षट्कर्म क्या है |षट्कर्म की अवधारणा |षट्कर्म की ये क्रियाएं | Shatkarma Kya hote hain

षट्कर्म क्या है, षट्कर्म की अवधारणा, षट्कर्म की ये क्रियाएं 

षट्कर्म क्या है |षट्कर्म की अवधारणा |षट्कर्म की ये क्रियाएं  | Shatkarma Kya hote hain


 

  • हठयोग के आदि प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। उन्हीं की परम्परा में श्री मत्स्येन्द्रनाथ, स्वामी गोरक्षनाथ, मीननाथ, भर्तृहरि आदि से लेकर स्वात्माराम एवं गोपीचंद पर्यन्तनाथों ने इस परंपरा को जीवित रखा है। हठयोग से हम शरीर को शुद्ध, स्वस्थ एवं निर्मल बनाकर, राजयोग का पात्र बनते हैं क्योंकि राजयोग में यम-नियमों के द्वारा अन्तःकरण को पवित्रकर ध्यान एवं समाधि में प्रवेश का क्रम है ।

 

  • हठयोग के ऋषियों ने साधकों की प्रकृति भेद के अनुसार वात-पित्त एवं कफ प्रधान शरीर की शुद्धि के लिए षट्कर्म के विधान निर्धारित किए हैं। षट्कर्म की क्रियाएं स्थूल शरीर को शुद्ध करती हुई सूक्ष्म शरीर के शुद्धिकरण में भी अत्यंत सहायक होती हैं।


 

षट्कर्म की अवधारणा

 

योग के परिप्रेक्ष्य में षट्कर्म का अर्थ शारीरिक शुद्धि से है। हठयोग में घटशुद्धि के लिए शोधन क्रियाएं ही षट्कर्म कहलाती हैं। षट्कर्म की ये क्रियाएं स्थूल शरीर को शुद्ध करती हुई सूक्ष्म शरीर के शुद्धिकरण में भी अत्यंत सहायक हैं।

 

हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है-

 

हठं बिना राजयोगं राजयोगं विना हठः । 

न सिद्धयति ततो युग्ममानिष्पत्तेः समश्यसेत् ।। ( हठ. 2 / 76)

 

अर्थात् हठयोग के बिना राजयोग सिद्ध नहीं होता तथा राजयोग के बिना हठयोग अपूर्ण है। इसलिए साधक को हठयोग एवं राजयोग दोनों का सतत् अभ्यास करना चाहिए ।

 

षट्कर्म की ये क्रियाएं मानव शरीर का कायाकल्प करके उसे रोगमुक्त, दीर्घायु, स्वस्थ, पुष्ट एवं कान्तिमय बनाती हैं।

 

आयुर्वेद में वर्णित पंचकर्म का यह समानान्तर रुप है, जिसकी खोज हमारे ऋषियों-मुनियों द्वारा शरीर, मन और प्राण के शोधन के लिए की गई है।

 

षट्कर्म की ये क्रियाएं कौन-कौन सी हैं-

 

धौतिर्बस्तिस्तथानेतिस्त्राटकं नौलिकं तथा कपालभातिश्चैतानि षट् कर्माणी प्रचक्षते । ( हठ 2/22)

 

धौति, बस्ति, नेति, त्राटक, नौलि तथा कपालभाती इन छः कर्मों का योगमार्गानुगामियों के लिए उपदेश किया गया है।

 

षट्कर्म छः होते हैं- 

 

1. धौति 

2. बस्ति 

3. नेति 

4. त्राटक 

5. नौलि 

6. कपालभाति

 

हठयोग में इन छः क्रियाओं को शुद्धि क्रियाएं कहा जाता है।

 

1 धौति

 

धौति- षट्कर्मों में सर्वप्रथम धौति कर्म का वर्णन किया गया है। सामान्यतः धौति का अर्थ है धोना या सफाई करना घेरण्ड संहिता में धौति के चार प्रकार बतलाये गए है, जिनमें अन्तर्धौति, दन्तधौति, हृद् धौति और मूलशोधन आते हैं।

 

धौति

 

अन्तर्धौति -

  •  वातसार 
  •  वारिसार
  •  वहिसार
  • बहिष्कृत

दन्तधौति 

  • दन्तमूल 
  •  जिह्वामूल
  • कर्णरन्ध्र- दोनों
  • कपाल रन्ध्र

हृद्धौति 

  • दण्ड  
  • वमन 
  • 'वसन

मूलशोध


 

हठप्रदीपिका में धौतिकर्म के अन्तर्गत वस्त्र धौति एवं गजकरणी का उल्लेख किया गया है। हम यहाँ उपयोग की दृष्टि से कुंजल (वमन), दण्ड धौति, वस्त्र धौति एवं शंख प्रक्षालन वारिसार धौति का अध्ययन करेंगे।

 

1. कुंजल ( वमन धौति)

 

कुंजल क्रिया मुंह, अन्न नली एवं आमाशय तक की सफाई करती है। इसका अभ्यास खाली पेट किया जाता है। इस क्रिया के अभ्यास का सही समय प्रातःकाल है। इसमें नमकीन गुनगुना पानी पेटभरकर पीने के तुरंत बाद वमन कर दिया जाता है।

 

कुंजल क्रिया पूर्व तैयारी एवं अनुशासन 

  • हाथ स्वच्छ हों, कुंजल से पूर्व हाथों की अच्छी तरह सफाई कर लें। नाखून कटें हों ।  
  • जग एवं गिलास अपने पास रखें। 
  • गुनगुने पानी में नमक मिलाकर रखें। 
  • कुंजल क्रिया खाली पेट सम्पन्न की जाती है। 
  • इस क्रिया को प्रातःकाल शौचादि से निवृत्त होकर सम्पन्न करना चाहिए। 
  • कुंजल करने के बाद घृत युक्त खिचड़ी सेवन करने का विधान है.  
  • कुंजल क्रिया सम्पन्न करने के दिन किसी प्रकार का मिर्च-मसालों का सेवन नहीं करना है ।

 

कुंजल क्रिया विधि 

उकडू बैठकर शीघ्रता के साथ एक-एक गिलास करके पानी पीते जाएं। इतना पानी पी लें कि पूरा पेट पानी से भर जाए। पेट भरने के पश्चात् वमन का मन होने लगता है। फिर खड़े होकर कमर से आगे की ओर झुकें। फिर मुंह खोलकर सीधे हाथ की तीन अंगुलियों से जीभ के मूल में घर्षण करने से पानी मुंह से बाहर निकलने लगता है। शुरुआत में पानी कम-कम मात्रा में निकलता है, अतः बार- बार जिह्वामूल से अंगुलियों के स्पर्श अथवा घर्षण से वमन होने लगता है । अभ्यास होने पर बिना जिह्वामूल में अंगुलियों को लगाए वमन होने लगता है।

 

कुंजल क्रिया के लाभ

 

  • कुंजल क्रिया स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए उपयोगी है। 
  • यह आमाशयिक अम्लता (Acidity) को दूर करने में परम लाभकारी है। 
  • दमा के रोगी को भी इसके अभ्यास से आराम मिलता है। 
  • यह श्वांस की दुर्गन्ध, गले के बलगम को दूर करता है।

 

कुंजल क्रिया में सावधानियां 

  • उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्तियों को यह अभ्यास नहीं करना चाहिए । 
  • आमाशय में अल्सर एवं हृदय सम्बन्धी व्याधियों में इसका अभ्यास नहीं  करना चाहिए ।

 

कुंजल क्रिया आवृत्ति 

  • सप्ताह में एक बार इस क्रिया को सम्पन्न किया जा सकता है।

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