जैन धर्म व शिक्षा | Jain Religion and Education

 जैन धर्म व शिक्षा (Jain Religion and Education ) 

जैन धर्म व शिक्षा | Jain Religion and Education



जैन धर्म व शिक्षा :

 

जैन धर्म सब सांसारिक कामनाओं और इच्छाओं पर विजय प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त करने में विश्वास रखता है। इस धर्म के अनुसार सत्य परम हैं। जीव या आत्मा चेतन वस्तु है। आत्मा प्रकाशमय है और दुसरी वस्तुओं को भी प्रकाशमय बनाती है। इसकी प्रत्यक्षीकरण अनंत है। इसमे अनंत ज्ञान और अनंत शक्ति है।

 

मोक्ष प्राप्त करने के लिये जैनसच्चा विश्वाससच्चा ज्ञान एंव सच्चा आचरण जिसे श्रीरतना या तीन रत्न कहते हैंआवश्यक मानते है। सच्चा विश्वास से तात्पर्य है। सत्यापन के प्रति पूर्ण आस्था। बिना शंका या त्रुटि के सत्य का ज्ञान सच्चा ज्ञान है। वह कर्म जो बिना इच्छा या घृणा के किसी भी सांसारिक वस्तु के प्रति जाये वह सही या सच्चा आचरण है।

 

सही आचरण के द्वारा आत्मा उन कर्म से छुटकार पा जाती है जो कि उसे बंधन मे जकड़े रहते हैं। एक व्यक्ति जिसे आध्यात्मिक श्रेष्ठता प्राप्त करनी है उसमे पाँच उच्च सद्गुण होने चाहिए ।


पाँच उच्च सद्गुण

1. अहिंसा- 

जिसका अर्थ है सब प्राणीयों के प्रति उदारता किसी प्राणी का वध नहीं करे एवं सब कार्य हिंसा से पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो ।

 

2. सत्य- 

जो इस बात पर बल देता है कि व्यक्ति सत्य बोले और अपने आचरण मे सुहावना लगे ।

 

3. अस्तेय-

जिससे तात्पर्य है सम्माननीय आचरण |

 

4. ब्रम्हचर्य- 

यह सब तरह की इच्छाओं को त्याग देना है। चाहे वह शारीरिक मानसिक कैसा भी हो ।

 

5. अपरिग्रह-

इससे तात्पर्य है सब सांसारिक रुचियों एव इच्छाओं को समाप्त कर देना। सांसारिक वस्तुओं की ओर उनका कोई मोह नही होना चाहिए।

 

जैन धर्म के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य 

जैन धर्म के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य ऐसे व्यक्ति का विकास होना चाहिए जो त्रिरतन का अनुसरण करे और जिन पाँच सद्गुणो का आगे वर्णन किया गया है। वह उनके व्यक्तित्व मे शामिल हो। ऐसे व्यक्ति इस आदेश मे विश्वास रखोगे अहिसा परमो धर्माः

 

जैन धर्म के अनुयायी अपने बालको की शिक्षा में अहिंसा का पाठ पढ़ाते है और उन्हें दयावान बनने की सीख देते है।


दया के चार रूप बताये गये हैं

 

1. अच्छे कर्म बिना किसी फल की आशा नहीं करो। 

2. दूसरों के सुख में अपने को सुखी रखो। 

3. दमन किये हुए और चिंता युक्त व्यक्तियों के साथ सहानुभूति रखो एवं उनके दुख दूर करने के लिए सक्रिय रूप से सहायता दो। 

4. उनके ऊपर दया करो जिन्होनें कोई अपराध किया हो।

 

जैन निस्वार्थ सेवा के लिए शिक्षा देने को महत्व देते हैं। वह विश्वास करते है कि वह व्यक्ति पुण्य कमाते हे जो खाद्य पदार्थजल कपड़ेबिस्तर इत्यादि दरिद्रो को दान देते हैकिसी को दुख देने वाली वाणी का प्रयोग नहीं करते और अन्य प्राणियों के प्रति आदर तथा प्रेम का भाव रखते हैं। जैन धर्म किसी परामात्मा जैसी यथार्थता को नहीं मानता। वह यह मानता है कि प्रत्येक आत्मा अपने सृजन के लिए स्वयं उत्तरदायी है और प्रत्येक जिसमे आध्यात्मिक शीर्ष पर पहुँचने की लालसा है और जो इसके लिए सक्रिया है वह ईश्वरत्व प्रात्त करने योग्य हो जायेगा। इस प्रकार प्रत्येक बंधन मुक्त ईश्वर समान पूजा योग्य है। जैन शिक्षा का आदर्श केवल किसी ईश्वर जैसी सत्ता की पूजा करना और उसको अपर्ण करना नही है। वरन् अपनी आत्मा को इतनी आध्यात्मिक ऊचाँई पर ले जाना है कि प्राणी ईश्वरत्व स्वयं अपने में प्राप्त कर ले।

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