आत्मकथा और जीवनी अर्थ समानता एवं अंतर । Aatmkatha Aur Jeevni Me Samanta Antar

 आत्मकथा और जीवनी अर्थ समानता एवं अंतर  

आत्मकथा और जीवनी अर्थ समानता एवं अंतर । Aatmkatha Aur Jeevni Me  Samanta Antar


 

आत्मकथा और जीवनी का अर्थ एवं अंतर 

  • आत्मकथा और जीवनी एक-दूसरे से मिलती-जुलती विधाएँ हैंफिर भी इन दोनों में भेद है । इनमें मुख्य अंतर यह है कि जहाँ आत्मकथा का लेखक अपने जीवन के बारे में खुद लिखता हैवहाँ जीवनी लेखक किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में लिखता है। 
  • दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि किसी  व्यक्ति द्वारा स्वयं लिखी गयी अपनी जीवनी आत्मकथा है। इसके विपरीत, जब कोई लेखक किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को महत्वपूर्ण घटनाओं को रोचक ढंग से प्रस्तुत करता है तो उसे जीवनी कहते हैं ।
  • आत्मकथा का नायक लेखक स्वयं होता है जबकि जीवनी का नायक लेखक स्वयं नहीं, कोई अन्य व्यक्ति होता है । 
  • आत्मकथा में लेखक अपने बीते हुए जीवन पर दृष्टि डालता है अपने अतीत का विश्लेषण करता है, इसलिए उसे बाहरी सामग्री की तलाश नहीं करनी पड़ती, जबकि जीवनी-लेखक के लिए इसकी आवश्यकता रहती है । 


जीवनी लेखक द्वारा प्रामाणिक जानकारी के स्त्रोत 

जीवनी लेखक जिसकी जीवनी लिखे, यदि उससे उसका निकट का संपर्क हो तो यह अच्छी बात है। यदि चरित-नायक से लेखक का निकट का संपर्क न हो तो वह अपने चरित नायक के जीवन की प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करे। इसके लिए वह निम्नलिखित स्रोतों का उपयोग कर सकता है:

 

i) उस विषय या उससे संबंधित विषयों पर लिखित पुस्तकों या लेखों का,

 ii) मूल सामग्री जैसे चरित-नायक द्वारा लिखित डायरी, पत्रों आदि का

iii) चरित नायक के समकालीनों के संस्मरणों का

iv) संबंधित स्थानों के प्रमण से प्राप्त तथ्यों का

v) किसी अन्य स्रोत से प्राप्त जानकारी का ।

 

आत्मकथा और जीवनी में समानताएँ

  • आत्मकथा और जीवनी में कुछ समानताएँ भी हैं। आइए संक्षेप में उनकी जानकारी भी प्राप्त कर लें । आत्मकथा और जीवनी लिखने के लिए यह जरूरी नहीं कि व्यक्ति के जीवन की सभी घटनाएँ ली जाएँ, किंतु इनमें हृदय को छूने वाली अथवा जीवन में मोड़ लाने वाली घटनाओं का समावेश आवश्यक है । इनमें चरित-नायक के जीवन की प्रामाणिक और तथ्यपरक जानकारी की अपेक्षा रहती है, इसलिए कल्पना और कृत्रिमता के लिए इनमें कोई स्थान नहीं होता साहित्य के अन्य रूपों के समान, आत्मकथा और जीवनी की शैली भी प्रभावपूर्ण होनी चाहिए। जीवन में घटित घटनाओं के क्रम का भी इन विधाओं में ध्यान रखना होता है। दूसरे शब्दों में घटनाएँ उसी क्रम में लिखी जानी चाहिए, जिस क्रम में वे घटी हों। आत्मकथा और जीवनी यदि प्रभावपूर्ण शैली में लिखी गयी हों तो वे उपन्यास की भाँति रोचक हो सकती हैं ।

 

  • जैन कवि बनारसी दास लिखित 'अर्धकथानक हिंदी की पहली आत्मकथा है। आधुनिक युग में इस विधा की शुरूआत भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कुछ आप बीती, कुछ जगबीती' से की। अम्बिकादत्त व्यास की 'मित्र' 'वृत्तांत', बाबू श्यामसुन्दर दास की 'मेरी आत्मकहानी' राजेन्द्र बाबू की 'आत्मकथा' हरिवंश राय 'बच्चन' की क्या भूलूँ क्या याद करूँ', 'नीड का निर्माण फिर', 'प्रवास की डायरी', भवानी दयाल संन्यासी की 'प्रवासी की आत्मकथा, राहुल सांकृत्यायन की मेरी जीवन यात्रा', डॉ० नगेन्द्र की 'अर्धकथा', आदि हिंदी की उल्लेखनीय आत्मकथाएँ हैं। 

 

जीवनी साहित्य की महत्वपूर्ण उल्लेखनीय कृतियाँ 

  • प्रेमचन्द्र घर में ( शिवरानी देवी)
  • महाप्राण निराला ( गंगा प्रसाद पाण्डेय )
  • कलम का सिपाही ( अमृत राय ) 
  • प्रियदर्शिनी इंदिरा गाँधी (शिव कुमार कौशिक) 
  • आवारा मसीहा ( विष्णु प्रभाकर),
  • प्रेमचंद चित्रात्मक जीवनी ( कमलकिशोर गोयनका ) आदि । इनके अतिरिक्त इनके पूर्व लिखी गयी रामनरेश त्रिपाठी की 'गाँधी जी कौन', व्यथित हृदय की 'पंत जवाहरलाल नेहरू', गणेश शंकर विद्यार्थी की 'लाला लाजपतराय, इन्द्र विद्यावाचस्पति की 'चन्द्रशेखर आज़ाद' आदि भी इसी कोटि की जीवनियाँ हैं ।

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