रेखाचित्र और संस्मरण । रेखाचित्र और संस्मरण में अंतर । Rekhachitra aur Sansmaran Antar

 रेखाचित्र और संस्मरण , रेखाचित्र और संस्मरण में अंतर 

रेखाचित्र और संस्मरण । रेखाचित्र और संस्मरण में अंतर । Rekhachitra aur Sansmaran Antar



रेखाचित्र और संस्मरण 


रेखाचित्र किसे कहते हैं 

  • रेखाचित्र और संस्मरण हिंदी साहित्य की नवीन विधाएँ हैं। जब किसी व्यक्तिवस्तुस्थानघटनादृश्य आदि का इस प्रकार वर्णन किया जाता है कि पाठक के मन पर उसका हू-ब-हू चित्र बन जाता है तो उसे रेखाचित्र कहते हैं। इस प्रकार के वर्णन में व्यक्ति को बेलाग अर्थात् तटस्थ होना पड़ता है ।

संस्मरण किसे कहते हैं 

  • रेखाचित्र के विपरीत जब लेखक अपने या किसी अन्य व्यक्ति के जीवन में बीती किसी घटना अथवा दृश्य का स्मरण कर उसका वर्णन करता है तो उसे संस्मरण कहते हैं।

रेखाचित्र और संस्मरण में अंतर 

  • रेखाचित्र में वर्णन का हू-ब-हू होना आवश्यक है और संस्मरण में उसका स्मृति के आधार पर लिखा जाना । एक अन्य बात यह भी है कि रेखाचित्र में लेखक का वर्णित घटनाव्यक्ति आदि के साथ निजी संबंध होना आवश्यक नहीं हैजबकि संस्मरण के लिए यह आवश्यक है । संस्मरण लिखने के लिए यह जरूरी है कि लेखक का वर्णित व्यक्तिघटना आदि के साथ व्यक्तिगत संबंध रहा हो ।

 

  • रेखाचित्र अतीत का भी हो सकता हैवर्तमान का भी और यदि लेखक के मन में भविष्य का कोई चित्र है तो उसका भी हो सकता है । संस्मरण अतीत का ही हो सकता हैवर्तमान या भविष्य का नहीं ।

 

  • संस्मरण में लेखक उन्हीं तथ्यों का वर्णन करता है जो वास्तव में घटित हो चुके हैं। उसे अपनी कल्पना से कुछ भी जोड़ने की छूट नहीं है। रेखाचित्र में इस प्रकार का कोई बंधन नहीं है ।

 

  • रेखाचित्र में लेखक के निजी व्यक्तित्व का कोई महत्व नहीं होता। संस्मरण में लेखक के निजी विचार किसी-न-किसी प्रकार आ ही जाते हैंक्योंकि उसका संबंध उसके अपने जीवन से होता है ।

 

  • विस्तार संस्मरण की विशेषता है। प्रसंगों को याद करते समय लेखक उन्हें रुचिकर बनाकर प्रस्तुत करता है और कहानी कहने के लहजे का उपयोग करता है। इससे वर्णन में फैलाव आता है । कम से कम शब्दों का उपयोग कर बात रखने की कला का इसमें महत्व है । अनावश्यक विस्तार रेखाचित्र को भोंडा बना देता है। 

 

  • रेखाचित्र में वर्णन इतना सुगठित और प्रभावपूर्ण होना चाहिए कि उसका चित्र पाठक के सामने उपस्थित हो जाए । ऐसा लगे कि किसी चित्रकार का बनाया हुआ चित्र आँखों के सामने है। शब्दों के द्वारा चित्र अंकित करने के इस गुण को चित्रात्मकता कहते हैं। यह रेखाचित्र की एक बहुत बड़ी विशेषता है । वास्तव में रेखाचित्रकार का काम शब्दों के द्वारा चित्रों की श्रृंखला प्रस्तुत करने का है । 
  • रेखाचित्र इन शब्द-चित्रों को किसी विशेष क्रम में उपस्थित करता है । क्रम के इस निर्वाह को श्रृंखलाबद्धता कहते हैं । संस्मरण में भी सटीक और प्रभावपूर्ण वर्णन तथा श्रृंखलाबद्धता आवश्यक है । अपने इस बिंदु पर रेखाचित्र और संस्मरण एक दूसरे के नज़दीक है।

 

  • संस्मरण कभी जीवनी के निकट चला आता हैकभी आत्मकथा के । यदि लेखक अपने व्यक्तिगत जीवन की घटनाओं को याद करता है तो वह 'आत्मकथाके निकट आ जाता है और यदि अन्य व्यक्ति के साथ घटी घटनाओं को याद करता है तो वह 'जीवनीके निकट पहुँच जाता है। मुख्य बात यह है कि इसमें लेखक या किसी अन्य व्यक्ति के जीवन का कोई पक्ष सामने अवश्य आता है । इसके साथसबसे बड़ी बात यह है कि वह वर्णन इस प्रकार करता हैमानों बीती घटनाओं को याद कर रहा हो ।

 

  • हिंदी में महादेवी वर्मा के रेखाचित्र अतीत के चलचित्रस्मृति की रेखाएँपक्ष के साथी अमर हैं। इनके अतिरिक्त बनारसीदास चतुर्वेदी का सेतुबंधश्रीराम शर्मा का 'प्राणों का सौदारामवृक्ष बेनीपुरी का 'माटी की मूरतेंतथा 'मील का पत्थरउल्लेखनीय रेखाचित्र हैं। महादेवी वर्मा के रेखाचित्रों को लेकर विद्वानों के बीच कुछ मतभेद है । कुछ विद्वान् इन्हें संस्मरण कहने के पक्ष में हैं। उनका तर्क है कि महादेवी वर्मा ने जिन पात्रों और घटनाओं को लिया हैवे उनके जीवन में आये हुए वास्तविक पात्र और घटनाएँ है । लेकिन हमारे पास इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि ये पात्र लेखिका के जीवन में आये थे या नहीं इसके अतिरिक्त महादेवी वर्मा ने जिस तटस्थता के साथसंक्षिप्त रूप मेंपात्रों और घटनाओं का चित्रात्मक अंकन किया हैवह उनकी रचनाओं को रेखाचित्र के समीप लाता है । वस्तुतः महादेवी के रेखाचित्रों में 'स्मृतिचित्रतथा संस्मरण दोनों समाहित हो जाते हैं। महादेवी ने संस्मरणात्मक शैली में ही रेखाचित्र अधिक लिखें हैं जिनको बहुत से आलोचक प्रमवश संस्मरण मान लेते हैं ।

 

  • हिन्दी में राहुल सांकृत्यायन की 'बचपन की स्मृतियाँप्रकाशचन्द्र गुप्त की 'पुरानी स्मृतियाँ,' विनयमोहन शर्मा का रेखा और रंगकन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर का 'जिन्दगी मुस्कराईशान्तिप्रिय द्विवेदी की 'स्मृतियाँ और कृतियाँ,' विष्णु प्रभाकर का 'कुछ शब्द : कुछ रेखाएँ उल्लेखनीय संस्मरण हैं।

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