पर्यावरण से संबन्धित नैतिकता और मूल्य |पर्यावरणीय नैतिकता और उनका महत्व |Environment Ethics and Value

 पर्यावरण से संबन्धित नैतिकता और मूल्य 

पर्यावरण से संबन्धित नैतिकता और मूल्य |पर्यावरणीय नैतिकता और उनका महत्व |Environment Ethics and Value


पर्यावरण से संबन्धित नैतिकता और मूल्य 


नैतिकता का क्या अर्थ है

 

  • नैतिकता दर्शन शास्त्र की एक शाखा है जो मूल्यों एवं आचारों के बारे में बताती है। नैतिकता एक सिद्धान्त है जिसमें हम तय करते हैं एक कार्य अच्छा है या बुरा, सही है या गलत । एक सदाचारी होने के नाते सही आचारण एवं अच्छे जीवन को अपनाना चाहिए जिससे जीवन का सही उपयोग हो ।

 

  • लेकिन हर किसी को एक बात याद रखनी चाहिए कि हर एक व्यक्ति की पर्यावरण के प्रति कुछ जिम्मेदारी है क्योंकि वह न केवल भोजन एवं अन्य पदार्थ प्रदान करते हैं बल्कि मानव की अच्छा जीवन जीने के लिए सुरुचिपूर्ण ढंग से संतुष्ट भी करते हैं।

 

पर्यावरणीय नैतिकता और उनका महत्व

  • पर्यावरणीय नैतिकता दर्शन शास्त्र का वह भाग है जो मानव और प्राकृतिक पर्यावरण के बीच नैतिक संबंधों को समझाता है। 


  • मनुष्य को प्रकृति के साथ सद्भाव में जीना सीखना चाहिए। आप पहले से ही जानते हैं कि प्राकृतिक पारितंत्रों के बीच में संतुलन को बनाये रखने के लिए विभिन्न घटकों के बीच विभिन्न प्रक्रियाओं जिनमें स्वांगीकरण एवं पुनःचक्रीकरण शामिल है संतुलित होना चाहिए। लेकिन बढ़ती मानव जनसंख्या के द्वारा संसाधनों के अतिदोहन के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है। प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल और आर्थिक विकास के कारण पारिस्थितिकीय समस्याओं की वृद्धि होती है। आर्थिक उन्नति की प्राप्ति पर्यावरण की कीमत पर मिलती है। जिसके कारण प्रदूषण में बढ़ोत्तरी, जैव विविधता में कमी एवं आधारभूत संसाधनों की अत्यधिक कमी हो जाती है।

 

  • नैतिक मूल्यों या आचारों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह किसी भी विकासात्मक प्रक्रियाओं की शक्ति एवं कमजोरियाँ होती हैं जैसे वनोन्मूलन, बांध का निर्माण, खनन, आर्द्रभूमि से पानी का निकास इत्यादि । बहुत से नैतिक निर्णय लिये गये हैं कि मनुष्य को अपने पर्यावरण के प्रति सद्भावना बनाए रखने की जरूरत है।


  • उदाहरण के लिए क्या किसी को वनों की कटाई जारी रखनी चाहिए? जीवाश्मीय ईंधन का अधिकाधिक प्रयोग कब तक जारी रखना चाहिए? क्या मानव को किसी अन्य प्रजाति के विलोपन का कारण बनना चाहिये? हम कौन से पर्यावरणीय दायित्वों को मानें जिससे कि हम स्वस्थ पर्यावरण अपनी भावी पीढ़ियों के लिए बनाए रख सकें।

 

पर्यावरणीय नैतिकता का दृष्टिकोण

 

  • अभी तक सभी नैतिकता एक ही आधार पर विकसित हुई हैं कि एक व्यक्ति समुदाय के परस्पर आश्रित घटकों का एक सदस्य है। मानव समुदाय में अपना स्थान बनाए रखने के लिए प्रतिस्पर्धा करता है लेकिन नैतिक आचरण मनुष्यों को इस काम में सहयोग देने के लिए प्रेरित करते पर्यावरण - नैतिकता के मूलतः तीन दृष्टिकोण हैं। एक मत के अनुसार मनुष्य प्रभावी है एवं पृथ्वी ग्रह पर एक प्रमुख महत्वपूर्ण स्पीशीज है। मानव ने स्वयं के लाभ के लिए प्रकृति में हेरफेर करके उसका इस्तेमाल किया है। यह मानव केन्द्रित विचार है इसलिए इसे मानव केन्द्रित (anthropocentric) कहा जाता है।

 

  • एक दूसरा मानव केन्द्रित मत यह है कि मानव की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह मानव की भावी पीढ़ियों के प्रति जिम्मेदार बने इसीलिए मानव स्टेवार्ड या रक्षा करने वाले मैनेजर हैं जिन्हें भावी पीढ़ियों के लिए पृथ्वी को अच्छी दशा में छोड़कर जाना चाहिए। मानवजनित दृष्टिकोण के आलोचकों को यह मानव अज्ञानता जैसा लगता है। वे महसूस करते हैं कि अभी तक पता नहीं कितनी मानव स्पीशीज पृथ्वी पर रहती हैं वे पर्यावरण और एक दूसरे के साथ कैसे सहभागिता करते हैं। पर्यावरणीय ज्ञान की बातचीत प्रकृति पर मानव की कुल निर्भरता के और प्रकृति के सभी प्रजाति के लिए है। यह जीवन केंद्रित या बायोसेंट्रिक (biocentric) दृष्टिकोण है।

 

  • उपरोक्त मतों को आगे बढ़ाते हुए यह समझा जाता है कि सभी जीवों के प्रति सद्भावना चाहते हैं तथा सम्पूर्ण पर्यावरण की ओर अपनी श्रद्धा और प्रति सम्मान की मांग रखते हैं। इस तरह के गैर मानवजनित मार्ग जो कि दूसरी स्पीशीजों के प्रति नैतिक जिम्मेदारियों की बात करता है और इस प्रकार के पारितंत्र को पारिकेन्द्रित कहते हैं। इस मत के अनुसार यह अनिवार्य हो जाता है कि इस ग्रह को बचाना जरूरी है। आधारभूत तथ्य यह है कि मानव इस ग्रह को पूर्णत: नष्ट नहीं कर सकता है लेकिन यह ग्रह हमको पूर्णरूप से नष्ट कर सकते हैं। यह हमारी मूलभूत आवश्यकता है कि पर्यावरण की रक्षा करें ताकि हमारी उत्तरजीविता सुरक्षित रह सके एवं हम स्वयं को नष्ट होने से बचा सकें।

 

  • इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्रकृति एवं समस्त प्राकृतिक तंत्रों के अपने एक आंतरिक मूल्य होते हैं। यदि मानव जाति को जीवित रहना है तो पर्यावरण को भी बचाने की आवश्यकता है।

 

पृथ्वी पर जीवन के लिए सम्मान

 

दीर्घोपयोगी तरीके से इस ग्रह पर जीवित रहने के लिए हम सभी को इन बातों को हमेशा याद रखना चाहिए -


  • हम सभी के अस्तित्व के लिए जरूरत और उपभोग की सारी वस्तुएं प्रकृति से मिलती हैं। 
  • हम सब पृथ्वी ग्रह के बारे में बहुत कम जानते हैं। 
  • मानव अपनी उत्तरजीविता के लिए अन्य जीवों पर निर्भर करता है इसलिए उनके प्रति भी हमारा उत्तरदायित्व है।

 

पृथ्वी हमारा घर है और अन्य सभी प्राणियों के लिए भी उनका घर है। हमें सदियों पुरानी कहावत याद रखने की जरूरत है कि "जियो और जीने दो"। यह हमारा कर्तव्य है कि किसी भी प्रकार की हानि से हमारे ग्रह को बचाना है एवं यदि उसे नुकसान पहुंचता है तो उसके भरपाई करने के लिए हमें ही उसकी सहायता करनी है।

 


प्रकृति के साथ सामंजस्य रहने की परंपरा

 

  • भारतीय दर्शन शास्त्र में न केवल सब मनुष्यों के लिए ही अच्छा रहने बल्कि सभी प्राणियों के लिए भलाई की बात कही गयी हैं। संस्कृत कविता का सार "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे भवंतु निरामया" यही संदर्भित करता है। 


"सभी निष्पाप हो सकते हैं और सभी अनुभव खुशियां ला सकते हैं। "

 

  • इसका अर्थ है कि वेद, महाभारत और रामायण के सभी मंत्र ब्रहमांडीय सद्भाव और पर्यावरण संरक्षण के बारे में प्रशंसा करते हैं। ये भारतीय प्रणालियां न केवल मानवों का सम्मान करती हैं बल्कि अन्य प्राणियों के कल्याण एवं देखभाल के बारे में बताती हैं।

 

  • प्रकृति और पर्यावरण को ऋग्वेदीय अवधि के समय से ही महत्व दिया गया है। कविता बताती है कि "आकाश एक पिता के समान, पृथ्वी मां के समान एवं अंतरिक्ष बेटे के तुल्य है।" ब्रह्मांड इन तीनों से मिलकर बना एक परिवार है। यदि किसी एक को भी हानि पहुंचाती है तब ब्रह्मांड का संतुलन बिगड़ जाता है।

 

  • हमारे कई राज्यों में नए साल की शुरुआत रबी की फसल की कटाई के साथ होती है और इसे अप्रैल के महीने में मनाया जाता है। पंजाब में बैसाखी, बंगाल में नव बरशो, तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश में तमिल एवं तेलगू नव वर्ष के रूप में मनाया जाना इसके कुछ उदाहरण हैं। केरल में इस समय को विशु किनी के नाम से मनाया जाता है जिसमें लोकनृत्य किये जाते हैं एवं अनाज, सब्जियों एवं फलों के ढेरों को सजाया जाता है एवं त्यौहार शुरू होने के पहले दिन की सुबह इनको देखना एक शुभ शगुन माना जाता है।

 

  • भारतीय उत्सव, पारंपरिक कला और शिल्पों को भी पर्यावरण नैतिकता की दृष्टि से देखा जा सकता है। जैसा कि आप सबको मालूम होगा कि पौधों और पशुओं की पूजा लंबे समय से भारत में की जाती रही है।

 


पर्यावरणीय नैतिकता को मन में बैठाना

 

  • यह आम बात है कि हमें बचपन से ही अच्छी आदतों व दृष्टिकोणों को ग्रहण करने की कोशिश करनी चाहिए। बचपन में सिखायी गयी अच्छी बातें जीवन भर काम आती हैं। फिर भी इसके लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक बच्चे को पर्यावरण के प्रति आदर भाव को शुरू से एक आवश्यक कर्तव्य के रूप में बताना चाहिये। यदि बच्चों को कुछ मुद्दों के बारे में बताया जाये तो वे उनको समझेंगे एवं उनको सुलझाने का प्रयास करेंगें, जब वे बड़े होकर प्रशासक, नीति निर्माता, अध्यापक या फिर राजनेता बनेंगे।

 

  • विद्यालयों के पाठ्यक्रम में कुछ क्रियाकलाप जैसे- (i) पेड़ों को लगाना एवं उनकी देखभाल करना (ii) राष्ट्रीय पार्कों एवं अभ्यारण्यों को देखने जाना (iii) प्रकृति के संरक्षण से संबंधित कहानी / कविता/नाटक तैयार करना भी शामिल करना चाहिये। स्कूल एवं उसके आस-पास के स्थानों को हरा-भरा बनाने के लिए, शादी के मंडपों, आकर्षक पोस्टर बनाना एवं पर्यावरण से संबंधित संदेशों को विभिन्न कक्षाओं के लिए प्रत्येक वर्ष में होने वाली प्रतियोगिताओं में शामिल करना चाहिये ।

 

  • बच्चों में प्रकृति का अध्ययन जीवों के प्रति प्यार व अपने वातावरण को व्यवस्थित करने की आदत का विकास करता है।

 

  • 'भूमि संबंधी मूल्य' (land ethic) एक ऐसा विचार है जो प्रत्येक नागरिक के मन में अवश्य होना चाहिये। इसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति भूमि का नागरिक है और इस प्रकार उसके स्वास्थ्य के रखरखाव की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। भूमि की क्षमता का स्वास्थ्य स्वः नवीकरण के लिए है। संरक्षण हमारा प्रयास होगा कि हम उसे समझे एवं इस क्षमता को संरक्षित करने पाये।

 

संरक्षण आंदोलन एवं सार्वजनिक भागीदारी

 

  • सरकार जागरुकता पैदा करने व स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी अकेले नहीं उठा सकती। यहां हर कदम पर सार्वजनिक भागीदारी के लिए आम आदमी की जरूरत है। यदि आम आदमी जागरूक हो जाये कि स्थानीय व राष्ट्रीय स्तर पर क्या हो रहा है, इस प्रकार से वे बनायी गयी नीतियों पर अपना निर्णय बता सकते हैं।

 

  • पश्चिमी घाटों में शांत घाटी परियोजना पर्यावरण कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन और जन प्रतिनिधित्व की वजह से समाप्त कर दी गयी थी। इससे इस क्षेत्र के वर्षा वनों को बचाने में मदद मिली जो कि विश्व में जैव विविधता वाला एक हाट स्पॉट है।

 

  • एक जाने-माने पर्यावरणीय कार्यकर्ता एवं वकील एम.सी. मेहता ने केन्द्र, भारत सरकार के विरुद्ध जनहित याचिका दायर की। उनका मुख्य उद्देश्य भारत के ताजमहल को मथुरा रिफाइनरी से निकलने वाले बर्हिपदार्थों से बचाना था। इस प्रसिद्ध मामले के कारण प्रत्येक नागरिक का शुद्ध हवा, जल एवं भूमि पर अधिकार है, की जागरूकता उत्पन्न हुई। इस एक मामले के फैसले ने अन्य जनहित याचिकाओं के लिए दरवाजे खोल दिये और न्यायालय ने उन पर अपना निर्णय भी दिया।

 

  • इसके कारण कुछ ऐसे मामले भी प्रकाश में आये जैसे कि दिल्ली एवं एन. सी. आर. (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) से प्रदूषण उत्पन्न करने वाले उद्योगों को बाहर स्थानान्तरित कर दिया गया; " दिल्ली एवं एनसीआर में सीएनजी के उपयोग की अनिवार्यता का अभियान चलाया गया। "हरा ईंधन स्वच्छ ईंधन" के अभियान ने दिल्ली में कार में सीसारहित पेट्रोल के उपयोग का अभियान चलाया। ऐसा भारत में पहली बार हुआ था। ये सभी उदाहरण यह दर्शाते हैं कि यदि जागरूकता या सक्रियता व्यक्तिगत रूप से, जन संगठनों, गैर सरकारी संगठनों के द्वारा प्रसारित की जाये तो निश्चय एक स्वच्छ पर्यावरण की कल्पना की जा सकती है।

 

  • बांधों के विरुद्ध प्रदर्शन करना एक विवादास्पद मुद्दा है और नर्मदा बचाओ आंदोलन अत्यंत सक्रिय रूप से नर्मदा बांध से हटाये गये लोगों के लिए किया जाने वाला आंदोलन है। (इस बांध के निर्माण के कारण बहुत से लोग विस्थापित हो रहे हैं।) इसी तरह का मुद्दा टिहरी बांध के ऊपर भी उठा है।

 

  • जनता की जागरूकता सरकार एवं क्षेत्रीय/स्थानीय लोगों के बीच धनात्मक एवं फलदायक सहयोग को भी बढ़ावा देता है। संयुक्त वन प्रबंधन प्रणालियां सरकारी साधनों एवं स्थानीय निवासियों के संयुक्त प्रयासों से ही भी वनों का संरक्षण, वनीकरण कार्यक्रम, वन्यजीव प्रबंधन एवं अन्य दूसरे प्राकृतिक संसाधनों के लिए कार्य करना संभव हो सकता है।

 

कारपोरेट पर्यावरणीय नैतिकता

 

  • व्यवसाय प्रबंधन में नैतिकता अत्यंत आवश्यक है। पिछली सदी के दौरान एक ऐसा सबक लिया गया कि अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। कार्पोरेट जगत की अब एक सबसे मूलभूत जिम्मेदारी पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने की है। उद्योगों से एक बहुत बड़ी मात्रा में अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन किया जाता है एवं इन अपशिष्टों का निपटान या प्रदूषण के स्तर को कम करने की एक कीमत होती है। अपशिष्ट पदार्थों के नियंत्रण की कीमत ही कम्पनी का लाभ होता है। ऐसा इस कारण है कि उद्योगों से निकले अपशिष्ट पदार्थों को किसी नदी में फेंक देना उन पदार्थों को अपशिष्ट जल संशोधन सुविधा द्वारा उपयोगी बना देना कम कीमत का सौदा होता है। हवा में निष्काषित अपशिष्टों में आने वाली कीमत फिल्टर द्वारा अवशोषित किये गये पदार्थों की तुलना में सस्ती है। इस प्रकार प्रदूषण का फैलना अनैतिक एवं कभी नष्ट न होने वाला है, लेकिन कार्पोरेट जगत को भी इस तरह की प्रणालियों को कीमतों में कटौती करने एवं लाभ कमाने के लिए अपनाना चाहिये। इस प्रकार से ऐसे निर्णय थोड़े समय के लाभ के लिए न होकर लंबे समय के समाज तक हित के लिए होना चाहिये।

 

  • हाल ही के पर्यावरणीय आंदोलनों को व्यवसाय में लगे हुए समुदायों को पर्यावरणीय मूल्य की जानकारी के लिए उपयोग किया जा रहा है। औद्योगिक घराने अब कार्यक्षम, हरी एवं स्वच्छ तकनीकों के उपयोग में लाने के लिए काफी रुचि दिखाने लगे हैं। अब कम कार्बन युक्त फुट प्रिंटों के लिए सौर कार व तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है।

 

  • कुछ महानगरों में कार्पोरेट घरानों ने महानगरों में जगह-जगह हरियाली हेतु एवं बगीचों" को शहर के "फेफड़ों" की तरह काम करने संबंधी विकास के कार्य स्वयं अपनी निगरानी में लिये हैं। कार्पोरेट घराने स्कूली बच्चों एवं कालेज के युवा पीढ़ी के लिए पर्यावरण संबंधी शीर्षकों एवं मुद्दों पर प्रतियोगिताओं के आयोजन में पुरस्कार वितरण करने के लिए आयोजक बनते हैं।

 

  • उपरोक्त सभी के साथ EIA ( पर्यावरण प्रभावी मूल्यांकन) को नये व्यवसाय संबंधी परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए लागू करने पर जोर दिया गया है।

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