चालकता अति चालकता क्या होती हैं |चालकता का मात्रक | Conductivity Superconductivity GK in Hindi

 चालकता (Conductivity) किसे कहते हैं 

चालकता अति चालकता क्या होती  हैं |चालकता का मात्रक | Conductivity Superconductivity GK in Hindi
 

चालकता (Conductivity) किसे कहते हैं 


  • किसी में विद्युत के प्रवाह को चालक की चालकता कहते हैं। यह प्रतिरोध का व्युत्क्रम (Reciprocal) होता है। किसी चालक की चालकता G= 1/ R जहां चालक का प्रतिरोध है)

 

  • चालकता का मात्रक प्रति ओम अथवा ओम ( Ω  -1) होता है । जिसे म्हो (mho) भी कहते हैं। इसके मात्रक को सीमेन (Simen) भी कहते है।

 

विशिष्ट चालकता ( Specific Conductivity) 

  • किसी चालक के विशिष्ट प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालक की विशिष्ट कहते हैं।


अर्थात्


किसी चालक की विशिष्ट चालकता σ = 1 / ρ जहां 

ρ = चालक की चालकता है। 


  • इसका मात्रक प्रतिओम मीटर या ओम-1 मीटर-1 (Ω-1m-1 ) या म्हो प्रति मीटर या सीमेन प्रतिमीटर (Sm-1) है।

 

प्रतिरोधों की ताप पर निर्भरता (Depen dence of Resistance on Temperature)

 

  • (i) ताप बढ़ने से धातुओं की प्रतिरोधकता बढ़ जाती है। क्योंकि किसी शुद्ध धातु की प्रतिरोधकताधातु के परमताप के लगभग अनुक्रमानुपाती होती है। 


  • (ii) मिश्र धातुओं (Alloys) की प्रतिरोधकता भी ताप के बढ़ने पर बढ़ती है। परन्तु शुद्ध धातुओं की अपेक्षा बहुत कम ।

 

  • कुछ मिश्र धातुएं ऐसी हैं जिनके प्रतिरोधकता पर ताप का प्रभाव नगण्य होता है। जैसे- नाइक्रोममैगनिन व कान्सटेन्टन इत्यादि। इसी कारण इनका प्रयोग प्रमाणिक प्रतिरोधप्रतिरोध बाक्स इत्यादि बनाने में किया जाता है।

 

  • (iii) अर्धचालकों की विद्युत चालकता अचालकों (Non-conductors) की अपेक्षा बहुत अधिक तथा सुचालकों की अपेक्षा बहुत कम होती है। जैसे- सिलिकानजर्मेनियमकार्बन इत्यादि । इन पदार्थों की प्रतिरोधकता ताप बढ़ाने पर घटती है अर्थात् चालकता बढ़ती है।

 

  • (iv) वैद्युत अपघयों ( Electrolytes) की प्रतिरोधकता भी ताप बढ़ाने पर कम होती है। कारण यह कि ताप बढ़ने से विलयन की श्यानता (Viscos ity) कम हो जाती है। जिससे उनके भीतर आयनों को चलने-फिरने की अधिक स्वतंत्रता मिल जाती है। 


अति चालकता क्या होती है Superconductivity GK in Hindi

 

  • कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं। जिनकी प्रतिरोधकता निम्न ताप पर लगभग शून्य हो जाती है। जैसे- पारा की प्रतिरोधकता 4.2 केल्विन ताप पर अचानक शून्य हो जाती है। इस गुण को अति चालकता कहते हैं। इस दशा में ( अर्थात् निम्न ताप पर) पदार्थ अति चालक (Superconductor) बन जाता है। ताप जिस पर प्रतिरोधकता अचानक शून्य हो जाती हैको संक्रमण ताप (Transition Temperature) कहते हैं। यह ताप अलग-अलग पदार्थों के लिए अलग-अलग होता है।

 

  • शून्य प्रतिरोधकता किसी पदार्थ की अतिचालक अवस्था का लक्षण है। यदि हम किसी ऐसे तार में जो अति चालकता की अवस्था में हैएक बार किसी विद्युत स्रोत से धारा प्रवाहित कर दें तो फिर स्रोत को हटा लेने पर भी तार में धारा घण्टोंदिनों अथवा महीनों प्रवाहित होती रहेगी।

 

  • पदार्थ - संक्रमण ताप 
  •  टंगस्टन -0.01K
  •  कैडमियम -0.56K
  • ऐल्युमिनियम-1.19 K 
  • टिन- 3.7 k
  • पारा -4.2K
  • सीसा- 7.2 K

 

अति चालक पदार्थों के उपयोग (Usages of Super Conductors)

 

(i) विद्युत ऊर्जा को बिना ह्यस के एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जा सकता है।

(ii) अतिरिक्त वैद्युत ऊर्जा को अति चालक रिंगों में संग्रहीत किया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर प्रयोग में लाया जा सकता है। 

(iii) अतिचालकों से विद्युत चुम्बकों का निर्माण करके अति प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जा सकता है। ज्ञातव्य है कि अतिचालकता और भी महत्वपूर्ण हो जायेगीयदि इसे सामान्य ताप पर प्राप्त करना संभव हो जाय। क्योंकि इससे लागत में काफी कमी आ जायेगी।

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