योग की प्रमुख परम्पराएँ |योग की उपयोगिता एवं महत्व | Yog Ki Parampara

योग की प्रमुख परम्पराएँ

योग की प्रमुख परम्पराएँ |योग की उपयोगिता एवं महत्व | Yog Ki Parampara


 

योग साधना का एक ही लक्ष्य है कि मानव दिव्य जीवन जियेऔर आध्यात्मिक शिखर की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाएजिससे जीवन के वास्तविक आनंद की प्राप्ति की जा सके। योग साधना के रहस्य को समझने के लिए निम्न प्रमुख परम्पराएं हैं-

 

योग की प्रमुख परम्पराएं-

 

  1. हठयोग 
  2. अष्टांग योग 
  3. कर्म योग 
  4. भक्ति योग 
  5. ज्ञान योग

 

1. हठ योग

 

स्थूल शरीर को सीधे-सीधे प्रभावित करने वाले योग अभ्यासों का आविष्कार योगांगों के रूप में किया गया हैजिनके द्वारा साधक प्रथम अवस्था में स्थूल शरीर की क्रियाओं की साधना करता हुआ उस पर अधिकार प्राप्त कर लेता है और उस शक्ति के द्वारा शरीर प्राण व मन को वश में करता हुआ परमात्मा का साक्षात्कार करने में समर्थ होता है। इसी योग प्रणाली को हठयोग कहते हैं ।

 

हठयोग प्रदीपिका में हठयोग के निम्न प्रमुख अंगों का वर्णन है- 

 

1. आसन 

2. प्राणायाम 

3. मुद्रा 

4. नादानुसंधान 


महर्षि घेरण्ड ने हठयोग के सात साधन बताए हैं-

 

1. षट्कर्मों से शरीर शुद्धि 

2. आसनों से दृढ़ता 

3. मुद्राओं से स्थिरता 

4. प्रत्याहार से धैर्य 

5. प्राणायाम से शारीरिक स्फूर्ति (हल्कापन) 

6. ध्यान से आत्म साक्षात्कार 

7. समाधि से निर्लिप्तता तथा मुक्ति की प्राप्ति

 

2. अष्टांग योग

 

मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए महर्षि पतंजलि ने योग के आठ अंगों का प्रतिपादन किया है जो अष्टांग योग के नाम से लोकप्रिय है। इन्हीं आठ अंगों को राजयोग भी कहा जाता है।

 

महर्षि पतंजलि ने निम्न आठ अंग बताये हैं :

 

1. यम (आत्म संयम) 

2. नियम (आत्म शोधन) 

3. आसन ( शारीरिक मुद्राएं ) 

4. प्राणायाम ( श्वास-प्रश्वास का नियमन) 

5. प्रत्याहार ( इंद्रियों को उनके विषय से रोकना अर्थात् अन्तर्मुख व आत्मोन्मुख करना) 

6. धारणा (चित्त की एकाग्रता ) 

7. ध्यान (तल्लीनता) 

8. समाधि (पूर्ण लक्ष्य मात्र में तन्मय हो जाना) 


3. कर्म योग

 

  • मनुष्य का जीवन कर्म प्रधान जीवन है। कर्म के बिना जीवन शून्य अथवा निरर्थक कहा जाता है। श्रीमद्भगवतगीता में इस बात का बारम्बार उपदेश मिलता है कि हमें निरन्तर कर्म करते रहना चाहिए। कर्म स्वभाव से ही सत्-असत् से मिश्रित होता है। प्रत्येक कर्म अनिवार्य रूप से गुण-दोष से मिश्रित रहता है। परन्तु फिर भी शास्त्र हमें सतत सत् कर्म करते रहने का ही आदेश देते हैं।

 

  • अच्छे और बुरे दोनों कर्मों का अपना अलग-अलग फल होता है। अच्छे कर्मों का फल अच्छा होगा और बुरे कर्मों का फल बुरा । परन्तु अच्छे और बुरे दोनों ही आत्मा के लिए बंधन रूप हैं। श्रीमद्भगवतगीता के अनुसार यदि हम अपने कर्मों में आसक्त न हों तो हमारी आत्मा किसी प्रकार के बंधन में नहीं फंसती । इस प्रकार आसक्ति को त्याग कर हानि-लाभ तथा यश-अपयश में समान भाव रखते हुएईश्वर को समर्पित होकर किया जाने वाले कर्म ही 'कर्मयोगकहलाते हैं। कामना रहित कर्त्तव्यकर्म के लिए कर्मयोग के स्थान परलोक में निष्काम कर्मयोग अधिक प्रचलित है। यह आत्म साक्षात्कार में विशेष सहायक माना गया है।

 

4. भक्ति योग

 

  • भक्ति योग का अभिप्राय यह है कि सभी रूपोंसभी नामों और सभी अवस्थाओं में अपने प्रभु का या अपने परम् ईष्ट का दर्शन करना । श्रद्धा और विश्वास भक्ति के दो प्रमुख तत्व हैं। ईश्वर में श्रद्धाविश्वास होने के बाद ही उनका साक्षात्कार हो सकता है। ईश्वर से निष्काम भाव से ही प्रेम करने को 'विशुद्ध भक्तिकहते हैं। मोह का अभाव हो जाने पर सांसारिक भोग अच्छे नहीं लगतेउस समय भगवान की स्मृति अधिक समय तक बनी रहती है जिससे भक्त ईश्वर की भक्ति में लीन रहता है। यही भक्ति योग की पराकाष्ठा है। योग की समस्त धाराओं में भक्ति योग श्रेष्ठतम है।

 

5. ज्ञान योग

 

  • मनइन्द्रियों तथा शरीर से होने वाली समस्त क्रियाओं में कर्त्ता भाव के अभिमान से शून्य होकरआत्मज्ञान से युक्त होकर सर्वव्यापी सच्चिदानन्दघन परमात्मा में एक ही भाव से स्थित होने का नाम ज्ञान योग है। इसी को श्रीमद्भगवद् गीता में कर्म संन्यास योग भी कहते हैं। इस योग में योगी अपनी आत्मा का अवलोकन करते हुए परम् सन्तुष्ट रहता है।

 

  • ज्ञान योग तथा कर्मयोग साधन-शैली में भिन्न होते हुए भी परमात्मा की प्राप्ति में एक ही हैं। दोनों ही परम् कल्याण कारक हैं।

 

  • ज्ञान के प्रकाश में अज्ञान रूपी अहंकार नष्ट हो जाता है। अज्ञान से 'कामना- (इच्छा) और कामना से 'कर्मउत्पन्न होते हैं। ज्ञान योग साधना के द्वारा अज्ञान के नष्ट हो जाने पर कर्म स्वतः समाप्त हो जाते हैं। संपूर्ण कर्मों की समाप्ति ज्ञान में ही होती है।

 

योग की उपयोगिता एवं महत्व

 

योग हम सभी के लिए अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। यह हमारे मनतन और आत्म शक्ति का सर्वांगीण विकास करता है और एक अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करता है। आज योग के प्रति सभी आकर्षित हो रहे हैं। आइए जानें कि योग किस प्रकार हमारे लिए उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है:

 

1. शरीर में लचीलापन लाता है। 

2. मांस पेशियों को सुदृद कर शरीर को मज़बूत बनाता है। 

3. शरीर में रक्त संचार को सही करता है। 

4. विषाक्त पदार्थों को निकालता हैऔर शक्ति में वृद्धि करता है। 

5. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और रोगों से दूर रखता है। 

6. मन को नियंत्रित करआत्मबोध में सुधार करता है और मन से नकारात्मक विचार को बाहर निकाल देता है । 

7. मानसिक एकाग्रता में वृद्धि करता है । 

8. भावनात्मक संतुलन के लिए उपयोगी है। 

9. चारित्रिक एवं नैतिक निर्माण करता हैजिससे एक अच्छे समाज एवं राष्ट्र का निर्माण होता है। 

10. मानव को सर्वोच्च ऊँचाई तक पहुंचाने का कार्य करता हैजिसे समाधि कहते हैं । यही योग का परम लक्ष्य है।

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