चार्वाक दर्शन । चार्वाक दर्शन के विभिन्न नाम एवं उनके अर्थ ।चार्वाक दर्शन के साहित्य । Charvaka philosophy in Hindi

 चार्वाक दर्शन , चार्वाक दर्शन के विभिन्न नाम एवं उनके अर्थ , चार्वाक दर्शन के साहित्य 

चार्वाक दर्शन । चार्वाक दर्शन के विभिन्न नाम एवं उनके अर्थ ।चार्वाक दर्शन के साहित्य । Charvaka philosophy in Hindi



चार्वाक दर्शन के बारे में जानकारी 


नास्तिक की अवधारणा 

  • उक्त सन्दर्भ में नास्तिक की अवधारणा को यहाँ आवश्यक रूप से समझ लिया जाना चाहिए। मनुस्मृति में वेद की निन्दा करने वाले को नास्तिक कहा गया है- नास्तिको वेदनिन्दकः (2/11)। 

  • पाणिनि ने परलोक को मानने वाले को आस्तिक कहा है तथा न माननेवाले को आस्तिक कहा है अस्ति नास्ति दिष्टं मतिः (अष्ट 04/4/60)। किन्तु समान्य चिन्तन में अनीश्वरवादी को नास्तिक कहा जाता है। 

चार्वाक दर्शन के उदय का मूल कारण

  • चार्वाक दर्शन के उदय का मूल कारण कदाचित् उपनिषद् दर्शन का उच्च विज्ञानवाद, वैदिक कर्मकाण्ड की अतार्किकता तथा उसका दुरुपयोग, यज्ञों में पशु बलि प्रथा, तात्कालिक सामाजिक व राजनीतिक अव्यवस्था एवं अस्थिरता का विरोध था। 

  • चार्वाक, लोकायत अथ व बार्हस्पत्य दर्शन प्राचीन भारतीय भौतिकवाद का प्रतिनिधित्व करता है। निस्सन्देह चार्वाक के भौतिकवाद की तथाकथित परम्परा उतनी ही प्राचीन है जितना कि स्वयं भारतीय दर्शन। इस क्रम में यहाँ यह स्मरणीय है कि भौतिकवादी प्रवृत्ति के बीज उपनिषदों में भी देखे जा सकते हैं। 

  • यहाँ भौतिकवाद से तात्पर्य है वह विचारधारा जिसके अनुसार विश्व का मूलभूत तत्त्व एक या अनेक रूप, जड़ात्मक है। भौतिकवादी जड़त्व से भिन्न किसी चेतन तत्त्व को स्वीकार नहीं करते। यही चार्वाक वस्तुत्त्व है।

1 चार्वाक दर्शन के उल्लेख


  • एक व्यावहारिक सत्य है कि अच्छा तभी अच्छा है जब बुरा होगा, इसी प्रकार बुरा तभी जब अच्छा विद्यमान होगा। दूसरे शब्दों में, कोई भी एक वाद समाज या शास्त्र में तभी पनपेगा जब विरोधी कोई दूसरा विरोधी वाद विद्यमान होगा। इस आधार पर यह स्वीकार करना पड़ेगा कि वैदिक परम्परा का विरोधी वाद भी वैदिक काल में अवश्य ही रहा होगा। कदाचित् इसी वाद ने चार्वाक का स्वरूप ग्रहण किया होगा। 

  • ऋग्वेद में इस भौतिकवाद का बीज ढूंढ़ा जा सकता है। वहाँ इन्द्र की सत्ता में सन्देह करने वाले तथा तथा अपव्रती लोगों का उल्लेख प्राप्त होता है। परोक्षतः चार्वाकीय सिद्धांत का हम इसे बीज कह सकते हैं। 

  • भौतिकवादी प्रवृत्ति के बीज उपनिषदों में भी देखे जा सकते हैं। श्वेताश्वतरोपनिषद् के प्रारम्भ में ऐसी अनेक धारणाओं की गिनती दी गयी है जो संसार की उत्पत्ति की व्याख्या करने का प्रयास करती हैं। इनमें से एक जगत् का मूल का कारण भूत को मानता है। 

  • इसी तरह कठोपनिषद् में भी कहा गया है कि धन के मोह से मूढ़, बालबुद्धि, प्रमादी व्यक्तियों को परलोक के मार्ग में आस्था नहीं होती, वह केवल इस लोक को मानता है, परलोक को नहीं, ऐसा व्यक्ति पुनः पुनः मेरे वश में आता है (कठ0 1/2/6 ) । 

  • छान्दोग्य उपनिषद् के प्रजापीत और इन्द्र-विरोचन संवाद में उल्लेख है कि असुरों का प्रतिनिधि विरोचन देहात्मवाद से ही सन्तुष्ट होकर चला गया था । ( छान्दोग्य 08-7) प्रत्यक्षतः इस वाद का उल्लेख प्रायः सारे महत्त्वपूर्ण साहित्य में प्राप्त होते हैं। बौद्ध पिटकों में लोकायत मत का नाम्ना उल्लेख है। 

  • कौटिलीय अर्थशास्त्र में सांख्य और योग के साथ लोकायत दर्शन का तर्क पर आधारित दर्शन के रूप में उल्लेख है। चार्वाक दर्शन के प्रारम्भिक ग्रन्थ 'बार्हस्प्त्य सूत्रया लोकायतिक सूत्रनाम से जाना जाता है। इस पर लिखी गयी भागुरी या वर्णिका नाम की टीका का उल्लेख पतंजलि के व्याकरण महाभाष्य मे प्राप्त होता है। 

  • इसी प्रकार श्रीकृष्ण मिश्र विरचित नाटक प्रबोधचन्द्रोदय के द्वितीय अंक में यह उद्धरण प्राप्त होता है कि बृहस्पति ने जिस शास्त्र की रचना करके चार्वाक को समर्पित किया था उसका विस्तार चार्वाक तथा उनके शिष्यों के द्वारा किया गया है।

3 चार्वाक दर्शन के विभिन्न नाम एवं उनके अर्थ


  • इससे पूर्व के विवरण में चार्वाक मत से सम्बद्ध कई नामों की चर्चा की गयी है। चार्वाक, लोकायत तथा बार्हस्पत्य- ये तीन इनके नाम प्राप्त होते हैं।

चार्वाक शब्द के कई अर्थ


  • चार्वाक शब्द के कई अर्थ प्राप्त होते हैं। सामान्य अवधारणा है कि चार्वाक चारु-वाक् अर्थात् मिष्टभाषी का संक्षिप्त रूप है। इसका अभिप्राय वह व्यक्ति है, जिसकी वाणी या वचन चारु या मनोहारिणी है। इसमें स्पष्टतः यह संकेत है कि जनसामान्य में यह दर्शन सहज स्वीकृत था। 

  • एक अन्य धारणा के अनुसार चार्वाक शब्द चर्व- चबाने या खाने धातु से बना है। इसके अनुसार चार्वाक मौज, मस्ती खाने-पीने मात्र में विश्वास करते थे।

लोकायत का अर्थ 

  • लोकायत अर्थात् लोक+आयत का तात्पर्य जनसामान्य में प्रचलित होना है। 
  • हरिभद्र ने लोकायत का अर्थ उन साधारण लोगों से किया जो विचारशून्य मूर्क्ष की तरह आचरण करते हैं। 
  • राधाकृष्णन् की दृष्टि में लोकायत भौतिकवाद के लिये सुसंस्कृत पद है। आयत का अर्थ आयतन अर्थात् आधार मानकर यह भी कहा जाता है कि लोकायत का अर्थ इस मूढ़ एवं लौकिक संसार का आधार है। 
  • एक अन्य अनुमान के अनुसार लोकायत एक तकनीकी शब्द है जिसका तात्पर्य विवाद, वितण्डा एवं कुतर्क का विज्ञान है। ऐसा इस कारण कहा गया है कि यह दर्शन छलपूर्ण वाद विवाद में रुचि लेता है और विभिन्न विषयों पर पारम्परिक दृष्टिकोण को चुनौती देता है।

वृहस्पत्य नाम से अभिप्राय

  • वृहस्पत्य नाम से अभिप्राय है कि इस दर्शन के प्रणेता बृहस्पति थे। यद्यपि इसका कोई निश्चित साक्ष्य नहीं है कि बृहस्पति इस दर्शन के प्रणेता थे। पुनरपि परवर्ती उपनिषद् में एक कथा प्राप्त होती है कि बृहस्पति ने असुरों को नास्तिक विद्या का उपदेश दिया था कि इसके प्रभाव से असुरों का नाश हो तथा इन्द्र निष्कण्टक अमरावती पर राज्य कर सकें। 

चार्वाक दर्शन के साहित्य


  • दुर्भाग्य से इस दार्शनिक सम्प्रदाय का कोई भी ग्रन्थ प्राप्य नहीं है। इस दर्शन के सिद्धांतों व धारणाओं को जानने व समझने के लिये हमें पूर्णतः इसके विरोधियों के द्वारा दी गयी जानकारी पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

  • जयराशि भट्ट विरचित तत्त्वोपप्लवसिंह नामक ग्रन्थ को छोड़कर इस मत का कोई मौलिक ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। यह ग्रन्थ भी बहुत बाद का है जिसका प्रकाशन 1940 0 में हुआ है। किन्तु इस विषय में यह एक अनिवार्य सत्य है कि कोई भी ग्रन्थ, भले ही वह किसी सम्प्रदाय का हो, चार्वाक के कतिपय आधारभूत सिद्धान्तों का उल्लेख एवं उनका खण्डन किये बिना अपने को पूर्ण नहीं मानता। इस आधार पर एक सामान्य निर्णय यह अवश्य ही लिया जा सकता है कि प्रायः हर दार्शनिक ग्रन्थ इस वाद का एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक स्रोत बन जाता है। पुनरपि, चार्वाक दर्शन के मतों को प्रसारित करने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका सर्वदर्शनसंग्रह, प्रबोधचन्द्रोदय तथा बार्हस्प्त्यसूत्र की रही है।
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