सुशासन दिवस (गुड गवर्नेंस डे) 2021: उद्देश्य महत्व इतिहास।सुशासन क्या होता है सिद्धांत
सुशासन दिवस (गुड गवर्नेंस डे) कब मनाया जाता है उद्देश्य
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर
25 दिसंबर को
प्रतिवर्ष सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सुशासन दिवस का उद्देश्य भारत के नागरिकों के मध्य सरकार की जवाबदेही
के प्रति जागरूकता पैदा करना है।
अटल बिहारी
वाजपेयी के बारे में जानकारी
अटल बिहारी
वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को ग्वालियर (अब
मध्य प्रदेश का एक हिस्सा) में हुआ था।
उन्होंने वर्ष 1942 के भारत छोड़ो
आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया जिसने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन
का अंत कर दिया।
वर्ष 1947 में वाजपेयी ने
दीनदयाल उपाध्याय के समाचार पत्रों के लिये एक पत्रकार के रूप मेंराष्ट्रधर्म (एक हिंदी मासिक), पांचजन्य (एक
हिंदी साप्ताहिक) और दैनिक समाचार पत्रों-स्वदेश और वीर अर्जुन में काम करना शुरू
किया। बाद में श्यामा प्रसाद मुखर्जी से प्रभावित होकर वाजपेयी जी वर्ष 1951 में भारतीय
जनसंघ में शामिल हो गए।
वह भारत के पूर्व
प्रधानमंत्री थे और वर्ष 1996 तथा 1999 में दो बार इस
पद के लिये चुने गए थे।
एक सांसद के रूप
में वाजपेयी को वर्ष 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद के रूप में पंडित
गोविंद बल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जो उन्हें
"सभी सांसदों के लिये एक रोल मॉडल के रूप में परिभाषित करता है।
उन्हेंवर्ष 2015 में देश के
सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से और वर्ष 1994 में दूसरे
सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
सुशासन क्या होता है
‘शासन’ निर्णय लेने की
एवं जिसके द्वारा निर्णय लागू किये जाते हैं, की प्रक्रिया है।
शासन का उपयोग कई
संदर्भों में किया जा सकता है जैसे कि कॉर्पोरेट शासन, अंतर्राष्ट्रीय
शासन, राष्ट्रीय शासन
और स्थानीय शासन।
वर्ष 1992 में ‘शासन और विकास’ (Governance and Development) नामक रिपोर्ट में
विश्व बैंक ने सुशासन अर्थात् ‘गुड गवर्नेंस’ (Good Governance) की परिभाषा तय की। इसने
सुशासन को ‘विकास के लिये
देश के आर्थिक एवं सामाजिक संसाधनों के प्रबंधन में शक्ति का प्रयोग करने के तरीके’ के रूप में
परिभाषित किया।
सुशासन की 8 प्रमुख
विशेषताएँ हैं। यह भागीदारी, आम सहमति, जवाबदेही, पारदर्शी, उत्तरदायी, प्रभावी एवं कुशल, न्यायसंगत और समावेशी होने के साथ-साथ‘कानून के शासन’ (Rule of Law) का अनुसरण करता है।
यह विश्वास
दिलाता है कि भ्रष्टाचार को कम-से-कम किया जा सकता है, इसमें
अल्पसंख्यकों के विचारों को ध्यान में रखा जाता है और निर्णय लेने में समाज में
सबसे कमज़ोर लोगों की आवाज़ सुनी जाती है।
यह समाज की
वर्तमान एवं भविष्य की ज़रूरतों के लिये भी उत्तरदायी है।
सुशासन के 8 सिद्धांत कौन से हैं
1- भागीदारी (Participation):
लोगों को वैध
संगठनों या प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी राय देने में सक्षम होना चाहिये।
इसमें पुरुष एवं
महिलाएँ, समाज के कमज़ोर
वर्ग, पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक आदि
शामिल हैं।
भागीदारी का
तात्पर्य संघ एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से भी है।
2- कानून का शासन (Rule of Law):
कानूनी ढाँचे को
निष्पक्ष रूप से लागू किया जाना चाहिये विशेषकर मानवाधिकार कानूनों के
परिप्रेक्ष्य में।
‘कानून के शासन’ के बिना राजनीति, मत्स्य न्याय (Matsya Nyaya) के सिद्धांत
अर्थात् मछली के कानून (Law
of Fish) का पालन करेगी जिसका अर्थ है ताकतवर कमज़ोरों पर प्रबल होगा।
3 आम सहमति उन्मुख
(Consensus-oriented):
आम सहमति उन्मुख
निर्णय लेने से यह सुनिश्चित होता है कि हर किसी की सामान्य न्यूनतम ज़रूरत पूरी की
जा सकती है जो किसी के लिये हानिकारक नहीं होगा।
यह एक समुदाय के
सर्वोत्तम हितों को पूरा करने के लिये व्यापक सहमति के साथ साथ विभिन्न हितों की
मध्यस्थता करता है।
4- न्यायसंगत एवं
समावेशी (Equity and
Inclusiveness):
सुशासन एक
समतामूलक समाज के निर्माण का आश्वासन देता है।
लोगों के पास
अपने जीवन स्तर में सुधार करने या उसे बनाए रखने का अवसर होना चाहिये।
5- प्रभावशीलता एवं
दक्षता (Effectiveness
and Efficiency):
विभिन्न
संस्थानों को अपने समुदाय की ज़रूरतों को पूरा करने वाले परिणाम उत्पन्न करने में
सक्षम होना चाहिये।
समुदाय के
संसाधनों का उपयोग अधिकतम उत्पादन के लिये प्रभावी रूप से किया जाना चाहिये।
6 -जवाबदेही (Accountability):
सुशासन का
उद्देश्य लोगों की बेहतरी पर आधारित है और यह सरकार के बिना लोगों के प्रति
जवाबदेह नहीं हो सकता है।
सरकारी संस्थानों, निजी क्षेत्रों
और नागरिक संगठनों को सार्वजनिक एवं संस्थागत हितधारकों के प्रति जवाबदेह ठहराया
जाना चाहिये।
7 -पारदर्शिता (Transparency):
आवश्यक सूचनाएँ
जनता के लिये सुलभ हों और उनकी निगरानी होनी चाहिये।
पारदर्शिता का
मतलब मीडिया पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण न हो और लोगों तक सूचनाओं की पहुँच भी
हो।
8 अनुक्रियाशीलता (Responsiveness):
संस्थानों और
प्रक्रियाओं द्वारा उचित समय में सभी हितधारकों को सेवाएँ प्रदान की जानी चाहिये।
सुशासन का भारतीय इतिहास
भगवद्गीता सुशासन, नेतृत्त्व, कर्तव्य परायणता
और आत्मबल को कई प्रकार से संदर्भित करती है जिनकी आधुनिक संदर्भ में पुनः
व्याख्या की जा सकती है।
कौटिल्य के
अर्थशास्त्र (ईसा-पूर्व की दूसरी-तीसरी शताब्दी) में राजा के कार्यों में ‘लोगों के कल्याण’ को सर्वोपरि माना
गया।
महात्मा गांधी ने
‘सु-राज’ (Su-raj) पर ज़ोर दिया है
जिसका अनिवार्य रूप से मतलब है ‘सुशासन’।
भारतीय संविधान
में शासन के महत्त्व को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है जो कि संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं
लोकतांत्रिक गणराज्य पर आधारित है, साथ ही लोकतंत्र, कानून का शासन और लोगों के कल्याण के लिये प्रतिबद्ध है।
सतत् विकास
लक्ष्यों के तहत ‘लक्ष्य 16’ को सीधे तौर पर
सुशासन से जुड़ा हुआ माना जा सकता है क्योंकि यह शासन, समावेशन, भागीदारी, अधिकारों एवं
सुरक्षा में सुधार के लिये समर्पित है।
पूर्व संयुक्त
राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान के अनुसार, सुशासन मानव अधिकारों के लिये सम्मान और कानून का शासन
सुनिश्चित करता है तथा लोकतंत्र को मज़बूती, लोक प्रशासन में पारदर्शिता एवं सामर्थ्य को बढ़ावा देता
है।
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