नारीवाद शब्द का उदय नारीवाद के प्रकार |नारीवादी विचाधारा के अंतर्गत पितृतन्त्र | Types of feminism in HIndi

 नारीवाद शब्द का उदय नारीवाद के प्रकार , नारीवादी विचाधारा के अंतर्गत पितृतन्त्र 

नारीवाद शब्द का उदय नारीवाद के प्रकार |नारीवादी विचाधारा के अंतर्गत पितृतन्त्र | Types of feminism in HIndi



नारीवाद शब्द का उदय 

 

  • नारीवाद शब्द के उदय के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है। इस सम्बंध में अनेक मत हैं, लेकिन आमतौर पर यह माना जाता है कि काल्पनिक समाजवादी चार्ल्स फोरियर ने 19 शताब्दी में इस शब्द का पहली बार उपयोग महिलाओं के लिए समान अधिकार का उल्लेख करने के लिए किया। पश्चिमी में प्रारंभिक 19वीं शताब्दी में महिलाओं का एक पृथक हित गुट के रूप में उदय अंशतः इसलिए हुआ क्योंकि इस वक्त तक यह स्पष्ट  हो गया था कि 17वीं तथा 18वीं शताब्दी की पूँजीवादी लोकतंत्रीय क्रान्तियों द्वारा दिए गए समानता के वचन से महिलाओं को अलग रखा गया था और अंशतः इसलिए कि, औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप महिलाओं की सार्वजनिक रोज़गारों में उपस्थिति काफी बढ़ गई थी। महिलाओं का प्रश्न इसी समय उदित हुआ। यह इस कारण से भी हुआ कि प्रबोधन (Enlightenment) विचारों के परिणामों से महिलाओं को दूर रखा गया था।

 

  • विश्व के अन्य हिस्सों में सार्वजनिक क्षेत्र में इस प्रश्न का जन्म साम्राज्यवाद विरोधी आन्दोलनों तथा सामंतीय दमन के विरुद्ध संघ के संदर्भ में हुआ। इस तरह से उत्तर औपनिवेशिक समाजों में नारीवादी हस्तक्षेप को परम्पराओं के पुराने दमन तथा उपनिवेशवाद के नए दमन से जूझना पड़ा। नारीवादी सिद्धान्त और राजनीति में जोरदार आंतरिक वाद-विवाद चल रहे हैं और यह आम तौर पर माना जाता है कि अब एक एकमात्र नारीवाद की बजाय हमें "नारीवादोंअर्थात बहुवचन में बात करनी होगी। फिर भी सभी नारीवाद यह मानते हैं कि समाज में महिलाओं की निम्न श्रेणी है और इस सोपान का आधार लिंग है। इस सोपान को स्त्री तथा पुरुन के मध्य प्राकृतिक विभेदों के आधार पर न्यायोचित्त समझा जाता है, लेकिन नारीवादी यह मानते हैं कि वास्तव में यह सामाजिक-सांस्कृतिक तथा आर्थिक शक्ति संरचनाओं पर आधारित है, जिसका दोनों यौनों के बीच जीव वैज्ञानिक सम्बंधों से कोई लेना देना नहीं है।

 

नारीवाद के प्रकार Types of feminism in HIndi

 

  • विश्व के विभिन्न हिस्सों में एक शताब्दी से अधिक के नारीवादी विचार तथा राजनीति ने एक समृद्ध साहित्य का सृजन किया है। नारीवादी विचार के परम्परागत परीक्षण ने उसे तीन भागों में बाँटा हैं - उदार, समाजवादी तथा आमूल नारीवाद (radical feminism)  


  • उदार नारीवाद को उदारवादी राज्य की रूपरेखा के अन्तर्गत समझा जाता है। इसमें समानता, स्वतंत्रता तथा न्याय को उदारवादी दर्शन के संदर्भ में उनका सिद्धान्तीकरण करते हुए यह स्पट किया जाता है कि ये अवधारणाएँ तब तक अपर्याप्त हैं, जब तक कि लैंगिक आयाम को शामिल नहीं किया जाता। 


  • समाजवादी नारीवाद नारी दमन को वर्ग समाज के साथ जोड़ते हैं। वे परीक्षण के मार्क्सवादी वर्गीकरण का सहारा लेते हुए इस बात की भी आलोचना करते हैं कि मार्क्सवादी सिद्धान्त में लैंगिक-अंधपन है। आमूल नारीवाद पितृतंत्र का पुरुन के आधिपत्य की एक व्यवस्था के रूप में सिद्धान्तीकरण करते हैं, जोकि आधिपत्य की अन्य प्रणालियों से स्वतंत्र तथा पहले हैं, अर्थात् आमूल नारीवाद में शोण तथा दमन के सभी स्वरूप एक रूप में यौन पर आधारित दमन से बनते हैं, चूँकि ऐतिहासिक तौर पर यह दमन का सबसे प्राचीन स्वरूप है।

 

  • लेकिन यह रूपरेखा नारीवाद में वाद-विवादों की जटिलता को पकड़ नहीं पाती। हाँ, इससे हम नारीवादी सिद्धान्त के एक उपयोगी प्रवेश बिन्दु के रूप में देख सकते हैं। यहाँ यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि इन विभेदों को पूर्ण तौर से पृथक भी नहीं किया जा सकता। 
  • इस आर्टिकल में में हम नारीवादी विचार के प्रमुख मुद्दों को तीन विशिष्ट विषयों  के परीक्षण द्वारा समझने की कोशिश करेंगे। ये विषय हैं - क) पितृतंत्र, ख) यौन-लिंग विभेद तथा ग) सार्वजनिक / निजी द्वि-भाजन (dichotomy)

 

नारीवादी विचाधारा के अंतर्गत पितृतन्त्र

 

पितृतंत्र शब्द नारीवादी विश्लेषण के केन्द्र में है और इसका अर्थ पुरुष आधिपत्य की मेहराब प्रणाली से है।

 

1 पितृतंत्र के संबंध में केट मिल्लेट के विचार

 

  • केट मिल्लेट 1970 के दशक में पितृतंत्र शब्द का उपयोग करने वाले प्रारम्भिक आमूल नारीवादियों में से हैं। इन्होंने समाजशास्त्री मैक्स वेबर की आधिपत्य की अवधारणा को विकसित करते हुए यह दलील दी कि सम्पूर्ण इतिहास में दोनों यौनों के बीच आधिपत्य तथा अधीनस्थ के सम्बंध रहे हैं, जिसमें पुरुष ने अपने आधिपत्य का प्रयोग दो स्वरूपों में किया है सामाजिक सत्ता और आर्थिक सत्ता द्वारा यहाँ पितृतंत्र पर एक व्यवस्था के रूप में ज़ोर है, जिसके द्वारा यह सिद्ध किया गया है कि स्त्री के ऊपर पुरुष की शक्ति कोई व्यक्तिगत घटनाचक्र नहीं है, बल्कि वह तो एक संरचना का भाग है।

 

2  पितृतंत्र के संबंध में गेरडा लरनर के विचार

 

  • गेरडा लरनर एक इतिहासकार हैं और उन्होंने पितृतंत्र को इस तरह से पारिभाषित किया हैः परिवार में नारियों तथा बच्चों पर पुरुन आधिपत्य की अभिव्यक्ति तथा उसका संस्थाकरण और समाज में आमतौर पर नारियों पर पुरुष आधिपत्य का विस्तृतीकरण....।


  • इसका अर्थ है कि पुरुष समाज में सभी महत्वपूर्ण संस्थाओं में शक्ति संभालते हैं तथा नारियों को इस शक्ति की पहुँच से वंचित रखा जाता हैइसका अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक व्यक्तिगत पुरुष हमेशा आधिपत्य तथा प्रत्येक व्यक्तिगत नारी हमेशा अधीनस्थ की स्थिति में होती है। इसका यह अर्थ आवश्यक है कि पितृतंत्र के अन्तर्गत एक विचारधारा है, जो यह कहती है कि पुरुष नारी से उत्कृष्ट है, नारी पुरुष की सम्पत्ति है तथा नारी को पुरुष के नियंत्रण में रहना चाहिए।

 

3 नारी की यौनता पर नियंत्रण तथा श्रम शक्ति

 

एक पत्नीत्व विवाह की संस्था (जिसे बड़ी कठोरता से स्थापित रखा जाता है) के माध्यम से पितृतंत्र में नारी की यौनता (Sexuality) पर नियंत्रण के अलावा नारी की श्रम शक्ति पर भी पुरुष का नियंत्रण होता है। 

  • परिवार के भीतर व बाहर नारी की उत्पादन क्षमता पर पुरुष का नियंत्रण होता है, जो कि यह  निर्णय करेगा कि नारी घर से बाहर काम करे अथवा नहीं। नारी की इस यौनता तथा श्रम पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए, उन्हें उत्पादक संसाधनों की पहुँच तथा स्वामित्व से वंचित रखा जाता है, जिससे वे पुरुष पर सम्पूर्ण तौर पर निर्भर हो जाती हैं। फिर उनकी चलनशीलता उन नियमों तथा आदर्शों के माध्यम से सीमित होती है, जो कि उन्हें कठोर रूप से परिभाषित स्थानों तक कैद रखते हैं।

 

4 पितृतन्त्र विचारधारा के विभिन्न स्वरूप

 

  • विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों तथा विभिन्न ऐतिहासिक कालों में पितृतंत्र विभिन्न स्वरूप लिए रहता है। उदाहरणार्थ, इतिहासकार उमा चक्रवर्ती ने यह उल्लेख किया है कि जनजाति की नारियों में तथा उच्च वर्गीकृत जातीय समाज की नारियों में पितृतंत्र का अनुभव अलग-अलग है। यह आज वैसा नहीं है जैसा कि उन्नीसवीं शताब्दी में था और भारत में, वैसा नहीं है जैसा कि पश्चिम के औद्योगीकृत समाज में है।
  • इसलिए इसी तरलता का उल्लेख करने के लिए नारीवादी विद्वान 'पितृतंत्रों' शब्द का प्रयोग करना उपयोगी मानते हैं। इस उपागम का प्रयोग करके पितृतंत्री संरचनाओं के वर्ग, जाति, नस्ल, रा-ट्र तथा धर्म जैसे अन्य संस्थाओं के साथ सम्बंध दृटिगत होते हैं। उदाहरणार्थ सामाजिक नारीवादी जिल्लाह आइसनस्टीन पूँजीवादी पितृतंत्र शब्द का उल्लेख पूँजीवादी वर्ग संरचना तथा सोपानिक यौन संरचना के बीच परस्पर प्रबलकारी द्वन्द्वात्मक सम्बंधों पर जोर देने के लिए करते हैं। उमा चक्रवर्ती ने एक और शब्द "ब्राह्मणिक पितृतंत्र" का प्रयोग किया है, जिसका प्रयोग वे जाति तथा लिंग दमन के प्रतिछेदन की ओर ध्यान आकर्पित करने के लिए करती हैं।

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