भारत में टीकाकरण कार्यक्रम |यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम |Universal Immunization Programme

भारत में टीकाकरण कार्यक्रम

भारत में टीकाकरण कार्यक्रम |यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम |Universal Immunization Programme



  • भारत में टीकाकरण कार्यक्रम सर्वप्रथम वर्ष 1978 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा एक्सपेंडेड प्रोग्राम ऑफ इम्यूनाइज़ेशन’ (Expanded Programme of Immunization-EPI) के रूप में पेश किया गया था।


  • वर्ष 1985 में इस कार्यक्रम का नाम बदलकर यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunization Programme) कर दिया गया। 


भारत में टीकाकरण कार्यक्रम घोषित उद्देश्यों में शामिल है-

  • टीकाकरण कवरेज को तेज़ी से बढ़ाना।
  • सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना।
  • प्रदर्शन की निगरानी के लिये एक ज़िलेवार प्रणाली का निर्माण,
  • वैक्सीन के निर्माण में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
  • भारत का यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम (UPI) सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक हैजो कि प्रति वर्ष 2.67 करोड़ नवजात शिशुओं और 2.9 करोड़ गर्भवती महिलाओं को लक्षित करता है।
  • पूर्व टीकाकरण के कवरेज को 90 प्रतिशत तक बढाने के लिये मिशन इंद्रधनुष (Mission Indradhanush) को लागू किया गया।
 

पूर्ण टीकाकरण का अर्थ

पूर्ण टीकाकरण का मतलब है कि एक बच्चा अपने जीवन के पहले वर्ष में कुल आठ टीकों की खुराक का एक समूह प्राप्त करे, इस समूह में शामिल हैं-


  • जन्म के कुछ समय बाद ही एकल खुराक के रूप में तपेदिक का बीसीजी टीका,
  • पोलियो टीका जिसकी पहली खुराक जन्म के समय दी जाती है,
  • चार सप्ताह के अंतराल पर दो और पोलियो टीके,
  • डिफ्थीरिया (Diphtheria), काली-खाँसी (Pertussis) और टेटनस (Tetanus) को रोकने के लिये टीके की तीन खुराकें
  • खसरे के टीके की एक खुराक

 

टीकाकरण का महत्त्व

  • टीकाकरण को उन सबसे अच्छे तरीकों में से एक के रूप में जाना जाता है जिससे हम आम लोगों, बच्चों और आने वाली पीढ़ियों को संक्रामक रोगों से बचाया जा सकता हैं।
  • टीकाकरण अभियानों को सही ढंग से कार्यान्वित करने से उन सभी बीमारियों समाप्त करने में मदद मिल सकती है, जो वर्तमान में प्रसारित है अथवा भविष्य में फैल सकती है।
  • टीकाकरण न केवल बच्चों को पोलियो और टेटनस जैसी घातक बीमारियों से बचाता है, बल्कि इसके माध्यम से खतरनाक बीमारियों को समाप्त कर अन्य बच्चों को भी इन बिमारियों से सुरक्षित रखता है।

 

टीकाकरण से संबंधित सवाल - जवाब

 

टीकाकरण क्या है?

  • टीकाकरण बचपन में होने वाली कई जानलेवा बीमारियों से बचाव का सबसे प्रभावषाली एवं सुरक्षित तरीका है। टीकाकरण बच्चे के रोग प्रतिरोधक तंत्र को मजबूत बनाता है और उन्हें विभिन्न जीवाणु तथा विषाणुओं से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।


भारत में टीकाकरण कार्यक्रम क्या है?

  • राष्ट्रीय टीकाकरण नीति को वर्ष 1975 में अपनाया गया था, जिसका शुभारंभ EPI (Expanded Program of Immunization) द्वारा प्रांरभ किया गया। जिसे 1985 में बदलकर Universal Immunization Program (UIP) करके सम्पूर्ण भारत वर्ष में लागू कर दिया गया। भारत का टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) गुणवत्तापूर्ण वैक्सीन का उपयोग करने, लाभार्थियों की संख्या, टीकाकरण सत्रों के आयोजन और भौगोलिक क्षेत्रों की विविधता को कवर करने के संदर्भ में विष्व का सबसे बडा कार्यक्रम है।


गर्भवती महिलाओं को कौन-कौन से टीके लगाये जाते हैं और ये टीके कब लगाये जाते हैं?

  • गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान जल्दी से जल्दी टिटनेस टॉक्साइड (टीटी) के दो टीके लगाये जाने चाहिए। इन टीकों को टीटी-1 एवं टीटी-2 कहा जाता है। इन दोनो टीकों के बीच 4 सप्ताह का अंतर रखना आवष्यक है। यदि गर्भवती महिला पिछले 3 वर्ष मेंं टीटी के 2 टीके लगवा चुकी है तो उसे इस गर्भावस्था के दौरान केवल बूस्टर टीटी का टीका ही लगवाया जाना चाहिये।


गर्भवती महिलाओं के लिये टीकाकरण की आवश्यकता क्यों होती है?

  • टीटी वैक्सीन सभी गर्भवती महिलाओं को दिये जाने से उनका व उनके बच्चे का टिटनेस रोग से बचाव होता है। टिटनेस नवजात षिषुआें के लिये एक जानलेवा रोग है। जिससे उन्हें जकड़न, मांसपेषियों में गंभीर एेंठन हो जाती है। कभी-कभी पसलियों में जकड़न के कारण षिषु सांस नही ले पाते हैं और इसी कारण उनकी मुत्यु भी हो जाती है।


यदि गर्भवती महिला गर्भावस्था के दौरान देर से अपना नाम दर्ज कराती है (ANC Registration) तब भी क्या उसे टीटी के टीके लगाये जाने चाहिये।

  • जी हाँ, टीटी का टीका माँ और बच्चे को टिटनेस की बीमारी से बचाता है। भारत में नवजात षिषुओं की मृत्यु का एक प्रमुख कारण जन्म के समय टिटनेस का संक्रमण होना है। इसलिए अगर गर्भवती महिला ANC के लिए देर से भी नाम दर्ज करवाये तो भी उसे टीटी के टीके लगाये जाने चाहिये। किन्तु टीटी-2 या टीटी बूस्टर टीका प्रसव की अनुमानित तिथि से कम से कम चार सप्ताह पहले दिया जाना चाहिये ताकि उसे उसका पूरा लाभ मिल सके।


यदि बीसीजी का टीका लगवाने के बाद बच्चे की बांह पर कोई निषान ना उभरे तो क्या किया जावे?

  • बीसीजी का टीका लगवाने के बाद बच्चे की बांह पर कोई निषान ना उभरे तो बच्चे को दोबारा टीका लगवाने की आवष्यकता नहीं है।


अब चूंकि भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया जा चुका है
, तो बच्चों को नियमित टीकाकरण के साथ-साथ पल्स पोलियो अभियानों में पोलियो की खुराक क्यों दी जा रही है।

  • भले ही भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया जा चुका है, फिर भी भारत के पड़ोसी देषां में पोलियो का संक्रमण अभी भी मौजूद है। पोलियो रोग से संक्रमित किसी व्यक्ति के भारत आने से इसका संक्रमण फैलने का खतरा सतत् रूप से बना रहता है। इसलिये जब तक सम्पूर्ण विष्व से पोलियो का संक्रमण समाप्त नहीं हो जाता, बच्चों को उनका सुरक्षा स्तर बनाये रखने के लिये पोलियो की खुराक दिया जाना आवष्यक है।


शिशु के टीकाकरण की शुरूआत कब होनी चाहिये?

  • टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार अस्पताल या किसी अन्य संस्थान में जन्म लेने वाले सभी शिशुओं को जन्म लेने के 24 घन्टे के भीतर बीसीजी का टीका, पोलियो की ’’जीरो’’ खुराक और हेपेटाईटिस बी का टीका लग जाना चाहिये।


  • डेढ़ माह (6 सप्ताह) का होने पर ओपीवी, रोटा वायरस वैक्सीन, एफ-आईपीवी, पीसीवी (न्यूमोकोकल कोन्जूगेट वैक्सीन) और पेन्टावेलेन्ट का पहला टीका दिया जाता है।


  • पहला टीका लग जाने के 28 दिवस बाद शिशु को ओपीवी, रोटा वायरस वैक्सीन और पेन्टावेलेन्ट का दूसरा टीका दिया जाता है।


  • दूसरा टीका लग जाने के 28 दिवस बाद ओपीवी, रोटा वायरस वैक्सीन की तीसरी, एफ-आईपीवी, पीसीवी (न्यूमोकोकल कोन्जूगेट वैक्सीन) की दूसरी और पेन्टावेलेन्ट का तीसरा टीका दिया जाता है।


  • 9 माह की उम्र पूर्ण होने पर खसरे के टीके के साथ-साथ विटामिन की पहली खुराक तथा पीसीवी (न्यूमोकोकल कोन्जूगेट वैक्सीन) बूस्टर खुराक दी जाती है।
  • 16 से 24 माह का होने पर बच्चे को खसरे एवं विटामिन की दूसरी खुराक दी जाती है।
  • बच्चे के 5 साल पूर्ण होने तक 6 माह के अन्तराल पर विटामिन की कुल 9 खुराकें दी जानी चाहिये।


अगर शिशु बीमार हो तो भी क्या उसे टीके लगवाने चाहियें?

  • जी हाँ, खांसी, जुकाम, दस्त रोग और कुपोषण जैसी आम तकलीफें टीकाकरण में रूकावट नही डालती। कुपोषण के षिकार बच्चे को टीके लगवाना और भी जरूरी है क्यांकि उसके बीमार पड़ने की आशंका  अधिक रहती है।


टीकाकरण करवाने पर कितना खर्च आता है?

  • वैक्सीन बहुत महंगी होती हैं तथा सरकार को इन्हें खरीदने, इनके रख रखाव तथा परिवहन आदि में बहुत धन खर्च करना पडता है। लेकिन सभी टीकाकरण सेवायें बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों व अस्पतालों में निःषुल्क दी जाती हैं।


माता-पिता अपने बच्चों का टीकाकरण कहां-कहां करवा सकते है।

  • माता-पिता अपने बच्चों का टीकाकरण सरकारी अस्पताल, मेडीकल कॉलेज, शहरी डिस्पेंसरियां, शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, उपकेन्द्र तथा आंगनबाडी केन्द्र पर करवा सकते है। ढाणियों तथा शहरी क्षेत्रों के कुछ मोहल्लों, झुग्गियों इत्यादि में एएनएम बच्चों के टीकाकरण सत्रों का आयोजन करती है।


टीकाकरण के बाद बुखार आने के क्या कारण हैं?

  • हल्का बुखार होना इस बात का संकेत है कि वैक्सीन ने बच्चे के शारीरिक तंत्र पर सामान्य प्रभाव छोडा है। यह बुखार प्राकृतिक रूप से हल्का होता है तथा एक दो दिनों में अपने आप ठीक हो जाता है।


क्या विटामिन ’’’’ भी एक वैक्सीन है?

  • विटामिन ’’’’ कोई वैक्सीन नही हैं। यह एक सूक्ष्म पोषक पदार्थ है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, बच्चों की वृद्धि एवं विकास के लिये आवष्यक होता है, उन्हें रोगों से बचाता है तथा आंखों के लिये लाभप्रद होता है।

कुछ वैक्सीन को एक निश्चित आयु के बाद क्यों नही दिया जा सकता?

  • एक निष्चित आयु का हो जाने पर बच्चों में कुछ संक्रमणों के प्रति रोग प्रतिरोधक शक्ति प्राकृतिक रूप से आ जाती है, या वे उम्र के उस दौर से गुजर चुके होते हैं जब बचाव किये जा सकने वाले रोगों से जीवन का खतरा हो सकता है।


क्या एक शिशु को एक ही समय में एक से अधिक वैक्सीन दिये जाने से कोई लाभ है?

  • जन स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से एक षिषु को एक ही समय में एक से अधिक वैक्सीन दिये जाने से स्वास्थ्य केन्द्र पर बार-बार आने जाने का समय बचता है। इसके कारण षिषु किसी टीकाकरण से वंचित नही रहता। साथ ही, एक ही बार में कई वैक्सीन दिये जाने का कोई दुष्प्रभाव नही है।


कभी-कभी बच्चे को टीके की दूसरी या तीसरी खुराक दिलाने ले जा पाना संभव नही होता है। ऐसे में क्या सभी टीके दोबारा शुरू करने पड़ते हैं?

  • नही, दोबारा टीके लगवाने की आवष्यकता नही होती है; देर होने से कोई खास फर्क नही पड़ता है। फिर भी जितना संभव हो निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ही टीके लगवाने चाहिये। टीके की दूसरी और तीसरी खुराक बच्चे की पूर्ण सुरक्षा के लिये अत्यन्त आवष्यक है।


टीकाकरण के बाद क्या-क्या सावधानियां ली जानी चाहिये?

  • टीकाकरण के बाद माता पिता स्वास्थ्य केन्द्र या सत्र स्थल पर बच्चे के साथ 30 मिनट तक प्रतिक्षा अवष्य करें, ताकि किसी दुष्प्रभाव या विपरीत प्रभाव होने की अवस्था में बच्चे को तुरंत चिकित्सा सहायता दी जा सके। अभिभावक इंजेक्षन लगाये जाने की जगह पर कोई दवा न लगाये और न ही उस जगह को मलें। यदि उस स्थान पर लालिमा या सूजन है तो साफ कपडे को ठण्डे पानी में भिगोकर, निचोड़ कर उस स्थान रखें। बच्चे को अधिक आराम देने के लिये एएनएम बहनजी द्वारा बताई गई मात्रा के अनुरूप पैरासिटामोल की गोली दें। टीकाकरण के पश्चात मां का दूध पिलाने के उपरान्त बच्चों को कमर के बल सीधा लिटायें।


पेन्टावेलेन्ट वैक्सीन किन-किन बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करती है?

  • पेन्टावेलेन्ट टीके के माध्यम से 5 जीवाणुओं से होने वाली बीमारियों का प्रतिरक्षण किया जाता है - डिप्थीरिया (गलघोंटू), परट्यूसिस (काली खांसी), टिटनेस (धनुषवाय), हेपेटाइटिस-बी, एवं हिब (मेनिन्जाईटिस एवं न्यूमोनिया)।


बढते शिशुओं या बच्चों को अक्सर बुखार आने और दाने निकलने की षिकायत रहती है। अगर षिषु या बच्चे को पहले से दाने निकले हो या बुखार आया हुआ हो तो भी क्या खसरे का टीका लगवाना चाहिये?

  • जी हां, खसरे का टीका सभी षिषुओं को अवष्य लगवाया जाना चाहिये। क्योंकि जरूरी नही कि हर बुखार या दाने खसरे का संकेत हों। अगर बच्चे को पहले से दाने निकलने के साथ बुखार आया हो तो भी उसे खसरे का टीका लगवाया जाना चाहिये ताकि उसे खसरे का संक्रमण से पूरी सुरक्षा मिल सके। खसरे के टीके के साथ-साथ विटामिन की पहली खुराक भी निष्चित रूप से देनी चाहिये।


क्या रोटावायरस दस्त गंभीर हो सकता है?

  • भारत में जो बच्चे दस्त के कारण अस्पताल में भर्ती होते हैं, उनमें से 40 प्रतिषत बच्चे रोटावायरस संक्रमण से ग्रस्ति होते हैं। यही कारण है कि भारत में 872000 बच्चे अस्पताल में भर्ती किये जाते हैं तथा लगभग 78000 बच्चों की मृत्यु हो जाती है।


रोटावायरस कैसे फैलता है?

  • रोटावायरस अत्यन्त संक्रामक रोग है और यह दूषित पानी, दूषित खाने एवं गंदे हाथों के सम्पर्क में आने से बच्चों में फैलता है।


पीसीवी बच्चों को किन-किन रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है?

  • पीसीवी बच्चों को न्यूमोकोकल बैक्टीरिया से होने वाले न्यूमोनिया और दिमागी बुखार (बैकटीरियल मेनिनजाइटिस) एवं अन्य बीमारियों से बचाता है।

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