सूर्य नमस्कार क्या होता है |सूर्य नमस्कार करने की विधि एवं लाभ | Surya Namaskaar Kya Hota Hai
सूर्य नमस्कार करने की विधि एवं लाभ
सूर्य नमस्कार क्या होता है ?
- यह निश्चित योगासनों का एक समूह है, जिसे एक निश्चित क्रम में किया जाता है।
सूर्य नमस्कार करने की विधि
प्रथम स्थिति (प्रणाम आसन) :
- सूर्य के सम्मुख खड़े होकर नमस्कार की मुद्रा में हाथों को वक्ष स्थल के सामने रखें।
द्वितीय स्थिति (हस्त उत्तानासन):
- श्वास अंदर भरकर सामने से हाथ खोलते हुए पीछे की ओर ले जाएं। आसमान की ओर देखें। कमर को यथा शक्ति पीछे की ओर झुकाएं।
तृतीय स्थिति (पाद हस्तासन):
- श्वास बाहर निकालकर हाथों को पीछे से सामने की ओर झुकाते हुए पैरों के पास जमीन पर टिका दें। प्रयास करें कि हथेलियों को भी भूमि से स्पर्श कराया जा सके और सिर को घुटनों से लगाया जा सके।
चतुर्थ स्थिति (अश्व संचालन):
- नीचे की ओर झुकते हुए हाथों की हथेलियों को छाती के दोनों ओर टिकाएं। बायां पैर उठाकर पीछे की ओर भुजंग आसन की स्थिति में ले जाएं और दायां पैर दोनों हाथों के बीच रहे। घुटना छाती के सामने व पैर की एड़ी जमीन पर टिकी रहे। श्वास अंदर भरकर आकाश की ओर देखें ।
पंचम स्थिति (पर्वतासन):
- श्वास बाहर निकालकर दाहिने पैर को अब पीछे ले जायें, गर्दन व सिर दोनों हाथों के बीच में रहें। नितम्ब व कमर को उठाकर तथा सिर को झुकाकर नाभि को देखें ।
षष्टम स्थिति (अष्टांग नमस्कार):
- हाथों व पैरों के पंजों को स्थिर रखते हुए छाती व घुटनों को भूमि पर स्पर्श करें। दोनों हाथ दोनों पैर, दोनों घुटने, छाती व सिर से आठ अंग भूमि पर स्पर्श करते हैं तो यह साष्टांगासन कहलाता है। श्वास-प्रश्वास सामान्य रखें
सप्तम स्थिति (भुजंग आसन):
- श्वास अंदर भरकर छाती को ऊपर उठाते हुए आसमान की ओर देखें यह भुजंगासन की स्थिति है।
अष्टम स्थिति ( पर्वतासन):
- विधि संख्या पंचम की तरह ।
नवम स्थिति (अश्व संचालनासन):
- विधि संख्या चतुर्थ की तरह। लेकिन इसमें बायें पैर को दोनों हाथों के बीच में रखें।
दशम स्थिति (पाद हस्तासन):
- विधि संख्या तृतीय की तरह।
एकादश स्थिति (हस्त उत्तासन)
- विधि संख्या द्वितीय की तरह।
द्वादश स्थिति (प्रणाम आसन) :
- विधि संख्या प्रथम की तरह।
सूर्यनमस्कार के लाभ :
हमने 'सूर्यनमस्कार की सभी स्थितियों के विषय में जाना। आइए अब जानते हैं कि सूर्यनमस्कार के लाभ क्या हैं-
- सूर्यनमस्कार एक पूर्ण व्यायाम है जो संपूर्ण शरीर को पूर्ण आरोग्यता प्रदान करता है।
- यह शरीर के सभी अंगों, प्रत्यंगों को बलिष्ठ व निरोगी बनाता है।
- मेरुदण्ड व कमर को लचीला बनाता है और वहां आए विकारों को दूर करता है।
- यह उदर, आंत्र, आमाश्य, अग्न्याश्य, हृदय और फेफड़ों को स्वस्थ करता है।
- समस्त शरीर में रक्त का संचार, सुचारू रूप से करता है और रक्त की अशुद्धियों को दूर कर चर्म रोगों का विनाश करता है।
- शरीर के सभी अंगों की मांसपेशियां पुष्ट एवं सुंदर होती हैं।
- सूर्यनमस्कार बल, तेज व ओज की वृद्धि करता है, मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
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