भारत में जनसंपर्क उद्भव और विकास| Origin and Development of Public Relations in India

भारत में जनसंपर्क उद्भव और विकास
Origin and Development of Public Relations in India

 

भारत में जनसंपर्क उद्भव और विकास| Origin and Development of Public Relations in India

भारत में जनसंपर्क उद्भव और विकास

  • भारत में जन संपर्क प्राचीन काल से ही अस्तित्व में रहा हैलेकिन इसे धर्म या विचार और आचार कहा जाता रहा है। पंचतंत्र में ऐसी कहानियां भरी पड़ी हैं कि राजा और रानी अपने देश में शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए अपनी प्रजा के साथ दोतरफा संवाद करते थे। वे आम आदमी के प्रतिनिधियों को बुलाकर न सिर्फ उनकी बात सुनते थेबल्कि विभिन्न विभागों और संस्थाओं के बारे में उनकी सलाहों और विचारों पर यथासंभव अमल भी करते थे। ऐसे अवसरों पर राजाउनके दरबारी और जासूस अपने कान और आंखें हमेशा खुली रखते रामायण का ही उदाहरण लेंतो लंका में रावण का विनाश करने के बाद अयोध्या लौटे श्रीराम ने सीता का इसलिए परित्याग कर दिया कि एक धोबी ने उनके चरित्र पर शंका व्यक्त की थी। प्राचीन भारतीय इतिहास इस तरह की घटनाओं से भरा पड़ा है।

 

स्वतंत्रता पूर्व भारत में जनसंपर्क

 

  • प्राचीन काल में जन संपर्क का जो काम राजा-महाराजाओं ने कियाआधुनिक दौर में वही काम सेठ-साहूकारों और उद्योगपतियों ने किया। अनेक अमीरों ने सड़कों पर आम जनों के टिकने के लिए सरायें बनवाईतो पूजा-पाठ के लिए मंदिरों और ठहरने के लिए धर्मशालाओं का निर्माण भी उन्होंने किया। यह भी जन संपर्क का एक जरिया था। इससे आम लोगों को लाभ तो होता ही थालगे हाथों संबंधित सेठ-साहूकारों का प्रचार भी हो जाता था। आधुनिक भारत में टाटा ने जन संपर्क का अनुकरणीय उदाहरण पेश किया। वह प्रतिभाशाली स्नातकों के विदेशों में उच्च शिक्षा की पढ़ाई का प्रबंध करती थी। टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी (टिस्को) के कर्मचारियों के बेहतर रहन-सहन के लिए जमशेदपुर के साकची में देश की पहली टाउनशिप की स्थापना भी उसके जन संपर्क का ही उदाहरण था।

 

  • शुरुआती दिनों में भारतीय रेल ने अपने व्यावसायिक उद्देश्य के लिए ही सहीजनसंपर्क का प्रभावी इस्तेमाल किया। भारत में रेल तो चलने लगी थीलेकिन इसके बारे में व्यापक जानकारी नहीं थी। ऐसे में रेल विभाग ने इंग्लैंड में प्रचार और जन संपर्क अभियान चलायाताकि ब्रिटिश नागरिकों में भारतीय रेल के बारे में दिलचस्पी जगे। इधर भारत में तो स्थिति और विकट थी। एक तो आम लोगों को यातायात के साधन के रूप में रेलगाड़ी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उस समय एक जगह से दूसरी जगह जाना वैसे भी उनकी जरूरतों में नहीं थी। फिर जिन लोगों ने रेलगाड़ी के बारे में सुन रखा थावे भी इस पर सवार होने से डरते थे। ऐसे में सवारी भरने के लिए भारतीय रेल ने मेलों आदि के दौरान प्रचार अभियान चलाना शुरू किया। इसके तहत खुले में फिल्में दिखाई जाती थींजिनमें रेलगाड़ी की विशेषताओं के बारे में बताया जाता था।

 

  • अंग्रेजों ने भारतीयों के बीच अपनी छवि सुधारने के लिए जन संपर्क का सहारा लिया। वे इस देश के अमीर और प्रभावशाली लोगों को लॉर्डसररायबहादुरसरदार बहादुर आदि उपाधियां देने लगे। इससे उन्हें देश के भीतर से समर्थन भी मिलने लगा। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस ने शुरुआत से ही जन संपर्क पर विशेष ध्यान दिया। गांधीनेहरूपटेलसुभाषचंद्र बोस आदि का आम जनता पर जादू कांग्रेस के जन संपर्क का ही परिणाम था। गांधी का चरखा कातनाब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार और धोती-कुरता- टोपी आजादी के संघर्ष के चिह्न बन चुकी थीतो जन संपर्क के कारण ही। लोगों के बीच कांग्रेस की ऐसी छवि बन चुकी थी कि उसका एक-एक फैसला उनको मान्य होता थाब्रिटिशों के प्रति कांग्रेस का गुस्सा करोड़ों देशवासियों के क्षोभ का कारण बन जाता था। 


  • प्रथम विश्वयुद्ध के समय इसमें इंग्लैंड के शामिल होने के बारे में भारतीयों को सूचित करने और आम जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने औपचारिक रूप से जन संपर्क विभाग की शुरुआत की। इसका उद्देश्य भारतीय प्रेस और आम जनता के बीच विश्वयुद्ध से जुड़ी खबरों का प्रसार करना भी था। उस दौरान एक से सेंट्रल पब्लिसिटी बोर्ड का गठन किया गयाजिसके मुखिया टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक थे। सेना तथा ब्रिटिश सरकार के राजनीतिक व विदेश विभाग से इनके प्रतिनिधि चुने गए। विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद 1921 में इस बोर्ड का विलय सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्फॉरमेशन (सीबीआई) में हो गया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. रशब्रुक विलियम इसके पहले निदेशक थे। वर्ष 1923 में इसका नाम बदलकर जन अनुदेश निदेशालय (डायरेक्टेरट ऑफ पब्लिक इन्स्ट्रक्शन) और अंततः 1931 में सूचना और प्रसारण निदेशालय (डायरेक्टरेट ऑफ इन्फॉरमेशन ऐंड ब्रॉडकास्टिंग) हो गया।

 

  • दूसरे विश्वयुद्ध तक स्थिति काफी बदल गई थी। इस दौरान अखबारों की प्रसार संख्या बढ़ गई थीमुखर जनमत बनने लगा था और खुद ब्रिटिश सरकार चाहती थी कि आम भारतीय इस युद्ध के पक्ष में हों। ऐसे मेंभारत में जन संपर्क व्यावसायिक गतिविधि के रूप में सामने आया। सूचना और प्रसारण विभाग का गठन इसी का नतीजा था। इसका उद्देश्य विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार के पक्ष में योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलानासैनिकों की बहालीमूल्य नियंत्रण और खाद्यान्न की राशनिंग आदि था। इस विभाग में युद्ध संबंधी प्रदर्शनी यूनिटफिल्म डिविजन और केंद्रीय जन सूचना ब्यूरो जैसे कई अलग-अलग विभाग थे। ब्रिटिश सरकार के समानांतर कंपनियां पहले से ही व्यावसायिक उद्देश्यों से जन संपर्क का काम कर रही थीं।  कुछ निजी लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान यह काम सुनियोजित और संगठित रूप से शुरू हुआ। टाटा ने से 1945 में अपने मुख्यालय मुंबई में जन संपर्क विभाग गठित किया। बाद में कई दूसरी अनेक कंपनियों ने अपने उत्पादों के प्रचार के लिए जन संपर्क अभियान को संगठित रूप दिया।

 

आजादी के बाद जनसंपर्क

 

  • वर्ष 1947 में मिली आजादीविभाजनपाकिस्तान का निर्माण और पश्चिमी पंजाब व पूर्वी बंगाल से लाखों शरणार्थियों के आने से अचानक पूरा परिदृश्य ही बदल गया। देश के सामने अब एक बड़ी चुनौती थी। शरणार्थियों का पुनर्वास और देश के दंगाग्रस्त इलाकों में शांति और भाईचारा स्थापित करने का काम आसान नहीं था। भारत ने समाजवादी गणतंत्र की व्यवस्था लागू कीऔर लोकसभा और राज्य विधानसभाएं पहली बार अस्तित्व में आईं सरकारी स्तर पर औद्योगिक नीति प्रस्ताव और औद्योगिक नीति नियंत्रण कानून जैसे कदम उठाए गए। नतीजतन सरकार और उद्योग घरानोंदोनों के लिए जन संपर्क की नीति अपनाना जरूरी हो गया। इस तरह भारत में जन संपर्क संस्थागत तौर पर स्थापित हुआ।

 

  • कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां स्वतंत्र भारत में अपना अस्तित्व बनाए रखने और फलने-फूलने के लिए जन संपर्क के अपने अनुभवों और इस क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठाने की कोशिश करने लगीं। 50 और 60 के दशक में बर्मा शेलडनलप इंडियागुडईयरहिंदुस्तान लीवरइंडियन ऑक्सीजनएस्सोकैलटेक्सआईबीएमयूनियन कार्बाइडफिलिप्स और आईटीसी जैसी कंपनियों ने जन संपर्क को व्यवस्थित रूप देने के लिए जन संपर्क विभाग गठित किया। उनकी देखादेखी भारतीय कंपनियों में भी जन संपर्क विभाग गठित करने की होड़ लग गई।

 

  • जन संपर्क में पेशेवराना पुट जन संपर्क को एक पेशे के तौर पर पहचान दिलाने और लोगों को इसके उद्देश्य और इसकी क्षमता से परिचित कराने के लिए 1958 में ए नेशनल एसोसिएशन ऑफ पब्लिक रिलेशन्स प्रैक्टिसनर्स की स्थापना की गई. इंडियन सोसाइटीज ऐक्ट के तहत 1966 में यह रजिस्टर्ड हुई और उसी साल तक एक अनौपचारिक निकाय के तौर पर चलती रही। भारत में जन संपर्क के जनक काली एच मोदी भारतीय पब्लिक रिलेशन सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष थे। वह इस पद पर 1966 से 1969 तक रहे। 21 अप्रैल का दिन अपने देश में जन संपर्क के लिए हमेशा याद किया जाएगाक्योंकि 1968 में इसी दिन दिल्ली में जन संपर्क पर पहले अखिल भारतीय सम्मेलन की शुरुआत हुई. नतीजतन यह दिन राष्ट्रीय जन संपर्क दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। इसी सम्मेलन में इस पेशे की आचार संहिता और दिशा निर्देश को पारिभाषिक रूप दिया गया। भारतीय पब्लिक रिलेशन सोसाइटी की शाखा और सदस्य पूरे देश में हैंऔर अब तक इसके 30 से भी अधिक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं। इन सम्मेलनों में जन संपर्क से जुड़े सभी तमाम विषयों पर विस्तार से चर्चा हो चुकी है।

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