मुस्लिम कालीन शिक्षा |मुस्लिम शिक्षा का उद्देश्य | Muslim Era Education in Hindi

 मुस्लिम कालीन शिक्षा

मुस्लिम कालीन शिक्षा |मुस्लिम शिक्षा का उद्देश्य | Muslim Era Education in Hindi


 

मुस्लिम कालीन शिक्षा 

मुसलमानों के आक्रमण तथा मुस्लिम शासकों के स्थायी रूप से बस जाने से भारतीय जन-जीवन में विशेष परिवर्तन हो गये। इसका प्रभाव शिक्षा के क्षेत्र मे भी हुआ। प्रारम्भ मे मुस्लिम शिक्षा शहरी क्षेत्रों तक सीमित रही। कुछ मस्लिम बादशाहों ने वैदिक शिक्षा में रूचि ली और संस्कृत के ग्रंथों का फारसी और अरबी में अनुवाद कराया परंतु अधिकतर मुस्लिम बादशाहों ने मन्दिरो व विहारों को नष्ट किया और हिन्दू शिक्षा को समाप्त किया।

 

मुस्लिम शिक्षा का उद्देश्य :

 

1. ज्ञान का प्रसार :

मुस्लिम पैगम्बरो के अनुसार ज्ञान को रेगिस्तान मे मित्र एकांत में साथी दुःख मे सहानुभूति देने वाला मित्रों के मध्य शोभा बढाने वाला तथा शत्रुओं से रक्षक माना जाता है। अतः शिक्षा सच्चे मुसलमान के लिए आवश्यक हैं।

 

2. धर्म प्रचार 

इस्लामी शिक्षा का दूसरा उद्देश्य इस्लाम धर्म का प्रचार इस्लाम धर्म का प्रचार करना एक धार्मिक कर्तव्य माना गया है। धर्म था। प्रचारक काजी कहलाते थे। मकतवो तथा मदस्सो मे कुरान की शिक्षा दी जाती थी। धर्मान्धता के कारण ही मुस्लिम शासकों ने प्राचीन हिन्दू मंदिरो तथा बौद्ध बिहारों को नष्ट किया।

 

3. नैतिक विकास

इस्लामी कानूनसामाजिक प्रथाओं और राजनैतिक सिद्धांतो की शिक्षा दी जाती थी जिससे बालक को नैतिक-अनैतिक में भेद का ज्ञान हो तथा नैतिक गुणों का विकास सम्भव हो ।

 

4. जीविकोपार्जन : 

इस्लामी शिक्षा मे रूचि बनाये रखने के लिए शिक्षित व्यक्तियों को राज्य में अनेक पदों पर आसीन किया जाता था। हिन्दू भी फारसी भाषा के विद्वान होकर ऊँच पदो पर नियुक्त हुए।

 

5. राजनीतिक उद्देश्य : 

मुसलमान शासको का यह विचार था कि जब तक भारत की अपनी सभ्यता तथा संस्कृति को नष्ट नही किया जायेगा। मुस्लिम राज्य की स्थायी नीव नही पड़ सकती। इस उद्देश्य को लेकर कुछ मुस्लिम शासकों ने प्राचीन हिन्दू तथा बौद्ध शिक्षा संस्थाओं को नष्ट किया और कुछ ने मुस्लिम शिक्षा के क्षेत्र मे प्रगति भी की। अकबर को हम इसी उद्देश्य को लेकर शिक्षा क्षेत्र में आगे बढते पाते है।

 

मुस्लिम शिक्षा की व्यवस्था :

 

मुस्लिम काल में प्राथमिक शिक्षा मकतब मे दी जाती थी। और माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा मदरसा मे जाती थी। मुगल काल मकतब में भारत में मकतबो की भरमार हो गई थी। मकतब मे वर्णमाला सीखने के पश्चात् विद्यार्थियों को कठिन शब्दों का ज्ञान कराया जाता था। यह शब्द कुरान से लिये जाते थे।

 

पढ़ना और लिखना सीख लेने के बाद व्याकरण का ज्ञान दिया जाता था। पाँच दैनिक नमाजों के लिए कुरान के जिन अंशो की आवश्यकता होती थी उनको विशेष रूप से याद कराया जाता था. 

 

मदरसा-मकतब की शिक्षा समाप्त कर विद्यार्थी मदरसा में प्रदेश लेता था इन मदरसो का प्रबधं प्राइवेट प्रबधं समितियों या सम्मानित व दानशील नागरिको द्वारा होता था। यह मदरसे भी मस्जिदो से जुड़े रहते थे। कभी-कभी मुस्लिम सम्राटों के मकबरों से भी मदरसे जुड़ जाते थे। भारत के कुछ भागों को छोड़कर मुस्लिम अधिकतर शहरी क्षेत्र के लोग थे। अतः मुस्लिम विद्वान अधिकर नगरों में पाये जाते थे।

 

मदरसो का पाठयक्रम :

 

मदरसो मे दी जाने वाली उच्च शिक्षा दो भागों में विभाजित की जा सकती हैं। 1. लौकिक, 2. धार्मिका लौकिक शिक्षा के अर्तगत गणित ज्योतिषसंगीतचिकित्साइतिहाससाहित्यतर्कशास्त्र कानून आदि विषय थे। धार्मिक शिक्षा के अंर्तगत कुरान का गहन एवं विस्तृत अध्ययन इस्लामी कानून तथा सूफी धर्म के सिद्धांत सम्मिलित है।

 

मुस्लिमकाल में शिक्षा की प्रगति एवं पतन :

 

अकबर के समय मे पुनः पाठ्यक्रम में परिवर्तन हुआ। उसने हिन्दुओं के लिए भी मदरसे रणुलवायेजहां फारसी के साथ-साथ हिन्दू दर्शन व साहित्य का अध्ययन कराया जाता था

 

12वीं शताब्दी के अंत में मोहम्मद गौरी ने मुस्लिम शिक्षा की नींव डाली। अजमेर में उसने मदरसे बनवायें उसके प्रमुख सिपहसालार ने बौद्ध विश्वविधालयो का विध्वंस कर भारतीय संस्कृति को महान् क्षति पहुँचाई। 13वीं शताब्दी मे इल्तुतमिशरजिया और बलबन ने भी शिक्षा को प्रोत्साहन दिया।

 

तुगलक वशं ने भी शिक्षा को प्रोत्साहन दिया। मुहम्मद तुगलक शिक्षा प्रेमी तथा स्वयं विद्वान था। सन् 1346 में उसने देहली मे एक मदरसा खोला। फीरोजशाह तुगलक (1325-51) मध्यकालीन बादशाहों में सबसे बड़ा विद्वान था।

 

भारत मे मुगल साम्राज्य ने शिक्षा को बहुत प्रोत्साहन दिया। बाबर भारत मे मुगल साम्राज्य का प्रथम बादशाह था। यद्यपि वह स्वयं विद्वान एवं कवि था। तथापि अपने अल्प शासनकाल 1526-30 में शिक्षा के लिए कुछ भी न कर सका। मे मुगल सम्राटों मे अकबर महान् (1550-1605) था। यद्यपि वह स्वयं निरक्षर था। परंतु बहुत होशियार था। उसने बहुत से कॉलेजों और पुस्तकालयों की स्थापना की। उसने हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों प्रकार की शिक्षा को प्रोत्साहित किया। उसने कुछ संस्कृत की पुस्तकों के फारसी में अनुवाद करायें। स्त्री


मुस्लिम कालीन स्त्री शिक्षा : 

मध्यम वर्ग की बालिकाओं के लिए शिक्षा का कोई विशेष प्रबंध नही था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा उनके माता-पिता द्वारा ही दी जाती थी। बचपन में उनको सहशिक्षा दी जाती थी।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.