संगठित नारीवाद के उद्भव रूपरेखा | नारीवाद - सामाजिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि |Emergence of organized feminism

संगठित नारीवाद के उद्भव रूपरेखा, नारीवाद - सामाजिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि Emergence of organized feminism

संगठित नारीवाद के उद्भव रूपरेखा, नारीवाद - सामाजिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि Emergence of organized feminism
 

 

नारीवाद की अवधारणा प्रस्तावना

 

  • इस आर्टिकल में आप नारीवाद की अवधारणा के बारे में और उदारवादी, मार्क्सवादी, कट्टरपंथी, समाजवादी और उत्तराधुनिक और तीसरे धारा के नारीवाद के रूप में विभिन्न नारीवादी दृष्टिकोणों के बारे में भी अध्ययन करेंगे। इस आर्टिकल में हम विभिन्न नारीवादी दृष्टिकोणों और महिलाओं के जीवन के विभिन्न पहलुओं के अनुरूप उनकी मान्यताओं के बारे में चर्चा करेंगे, जिन पर वे केंद्रित हैं। विभिन्न नारीवादी दृष्टिकोण अलग-अलग मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और नारीवादियों का कभी भी संयुक्त स्वर नहीं रहा और समाज में बदलाव के अनुरूप मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया।

 

नारीवाद - सामाजिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

 

  • नारीवाद अपने वर्तमान रूप में यूरोप और अमेरिका में उत्पन्न हुआ, लेकिन महिलाओं ने सदैव विरोध किया साथ ही साथ प्रभावी पितृसत्ता के प्रति असंतोष व्यक्त करने के लिए अपने स्वयं के मार्ग भी खोजे, चाहे वह ऐतिहासिक तौर पर किसी भी रूप से अस्तित्व में रहा हो। नारीवादी परिप्रेक्ष्य उन परिप्रेक्ष्यों को संदर्भित करता है, जो एक दृष्टिकोण से या फिर किसी अन्य दृष्टिकोण से आलोचना करते हैं, सवाल करते हैं और प्रभावी पुरुष परिप्रेक्ष्यों के विरुद्ध विकल्प तलाशते हैं जो कि उससे सहसम्बद्ध है जिसे स्त्रीवादीयों द्वारा सार्वभौमिक पितृसत्ता कहा जाता है।


  • नारीवाद एक अखंड दृष्टिकोण नहीं है और महिलाओं की अधीनता को समझने और महिलाओं को मुक्त करने, उन्हें न्याय और समानता प्रदान करने के कई तरीके हैं। संगठित नारीवाद इंग्लैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्रांस में 17वीं शताब्दी के बाद से उभरा। औद्योगिक पूंजीवाद के आने और परिवार के भीतर आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों के साथ महिलाओं की स्थिति में भी बदलाव आया । 


  • "नारीवाद" मूल रूप से एक फ्रांसीसी शब्द था जो संयुक्त राज्य अमेरिका में बीसवीं सदी की शुरुआत में प्रचलन में आया (जेग्गार 1983 5)। इसका उपयोग पहली बार महिलाओं के एक समूह को संदर्भित करने के लिए किया गया जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों को उन्नत किया और उन्हें स्वच्छन्दतावादी नारीवादियों के रूप में उल्लेखित किया क्योंकि वे व्यापक रूप से स्त्री लिंग की और उनके मातृत्व के पद की विशिष्टता से संबद्ध थीं। दूसरी ओर लैंगिक बुद्धिवादियों ने महिलाओं के लिए एक बेहतर स्थिति की मांग की क्योंकि उन्होंने महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना और पुरुषों द्वारा महिलाओं पर शासन को समाप्त करने की परिकल्पना की।

 

  • उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के शुरुआती दौर में जे. एस. मिल और सिसली हैमिल्टन जैसे लेखकों ने अपने लेखनों में जेंडर संबंधी विचारों को शामिल किया लेकिन उन्हें मुख्यधारा के समाजशास्त्र में जगह नहीं मिली। 

 

समाजशास्त्र के संस्थापक और 'महिला प्रश्न'

 

  • हम कार्ल मार्क्स और एंजेल्स, मैक्स वेबर, एमिली दुर्खीम और जॉर्ज सिमेल जैसे प्रारंभिक समाजशास्त्रीय लेखकों के विषय में अन्वेषण करेंगे और इस बात का विश्लेषण करेंगे कि क्या उनके काम ने आधुनिक नारीवादियों के लेखन को प्रभावित किया। अधिकांश नारीवादियों का मानना है कि समाजशास्त्र के संस्थापक' ऐसे पुरुष थे जिन्होंने अपने लेखन में लैंगिक के मुद्दों पर थोड़ा ध्यान दिया या लिंग संबंधी विचारों को शामिल किया, जो उन्नीसवीं सदी के औद्योगिक पूंजीवादी समाज में सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या करने का प्रयास करते थे (जैक्सन एंड स्कॉट में 2002: 2 सेडमैन 1997 )।

 

  • कार्ल मार्क्स पूंजीवादी समाज में मजदूरों और पूँजीपतियों को पुरुषों के रूप में देखते थे न कि स्त्रियों के रूप में। श्रमिक षक्ति के पुनरुत्पादक के रूप में भी महिलाएं मार्क्स के लेखन में शामिल नहीं हैं। दूसरी ओर एंजेल्स (1884) ने 'द ओरिजिन ऑफ फैमिली, प्राइवेट प्रॉपर्टी एंड द स्टेट' में महिलाओं की अधीनता का कारण बताया। एंगेल्स का मानना था कि प्रागैतिहासिक काल में महिला और पुरुष समान थे। एंगेल्स का कहना है कि प्रागैतिहासिक समाजों ने स्त्री वंश-रेखा ( मात्र अधिकार) के माध्यम से वंश का दावा किया करते थे और स्त्रियों की सार्वभौमिक ऐतिहासिक हार निजी संपत्ति के विकास और एकविवाही परिवार के उद्भव के साथ हुई। पुरुष अब निजी तौर पर संग्रहित की गई वस्तुओं और सम्पत्ती को पुरुष वंश-रेखा के माध्यम से अपनी संतानों को दे सकते हैं। आलोचकों ने एंगेल के दृष्टिकोण पर सवाल उठाये और इस बात की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह बहस का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है कि क्या इतिहास के किसी भी काल में महिलाओं के पास अधिकार था। 


  • हालाँकि, मार्क्स और एंगेल्स ने बाद के मार्क्सवादी नारीवादियों को प्रभावित किया,  जिन्होंने महिलाओं की अधीनता की आर्थिक जड़ों को खोजा और साथ ही महिलाओं को श्रम के पुनरुत्पादक के रूप में महत्व दिया। वेबर ने प्राचीन परिवारों की पितृसत्तात्मक संरचना का जिक्र करते हुए सामाजिक रूप से वैध षक्ति के सबसे पुराने रूप में 'पितृसत्ता को परिभाशित किया। वेबर के काम ने रॉबर्टा हैमिल्टन जैसे नारीवादी लेखकों को भी प्रभावित किया। एमिली दुर्खीम का विचार था कि समाज में पुरुषों और महिलाओं की भूमिकाओं को श्रम और विशेषज्ञता की वृद्धि के साथ लगातार बढ़ते क्रम में विभेदित किया गया। समाज के अध्ययन के लिए उनके कार्यात्मक अभिविन्यास में निहित है कि महिलाओं का स्थान घरेलू क्षेत्र में था और विवाहित रिष्ते में महिलाओं का एक प्रभावषाली कार्य था जो उन पुरुषों की भूमिका का पूरक था जिनके पास एक बौद्धिक कार्य था। (जैक्सन एंड स्कॉट 2002: 2-5 )।

 

  • जॉर्ज सिम्मेल ने वेबर और दुर्खीम के इस दृष्टिकोण को सराहा जिसमें उन्होंने पुरुषों और महिलाओं के बीच के अंतर को प्राकृतिक माना। उन्होंने कहा कि पुरुष सार्वजनिक क्षेत्र और महिलाएं निजी या घरेलू क्षेत्र के लिए उन्मुख थीं और इस धारणा ने पुरुषत्व / पौरुष और स्त्रीत्व की सदृष्य कल्पना को अग्रसर किया। हालाँकि, वे इस तथ्य के विषय में आलोचनीय थे क्योंकि पौरुष का अलिंगी के रूप में भी प्रतिनिधित्व किया जा सकता है, जबकि मानक रूप में नारीत्व इससे विचलन था (जैक्सन और स्कॉट 2002)। इसलिए प्राचीन कालिक समाजशास्त्रियों ने अपने लेखन में लैंगिक संबंधी विचारों को शामिल नहीं किया, हालांकि उनके कुछ लेखनों ने बाद के नारीवादियों के विचारों को प्रभावित किया।

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