वायुराशियाँ व वाताग्र क्या होते हैं| वायुराशियों व वाताग्र का वर्गीकरण | वायुराशियों के उत्पत्ति क्षेत्र वाताग्र| Vayurashi Vatagra Vargikaran

  वायुराशियाँ व वाताग्र क्या होते हैं ( वायुराशियों व वाताग्र का वर्गीकरण)

वायुराशियाँ व वाताग्र क्या होते हैं|  वायुराशियों व वाताग्र का वर्गीकरण | वायुराशियों के उत्पत्ति क्षेत्र वाताग्र| Vayurashi Vatagra Vargikaran


वायुराशि किसे कहते हैं ?

  • 'वायुराशिवायुमण्डल के उस विस्तृत तथा घने भाग को कहा जाता हैजिसमें विभिन्न ऊँचाई पर क्षैतिज रूप में तापमान तथा आर्द्रता सम्बन्धी दशाएँ समान होती हैं. ट्रिवार्था के अनुसार वायु-राशि वायु मण्डल का वह विस्तीर्ण भाग है जिसमें तापमान और आर्द्रता क्षैतिज रूप से एक समान हो. धरातल के ऐसे समान क्षेत्र जहाँ वायुराशियों की उत्पत्ति होती हैवायुराशि के उत्पत्ति क्षेत्र कहलाते हैं.

 

वायुराशियों के उत्पत्ति क्षेत्र - 

भू-पटल पर वायु राशियों के 6 आदर्श उत्पत्ति क्षेत्र पाए जाते हैं-

 

(i) ध्रुवीय और ध्रुववृत्तीय महाद्वीपीय क्षेत्र

(ii) उष्ण कटिबन्धीय समुद्रीय क्षेत्र

(iii) उष्ण कटिबन्धीय महाद्वीपीय क्षेत्र

(iv) ध्रुवीय सागरीय क्षेत्र

(v) भूमध्यरेखीय क्षेत्र

(vi) मानसूनी क्षेत्र.

 

वायुराशियों का वर्गीकरण

 वी विजकिन्स ने वायुराशियों का दो प्रकार से वर्गीकरण प्रस्तुत किया है-

 

वायुराशियों का भौगोलिक वर्गीकरण

 

भौगोलिक दृष्टि से वायुराशियों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है 


(i) ध्रुवीय और ध्रुव वृत्तीय महाद्वीपीय क्षेत्र - 

  • जाड़े की ऋतु में ध्रुव वृत्तीय बर्फीले मैदानी और उत्तरी अमरीका तथा यूरेशिया महाद्वीप के बर्फ से ढके हुए भाग इस क्षेत्र के अधीन होते हैं. 


(ii) उष्ण कटिबन्धीय समुद्री क्षेत्र - 

  • इस क्षेत्र में उपोष्ण प्रति चक्रवात के प्रदेश शामिल हैं.

 

(iii) उष्ण कटिबन्धीय महाद्वीपीय क्षेत्र

  • इसके अन्तर्गत उत्तरी अफ्रीकाएशिया तथा संयुक्त राज्य अमरीका का मिसीसिपी घाटी क्षेत्र सम्मिलित है जो ग्रीष्म काल में अधिक व्यवस्थित रहता है. 


(iv) ध्रुवीय समुद्री क्षेत्र - 

  • उत्तरी और उत्तरी-पूर्वी अन्धमहासागर तथा प्रशान्त महा सागर में फैला है.

 

(v) भूमध्यरेखीय क्षेत्र – 

  • सन्मार्गी हवाओं के बीच भूमध्यरेखीय क्षेत्र में फैला है. 


(vi) मानसूनी क्षेत्र - 

  • इस क्षेत्र में एशिया का दक्षिणी और दक्षिणी-पूर्वी भाग सम्मिलित है.

 

वायुराशियों का ऊष्मागतिक वर्गीकरण

 

ऊष्मागतिक वर्गीकरण के अनुसार वायु राशियाँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-

(i) शीतल वायुराशि-

  • शीतल वायुराशि का आविर्भाव उपधुवीय अथवा आर्कटिक क्षेत्रों में होता है. ये वायुराशि अपने नीचे के धरातल से अधिक शीतल होती. इस प्रकार की वायुराशि नीचे से तापमान ग्रहण करती रहती है. जिससे धीरे-धीरे उसमें परिवर्तन होता रहता है. वायुराशि में दृश्यता यथावत बनी रहती है शीतल वायुराशि के पुनः दो महाद्वीपीय तथा सागरीय किए जाते हैं.

 

(ii) उष्ण वायु राशि- 

  • उष्ण वायु राशि उसे कहते हैं जिसका तापक्रम उस सतह की अपेक्षाजिस पर होकर चलती हैअधिक होता है.

 

वाताग्र किसे कहते हैं 

  • 'वाताग्रवह ढलुआ सीमा होती है जिसके सहारे दो विपरीत स्वभाव वाली हवाएं मिलती हैं पेटरसन महोदय के अनुसार वाताग्री सतह तथा धरातलीय सतह का प्रतिच्छेदन करने वाली रेखा को वाताग्र कहते हैं तथा जो प्रक्रिया वाताग्र का निर्माण करती है. उसे वाताग्र उत्पत्ति कहते हैं. 


वाताग्र का वर्गीकरण 

वाताग्र को 4 प्रकारों में विभाजित किया जाता है.. 


i) उष्ण वाताग्र – 

  • आगे बढ़ती हुई उष्ण वायुराशि जब किसी ठण्डी वायुराशि के ऊपर चढ़ती है तो पृथ्वी के धरातल पर इन दोनों को अलग करने वाली रेखा उष्ण वाताग्र कहलाती है. दूसरे शब्दों में उष्ण हवा के अन्तिम छोर को उष्ण वाताग्र कहते हैं. 


(ii) शीत याताग्र - 

  • पृथ्वी के धरातल पर जब एक ही दिशा में आती हुई शीतल व उष्ण वायु की धाराएँ आपस में मिलती हैं तो उनके बीच की सीमा को शीत वाताग्र कहा जाता है.

 

(iii) अधिविष्ट याताग्र

  • जय शीत वाताग्र तीव्र गति से चलकर उष्ण वाताग़ से मिल जाता है तथा गर्म वायु का नीचे से सम्पर्क समाप्त हो जाता है तो अधिविष्ट वाताग्र का निर्माण होता है,

 

(iv) स्थायी वाताग्र-

  • जय दो विपरीत वायुराशियाँ एक वाताग्र से इस रूप में अलग होती हैं कि वे एक-दूसरे के समान्तर हो जाती हैं तथा वायु का ऊपर उठना नहीं हो पाता तो स्थायी वाताग्र का निर्माण होता है.

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