मध्य प्रदेश की पुरातात्विक विरासत -भाग 02 । MP Ke Puratatvik Sthal

मध्य प्रदेश की पुरातात्विक विरासत -भाग 02 
MP Ke Puratatvik Sthal

मध्य प्रदेश की पुरातात्विक विरासत -भाग 02 । MP Ke Puratatvik Sthal


मध्य प्रदेश की पुरातात्विक विरासत (स्थल) 

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कसरावाद पुरातात्विक विरासत Kasravad Puratatvik Sthal

 

पश्चिम- निमाड़ जिले में कसरावाद नगर से दक्षिण में नर्मदा नदी के तट पर स्थित इतबर्डी नामक टीले के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों को निम्नलिखित प्रकार से बांटा गया है:-

 

बौद्ध स्तूप तथा निवास गृह 

  • उत्खनन में पाए गए 11 स्तूपों के अवशेषों में एक को छोड़कर सभी स्तूप वृहदाकार पक्की ईंटों से निर्मित हैं। मुख्य स्तूप के उत्तर की ओर 75 फुट लम्बे और 20 फुट चौड़े बड़े कमरे के अवशेष मिलेजबकि उत्तर-पूर्व की ओर कुंड की बनावट मिली है। कुछ भवनों तथा मकानों की छतों पर लगाए गए टाइल्सों के अवशेष भी मिले हैं। यहां सड़कों तथा नालियों की व्यवस्था के भी प्रमाण मिले हैं।

 

मुद्राए तथा मिट्टी की बनी वस्तुएं 

  • उत्खनन में कुछ चमकीलेलालकाले तथा पीले मृद्भांड मिले हैं। यहां से मिले कुछ ठीकरों पर ब्राह्मी लिपि में लेख हैंजो तीसरी- दूसरी शताब्दी ई.पू. के बेसनगर एवं भरहुत अभिलेख से मिलते-जुलते हैं। मिट्टी की अन्य वस्तुओं में दो वृहदाकार मृद्भांड, 39 गोलाकार वस्तुएंतिकोनी ईंटेंगोलाकार छिद्रयुक्त वस्तुएंमनकेमानव एवं पशु आकृतियां तथा खिलौने मिले हैं। 

धातु निर्मित वस्तुएं 

  • स्वर्ण का छोटा आभूषणचांदी के 29 आहत सिक्केतांबे के 26 अन्य सिक्केतांबे की बनी छोटी मंजूषालोहे की कीलें आदि महत्वपूर्ण हैं।  

पत्थर की बनी वस्तुएं 

  • दो मुलायम पत्थर की मंजूषाएंतीन गेंदनुमा वस्तुएं । 

विविध वस्तुएं 

  • दो मृद्भांडों में संरक्षित हड्डियांदो हाथी दांत के टुकड़ेचार कांच के मनके तथा लगभग एक दर्जन शंख महत्वपूर्ण हैं |


बेसनगर पुरातात्विक विरासत Besnagar Puratatvik Sthal

  • मध्य प्रदेश के प्राचीन नगरों में विदिशा का बौद्धजैन तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में विशेष उल्लेख है। इस क्षेत्र में सर्वप्रथम 1910 में एच.एच. लेक के नेतृत्व में खामबाबा के निकटवर्ती भाग का उत्खनन कराया गयाजिसमें विशेष जानकारी नहीं मिली। 
  • दूसरा उत्खनन वैज्ञानिक ढंग से केंद्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा  1914-15 में डी. आर. भंडारकर के निर्देशन में कराया गयाजिसमें हेलियोडोरस स्तम्भ के समीप एक चबूतरे के अवशेष प्राप्त हुए। इस चबूतरे के दक्षिण की ओर संभवतः वासुदेव मंदिर की देखरेख करने वाले पुजारी का मकान तथा मंदिर को घेरे हुए अनोखे प्रस्तर की वेदिका मिली है। यहां 66 फुट लंबी एक अन्य दीवार के अवशेष भी मिले हैं। 
  • वर्ष 1914-15 के उत्खनन में मौर्य तथा पूर्व मौर्यकाल की नहर के अवशेष पाए गए हैं। बेसनगर से उदयगिरि जाने वाले मार्ग पर स्थित एक अन्य टीले के उत्खनन में कुछ कुंड तथा बड़े कमरों के अवशेष पाए गए हैं। यहां एक मौर्यकालीन बौद्ध स्तूप भी मिला है। 
  • दोनों उत्खननों में मिट्टी के बने मानव एवं पशु-पक्षी आकृतियां और खिलौनेशंख तथा हाथी दांत की बनी चूड़ियांलोहेतांबे एवं कांसे की बनी घरेलू उपयोग की वस्तुएं व आभूषणमौर्यशुंग तथा गुप्तकालीन मृद्धांडों के ठीकरेपत्थर की बनी मंजूषा व मनके और लोहे के अस्त्र मिले हैं। 
  • सिक्कों में 49 आहत सिक्के, 5 क्षत्रप सिक्के, 5 नाग सिक्के, 2 सातवाहन सिक्केएक अस्पष्ट सिक्का तथा शेष कलचुरि सिक्के मिले हैं। गणेशपुर के समीप टीले से भी 32 आहत सिक्के मिले हैं। 
  • बाद में 1963-64 में कराए गए उत्खनन से यहां ताम्रपाषाण कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। 


इन सभी उत्खननों में बेतवा और बेस नदियों के संगम में निम्नलिखित छह युगों की सभ्यता प्रकाश में आई है-

 

प्रथम काल (ताम्रपाषाण काल) 

  • इस काल के स्तर से काले व लाल मृद्भांडकाले मृद्भांडकुछ सादे मृद्भांडजानवरों की हड्डियां तथा लोहे की वस्तुएं प्राप्त हुई हैं। 

द्वितीय काल 

  • इस काल के स्तर से काले व ओपदार उत्तर मृद्भांड तथा प्रथम काल से संबंधित सभी मृद्भांडों के ठीकरे मिले हैं। इनके अतिरिक्त तांबे व लोहे की विभिन्न वस्तुएंमिट्टी के मनकेहड्डी की बनी वस्तुएंपत्थर के सिलबट्टे तथा पंचमार्क सिक्के एवं कुछ जले हुए अवशेष भी मिले हैं। 

तृतीय काल (शुंग-सातवाहन युग ) 

  • इस काल के स्तर से प्राप्त मृद्भांडों में सादे लाललाल व काले तथा केओलिन के मृद्भांड प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त संगमरमर की वस्तुएंशंख की चूड़ियांमिट्टी व पत्थर के मनकेपत्थर के सिल-बट्टेओपयुक्त हड्डी के उपकरण तथा आहत सिक्के मिले हैं। एक पत्थर की मुहर भी मिली हैजिस पर प्रथम शताब्दी ई.पू. की ब्राह्मी लिपि में 'निकुम्भ नागस्यलेख अंकित है। 

चतुर्थ काल (नागपाषाण युग ) 

  • इस काल स्तर से प्राप्त वस्तुओं में लाल मृदभांड (कुछ काले रंग से चित्रित)मिट्टी के बने मनके कान के आभूषणखेलने की मुहरें आदि प्रमुख हैं। उत्खनन में नाग शासकों के तांबे के सिक्के मिले हैंजिनमें एक ओर नंदी तथा दूसरी ओर नाग शासक का नाम 'महाराजाधिराजउपाधि के साथ अंकित है। 

पंचम काल (गुप्त युग)

  • इस काल स्तर में मृदभांडों की पुरानी परम्परा विद्यमान थीलेकिन उसमें ह्रास होने लगा था। उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं में नए प्रकार के मृदभांडों पर उत्कीर्ण तथा ठप्पे लगे अलंकरणमिट्टी की बनी मानव एवं पशु प्रतिमाएंबर्तनों को अलंकृत करने वाले मिट्टी के ठप्पे तथा मिट्टी एवं शंख की बनी चूड़ियांईंट का एक गोल चबूतराजो धार्मिक कार्य के लिए उपयोग में लाया जाता थाआदि शामिल हैं। इस काल के बाद कुछ शताब्दियों तक यह स्थान उजड़ा रहा।

 

षष्ठम काल ( पूर्व मध्य युग ) 

  • इस काल स्तर के उत्खनन में कुछ दीवारों के अवशेष आधे दर्जन पशु- हड्डियों से पूर्ण मृद्भांडतांबे का सिक्काएक खणि डत प्रतिमामिट्टी के मनकेगोलाकार तौल तथा चित्रित धूसर एवं सादे लाल मृद्भांडों के ठीकरे प्राप्त हुए हैं।

 

  • हेलियोडोरस स्तम्भ के समीप हुए उत्खनन से प्राप्त प्राचीन विष्णु मंदिर तथा गरुड़- शीर्ष स्तम्भ मंदिर का निर्माण मौर्यकाल में किया गया होगा। मंदिर का पुनः निर्माण शुंग युग में हुआ तथा इसके चारों ओर प्रदक्षिणा-पथ बनाया गया। तक्षशिला के यवन राज अंतलिकित के राजदूत हेलियोदोरस ने मंदिर के सामने प्रसिद्ध गरुड़-ध्वज का निर्माण कराया। मंदिर क्षेत्र में आठ गोलाकार गर्त मिले हैंजिनमें संभवतः पाषाण स्तम्भ लगे थे। इस स्थल के उत्खनन में विविध मृद्भांड तथा आहत के सिक्के भी मिले हैं।

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