमीन पर रखें 
  • दोनों भुजाओं को समानांतर रखें। 
  • सामने की ओर देखें और इस स्थिति को बनाए रखें। 
  • श्वास को अंदर खींचते हुए पीछे की ओर आ जाएं। 
  • श्वास को बाहर छोड़ते हुए वज्रासन में वापस लौट आएं। 
  • पैरों को पीछे खींचकर विश्रामासन में वापस जा जाएं। 


शशांकासन लाभ

  • शशांकासन का अभ्यास तनावक्रोध आदि को कम करने में सहायक है। 
  • यह जनन अंग संबंधी व्याधि एवं कब्ज से मुक्ति दिलाता है एवं पाचन क्रिया संबंधी व्याधि व पीठ दर्द से छुटकारा दिलाता है।

 

शशांकासन सावधानियां

 

  • अधिक पीठ दर्द में इस अभ्यास को नहीं करना चाहिए। 
  • घुटनों से संबंधित ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित व्यक्तियों को इस अभ्यास को सावधानीपूर्वक करना चाहिए अथवा वज्रासन से बचना चाहिए । 
  • उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों को इस आसन से परहेज करना चाहिए।

 

सिंहासन

 

सिंहासन

सिंहासन विधि

 

  • सांस भर कर रोकें; 
  • जिहा को अधिक-से-अधिक बाहर की ओर निकालते हुए कमर को आगे की ओर झुकाएं; 
  • शेर जैसी स्थिति में आने के लिए वज्रासन की स्थिति में बैठकर दोनों हथेली जमीन पर टिकाएँ ।  
  • ध्यान रहे कि आपकी गर्दन बिल्कुल सीधी हो; 
  • जोर से दहाड़े; 
  • पूर्व स्थिति में बैठ जाएं 
  • इस क्रिया को तीन बार दोहराएंतीन बार दोहराने के बाद गले को दोनों हाथों से मलें, 
  • मुंह में आई लार को अंदर निगल लें।


लाभ 
 
  • गले/ कंठ के विकार दूर होते हैं; 
  • स्वर साफ़ व स्पष्ट होता है; 
  • गले की मांसपेशियां सुदृढ़ होती हैं।

 

गोमुखासन

 

गोमुखासन

गोमुखासन विधि

 

  • बायीं टांग घुटने से मोड़कर उसी पाद तल पर बैठें और दाहिनी टांग को मोड़कर बायीं टांग पर रखें; 
  • दाहिनी भुजा को ऊपर से पीठ पर ऐसा मोड़ें कि उसका पिछला भाग कान को स्पर्श करे; 
  • कोहनी शिखा से सटी रहे, 
  • पीठ पर बायें हाथ से दाहिने हाथ की तर्जनी पकड़ें; 
  • इसी प्रकार दूसरी ओर से इसका विपरीत करें।

 

गोमुखासन के लाभ 

  • फेफड़े संबंधी बीमारियों में उपयोगी है; 
  • दमा तथा क्षय रोगियों को अवश्य करना चाहिए; 
  • इसके अलावा कंधों में मजबूती आती है; 
  • कोहनीजंघा एवं घुटनेटखनों के लिए अच्छा है; 
  • जिनके घुटनों में दर्द रहता होउनको इसका अभ्यास निरंतर करना चाहिए।

 

अर्ध उष्ट्रासन

 

अर्ध उष्ट्रासन



अर्ध उष्ट्रासन विधि

 

  • सर्वप्रथम विश्रामासन में बैठ जाएं। 
  • पुनः दंडासन की स्थिति में आ जाएं। 
  • पैरों को मोड़ते हुए एड़ियों पर बैठ जाएं। 
  • जांघों को सटाकर रखें एवं अंगूठे एक-दूसरे से सटे हों । 
  • हाथों को घुटनों पर रखें। 
  • सिर एवं पीठ को बिना झुकाए सीधा रखें। यह स्थिति वज्रासन कहलाती है। 
  • घुटनों पर खड़े हो जाएं। 
  • हाथों को कमर पर इस प्रकार रखें कि अंगुलियां जमीन की ओर हों। 
  • कोहनियों एवं कंधों को समानांतर रखें अब सिर को पीछे की तरफ झुकाते हुए ग्रीवा की मांसपेशियों को खींचें। 
  • श्वास अंदर खींचें एवं धड़ को जितना संभव हो सके झुकाएं। 
  • श्वास बाहर छोड़ते हुए शिथिल हो जाना चाहिए। 
  • पुनः जांघों को जमीन से लंबवत रखें। 
  • सामान्य रूप से श्वास लेते हुए इस मुद्रा में 10-30 सेंकंड तक रुकें । 
  • श्वास अंदर खींचते हुए सामान्य मुद्रा में वापस लौटते हुए वज्रासन में बैठ जाएं। पुनः विश्रामासन में शिथिल हो जाना चाहिए

 

अर्ध उष्ट्रासन के लाभ

 

  • इस योगाभ्यास से पीठ और गर्दन की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। 
  • कब्ज एवं पीठ दर्द से मुक्ति हमलती है। 
  • सिर एवं हृदय क्षेत्र में रक्त संचार बढ़ाता है। 
  • यह योगाभ्यास हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभदायक हैकिंतु इसका अभ्यास सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।

 

अर्ध उष्ट्रासन में सावधानियां

 

  • हर्निया एवं उदर संबंधी गंभीर व्याधि तथा आर्थराइटिसचक्कर आनास्त्रियों के लिए गर्भावस्था के समय में इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

 

उष्ट्रासन

 

उष्ट्रासन

उष्ट्रासन विधि

 

  • घुटनों को जमीन पर टिकाते हुए अपने दोनों पैरों के जांघ और पंजों को आपस में मिला लीजिएपंजों को बाहर की तरफ रखते हुए जमीन पर फैला दीजिए। 
  • घुटनों और पंजों के बीच एक फुट की दूरी रखते हुए घुटनों के बल खड़े हो जाएं। 
  • श्वास लेते हुए पीछे की ओर झुकें। 
  • इस बात का ध्यान रखें कि पीछे झुकते समय गर्दन को झटका न लगे । 
  • पीछे की ओर झुकें और धीरे-धीरे दाहिने हाथ से दाहिनी एड़ी और बायें हाथ से बाईं एड़ी को पकड़ने का प्रयास करें। 
  • अंतिम स्थिति में जांघ को जमीन पर उर्ध्वाकार (लंबवत्) रखते हुए सिर को हल्का सा पीछे की ओर खींचकर रखें । 
  • यथासंभव पूरे शरीर का भार अपनी भुजाओं और पैरों पर होना चाहिए। इसका अभ्यास सर्वांगासन के बाद करना चाहिए इस मुद्रा में उचित लाभ होता है।

 

उष्ट्रासन के लाभ

 

  • उष्ट्रासन दृष्टिदोष में अत्यंत लाभदायक है। 
  • यह पीठ और गले के दर्द से आराम दिलाता है। 
  • यह उदर और नितम्ब की चर्बी को कम करने में सहायक है। 
  • पाचन क्रिया संबंधी समस्याओं के लिए यह अत्यंत लाभदायक है।

 

उष्ट्रासन में सावधानियां

 

  • उच्च रक्तचातहृदय रोगीहर्निया के मरीजों को यह आसन नहीं करना चाहिए।

 

अर्धमत्स्येन्द्रासन

 

अर्धमत्स्येन्द्रासन

अर्धमत्स्येन्द्रासन विधि

 

  • सर्वप्रथम सामने पैर फैलाकर बैठ जाइए। इसके पश्चात् बायें पैर को घुटने से मोड़ते हुए दाँयी तरफ से लाते हुए नितम्बों के पास स्थित करें; 
  • फिर दायें पैर को बायें घुटने के ऊपर से लाते हुए घुटने के पास रखें; 
  • ध्यान रहे कि पंजे घुटने से आगे न जाएं; 
  • बायें हाथ को कंधे से घुमाते हुए दाएं पैर के ऊपर से इस प्रकार से लायें कि दायें पैर का अंगूठा पकड़ लें; 
  • फिर दायें हाथ को पीछे से घुमाते हुए नाभि को स्पर्श करने का प्रयत्न करें; 
  • ठीक इसी प्रकार विपरीत दिशा में भी करें।

 

अर्धमत्स्येन्द्रासन लाभ

 

  • यह आसन विशेष रूप से मधुमेह के रोगियों के लिए उपयोगी है। 
  • इसके निरंतर अभ्यास से पेन्क्रियाज ग्लेण्ड की मसाज हो जाती है जिससे इंसुलिन बनने लगती है जो कि मधुमेह के रोगियों के लिए अति आवश्यक है; 
  • इससे पेट के आंतरिक अवयवों की भी अच्छी तरह मसाज हो जाती हैजिससे वे भी अच्छी तरह कार्य करने लगते हैं; 
  • अपच को दूर करता है; 
  • कब्जवायु विकार आदि रोग इसके निरंतर अभ्यास से दूर होते हैं; 
  • पेट में कई प्रकार के कृमि और कीड़े होते हैंइसके निरंतर अभ्यास से ये कृमि और कीड़े अपने आप ही मर जाते हैं; 
  • इसके अलावाकमर लचीली व पतली हो जाती है और पेट पर से अत्यधिक चर्बी कम हो जाती है।

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