MP Forest & Forest Resources GK Fact । मध्यप्रदेश वन एवं वन संपदा सामान्य ज्ञान

 MP Forest GK Fact (मध्यप्रदेश वन सामान्य ज्ञान) 


MP Forest & Forest Resources GK Fact । मध्यप्रदेश वन एवं वन संपदा सामान्य ज्ञान



MP Forest GK Fact (मध्यप्रदेश वन सामान्य ज्ञान) 


मध्यप्रदेश में वनों के प्रकार

 

वर्षा, तापमान एवं अन्य भौगोलिक कारणों से प्रदेश में विभिन्न प्रकार के वन पाए जाते हैं। प्रदेश में सामान्यतया उष्णकटिबंधीय वनों की प्रधानता है- 

 

1. उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन- 

  • ये वन 50 से 100 सेंमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ग्रीष्म ऋतु में जल के अभाव के कारण वृक्ष अपनी पत्तियां गिरा देते हैं। इन वनों में उत्तम इमारती लकड़ी पाई जाती है। सागौन, शीशम, नीम, पीपल आदि वृक्ष इन वनों की विशेषता है। ये वन सागर, जबलपुर, छिंदवाड़ा, दमोह, छतरपुर, पन्ना, बैतूल, सिवनी और होशंगाबाद जिलों में पाए जाते हैं।

 

2. उष्ण कटिबन्धीय अर्द्ध पर्णपाती वन-

  • ये वन 100 से 150 सेंमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन वनों में बीजा, धौरा, कसाई, तिन्सा, जामुन, महुआ, सेजा, हर्रा आदि के वृक्ष मिलते हैं, लेकिन साल, सागौन, बांस आदि के वृक्षों की बहुलता होती है। ये वन राज्य के शहडोल, मंडला, बालाघाट और सीधी जिलों में पाए जाते हैं।

 

3. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन- 

  • ये वन 25 सेंमी. से 75 सेंमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में मिले हैं। इन वनों में बबूल, कीकर, हर्रा, पलाश, तेन्दू, धौरा, शीशम, हल्दू, सागौन, सिरिस आदि के वृक्ष पाए जाते हैं। ये वन श्योपुर, रतलाम, मंदसौर, दतिया, टीकमगढ़, ग्वालियर, खरगौन आदि जिलों में मिलते हैं।

 

मध्यप्रदेश में वनों का शासकीय वर्गीकरण

 

मध्य प्रदेश का पूरा वन क्षेत्र वन विभाग के नियन्त्रण में है। राज्य के वनों का वर्गीकरण निम्नलिखित तीन प्रकार से किया गया है- 

 

1. संरक्षित वन- 

  • संरक्षित वन ऐसे वन हैं, जिनकी रक्षा के लिए शासकीय देख-रेख होती है। इनका नष्ट होना हानिकारक है, लेकिन वास्तविकता में इनकी देख-रेख के लिए बनाए गए प्रशासनिक नियम बहुत ही शिथिल हैं। इन वनों में निवास करने वाले लोगों को पशुचारण तथा लकड़ी आदि काटने की सुविधाएं मिली होती हैं।

 

2. आरक्षित वन - 

  • इस प्रकार के वन वे वन हैं, जहां वनों का नष्ट किया जाना अति हानिकारक माना गया है। इस प्रकार के वनों में वृक्षों को काटे जाने के साथ-साथ पशुचारण भी दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है।

 

3. अवर्गीकृत वन-

  • जिन वनों का अभी तक वर्गीकरण नहीं किया गया है, उन्हें अवर्गीकृत वन कहते हैं। इस प्रकार के वनों में इच्छानुसार वृक्ष काटने और पशुओं को चराने की पूर्ण व्यवस्था है।

 

MP forest Cover Map

प्रशासनिक नियंत्रण के आधार पर वनो का वर्गीकरण 

भारत के नवीन संविधान के अन्तर्गत प्रशासनिक नियंत्रण के आधार पर भी वनों को निम्नलिखित 3 वर्गों में विभाजित किया गया है

 

  • 1. निजी वन- निजी वन व्यक्तिगत लोगों के अधिकार में होते हैं। 
  • 2.  निगत निकाय वन-जिन वनों पर स्थानीय नगरपालिकाओं तथा परिषदों का नियन्त्रण होता है, वे निगम निकाय वन कहलाते हैं। 
  • 3.राजकीय वन-जिन वनों पर पूर्ण रूप से शासकीय नियन्त्रण होता है, उन्हें राजकीय वन कहते हैं।

 

वन्य जीवन के मामले में मध्य प्रदेश

  • वन्य जीवन के मामले में मध्य प्रदेश बहुत ही समृद्ध राज्य है। वनस्पतियों और जीवों की समृद्धतम विविधता के साथ मध्य प्रदेश भारत के ऐसे चुनिंदा राज्यों में से एक है' जहां सैर करना प्रकृति-प्रेमियों और छुट्टी पर जाने वालों के लिए एक रोचक अनुभव होता है। यहां जंगलों का करिश्मा है, जो लोगों को बार-बार यहां आने का संकेत देता है। यहां शानदार नजारे दिखाई देते हैं। यहां के पार्कों में बिताए हुए पल यादगार और अविस्मरणीय अनुभव देते हैं। 
  • निवेशकों के लिए भी यहां समान रूप से अच्छे अवसर उपलब्ध हैं। पर्यटन के क्षेत्र में विकास के लिए मध्य प्रदेश अपने वन्यजीव संसाधन का सचेत और सक्रियता के साथ उपयोग कर रहा है। निवेशक अनुकूल नीतियों के साथ निजी उद्यमों द्वारा अपने विकास को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं।

 

मध्य प्रदेश की वन सम्पदा

 

इमारती लकड़ी 

  • इस तरह की लकड़ी साल, सागौन, शीशम आदि के वृक्षों से मिलती है। राज्य के बैतूल, खरगौन, मंडला, सिवनी एवं छिंदवाड़ा जिलों में यह प्रचुर मात्रा में वृक्षों से प्राप्त होती है। 

ईंधन योग्य लकड़ी 

  • ईंधन के लिए बबूल, महुआ, छावड़ा, आदि वृक्षों की लकड़ी उपयोग में लाई जाती है। राज्य के खंडवा, इंदौर एवं होशंगाबाद जिलों में ईंधन लकड़ी प्रचुर मात्रा में वृक्षों से प्राप्त की जाती है। 

बांस 

  • प्रदेश में बांस प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है। इसकी प्राप्ति के जिले हैं- बैतूल, बालाघाट, सिवनी, सागर, मंडला, जबलपुर, झबुआ, भोपाल आदि। 

बीड़ी बनाने के लिए तेंदुपत्ता 

  • राज्य के जबलपुर, रीवा, सागर, शहडोल आदि जिलों में पाया जाता है। बीड़ी उद्योग में तेंदुपत्ते का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। अधिकांश तेंदुपत्ते मध्य प्रदेश से इस उद्योग के लिए प्राप्त किया जाता है। 

कागज बनाने की लकड़ी 

  • प्रदेश में कागज बनाने के लिए बांस एवं अन्य प्रकार की लकड़ी यहां प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। 

गोंद 

  • मध्य प्रदेश में गोंद, बबूल, खेट, साज, सेनियल एवं छाबड़ा आदि वृक्षों से प्राप्त किया जाता है। यह वृक्ष राज्य के सीधी एवं शहडोल जिलों में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 

लाख 

  • लाख मुख्यतया अरहर, बेट, घोंट एवं फ्लाश के वृक्षों से प्राप्त की जाती है। ये वृक्ष शहडोल, सिवनी, होशंगाबाद एवं जबलपुर जिलों में पाए जाते हैं। राज्य में लाख बनाने का कारखाना उमरिया जिले में स्थित है। 

 किलावा 

  • यह स्याही बनाने एवं पेंट बनाने के उपयोग में आता है। छिंदवाड़ा में इसका कारखाना स्थित है। 

धूप

  • यह एक मूल्यवान सुगंध है, जो साल के वृक्ष से निकाली जाती है।

 

मध्यप्रदेश वन महत्वपूर्ण जानकारी

 

  • मध्य प्रदेश को 11 कृषि जलवायु क्षेत्रों में बांटा गया है। 
  • मध्य प्रदेश  में 5 फसली क्षेत्र हैं। 
  • मध्य प्रदेश  में कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान के लिए दो कृषि विश्वविद्यालय- जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर (1964) तथा राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर (2008) स्थापित हैं।
  • देश की प्रथम जैविक खेती इकाई इंदौर में स्थापित है। 
  • मध्य प्रदेश का पहला 'सैलरिच' खाद्य संयंत्र भोपाल में स्थित है तथा राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र इंदौर में है।
  • मंडला जिले में जैविक खेती अनुसंधान केंद्र की स्थापना की जा रही है। 
  • जबलपुर स्थित जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय प्रजनक बीज की पूर्ति करने में देश में प्रथम स्थान पर है। 
  • राज्य का कुल रिकॉर्डेड वन क्षेत्र 49689 वर्ग कि.मी. है, जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 30.72% है। प्रदेश में देश के कुल वन एवं वृक्ष आच्छादन का 10.73% हिस्सा है। 
  • सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाला जिला बालाघाट (4970 वर्ग कि.मी.) तथा न्यूनतम वन क्षेत्र वाला जिला शाजापुर ( 29 वर्ग कि.मी.) है। 
  • सर्वाधिक वन क्षेत्र प्रतिशत वाला जिला बालाघाट ( 53.85% ) तथा न्यूनतम वन क्षेत्र प्रतिशत वाला जिला शाजापुर ( 0.47% ) है। 
  • सर्वाधिक मध्यम सघन वन वाला जिला बालाघाट (2683 वर्ग कि.मी.) तथा न्यूनतम मध्यम सघन वन वाले जिले रतलाम व उज्जैन (दोनों 4 वर्ग कि.मी.) हैं। 
  • मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम की स्थापना 24 जुलाई, 1975 को हुई। 
  • देहरादून (उ.प्र.) स्थित 'फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट एण्ड कॉलेज' के चार क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्रों में से एक मध्य प्रदेश के जबलपुर में स्थित है। 
  • राज्य में विश्व बैंक की 800 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता से 'मध्य प्रदेश वानिकी परियोजना का आरंभ सितम्बर 1995 में किया गया। 
  • मध्य प्रदेश में दो 'वनराजिक महाविद्यालय' बालाघाट एवं बैतूल में क्रमश: 1979 तथा 1980 में स्थापित किए गए, जबकि वन विद्यालय शिवपुरी, अमरकंटक, लखनादौन एवं गोविंदगढ़ में हैं। 
  • पर्यावरण प्रदूषण को दूर करने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश में वृक्षारोपण की महत्वाकांक्षी 'सामाजिक वानिकी योजना' सन् 1976 में प्रारंभ की गई।  
  • मध्य प्रदेश के ऐसे जिले, जहां वन क्षेत्र राष्ट्रीय वन नीति के निर्धारित मापदण्ड 33 प्रतिशत से कम है, वहां नवीकरण के लिए 1976 से 'पंचवन योजना' चलायी जा रही है। 
  • मध्य प्रदेश में तीन वन पेटियां हैं- विंध्य - कैमूर श्रेणी, मुरैना - शिवपुरी पठार की पेटी, नर्मदा के दक्षिण बालाघाट एवं श्योपुर में आधे से अधिक भूमि वनों के अंतर्गत है। 
  • वनों का शत-प्रतिशत राष्ट्रीयकरण करने वाला देश का पहला राज्य मध्य प्रदेश है। 
  • राज्य का सम्पूर्ण वन क्षेत्र वन विभाग के नियंत्रण में है। 
  • मध्य प्रदेश इको पर्यटन विकास बोर्ड का गठन मध्य प्रदेश शासन, वन विभाग के अंतर्गत 13 जुलाई, 2005 को किया गया। इसका उद्देश्य इको पर्यटन की सम्भावनाओं की पहचान एवं सुविधाओं का विकास, प्रदेश में विकसित एवं प्रसारित इको पर्यटन सुविधाओं को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप वर्गीकृत करना, कार्यक्रमों एवं गतिविधियों के प्रचार-प्रसार एवं विपणन का कार्य करना है। 
  • मध्य प्रदेश राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ का गठन 1984 में किया गया। प्रदेश में लघु वनोपज का संग्रहण एवं व्यापार इस संस्था द्वारा किया जाता है। 
  • सामुदायिक वन प्रबंधन परियोजना के तहत राज्य में पायलट प्रोजेक्ट के नाम से कार्य किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य वन समितियों को प्रशासनिक एवं वानिकी कार्यों से संबंधित तकनीकी विषयों पर प्रशिक्षण देना और लघु मध्यम उद्यम चलाने के लिए सहायता देना है। 
  • भारत सरकार द्वारा वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर योजना शुरू की गयी थी, इसके अंतर्गत मध्य प्रदेश में अब तक 6 संरक्षित क्षेत्र कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, पन्ना, संजय तथा सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान का चयन किया गया है। 
  • देश में विलुप्तप्राय एशियाई सिंहों की प्रजाति के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार की पहल पर राज्य में कूनों पालपुर अभयारण्य, श्योपुर का चयन किया गया है एवं यहां एशियाई सिंह पुनर्वास कार्यक्रम प्रारंभ किया गया है।
  • देश में एकमात्र संरक्षित क्षेत्र गिर राष्ट्रीय उद्यान, गुजरात, जहां एशियाई सिंह पाये जाते हैं, से सिंहों को लाकर यहां पुनर्वासित किया जाता है। राष्ट्रीय उद्यानों में वन्य जीवों तथा वनों को पूर्ण संरक्षण प्राप्त है। 
MP Tiger Reserve Map


  • प्रोजेक्ट टाइगर में शामिल होने वाले मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यान हैं- कान्हा-किसली (1973), पेंच (1992), बांधवगढ़ (1993), पन्ना (1995), सतपुड़ा, संजय राष्ट्रीय उद्यान। 
  • मध्य प्रदेश को 'टाइगर स्टेट' के नाम से जाना जाता है।  
  • बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान देश में सर्वाधिक घनत्व वाला उद्यान है। इसे सफेद बाघों की मातृभूमि कहा जाता है। 
  • मध्य प्रदेश का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान वन विहार (भोपाल) तथा सबसे छोटा अभयारण्य राला मंडल (इंदौर) है। 
  • मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा अभयारण्य नौरोदही अभयारण्य ( 1, 194 वर्ग कि.मी.) है, जबकि कान्हा - किसली राष्ट्रीय उद्यान (940 वर्ग कि.मी.) सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है। 
  • घड़ियाल के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभयारण्य, केन अभयारण्य व सोन अभयारण्य बनाए गए हैं।  
  • सबसे अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने वाले कान्हा - किसली राष्ट्रीय उद्यान को 1933 में एक अभयारण्य के रूप में विकसित किया गया था। यहां 'पार्क इंटरप्रिवेंशन योजना लागू है। 
  • माधव राष्ट्रीय उद्यान में पहाड़ी की चोटी पर जार्ज कैसल नामक एक भव्य भवन है। 
  • बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान 1968 में राष्ट्रीय उद्यान बना। 
  • केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पचमढ़ी को 'बायोस्फियर रिजर्व' क्षेत्र घोषित किया गया है। यह मध्य प्रदेश का पहला तथा देश का 10वां 'बायोस्फियर रिजर्व' होगा।  

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