भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता |स्वास्थ्य पत्रकारिता में डेस्क की भूमिका| Health journalism in India

भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता (health journalism in India)

 

भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता |स्वास्थ्य पत्रकारिता में डेस्क की भूमिका| Health journalism in India

भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता (Health journalism in India)

  • भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता आजादी से पहले और आजादी के बाद भी लंबे समय तक उपेक्षित रही और अखबारों में राजनीतिक मसले ही छाए रहे। इसी के चलते स्वास्थ्य पत्रकारिता एक खास विधा के रूप में उभरने के बजाय हाशिए पर ही रही। अखबारों में शुरुआत हुई स्वास्थ्य संबंधी गोष्ठियों और कार्यशालाओं की रिपोर्टिंग के साथ। प्रारंभ में इनकी खबरें सिर्फ ये बताती थीं कि स्वास्थ्य या चिकित्सा के किसी पहलू पर गोष्ठी हुई है लेकिन उसमें किस तरह की क्या चर्चा हुईइसे खबर में शामिल नहीं किया जाता था। गोष्ठी के विषय को दुरूह मानते हुए उसे अखबारी चर्चा से दूर रखा जाता था।

 

  • बाद में अखबारों मेंखासकर अंग्रेजी के अखबारों में विज्ञान पत्रकारिता और उसी के साथ स्वास्थ्य पत्रकारिता ने भी अपनी जगह बनानी शुरू की। विज्ञान और चिकित्सा में दिलचस्पी रखने वाले पत्रकार इन विषयों पर खबरें और लेख लिखने लगे। संपादक भी इन विषयों में विशेषज्ञता का प्रयास करने वालों को प्रोत्साहित करने लगे। पहले अंग्रेजी अखबारों और बाद में हिंदी अखबारों में स्वास्थ्य संबंधी खबरें लगातार आने लगीं और समय-समय पर स्वास्थ्य संबंधी लेख भी प्रकाशित होने लगे। स्वास्थ्य और चिकित्सा विशेषज्ञों के इंटरव्यू प्रकाशित करने की पंरपरा ने इस धारा को और मजबूत किया और पाठकों को प्रामाणिक स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्रदान करने की सकारात्मक पहल हुई. कई अखबारों और पत्रिकाओं ने स्वास्थ्य संबंधी कॉलम शुरू किए जिनकी बेहद लोकप्रियता ने इस बात को स्थापित किया कि पाठकों में सेहत संबंधी सामग्री की भारी मांग है।

 

  • लेकिन इस मांग को पूरी करने के क्रम में कुछ अखबारों और पत्रिकाओं ने अधकचरे विशेषज्ञों के लेखों को प्रकाशित करना शुरू किया जो अनुचित था। देशी नुस्खों के नाम पर कुछ के भी प्रकाशित करने की इस पंरपरा ने वही काम किया जो अंधविश्वास बढ़ाने वाले तथाकथित बाबाओं के नुस्खे करते हैं। लेकिन समय के साथ ही संपादकों ने स्वास्थ्य पत्रकारिता को गुणवत्तापूर्ण बनाने की पहल की और हिंदी के अखबारों और पत्रिकाओं ने भी सेहत से जुड़े मसलों पर अच्छी सामग्री देना शुरू की। हिंदी के अखबारों की खासियत यह भी रही कि उनमें दूरदराज की आम जनता से जुड़े सेहत संबंधी मसले भी शामिल किए जो अंग्रेजी के अखबारों और पत्रिकाओं से नदारद थे। नब्बे दशक के बाद स्वास्थ्य पत्रकारिता ने हिंदी क्षेत्र में गति पकड़ी है। मीडिया में यह राय बनी है कि राजनीतिक लेखों बजाय पाठक की दिलचस्पी अपने से सीधे जुड़े मसलों में बढ़ रही है। इनमें सेहत और शिक्षा संबंधी मसले प्रमुख हैं। हिंदी पत्रिकाएं अब अपने हर अंक में अमूमन किसी न किसी स्वास्थ्य संबंधी मसले पर सामग्री प्रस्तुत करती हैं और विशेषज्ञों के इंटरव्यू इन लेखों का अहम हिस्सा होते हैं।

 

  • इंटरनेट ने भी स्वास्थ्य पत्रकारिता को नया आयाम देना शुरू किया है। अब लोग ब्लॉग के जरिये अपनी बात कह रहे हैंकई स्वतंत्र चिकित्सा विशेषज्ञ सेहत से जुड़े मसलों को इंटरनेट के जरिये सार्वजनिक कर रहे हैं।

 

स्वास्थ्य पत्रकारिता में डेस्क की भूमिका

 

  • स्वास्थ्य पत्रकारिता में अखबारों के अंदर डेस्क की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। डेस्क पर कार्यरत जो भी पत्रकार स्वास्थ्य संबंधी खबरों का संपादन करेउसे स्वास्थ्य से जुड़ी मूल बातों की जानकारी होनी चाहिए। डेस्ककर्मी खबर में दिए गए तथ्यों पर नज़र दौड़ाकर इस बात की पुष्टि कर सकता है कि कोई गलत जानकारी तो नहीं जा रही है। वह खबर के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को सरल भाषा में समझाकर खबर को और मूल्यवान बना सकता है या फिर खबर को उसकी पृष्ठभूमि से संबद्ध कर उसे नया आयाम प्रदान कर सकता है। एक अच्छा डेस्ककर्मी खबर की खामी को दूर कर सकता है और यदि उसे लगे कि खबर में कोई अहम चीज़ छूट गई है तो वह संवाददाता से मिलकर उसमें सुधार कर सकता है। एक अच्छे अखबार में एक या दो डेस्ककर्मियों को स्वास्थ्य संबंधी खबरों के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे स्वास्थ्य और चिकित्सा संबंधी खबरों की गुणवत्ता बेहतर बनती है।

 

  • डेस्ककर्मी में इस बात की क्षमता होनी चाहिए कि वह यह पहचान कर सके कि स्वास्थ्य से जुड़े मसलों पर एजेंसी से आने वाली खबरों में कौनसी खबरें ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं और उन्हें उसी क्रम में महत्व देते  संपादित करवाना चाहिए। यदि कोई खबर इतने ज़्यादा महत्व की है कि उसे हुए पहले पन्ने पर स्थान दिया जाना चाएि या फिर उसे पूर्ण पैकेज के साथ पृष्ठभूमि से संबंधित सामग्री देते हुए उससे जुड़ी सहायक खबरों के बॉक्स के साथ प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए। उस खबर के बारे में संपादक और समाचार संपादक को अलर्ट कर देना चाहिए जिससे कि खबर को अच्छी तरह से डिस्पले किया जा सके और उससे संबंधित फोटोग्राफ तलाश किए जा सकें और लाइब्रेरी से या इंटरनेट सर्च के जरिये उस खबर में दिए गए पहलुओं से संबंधित आंकड़े तलाश कर ग्राफिक बनवाया जा सके। खबर की पहचान कर उसके तुरंत बाद सक्रिय होने से ही इस तरह की प्लानिंग संभव है। संपादकीय स्तर पर इस बारे में कोई फैसला लेने के तुरंत बाद इस मसले पर लेआउट आर्टिस्ट को भी विशेष लेआउट तैयार करने के लिए कहा जा सकता है।

 

  • अखबार में अक्सर ही स्पेस की कमी होती है और कई बार स्वास्थ्य संबंधी खबरों के लिए उतनी जगह नहीं मिल पाती जितना कि हम चाहें। ऐसे में खबरों का कुशल संपादन बहुत ही आवश्यक हो जाता है। खबरों को इस तरह से संक्षिप्त और संपादित किया जाना चाहिए कि उनमें मूल और महत्वपूर्ण बातें बनी रहें। एक अच्छे डेस्ककर्मी में इस बात की भी योग्यता होनी चाहिए कि वह किसी विषय पर विभिन्न स्थानों से आने वाली खबरों को एकसाथ मिलाकर उसे राष्ट्रीय स्तर की संपूर्ण खबर का स्वरूप दे सके। उदाहरण के लिए यदि नकली दवाइयों के बारे में देश के विभिन्न केंद्रों से रिपोर्ट मंगाई गई हैं तो उन्हें एक साथ क्लब कर राष्ट्रीय स्तर की खबर बनानी चाहिए जिससे कि विभिन्न केंद्रों से प्राप्त जानकारियों को एक ही खबर में प्रस्तुत किया में जा सके।

 

  • एक अच्छे डेस्कर्मी का यह दायित्व है कि वह स्वास्थ्य से संबंधित किसी खबर में भ्रामक तथ्य न जाने दें। उसमें दिए गए तथ्यों और आंकड़ों की भलीभांति पड़ताल करे जिससे कि पाठक तक किसी भी तरीके से भ्रामक जानकारी न पहुंचे। किसी भी खबर की तरह स्वास्थ्य संबंधी खबरों की प्रामाणिकता की मूल जिममेदारी संवाददाताओं की होती है लेकिन यह डेस्क पर कार्यरत कॉपी संपादकों की भी जिममेदारी है कि वे जल्दबाजी में लिखे गए गलत तथ्यों को सुधारें। एक कॉपी संपादक यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता कि संवाददाता ने गलत तथ्य लिखा थाइसलिए वह कुछ नहीं कर सकता।

 

स्वास्थ्य पत्रकारिता में संवाददाता का काम

 

  • स्वास्थ्य संबंधी खबरें देने वाले संवाददाता की भूमिका बड़ी ही महत्वपूर्ण होती है। किसी भी अखबार या पत्रिका में उसी की कार्यशैली तय करती है कि वह अखबार स्वास्थ्य पत्रकारिता के लिहाज से किस गुणवत्ता का है।

 

  • एक अच्छे स्वास्थ्य संवाददाता को चाहिए कि वह सबसे पहले अपनी बीट यानी कार्यक्षेत्र से से संबंधित सरकारी विभागोंगैरसरकारी संगठनोंशोध संस्थानोंविभिन्न अस्पतालों और विशेषज्ञों और चिकत्सा और स्वास्थ्य से जुड़े विभिन्न लोगों के बारे में जाने और इनमें से बहुत से लोगों के साथ अपना संपर्क बनाए यही जानकारी संवाददाता को अपना काम भलीभांति अंजाम देने में मदद करती है और वह बड़ी तेजी के साथ किसी भी खबर की तह तक पहुंच सकता है।


  • संवाददाता के लिए ज़रूरी है कि वह जाने कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय किस तरह से काम करता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के चारों विभाग अपने-अपने सचिवों के तहत किस तरह से काम करते हैं और उनकी जिम्मेदारियां क्या हैं। संवाददाता को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभागआयुष विभागस्वास्थ्य शोध विभाग और एड्स नियंत्रण विभाग के कामकाज की जानकारी लेने के साथ ही और उनमें कार्यरत अधिकारियों से संपर्क भी साधना चाहिए जिससे कि इन विभागों के फैसले और उनमें चल रही गतिविधियों की उन्हें समय रहते ही जानकारी मिल सके। संवाददाता को स्वासथ्य सेवाओं के महानिदेशक कार्यालय से भी संपर्क रखना चाहिए क्योंकि उसके दफ्तर पूरे देश में हैं और वह ही चिकित्सा और जन स्वास्थ्य के मसलों पर तकनीकी परामर्श देता है और विभिन्न सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर अमल में उसकी भूमिका होती है।

 

  • संवाददाता को यह भी याद रखना चाहिए कि भारत में स्वास्थ्य का मसला राज्यों के अधीन है हालांकि मुखय नीतिढांचा और सहयोग केंद्र द्वारा प्रदान किया जाता है। हर राज्य अपने क्षेत्र में लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल और विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं पर अमल के लिए उत्तरदायी होता है। केंद्र द्वारा तय स्वास्थ्य लक्ष्यों को हासिल करने के क्रम में राज्य अपने खुद का मॉडल तैयार करते हैं। संवाददाताओं को अपने इलाके के कुछ प्रमुख अस्पतालों के संचालकों और वहां के विशेषज्ञ डॉक्टरों से भी संपर्क में रहना चाहिए जिससे कि किसी भी नई गतिविधि की जानकारी मिलने के साथ ही संवाददाता किसी भी मसले पर उनकी राय को तुरंत जान सके।

 

  • चिकित्सा परामर्श से जुड़े किसी भी मसले पर सामग्री देते वक्त संवाददाताओं को चाहिए कि वे तथ्यों की अच्छी तरह से पड़ताल कर लें। यदि किसी जानकारी को लेकर भ्रम है तो उस बारे में विशेषज्ञ से ज़रूर संपर्क करना चाहिए क्योंकि गलत जानकारी के चलते लाखों पाठकों तक भ्रामक जानकारी पहुंच सकती है। गोष्ठी और कार्यशालाओं की रिपोर्टिंग करते वक्त संवाददाता को ध्यान में रखना चाहिए कि वह गोष्ठी में उद्घाटन भाषण को अपनी रिपोर्ट का विषय बनाने के साथ ही उस विषय को भी प्रमुखता के साथ उठाए जिस पर गोष्ठी की जा रही है। ऐसे विषयों में गोष्ठी में शामिल विशेषज्ञों बातचीत के आधार पर गोष्ठी के महत्वपूर्ण पहलुओं और उनका आम पाठकों के लिए क्या महत्व हैइस पर चर्चा की जा सकती है।

 

  • किसी भी क्षेत्र में लगातार आने वाली तब्दीलियां खबर बनती हैं। संवाददाता को चिकित्सा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में आ रहे निरंतर परिवर्तनों पर अपनी नज़र रखनी चाहिए। इस क्षेत्र में बाज़ार में आने वाली नई दवाएं और उनके परीक्षणप्रतिकूल परीक्षणों के चलते प्रतिबंधित की जाने वाली दवाओं के विवरणविभिन्न दवाओं के बारे में विश्व के अन्य देशों की दवा नियमन एजेंसियों का रूख और भारत में मौजूदा स्थिति की जानकारी रखनी चाहिए और पाठकों को इन दवाओं से जुड़े लाभ और खतरों से सावधान करने में सक्रियता दिखानी चाहिए।

 

लीक से हटकर सोचें: Think out-of-the-box:

  • एक अमेरिकी अखबार ने शहर में तेज़ी से बन रहे बहुत से अस्पतालों पर एक नए नज़रिये से खबर प्रकाशित की। जहां दूसरे अखबार इस कदम की यह कहकर प्रशंसा कर रहे थे कि इससे मरीजों को उनके घर के पास ही ज़्यादा चिकित्सा सुविधाएं हासिल होंगींवहीं इस अखबार ने पूरे मसले का विश्लेषण इस नज़रिये से किया कि क्या उस इलाके को इतने अस्पतालों की और उनमें उपलब्ध कराए जा रहे बेड की ज़रूरत है। इस अखबार के अनुसार इलाके को शुरुआती चिकित्सा सुविधाओं की ज्यादा आवश्यकता थी न कि इन अस्पतालों द्वारा उपलब्ध कराई जा रहे विशेषज्ञ सेवाओं की। अखबार ने अपने विश्लेषण में साबित किया कि ये अस्पताल इलाके में उसी हालत में लाभ में चल सकते हैं जब ये अपने बेड को खाली न रखने के लिए गैर ज़रूरी ऑपरेशन करें और मरीजों को ज़रूरत न होते हुए भी भर्ती करें। इस तरह के चिकित्सा साधन बढ़ने से इलाके के आम लोगों को फायदा होने के बजाय नुकसान ही होने की आशंका ज़्यादा है। अखबार के विश्लेषण का लाभ हुआ कि अस्पतालों के अंधाधुंध विस्तार कार्यक्रमों पर अंकुश लगा और इस बात पर भी चर्चा की शुरुआत हुई कि कॉरपोरेट अस्पतालों को किस तरह से गैर ज़रूरी ऑपेरशन करने से रोका जाए और इसके लिए किस तरह की आचार संहिता तैयार की जाए।

 

विशेष स्वास्थ्य परिशिष्ट

 

  • पिछले एक दशक में अखबारों में स्वास्थ्य से ज़ड़े मसलों पर अलग से स्वास्थ्य परिशिष्ट देने की भी शुरुआत हुई है। अंग्रेजी अखबारों में चूंकि पृष्ठ ज़्यादा होते हैंइसलिए वे इस मामले में हिंदी और अन्य भाषाओं के अखबारों से आगे हैं लेकिन हिंदी अखबार भी स्वास्थ्य से जुड़े मसलों पर खास पृष्ठ पर विशेष सामग्री प्रकाशित करते हैं।

 

  • जाहिर है कि विशेष रूप से प्रकाशित किए जाने वाले स्वास्थ्य पृष्ठों की सामग्री आम खबरों से हटकर होती है। हर परिशिष्ट चाहे वह दो या चार पृष्ठ का हो या फिर मात्र एक पृष्ठ काउसमें एक मुखय फीचर होता है जिसमें चिकित्सास्वास्थ्यफिटनेस आदि से संबंधित किसी मसले को संपूर्ण रूप में उठाया जाता है। उदाहरण के तौर पर समुदाय में लड़कियों द्वारा दुबली-पतली रहने के लिए खानपान पर नियंत्रण करनेइसके लिए दवाएं खाने आदि के बढ़ते ट्रेंड पर फीचर जो इस बात की पड़ताल करे कि यह ट्रेंड कितना उचित है और कितना अनुचित। कौन से कारण हैं जिनके चलते यह जोर पकड़ रहा है और कहीं ऐसा तो नहीं कि कुछ खास कंपनियां अपने पैकेज बेचने या अपनी दवाओं की बिक्री बढ़ाने के लिए गलत तरीकों से इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञोंमनोवैज्ञानिकोंस्वयं लड़कियोंउनके माता-पिताओंछरहरी काया के दावा करने वाले लोगों आदि से बातचीत कर और संपूर्ण प्रक्रिया की जानकारी लेकर इस ट्रेंड में छिपे खतरों को उजागर करना और किस तरीके से यह स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं हैंउन पहलुओं को उजागर करना एक अच्छा स्वास्थ्य फीचर तैयार करेगा जो लोगों की आंखें खोलने का काम करेगा। इस तरह के फीचर के साथ उन लोगों के अनुभव भी साथ में देने चाहिए जो खुद इस तरह के प्रचार का शिकार होकर अपना स्वास्थ्य और धन चौपट कर चुके हों। लेकिन इस तरह के फीचर करते वक्त लेखक या रिपोर्टर को ध्यान रखना चाहिए कि वह खुद किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर अपना लेखन न करें। उसका लेख ज्यादा से ज्यादा लोगों से बातचीत और इंटरव्यू के आधार पर लिखा जाना चाहिए और फिर उन्हें सही स्वरूप में पाठकों के सम जाना चाहिए।

 

  • स्वास्थ्य पत्रकारिता चूंकि सनसनीखेज पत्रकारिता से हटकर हैइसलिए ज़रूरी है कि पत्रकार इस तरह के लेख लिखते वक्त उसे रोचक अंदाज में प्रस्तुत करे लेकिन इस क्रम मे तथ्यों से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि स्वास्थ्य पत्रकारिता करते वक्त अपनी बात को मनोरंजन पत्रकारिता की तरह मिर्च-मसाला लगाकर पेश न किया जाए।

 

  • परिशिष्ट की योजना बनाते समय उसमें मुख्य लेख का साथ देने वाले अन्य छोटे लेखफोटोग्राफिक्स आदि का भी समावेश करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि भारत में हृदय रोगों की ताजा सिथति पर मुख्य लेख है तो साथ में छोटे लेखों के रूप में उन लोगों के अनुभव हो हैं जिन्होंने हृदय रोग होने के बावजूद अपनी जीवनशैली के बूते उसमें सुधार किया। उन लोगों के अनुभव भी हो सकते हैं जिन्होंने लापरवाही बरती ओर उन्हें इसका खामियाजा रोग के और बढने से चुकाना पड़ा। किसी हृदय रोग विशेष का इंटरव्यू साथ में हो सकता हैजिसमें कई तरह के परामर्श दिए जा सकते हैं और पाठकों की भ्रांतियों का समाधान किया जा सकता है।

 

  • किसी एक स्तंभ के तहत विशेषज्ञ ऐसे सवालों के जवाब दे सकते हैं जो पाठकों से उस विषय के तहत पहले से ही आमंत्रित कर लिए गए हों। कुछ ऐसे ग्राफिक्स दिए जा सकते हैं जो बताए कि स्थिति कैसे बिगड़ रही है या बेहतर हो रही है। या फिर किस तरह से कौन-सा खानपान रोगों को बढ़ा रहा है या किस तरह के खानपान से हृदय रोग पर अंकुश पाया जा सकता है। दिल का दौरा पड़ने पर तुरंत क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इस तरह की सामग्री विशेषज्ञ से बातचीत के आधार पर दी जा सकती है। यहां हृदय रोग का उदाहरण दिया गया है लेकिन किसी भी मसले पर योजना बनाते समय इस तरह के छोटे लेखों के बारे में प्लानिंग की जा सकती है। तभी लोगों को कारगर जानकारियां दी जा सकती हैं।

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