स्वैच्छिक संगठन- इतिहास अर्थ परिभाषा एवं उद्देश्य |Volantary Organisation Kya Hote Hain

स्वैच्छिक संगठन- इतिहास अर्थ परिभाषा एवं उद्देश्य

स्वैच्छिक संगठन- इतिहास अर्थ परिभाषा एवं उद्देश्य |Volantary Organisation Kya Hote Hain


स्वैच्छिक संगठन परिचय

 

  • भारतीय संस्कृति में धर्म, नैतिकता, परोपकार एवं परलोक में विश्वास करने की भावनायें शुरू से ही व्याप्त रही हैं। दीनहीनों, अतिथियों और संकट में पड़े मनुष्य ही नहीं बल्कि जीव जन्तु और पशु-पक्षियों की सेवा करना पुण्य का कार्य माना जाता है। 


  • कौटिल्य ने भी कहा था कि प्रत्येक सभ्य समाज के नागरिकों तथा वहाँ के राजा को वृद्ध, निःशक्तजन, रागी, बच्चे तथा महिलाओं के प्रति सहयोग तथा सहानुभूति की भावना रखनी चाहिये । मानवता की सेवा को सर्वोपरि बताते हुए हमारे धर्म ग्रन्थ नीति शास्त्र एवं जातक कथायें समाज में त्याग भावना को विकसित करने में सहायक रहे हैं।

 

  • ऐच्छिक संस्थाओं का स्वरूप बहुत ही लचीला (Flexible) होता है। ये अपने अन्दर लोगों के जीवन स्तर की उपर उठाने का संकल्प अपने अतःकरण (Dedication) से करते हैं। एच्छिक संस्थायें प्रजातंत्र की आत्मा ही नहीं बल्कि उसे प्रजातंत्र की जान भी कहा जा सकता है।

 

  • ऐच्छिक संस्थाओं के कार्यक्रम उन सभी क्षेत्रों में फैले हुये हैं जो मनुष्य के कल्याण से संबंधित सभी पहलुओं को अपने में समेट लेते हैं।राष्ट्रीय स्तर पर बहुत सारी ऐसी एच्छिक संस्थायें (Volantary Organisation) हैं जो अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मिलकर कार्य करती हैं। 


  • ऐच्छिक संस्थाओं को ऐसे कार्य पहले लेना चाहिये जो ज्यादा महत्व के हों। इन्हें उत्तरदायित्व के साथ काम करने दिया जाना चाहिये जिससे ये एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले सकें। सुख दुख जीवन के दो अनिवार्य पक्ष है। इसी सत्य को स्वीकार करे हुये अधिकतर गृहस्थ व्यक्ति समाज सेवा में लगी संस्थाओं को यथासंभव सहायता प्रदान करते रहे हैं। 


  • प्राचीन काल से ही कुछ परोपकारी एवं कर्मठ व्यक्ति मिलकर एक संस्था के रूप में जरूरतमन्द व्यक्तियों की सहायता करते आये हैं। राज्य या शासन के आदेशों या इच्छा के बिना जब कोई संगठन तैयार किया जाता है तो वह ऐच्छिक या स्वैच्छिक संगठन कहलाता है।

 

  • यहाँ स्वैच्छिक संगठनों के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ उसके अर्थ को भी स्पष्ट किया गया है। स्वैच्छिक संस्थाओं की कुछ विशेषतायें भी होती हैं, जिनकी चर्चा भी यहाँ की गई है। स्वैच्छिक संस्थाओं की कार्य प्रणाली तथा उसके महत्व को भी जानना आवश्यक है। परन्तु स्वैच्छिक संस्थाओं की अपनी भी अनेक समस्यायें होती हैं, जिसका हल किया जाना भी आवश्यक है। इन सभी बातों की चर्चा इस पाठ्यक्रम में की गई है।

 

स्वैच्छिक संगठनों के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

 

  • उपलब्ध एतिहासिक प्रमाणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि मानव कल्याण के लिये स्वैच्छिक संगठनों का अस्तित्व प्रत्येक काल में प्रत्येक जगह कुछ न कुछ भाग में अवश्य ही रहा है। इन स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से अपाहिजों, असाध्य रोगों से पीड़ित मरीजों, विधवाओं तथा अनाथ बच्चों की सेवा सुश्रुषा की जाती थी। बाढ़, भूकम्प, तूफान, महामारी, अग्निकांड, युद्ध तथा अकाल से त्रस्त होती मानवता को जन सहयोग की भावना से ही सहारा दिया जाता था। उस समय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का समुचित विकास न होने से प्राचीन एवं मध्य काल में प्राकृतिक आपदाओं से जूझने के लिये तथा दूसरों की मदद करने का एकमात्र सहारा परोपकार तथा सामुदायिक सहयोग भावनायें ही थीं। धनी व्यक्ति, राजा तथा जमींदार इत्यादि जनकल्याण में अपना योगदान देते थे संपन्न व्यक्ति अन्न, वस्त्र तथा अन्य सामान इत्यादि से स्वैच्छिक संगठनों को जीवित बनाये रखते थे। इसी तरह धीरे-धीरे स्वैच्छिक संगठनों का निर्माण हुआ होगा।

 

  • बाद में चलकर तीर्थ स्थलों तथा अन्य आवश्यक स्थानों पर मानव कलयाण के लिये स्थायी तथा वृहताकार समाजसेवी संस्थायें शुरु हुई। परन्तु गाँवों में इन संगठनों की आवश्यकता भी नहीं थी क्योंकि संयुक्त परिवार तथा जाति प्रथा की व्यवस्था से प्रत्येक व्यक्ति का कल्याण घर में ही संभव था। गाँव भी एक इकाई के रूप में कार्यशील सामाजिक संरचना थी।

 

  • अधिकांश राजा भी जनकल्याण को महत्व देते हुये राज्य की ओर से सराय एवं धर्मशालायें संचालित करवाते थे। अपनी धार्मिक कट्टरता के बावजूद शहंशाह औरंगजेब ही एकमात्र ऐसे सम्राट हुये जिन्होंने वैश्याओं को गृहस्थ जीवन बिताने में सहायता की। मादक पदार्थों पर भी उन्होंने पाबन्दी लगा दी थी। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि उस समय भी मानव कल्याण के लिये प्रयास किये जा रहे थे।

 

  • सन् 1600 में इस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से भारत में ब्रिटिश सत्ता का प्रवेश हुआ। यूरोप के पुनर्जागरण काल विज्ञान का विकास तथा भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार के साथ ही संपूर्ण सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिदृश्य बदलने लगे सन् 1858 में मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में स्थापित 'Friends in Society' नामक स्वैच्छिक संगठन को भारत के स्वैच्छिक संगठनों के इतिहास में प्रारंभिक प्रयास माना जा सकता है।


  • ब्रह्म समाज प्रार्थना समाज, धर्म समाज, वियोसोफिकल सोसायटी, आर्य समाज तथा रामकृष्ण मिशन इत्यादि भी इसी प्रकृति के समाज सुधार आंदोलन थे। 


अंग्रेजी राज के दौरान भी स्वैच्छिक समाज कल्याण संगठन भारत में थे किन्तु उनमें तीन (3) महत्वपूर्ण परिवर्तन आये।

 

  • (1) ब्रिटिशकाल में शिक्षा के प्रसार तथा समाज सुधार आंदोलन से स्वैच्छिक संगठनों का कार्यक्षेत्र विस्तृत हो गया। सदियों से उपेक्षित रहा पिछड़ा वर्ग अब स्वैच्छिक संगठनों के कार्यक्षेत्र में था। इसके पहले जातिगत व्यवस्था, जिसका पालन कठोरता से किया जाता रहा है, के कारण दलितों के कल्याण के प्रयास न के समान थे।

 

  • (2) इसाई मिशनरियों का भारत में प्रवेश हुआ जो बहुत ही संगठित तरह से दीनहीन की सेवा बड़े ही समर्पित भाव से करती थीं । ये मिशनरी संस्थायें आदिवासी और दलित समुदायों तक पहुँचने को प्राथमिकता देती थी। इतना ही नहीं कुष्ट तथा क्षय रोगियों, जिसके पास कोई जाना तक नहीं चाहता था, उसकी सेवा करने में भी इस संस्थाओं ने श्रेष्ठ कार्य करना शुरू किया।

 

  • (3) भारत में ब्रिटिश शासन की जड़े जमते ही आधुनिक कानूनों का निर्माण शुरू हुआ। इसी शृंखला में स्वैच्छिक संगठनों का भी औपचारिक पंजीकरण करवाना अनिवार्य हो गया। आज भी अधिकांश स्वैच्छिक संस्थायें सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत पंजीकृत होते हैं। 

 

  • स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में लोक कल्याणकारी राज्य का उदय हुआ। तेजी से हुये आर्थिक तथा भौतिक विकास के बाद संयुक्त परिवारों का विघटन शुरू हो गया तथा पुराने समय में जो सामुदायिक सहयोग की परम्परागत भावनायें खत्म हो गई। न्यूक्लियर परिवार बनते चले गये, जिस कारण वृद्धों , विधवाओं तथा निःशक्त जनों की जीवन पर इसका प्रभाव पड़ा। क्योंकि अधिकांश व्यक्ति यह मानते है कि प्रत्येक सामाजिक कार्य सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है। अतः सामाजिक कल्याण के स्वैच्छिक या व्यक्तिगत प्रयास स्वभावतः कम हो चुके है। ठीक इसके विपरीत पंजीकृत स्वैच्छिक संस्थाओं की संख्या स्वतंत्रता के बाद निरंतर वृद्धि पर है क्योंकि आज, अधिकतर कार्य औपचारिक संगठनों के द्वारा ही किये जा रहे हैं।

 

  • परन्तु ये सभी स्वैच्छिक संगठन वास्तव में समाज कल्याण के लिये ही गठित हो रहे हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। स्वैच्छिक संगठनों के निर्माण के पीछे सिर्फ समाज कल्याण की भावना ही नहीं बल्कि अपने स्वार्थों की पूर्ति करना भी हो सकता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि स्वैच्छिक संगठनों की संख्या तो बढ़ रही है किन्तु समाज कल्याण के लिये आवश्यक प्रतिवता, निस्वार्थ भावना तथा कर्मठता का पतन हुआ है।

 

  • जहाँ 20वीं शताब्दी में गाँधी के अभ्युदय के साथ कई रचनात्मक कार्यक्रमों को संगठित तरीके से चलाने का प्रयास किया गया। वहीं आजादी के बाद कृषि, स्वास्थ्य तथा सामुदायिक विकास के विस्तार कार्य पर ध्यान केंद्रित हो गया। सामाजिक सुधार में भी स्वैच्छिक हस्तक्षेप देखने को मिला। 

 

  • आजादी के बाद विविध विकास के कार्यक्रमों के लागू होने के साथ स्वैच्छिक प्रयास का केन्द्र कल्याणकारी गतिविधियों से हटकर ग्रामीण विकास जैसे चुनौतीपूर्ण कार्य विशेषकर गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन पर केंद्रित हो गया। इस अवधि के दौरान चयनित समूहों जिसमें भूमिहीन मजदूर आदिवासी, छोटे किसान, महिला, बच्चे, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति आदि शामिल थे को लाभार्थी समूहों के रूप में चिन्हित  किया गया।

 

  • इनमें से कुछ ने जहाँ अपना ध्यान गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों पर केंद्रित किया वहीं कुछ ने गाँव सुधार व परिवर्तन के लिये कार्यकर्ताओं को सेमिनारों, कान्फ्रेन्सों तथा कार्यशालाओं के माध्यम से शिक्षित जागरूक व संवेदनशील बनाने का काम शुरु किया। इन कार्यशालाओं का एक उद्देश्य विचारों व अनुभवों का सार्थक आदान-प्रदान भी रहा।

 

  • आज भारत में गैर-सरकारी संगठनों का प्रसार काफी अधिक हो चुका है। 1953 में इन गैर-सरकारी संगठनों की संख्या 1739 थी जो करीब-करीब दस गुणा बढ़कर 1990 में 100,000 से अधिक पहुँच चुकी है। इन 100,000 पंजीकृत संगठनों में से 25,000 से 30,000 गैर सरकारी संगठन सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। 31 दिसंबर 1989 में एक जगह पर सबसे अधिक गैर सरकारी संगठन भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन (Foreign Contribution Regulation Act) फॉरेन कन्ट्रीब्यूटरी रेग्यूलेशन्स एक्ट के अन्तर्गत पंजीकृत थे, जिनकी संख्या 12314 थी। 1990 से 2005 के बीच में इनकी संख्या 102 मिलियन हो गई है। इसमें से 53% ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत है। 47% शहरी क्षेत्रों में कार्यरत है। इसमें से 49. 6% पंजीकृत नहीं है।

 

  • इस प्रकार गैर सरकारी संगठनों की शुरुआत को प्राचीन तथा मध्ययुग में ढूंढा जा सकता है। और आजादी के बाद सरकारी एजेंसियों के प्रदर्शन में तेजी से आ रही गिरावट के कारण गैर सरकारी संगठनों की महत्ता व प्रासंगिकता में कई गुना इजाफा हुआ है। फिर भी सामाजिक कार्यों में स्वैच्छिक संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका को कम नहीं आंका जा सकता है। आज भी बहुत सी समर्पित संस्थायें समाज कल्याण प्रशासन को व्यवहारिक सहयोग प्रदान करते हुये मानव कल्याण के क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य कर रही है।


स्वैच्छिक संगठन- अर्थ एवं उद्देश्य (Voluntary Organisation Meaning and Objectives)

 

  • स्वैच्छिक (Voluntary) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द Voluntarism से हुई है जो मूलतः 'Voluntas' से विकसित हुआ है। इसका अर्थ है- इच्छा या स्वतंत्रता यह इच्छा यहाँ किसी संगठन के निर्माण के रूप में प्रकट होती है।


  • भारत के संविधान में अनुच्छेद-19 (1) सी के अन्तर्गत यह अधिकार नागरिकों को दिया गया है। समुदाय संगठन या संघ बनाकर हम उन उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकते हैं जिनकी प्राप्ति संगठित प्रयासों से ही संभव है।

 

  • गैर सरकारी (NGO'S ) संगठनों को अक्सर स्वैच्छिक संगठनों या स्वैच्छिक एजेंसियों अथवा कार्यकारी समूहों के साथ पारस्परिक रूप से जोड़ा जाता है। जहाँ संयुक्त राष्ट्र की शब्दावली में इसे गैर सरकारी संगठन के रूप में सामान्यतः जाना जाता है वहीं टी० एन० चतुर्वेदी इसे स्वैच्छिक संगठन या एसोसिएशन कहना पसंद करते हैं क्योंकि गैर सरकारी संगठन की अपेक्षा यह अधिक सकारात्मक व सार्थक अर्थ की उद्घोषण करता है। कुल लोग इन्हें Volgas (Voluntary Agencies) या AGS (Action Groups) भी कहते हैं।

 

  • स्वैच्छिक संगठनों की संगठनात्मक गतिशीलता (Organisational Dynamics) एवं सहभागी शासन (Participatary Governance) पर शोध कार्य करने वाले डा० धर्मेन्द्र मिश्रा का मानना है कि स्वैच्छिक संगठनों को गैर सरकारी संगठन (N.G.O.) कहने से नाकारात्मक अर्थ निकलता प्रतीत होता है, अतः इन्हें (Voluntary Organisation (V.O.) अर्थात् स्वैच्छिक संगठन कहना अधिक उपयुक्त होगा।

 

स्वैच्छिक संगठन / गैर सरकारी संगठन की परिभाषा 


  • स्वैच्छिक संगठन / गैर सरकारी संगठन को इन शदों में परिभाषित किया जा सकता है, एक ऐसा संगठन जो स्वायत बोर्ड के माध्यम से संचालित होता है, जिसकी नियमित अंतराल पर बैठक होती है, जो अधिकांशतः निजी स्त्रोतों से चन्दा उगाहता है तथा उन पैसों को वैतनिक या अवैतनिक कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से जानोपयोगी व जनकेंद्रित योजनाओं में खर्च करता है।

 

  • गैर सरकारी संगठन एक ऐसा औपचारिक, पार्टी विहीन व निजी निकाय होता है जो व्यक्तिगत या सामूहिक प्रयत्न के माध्यम से अस्तित्व में आता है तथा जिसका उद्देश्य समाज के किसी विशेष तबके के जीवन को किसी भी मायने में बेहतर बनाने पर केंद्रित होता है। 


डेव्डि एम० सिल्स के शब्दों में—“स्वैच्छिक संगठन एंसे सदस्यों का समूह है जो कुछ सामान्य हितों की प्राप्ति हेतु स्वैच्छिक आधार पर संगठित होते हैं तथा राज्य के नियंत्रण के बिना कार्य करते हैं। "

 

स्मिथ एवं फ्रेडमैन के अनुसार "स्वैच्छिक संगठन औपचारिक रूप से संगठित तथा तुलनात्मक दृष्टि से स्थायी द्वितीयक समूह (Secondary Groups) हैं जो उन औपचारिक, अस्थायी एवं प्राथमिक समूहों से भिन्न (जैसे मित्रमंडली) होते हैं, जिन्हें हम प्राय: देखते हैं। "

 

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार स्वैच्छिक संगठन वह है जो अपने स्वायत्तशासी मंडल के द्वारा संचालित होता है, वित्तीय संसाधन जुटाने हेतु मूलत: निजी स्त्रोतों पर निर्भर होता है तथा जन कल्याण हेतु वैतनिक या अवैतनिक कार्मिक रखते हुए सामाजिक कार्यक्रम क्रियान्वयन, जनमत निर्माण, अनुसंधान क्रियायें, विधान निर्माण सहायता तथा सामाजिक विकास में स्वैच्छिक सहयोग प्रदान करता है। "

 

लौर्ड बीवरजी के अनुसार "स्वैच्छिक संगठन वह है जिसके कर्मचारी वैतनिक या अवैतनिक होते हैं तथा बिना किसी बाहरी नियंत्रण के स्वयं की पहल से कार्य करते हैं तथा प्रशस्ति होते हैं। "


रिंग्स के अनुसार यह व्यक्तियों का एक ऐसा समूह होता है जिसका आधार राज्य नियंत्रण से परे स्वैच्छिक सदस्यता पर टिका होता है तथा जो सामान्य हित को अग्रसर करने पर अपना ध्यान केंद्रित करता है। स्वैच्छिक संगठन वस्तुतः व्यक्तियों का एक ऐसा समूह होता है जहाँ व्यक्तिगत जि का बलिदान कर सामूहिक हित को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाता है। समूह की सदस्यता पूरी तरह से स्वैच्छिक होती है।

 

  • गैर सरकारी संगठन ऐसा संगठन होता है जहाँ के वैतनिक या अवैतनिक कार्यकर्ता बिना किसी बाहरी नियंत्रण के खुद के सदस्यों से नियमित नियंत्रित व परिचालित होते हैं।


  • दूसरे शब्दों में इसे एक ऐसे संगठनिक निकाया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो जनोपयोगी व जनकेंद्रित कार्य करने के लिये स्वैच्छिक सामूहिक उपायों या संसाधनों को इकट्ठा कर उसे व्यवहार में लाने के लिये स्वयं प्रेरित होता है या फिर किसी बाह्य प्रेरणा पर टिका होता है। इसका सामूहिक उद्देश्य जन सेवाओं व सरकारी सेवाओं को और अधिक सुलभ, बेहतर तथा उपयोगी बनाने का होता है।

 

  • इस प्रकार स्पष्ट है कि स्वैच्छिक संगठन कुछ व्यक्तियों द्वारा निर्मित किये जाते हैं। प्रायः मानव सेवा तथा सामाजिक विकास उनका ध्येय होता है। ऐसा संगठन अपने कार्यकरण तथा प्रशासन में सरकारी या अन्य बाहरी दबावों से मुक्त होते हैं। ये सामाजिक कल्याण संगठन या अभिकरण लोकतंत्र के आधार स्तम्भों में से एक है। लोक कल्याण के निमित्त व्यापक दायित्वों की पूर्ति मात्र राज्य के प्रयासों से ही संभव नहीं है बल्कि स्वैच्छिक संगठन उस कार्य में सार्थक भूमिका निर्वाहित कर सकते हैं।

 

स्वैच्छिक संगठनों के उद्देश्य (Objectives of Voluntary Organisations) : 


पंचवर्षीय योजनाओं के विभिन्न दस्तावेजों में स्वैच्छिक संगठनों के निम्नलिखित उद्देश्य वर्णित किये गये हैं

 

(1) इसका उद्देश्य विभिन्न वर्गों की सामाजिक समस्याओं एवं जरूरत मन्द लोगों की आवश्यकताओं का सर्वेक्षण करना तथा स्थानीय सहयोग को चिन्हित करना; 

(2) समस्या से पीड़ित लोगों में चेतना जगाना और सहायता प्रदान करना ताकि वे आत्मनिर्भर बनें तथा एक दूसरे के सहयोग के प्रति अभिप्रेरित हो सकें; 

(3) सरकारी कल्याणकारी कार्यक्रमों के अन्तर्गत मिलने वाली सुविधाओं के प्रति जरूरतमंद व्यक्तियों को सूचना तथा सहायता उपलब्ध करवाना; 

(4) सामाजिक समस्याओं से उत्साह के साथ तथा सबल आर्थिक रूप से जूझने के लिये स्थानीय संसाधनों को विकसित करना; 

(5) परिस्थितियों के अनुरूप अपने को ढालते हुये कार्यक्रमों की सफल क्रियान्विति सुनिश्चित करना; और 

(6) प्रतिबल भावना से मानव कल्याण तथा सामाजिक विकास में सहयोग देना ।

 

इसका एक और प्रमुख उद्देश्य यह भी है कि सरकारी अभिकरणों को कल्याणकारी कार्यक्रमों से संबंधित सभी बातों के बारे में अवगत कराते रहना है। परन्तु इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये किसी भी स्वैच्छिक संगठन का आधार मजबूत होना चाहिये। संगठनात्मक प्रयासों के माध्यम से ही मानव कल्याण के लक्ष्य प्राप्त किये जा सकते हैं। जिन संगठनों के पास वित्तीय संसाधनों का अभाव तथा परिश्रमी कार्मिकों की समस्या न हो वे ही समाज कल्याण में अपनी सार्थक भूमिका अदा कर सकने में सक्षम होते हैं। इसके अतिरिक्त स्थानीय जन समुदाय का सहयोग, सरकारी विभागों से समन्वय कुशल नेतृत्व, कार्यकरण में स्वायत्तता तथा संबंधित कार्य की सामाजिक उपादेयता भी ऐसे कारक है जो किसी स्वैच्छिक संगठन को प्रभावी या निष्प्रभावी बनाने में निर्णयक भूमिका निर्वाहित करते हैं ।


विषय सूची 

स्वैच्छिक संगठन- इतिहास अर्थ परिभाषा एवं उद्देश्य

स्वैच्छिक संगठन (संस्थाओं) की विशेषतायें

स्वैच्छिक संगठनों के प्रकार

स्वैच्छिक संगठन का गठन एवं कार्यप्रणाली

स्वैच्छिक संगठनों की समस्यायें या कमियाँ

ग्रामीण विकास तथा समाज कल्याण में स्वैच्छिक संगठन की भूमिका

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