फीचर लेखन क्या है | फीचर क्या है? फीचर लेखन, फीचर के तत्त्व |फीचर लेखक के गुण |Feature writing Details in Hindi

फीचर लेखन क्या है,  फीचर लेखन

 Feature writing in Hindi

 

फीचर लेखन क्या है | फीचर क्या है?  फीचर लेखन, फीचर के तत्त्व |फीचर लेखक के गुण  |Feature writing Details  in Hindi

फीचर लेखन Feature writing  Kya Hoti hai

 फीचर क्या हैउसकी लेखन प्रक्रिया को सोदाहरण समझाइए ।

संपादकीय के बारे में विस्तार से जानने के बाद अब आपको फीचर लेखन की प्रक्रिया से अवगत कराया जा रहा है। सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि फीचर क्या है?

फीचर क्या है?

  • फीचर भी एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। इसका लेखन भी समाचारपत्रों के लिए किया जाता है। यह शब्द लैटिन के फैक्ट्रा’ से बना है जिसका अर्थ है व्यक्ति या वस्तु का स्वरूपआकृतिविशिष्ट रचना आदि। अनेक विद्वानों ने इसे परिभाषित करने का प्रयास किया है लेकिन जितनी भी परिभाषाएँ दी गई हैं वे फीचर की किसी-न-किसी एक विशेषता पर बल देती है। इस संदर्भ में डॉ. संजीव भानावत का कथन द्रष्टव्य है 'फीचर वस्तुतः भावनाओं का सरसमधुर और अनुभूतिपूर्ण वर्णन है। फीचर लेखक गौण हैवह एक माध्यम है जो फीचर द्वारा पाठकों की जिज्ञासाउत्सुकता और उत्कंठा को शांत करता हुआ समाज की विभिन्न प्रवृत्तियों का आकलन करता है। 


  • इस प्रकार फीचर में सामयिक तथ्यों का यथेष्ट समावेश तो होता ही हैसाथ ही अतीत की घटनाओं तथा भविष्य की संभावनाओं से भी वह जुड़ा रहता है। समय की धड़कनें इसमें गूंजती हैं।' (डॉ. संजीव भानावतसमाचार लेखन के सिद्धांत और तकनीकपृ० 87) वास्तव में यह किसी घटनाव्यक्तिवस्तु या स्थान के बारे में लिखित विशिष्ट आलेख की प्रस्तुति है जिसमें कल्पनाशीलतासृजनात्मकता के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली देखी जा सकती है। यह समाचारमूलक भी हो सकता है लेकिन यह समाचार का विस्तृत रूप नहीं हैउससे भिन्न है। इसके विषय की कोई सीमा नहीं है। कोई भी विषय हो सकता है बस वह जिज्ञासावर्धकपरितृप्तिकारक और विचारोत्तेजक हो ।

 

फीचर के तत्त्व Elements of Feature Writing

 

1. फीचर पाठक को आकर्षित करने में समर्थ और पाठक की जिज्ञासा को निरंतर बढ़ाने वाला होना चाहिए तभी रोचकता बनी रहेगी। सूचनाशिक्षण और मनोरंजन तीनों का समन्वय फीचर में होना चाहिए।

 

2. फीचर सत्य पर आधारित और मौलिक होना चाहिए। यह तथ्यात्मक रूप से सटीक होना चाहिए। इसमें मौलिकता फीचर लेखक द्वारा किए गए गहन तथ्यान्वेषण से आती है।

 

3. फीचर समसामयिक होना चाहिएसामाजिक जीवन के निकट होना चाहिए तभी यह उपयोगी और प्रभावकारी होगा। उसका आकार संक्षिप्त होना चाहिए लेकिन अपने आप में पूर्ण होना चाहिए। वह गागर में सागर प्रतीत हो।

 

4. चित्रात्मकता फीचर का आवश्यक गुण है। यह चित्रात्मकता फीचर लेखक की शैली से आती है। अतः फीचर लेखक की शैली सीधी-सपाट न होकर चित्रात्मक होनी चाहिए। कथात्मक अनुभूति की प्रतीति भी फीचर में होनी चाहिए।

 

5. भाषा भी सहजसरलविषयानुरूपभावानुरूप और लालित्यपूर्ण होनी चाहिए। उसका प्रवाह छोटी नदी के समान होना चाहिए। वाक्यों में तारतम्य हो और वाक्य गठन में अनेकरूपता हो शब्दोंवाक्यों और विचारों में पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए और कुछ भी अनावश्यक नहीं होना चाहिए।

 

फीचर लेखक के गुण

 

एक फीचर लेखक में निम्नलिखित गुण होने चाहिए

 

1. उसमें निरीक्षण शक्ति होनी चाहिए ताकि वह वस्तु को देखकर उसे आत्मसात कर सके। इसके माध्यम से फीचर लेखक उन तथ्यों तक पहुंच सकता हैं जिन तक सामान्य पाठक नहीं पहुंच पाता है।

 

2. फीचर-लेखक को बहुज्ञअध्ययनशील और कलम का धनी होना चाहिए। उसका भाषा पर पूरा अधिकार होना चाहिए। उसकी भाषा विषय और विचार के अनुकूल कलात्मक और उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए। धर्मदर्शनसंस्कृतिसमाजसाहित्यइतिहास आदि की समझ न केवल उसके बहुआयामी व्यक्तित्व को सामने लाती है बल्कि फीचर को आकर्षकतथ्यपूर्ण और प्रभावपूर्ण भी बनाती है।

 

3. फीचर लेखक को आत्मविश्वास से परिपूर्ण होना चाहिए। उसका ज्ञान और अनुभव उसके फीचर में झलकना चाहिए। उसे अपनी आंखों और कानों पर विश्वास होना चाहिए और उसी आधार पर फीचर लेखन करना चाहिए।

 

4. फीचर लेखक को निष्पक्ष और अपने परिवेश के प्रति सदैव जागरूक रहना चाहिए। उसका विषय प्रतिपादनविश्लेषण और प्रस्तुति प्रामाणिक होन कि आरोपित और संकीर्ण। इसी प्रकार परिवेश और समसामयिक परिस्थितियों के प्रति उसकी जागरूकता घटनाओं के सही और सूक्ष्म विश्लेषण में सहायक होगी।

 

फीचर लेखन क्या है?

 

  • फीचर लेखन एक ऐसी कला है जिसमें विशिष्टता की अपेक्षा रहती है। यह एक श्रम-साध्य कार्य है। फीचर लेखन के लिए प्रतिभापरिश्रम और अनुभव तीनों की विशिष्ट महत्ता है। डॉ. हरिमोहन फीचर लेखन की प्रक्रिया त्रि-आयामी मानते हैं ( 1 ) विषय चयन (2) सामग्री संकलन (3) विषय-प्रतिपादन। उन्हीं के शब्दों में यह विधा सर्जनात्मक साहित्य की तरह घटनाओं केस्थितियों के पार की संवेदना को उभारती हैअपने लालित्य के कारण पाठक को आकर्षित करती हैविचारों-भावों के संयोजन से नया संसार रचती हैउद्वेलितआनन्दित और प्रेरित करती हैसूचना देती है। इसलिए फीचर लेखन को किसी सीमा में नहीं बाँधा जा सकता।।।। इस विधा के लिए कच्चा माल हर कहीं उपलब्ध रहता है। यह एकान्त में बैठकर लिखने की चीज़ नहीं है अपितु इसके लिए बाहर निकलना पड़ता हैस्थितियों से टकराना और उन्हें जीना पड़ता है.. न यह तुरत-फुरत का लेखन हैन समाचारों की तरह चटपटा या नीरस सूचनात्मक गद्यखण्ड । दूसरी ओर न साहित्य की तरह केवल मनोरंजककल्पनात्मकरसात्मक या प्रज्ञात्मक अपितु दोनों क्षेत्रों का संतुलित समायोजन फीचर में निहित रहता है। इसलिए फीचर लेखन लेखक के लिए एक 'शक्ति परीक्षणसे कम नहीं होता।' (समाचारफीचर लेखन और संपादन कलापृ० 112-113)

 

फीचर लेखन के निम्नलिखित बिंदु माने जा सकते हैं -

 

(1) विषयवस्तु, (2) सामग्री-संकलन, (3) प्रस्तावना या भूमिका या आरंभ, (4) विवेचन विश्लेषण या मध्य, (5) उपसंहार या निष्कर्ष या अंत और (6) शीर्षक। यहां इनका क्रमशः विवेचन प्रस्तुत है

 

1. विषयवस्तु 

  • इस दृष्टि से विषय की नवीनतापत्र-पत्रिका की स्थितिपत्र-पत्रिका के पाठकवर्गपाठकों की रुचिविषय-सामग्री की उपलब्धता अनुपलब्धतापठनीयता आदि को ध्यान में रखा जाता है। यही कारण है कि फीचर का विषय ऐसा चुना जाता जो नवीनजिज्ञासावर्धक और जनरुचि का हो ।

 

2. सामग्री संकलन 

  • विषय के निर्धारण के उपरांत सामग्री संकलन के लिए फीचर - लेखक को अध्ययनसंदर्भोंकतरनों और इंटरनेट का सहारा लेना पड़ता है। इस दृष्टि से उसे जिज्ञासुतार्किकसतर्क और व्यापक दृष्टिकोण वाला होना चाहिए। उसे निरीक्षण के साथ-साथ घटना की सत्यता जानने के लिए लोगों से बातचीत भी करनी चाहिएइससे फीचर में प्रभाव की सृष्टि होती है।

 

3. प्रस्तावना या भूमिका -

  • इन दो चरणों को पूरा करने के बाद फीचर की प्रस्तावना या भूमिका की रचना की जाती है। इसे फीचर का आमुखपरिचय पत्र या इंट्रो भी माना गया है। यह फीचर का प्राण है। इस एक अनुच्छेद में संबंधित विषय की संक्षिप्त जानकारी कम-से-कम वाक्यों मेंआकर्षक और रोचक ढंग से संतुलित रूप में प्रस्तुत की जाती है। मूलतः यह प्रस्तुति विषय और फीचर लेखक की लेखन-शैली पर टिकी होती है। डॉ. संजीव भानावत के अनुसार 'अच्छा 'इंट्रोही पाठक को पूरा फीचर पढ़ने के लिए मजबूर करेगा। घटिया या साधारण स्तर का 'इंट्रोअच्छे-से-अच्छे फीचर का 'कालबन जाता है। 'इंट्रोकी नाटकीयतामनोरंजकताभावात्मकता अथवा आलंकारिकता अनायास ही फीचर की निर्जीवता में सजीवता का संचार कर देती है। पाठक की जिज्ञासा-वृत्ति को जागृत करने वालेप्रथम पंक्ति में ही पाठकों को आकृष्ट करने वाले 'इंट्रोश्रेष्ठ तथा स्तरीय माने जा सकते हैं।' (डॉ. संजीव भानावतसमाचार लेखन के सिद्धांत और तकनीकपृ० 91) आमुख सारयुक्तविशिष्ट घटनात्मकप्रश्नात्मकविरोधात्मकसादृश्यमूलकचित्रात्मकनाटकीय आदि किसी भी प्रकार का हो सकता है। (डॉ. ब्रजभूषण सिंह 'आदर्श', रूपक लेखनपृ० 14-15 ) ,

 

4. विवेचन-विश्लेषण -

  • इस बिंदु के अंतर्गत फीचर की मूल संवेदना की व्याख्या विभिन्न अनुच्छेदों में लययुक्त क्रमबद्धतामार्मिकताकलात्मकताविश्वसनीयताजिज्ञासा, • उत्तेजना आदि के साथ की जाती है। इस भाग को प्रभावशाली बनाने के लिए लेखक इसमें विषय को पुष्ट एवं प्रामाणिक बनाने वाले तथ्यों एवं विचारों का विवेचन विश्लेषण करता है और फीचर पर अपनी पकड़ बनाए रखता है। घटनाओंस्थितियोंक्रियाओं-प्रतिक्रियाओं का परस्पर संबंध और निर्वैयक्तिकता विवेचन-विश्लेषण में विशेष रूप से ध्यातव्य है। इस संदर्भ में डी० एस० मेहता का कथन भी द्रष्टव्य है. फीचर में उस तथ्य को उभारा जाता है जो महत्त्व का होते हुए भी स्पष्ट नहीं होता और उसका प्रस्तुतीकरण ही फीचर के व्यक्तित्वउसकी शक्ति और उसके औचित्य को बाँध देता है। अध्ययनअनुसंधान और साक्षात्कारों के बल पर फीचर में तथ्यों का विस्तार किया जाता है।' (मास कम्यूनिकेशन एंड जर्नलिज्म इन इंडियापृ० 80 ) फीचर पाठकों को मानसिक तृप्ति और आनंद तो देता ही हैउसे संघर्ष हेतु सन्नद्ध भी करता है। इस दृष्टि से यह पक्ष पर्याप्त संतुलित और तार्किक होना चाहिए। मूल संवेदना की व्याख्या-विश्लेषण में फीचर लेखक साहित्य की विभिन्न विधाओं- संस्मरणडायरीरिपोर्ताजफैंटेसीसाक्षात्कारव्यंग्यरेखाचित्रलघुकथापत्र आदि का सहयोग ले सकता है लेकिन उसे उपदेश देने और शुष्क वर्णन से बचना चाहिए।

 

5. उपसंहार या निष्कर्ष 

  • यह फीचर का समीक्षात्मक अंश होता है। इसमें फीचर लेखक निष्कर्ष नहीं गिनाता बल्कि अपनी बात संक्षिप्त में प्रस्तुत कर पाठक की समस्त जिज्ञासाओं का समाधान करने का प्रयास करता है। यहाँ उल्लेखनीय है कि उसका निष्कर्ष समसामयिक और प्रभावी हो। डॉ. हरिमोहन के अनुसार 'निष्कर्ष के अंतर्गत वह नए विचार-सूत्र दे सकता है। सुझाव दे सकता हैकोई प्रश्न छोड़ सकता है जो पाठकों को सोचने को बाध्य करे। कुछ ऐसे प्रश्न छोड़ देना जिनके उत्तर पाठक तलाशे ।' (समाचारफीचर लेखन और संपादन कलापृ० 117) प्रस्तुति का ढंग और वाक्य-विन्यास की कसावट यहाँ विशेष महत्त्व रखती है।

 

6. शीर्षक 

  • शीर्षक फीचर का प्राण है। शीर्षक फीचर के सौंदर्य को ही नहीं बढ़ाता बल्कि उसके प्रभाव को भी द्विगुणित कर देता है। इसलिए फीचर के शीर्षक के चयन में विशेष सतर्कता अपेक्षित है। फीचर का शीर्षक अनुप्रासीप्रश्नसूचकनाटकीयगत्यात्मकआश्चर्यबोधकसनसनीखेजकाव्यात्मकतुलनात्मक उक्तिप्रधान किसी भी प्रकार का हो सकता है लेकिन वह फीचर का मूल कथ्य प्रस्तुत करने वालाआकर्षकनवीनअपने-आप में पूर्ण और कौतूहलवर्धक होना चाहिए। उपशीर्षकों के प्रयोग से भी फीचर की विषयवस्तु को सरल और प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है। सामान्य और निष्प्राण शीर्षक पाठक को फीचर से दूर कर सकता है जो किसी भी स्थिति में उचित नहीं होगा।

 

  • फीचर में छायांकन का विशिष्ट महत्त्व है। हालांकि इसका संबंध लेखन से नहीं है लेकिन फीचर को प्रभावशाली बनाने के लिए विषयानुरूप सुंदर और मनोहारी छायाचित्रों का चयन किया जाता है। डॉ. हरिमोहन के शब्दों में 'दृश्यमूलक प्रवृत्ति होने से फीचर की आत्मा छायाचित्रों में विशेष रूप से मुखर होती है। ' ( समाचारफीचर लेखन और संपादन कलापृ० 118) इस दृष्टि से छायाचित्र विषयानुरूपसुंदरस्पष्टजीवंतपरिपूर्णआकर्षक और सुमुद्रित होने चाहिए।

 फीचर का एक उदाहरण

यहाँ फीचर का एक उदाहरण प्रस्तुत हैं जिनके अध्ययन से फीचर लेखन का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिल सकती है-

 

मीठा दर्द मर्द का शीर्षक

 

मर्द को कभी दर्द नहीं होता। कहने को तो यह डायलॉग करीब डेढ़ दशक पहले आई फिल्म मर्द का है। परंतु आज भी इसे सुनकर पुरुषों का सीना गर्व से चौड़ा हुए बिना नहीं रहता । अंग्रेजी में कहा जाता है 'बॉय्ज डोंट क्राई।रोती तो लड़कियाँ हैं! लेकिन दोनों ही बातें उतनी सच नहीं हैजितनी दिखाई पड़ती हैं। समय बदल चुका है। इसके साथ भारतीय समाज में भी बदले हुए पुरुषों की नस्ल’ दिखाई देने लगी है। नई नस्ल के ये पुरुष नौकरी के साथ घर की साफ-सफाई करते हैंखाना बनाते हैंबच्चों को नहलाते और तैयार करते हैं! इस पुरुष को मीडिया में कभी जगह मिलती है तो परंपरावादी पुरुष आश्चर्य से उसे देखते हैं। उस पर कभी हंसते हैं और कभी उनके मन में डर पैदा होता है कि क्या कभी हमारे दरवाजे पर भी यह बदलाव दस्तक देगा!!

 

प्रस्तावना

 

निश्चित ही हमारे समय के भारतीय पुरुष के मस्तिष्क में बड़ी उथल-पुथल मची है। न वह अपने पारंपरिक हठीअक्खड़स्वार्थीरौबदार और अहंकारी व्यक्तित्व को संभाले रख पा रहा है और न ही नई उदारसहिष्णुप्रेममयजिम्मेदार और संवेदनशील छवि को पूरी तरह आत्मसात कर पा रहा है। यद्यपि इस उलझन की अंतिम परिणति अक्सर महिलाओं के विरुद्ध उसके किए अपराधों में झलकती है परंतु यह उसके अनेक चेहरों में से सिर्फ एक चेहरा है। अपने बाकी चेहरों में पुरुष हैरानपरेशानकुंठित और लाचार है। बदले समय के साथ न बदल पाने के अपने दर्द से निजात पाने का सही रास्ता उसे नहीं दिख रहा। वह मीठे दर्द की तरह अपनी उलझनों की कलीफ सह रहा है। सटीक प्रतिक्रिया कर पाने की स्थिति में नहीं है।

 

पूर्व और पश्चिम की सभ्यताओं के संधिकाल मेंहमारा सामाजिक पुरुष नहीं समझ पा रहा है कि वह किसे अपनाए और किसे छोड़े। उसकी जैविक जरूरतें और आदतेंतमाम नारीवादी आंदोलनों और स्त्री विमर्श के दौर में किसी 'अपराधसे कम नहीं मालूम पड़ती। उसके सामने एकाएक परिस्थितियाँ और चीजें बदलने लगी हैं। टीवी सीरियल और विज्ञापन उसे अपने से तेजस्मार्ट और बुद्धिमान महिलाओं के आगे भोंदू और उसका मजाक उड़ाते दिखाते हैं। इससे भी बड़ी मुश्किल पुरुष के सामने यह आती है कि महिलाओं के पास कम-से-कम अपनी बेहतरी/समानता/स्वतंत्रता के लक्ष्य तो हैंपरंतु पुरुष के पास ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है। पुरुष समझ नहीं पड़ता कि आखिर यह सब हो क्या रहा हैको

 

ऐलन और बारबरा प्रेस की पुस्तक 'वाई मेन लाई ऐंड वुमन क्राईमें एक रोचक तथ्य है। 1960 के दशक सेजबकि दुनिया भर में नारीवादी आंदोलन ज्यादा मुखर हुए और उन्हें सफलता भी मिलीमहिलाओं की आत्महत्या की दर में 34 फीसदी तक गिरावट आई. लेकिन पुरुषों की आत्महत्या दर 16 फीसदी तक बढ़ गई !! वास्तव में हमारे समय में पुरुष होना तमाम जटिलताओं के बीच जीना है। यद्यपि यह पश्चिमी दुनिया का तथ्य है परंतु ऐसा नहीं कि हमारा समाज पश्चिमी हवाओं से बेअसर रहा। पुरानी पीढ़ियों में परिवार के सदस्यों की भूमिकाएँ स्पष्ट थीं। पुरुष घर का मुखिया था। वह कमाकर लाता था। संरक्षक था । स्त्री पत्नीमाँबहन की भूमिका में सबको साथ लेकर चलने और दुलारने वाली थी। पुरुष को अपनी जिम्मेदारियाँ पता थींस्त्री को अपनी जीवन सरल था। परंतु आज एकाएक सामाजिक परिदृश्य बदल चुका है। यही पुरुष की मानसिक उलझनों को बढ़ाने वाला है।

 

नई पीढ़ी के किशोर और युवा भीपश्चिमी प्रभावों और हमारी परंपरा के द्वंद्व में उलझे हैं। उन्हें अच्छा लगता है कि स्कूल और कॉलेज में उनकी गर्लफेंड हो। परंतु वे समझ नहीं पाते कि इस दोस्ती को क्या अंजाम देंदिल्ली में छात्रों को सलाह देने वाली संस्था आस्था के लड़के अक्सर यह जानना चाहते हैं कि उनके संबंधों की सीमा क्या होनी चाहिएअनुसार भारतीय और पश्चिमी जीवनशैली के द्वंद्व में फंसे आशीष नंदन (बदला हुआ नाम) को अपनी अपनी पत्नी से हाथ धोना पड़ा। आशीष की पत्नी तलाक लेकर अब उनके पक्के दोस्त से कोर्ट मैरिज कर चुकी है। आशीष बताते हैं 'मैंने कभी अपनी पत्नी को पैरों की जूती नहीं समझा। मैंने अपनी पत्नी का एक मनुष्य की तरह सम्मान किया और समझा कि एक सामान्य व्यक्ति की तरह उसे भी स्पेस की जरूरत होगी परंतु उसने मुझ पर अपनी उपेक्षा करने का आरोप लगाया। 


'विवेचन विश्लेषण

 

यूनिवर्सिटी ऑफ डेनवेर के फैमिली थेरेपिस्ट ऐंड साइकोलॉजिस्ट हॉवर्ड मार्कमेन का विश्वास है कि खेल के मैदानयुद्ध या व्यवसाय में पुरुष हमेशा सधा हुआ प्रदर्शन करते हैं क्योंकि वहाँ चीजें निश्चित नियमों और दायरों में बंधी रहती हैं परंतु यहाँ स्त्री-पुरुष संबंधों के निर्वाह में कोई स्पष्ट नियम लागू नहीं होता और पुरुष गच्चा खा जाते हैं। 

विज्ञान के अध्ययनों में कहा गया है कि विवाहित पुरुष अविवाहित पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा जीते हैं परंतु विवाहित पुरुषों का कहना है कि ऐसा सिर्फ आभास होता हैअसल में ऐसा होता नहीं!!

 

निष्कर्ष

 

एक नजर इधर भी

 

  • अध्ययन बताते हैं कि पुरुषों में महिलाओं की तुलना में तीन प्रतिशत 'जनरल इंटेलिजेंसकम होता है। 
  • पुरुष मुख्य रूप से ऐसे ग्रीटिंग कार्ड चुनते हैं जिनमें खूब बड़ा संदेश लिखा होता है। 
  • पुरुषों से बात करने का नियम नंबर एक एक बार में उनसे एक ही विषय पर बात सीधे और सरल शब्दों में।  
  • नियम नंबर दो: वह आपकी बात सुनेइसलिए उसे एडवांस नोटिस दें और बताएँ कि विषय क्या होगा? 
  • यदि कोई पुरुष अपनी नौकरी से नाखुश है तो वह अपने संबंधों पर ध्यान नहीं दे पाता। 
  • पुरुष जब मुश्किल में होता है तो वह अकेले रहना चाहता है। उसे तब स्त्री का साथ पसंद नहीं होता। 
  • शताब्दियों से पुरुष जैसा था वैसा ही है। आज भी 99 फीसदी पुरुष यह मानते हैं कि यौन-जीवन शानदार होना चाहिए। 


4 बातें

 

  • जब दो दिन की छुट्टियाँ बिताने हिल स्टेशन पर जाना है तो महिलाओं को सूटकेस भर कर कपड़े क्यों लगते हैं! 
  • महिलाएँ ऐसी पुस्तकें पढ़ना क्यों पसंद करती हैं जिन्हें पढ़ कर रोना आता है! पास ही जनरल स्टोर तक जाना हो तो बाल संवारने की क्या जरूरत? 
  • तीन हजार रुपये की साड़ी खरीदते हुए तो महिलाओं को खुशी होती है परंतु इतने का डीवीडी खरीदते हुए उनके चेहरे पर खुशी नहीं दिखती! रवि बुले साभारअमर उजाला, 23 मार्च, 2003,

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