परिवार का अर्थ परिभाषा विशेषताएं प्रकार, कार्य | परिवार के महत्वपूर्ण स्वरूप | Parivar Ka Arth Prakar evam Karya

परिवार का अर्थ परिभाषा विशेषताएं प्रकार, कार्य

परिवार का अर्थ परिभाषा विशेषताएं प्रकार, कार्य | परिवार के महत्वपूर्ण स्वरूप | Parivar Ka Arth Prakar evam Karya



परिवार का अर्थ अवधरणा एवं परिभाषाएं

 

  • परिवार सामाजिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण आधार स्तंभ है, जिसका व्यक्ति के जीवन में प्राथमिक महत्व है। परिवार सामाजिक संगठन की एक सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक निर्माणक इकाई है। परिवार के द्वारा ही सामाजिक संबंधों का निर्माण होता है जो समाजशास्त्र की विषय वस्तु है। 


  • मूल मानव में सदैव जीवित रहने की इच्छा होती है जिसे परिवार द्वारा वह पूरा करता है मैलिनोवस्की (Sex and Repression in savage society) कहते हैं कि 'परिवार ही एक ऐसा समूह है जिसे मनुष्य पशु अवस्था से अपने साथ लाया है।'

 

  • एल्मर अपनी पुस्तक Sociology of Family में लिखते हैं कि 'Family' शब्द का उदगम लैटिन शब्द 'Famulus' से हुआ है जो एक ऐसे समूह के लिए प्रयुक्त हुआ है जिसमें माता-पिता, बच्चे, नौकर व दास हों।'

 


परिवार क्या होता है?  

  • परिवार एक ऐसी संस्था है जिसकी परिभाषा ऐसी नहीं दी जा सकती है जो सभी देश, कालों के परिवारों के लिए सही हो। इसका मुख्य कारण यह है कि परिवार के रूप एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में बदलते रहते हैं। कहीं पर एक विवाह प्रथा मान्य है तो कहीं पर बहु विवाह। एक विवाह और बहु विवाह का प्रभाव परिवार पर पड़ता है। इन्हीं सब बातों को दृष्टि में रखते हुए डनलप महोदय ने कहा कि परिवार की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं दी जा सकती है।

 

  • परिवार को साधारणतया एक ऐसे समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें पति, पत्नी और उनके बच्चे पाए जाते हैं तथा जिसमें इन बच्चों की देख-रेख तथा पति-पत्नी के अधिकार व कर्त्तव्यों का समावेश होता है।

 

परिवार की परिभाषा 

मैकाइवर व पेज के अनुसार परिवार की परिभाषा 

  • परिवार निश्चित यौन संबंध द्वारा परिभाषित एक ऐसा समूह है जो बच्चों के जनन एवं लालन-पालन की व्यवस्था करता है।'

 

लूसीमेयर के अनुसार के अनुसार परिवार की परिभाषा 

  • 'परिवार एक गार्हस्थ समूह है जिसमें माता-पिता और संतान साथ साथ रहते हैं। इसके मूल में दंपति और उसकी संतान रहती है।

 

किंग्सले डेविस के अनुसारके अनुसार परिवार की परिभाषा 

  • 'परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिसमें सगोत्रता के संबंध होते हैं और जो इस प्रकार एक-दूसरे के संबंधी होते हैं।'

 

बर्गेस व लॉक के अनुसारके अनुसार परिवार की परिभाषा 

  • परिवार व्यक्तियों के उस समूह का नाम है जिसमें वे विवाहरक्त या दत्तक संबंध से संबंधित होकर एक गृहस्थी का निर्माण करते हैं एवं एक दूसरे पर स्त्री-पुरूष, माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन इत्यादि के रूप में प्रभाव डालते व अंतःक्रिया करते हुए एक सामान्य संस्कृति का निर्माण करते हैं।'

 

ऑगबर्न और निमकॉफ के अनुसार परिवार

  • जब हम परिवार के बारे में सोचते हैं तो हमारे समक्ष एक ऐसी कम या अधिक स्थायी समिति का चित्र आता है। जिसमें पति एवं पत्नी अपने बच्चों के साथ या बिना बच्चों के रहते हैं। या एक ऐसे अकेले पुरूष या अकेली स्त्री की कल्पना आती है जो अपने बच्चों के साथ रहते हैं।' परिवार को एक समिति मानते हुए ऑगबर्न और निमकॉफ ने इसे भिन्न लिंग व्यक्तियों के बीच होने वाले समझौते के परिणामस्वरूप संतानोत्पत्ति की सामाजिक वैधता के रूप में स्पष्ट किया है परिवार तब भी परिवार है जब उसमें बच्चे नहीं हैं यह अकेली माता अथवा अकेले पिता के साथ बच्चों सहित भी परिवार ही है।

 

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि परिवार जैविकीय संबंधों पर आधारित एक सामाजिक समूह है जिसमें माता-पिता और उनकी संतानें होती हैं तथा जिसका उद्देश्य अपने सदस्यों के लिए भोजन, प्रजनन, यौन संतुष्टि समाजीकरण संबंधी आवश्यकताओं की करना है।

 

इस प्रकार परिवार के निम्नलिखित पांच तत्वों का उल्लेख किया जा सकता है

 

  • स्त्री-पुरूष का यौन संबंध (Mating relationship) 
  • यौन संबंधों को विधिपूर्वक स्वीकार किया जाता है। 
  •  संतानों की वंश व्यवस्था (Reckoning of descent ) 
  • सह निवास (Child & Rearing)

 

परिवार की विशेषताएं

 

सार्वभौमिकता 

  • परिवार एक सार्वभौमिक इकाई है। परिवार हर समाज, हर काल, देश व परिस्थिति में पाए जाते हैं, चाहे इनका स्वरूप कुछ भी हो। समाज का इतिहास ही परिवार का इतिहास रहा है। क्योंकि जब से मानव का जन्म इस धरती पर हुआ है तभी से परिवार रहा है। चाहे पहले उसका स्वरूप भले ही कुछ रहा हो।

 

भावात्मक आधार 

  • परिवार का आधार व्यक्ति की वे भावनाएं हैं जिनकी पूर्ति के लिए उसने परिवार का निर्माण किया है, जैसे वात्सल्य, यौन, सहयोग, सहानुभूति इत्यादि।

 

सृजनात्मक प्रभाव

  • व्यक्ति परिवार में ही जन्म लेता है और परिवार में ही उसकी मृत्यु हो जाती है। इसलिए परिवार व्यक्ति पर रचनात्मक प्रभाव डालता है। जिस प्रकार का परिवार होगा उसी प्रकार व्यक्तियों के विचार व दृष्टिकोण निर्मित होंगे। मिट्टी के बर्तन के समान बच्चों के भविष्य का निर्माण परिवार में ही होता है।

 

सीमित आकार

  • चूंकि परिवार के अंतर्गत केवल वे ही व्यक्ति आते हैं जो वास्तविक या काल्पनिक रक्त् संबंध से होते हैं, इसलिए अन्य संगठनों की अपेक्षा इसका आकार सीमित होता है। किसी भी परिवार में दो-चार सौ सदस्य नहीं होते, क्योंकि जैसे बच्चे बड़े होते गए उनका विवाह होता गया, फलस्वरूप उन्होंने अलग परिवार बसाना प्रारंभ किया, इस तरह परिवार का आकार सीमित होता जाता है। आज संतति निरोध द्वारा पारिवारिक आकार को और सीमित बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है।

 

सामाजिक संरचना में केंद्रीय स्थिति 

  • परिवार सामाजिक संरचना का केंद्र बिंदु है। जिसके आधार पर समाज की अन्य समस्त इकाइयों व सामाजिक संबंधों का निर्माण होता है। परिवार के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। समाज का छोटा रूप परिवार और परिवार का विस्तृत रूप समाज है।

 

सदस्यों का उत्तरदायित्व

  • परिवार का आकार सीमित है लेकिन सदस्यों का उत्तरदायित्व असीमित होता है। जबकि अन्य संगठन कृत्रिम हैं इसलिए उनके सदस्यों की जिम्मेदारी सीमित है। प्राथमिक समूह होने के नाते परिवार में इसके सदस्यों की जिम्मेदारी और कार्य बढ़ जाते हैं। परिवार में व्यक्ति को हर कार्य अपना समझकर करना पड़ता है।

 

सामाजिक नियंत्रण

  • परिवार सामाजिक नियंत्रण की एक उचित विधि है। परिवार प्राथमिक समूह है, इस कारण परिवार व्यक्ति के व्यवहारों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखता है परिवार सामाजिक नियंत्रण का अनौपचारिक साधन है जिसके द्वारा व्यक्ति वास्तविक रूप से नियंत्रित रहते हैं।


परिवार की अस्थायी एवं स्थायी प्रकृति 

  • परिवार की प्रकृति अस्थायी एवं स्थायी दोनों है। परिवार स्त्री-पुरूष का एक संगठन है। अगर परिवार को हम एक समिति के रूप में लेते हैं तो इसकी प्रकृति अस्थायी है, क्योंकि जैसे ही परिवार का कोई सदस्य अलग हुआ या उसकी मृत्यु हो गई तो समिति नष्ट हो गई। लेकिन इसके वाबजूद परिवार स्थायी है क्योंकि परिवार एक संस्था है जो कृत्रिम नहीं बल्कि वास्तविक है, जिनका आधार मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियां हैं जो कभी नष्ट नहीं होतीं, इसलिए परिवार भी कभी नष्ट न होने वाली संस्था है।

 

परिवार के प्रकार

 

मानव समाज में वैसे विभिन्न प्रकार के परिवार पाए जाते हैं लेकिन सुविधा की दृष्टि से परिवार को छह आधारों सत्ता, वंश, उत्तराधिकार, निवास स्थान, विवाह तथा सदस्य संख्या या आकार पर विभाजित किया जाता है । 


सत्ता या वंश उत्तराधिकार या निवास स्थान के आधार पर परिवार के दो भेद हैं

 

पितृसत्तात्मक (Patriachal) पितॄनामी(Patrimonai) या पितृस्थानीय (Patrilocal) - परिवार

  • (क)- भारत वर्ष में सामान्यतः इस प्रकार के परिवार प्रायः सभी सभ्य समाजों में पाए जाते हैं। कुछ जनजातीय समाजों में भी, उदाहरण के लिए उड़ीसा की खरिया तथा मध्य प्रदेश की भील जनजाति में पितृसत्तात्मक पर हैं।



(ख) मातृसत्तात्मक (Matriarchal) या मातृवंशीय (Matrilineal) या मातृनामी (Matrimonial) या मातृस्थानीय (Matrilocal)- 

  • परिवार, अधिकतर इस प्रकार के परिवार ब्रह्मपुत्र के दक्षिण की खासी, गारो जनजाति, केरल के नायर तथा दक्षिण भारत की इरूला, कादूर, पुलायन इत्यादि जनजातियों में पाए जाते हैं।

 

सदस्यों की संख्या के आधार पर परिवार को दो भागों में विभाजित किया जाता है

 

(क) मूल या केंद्रीय परिवार 

  • इस प्रकार के परिवार में स्त्री पुरुष व उनके अविवाहित बच्चे सम्मिलित होते हैं। इसमें अन्य रिश्तेदारों का अभाव होता है, इसलिए इनका आकार छोटा होता है। इन्हें व्यक्तिगत परिवार कहते हैं।


संयुक्त परिवार

  • भारत में परिवार से तात्पर्य संयुक्त परिवार से है। संयुक्त परिवार से तात्पर्य ऐसे परिवार से है जिसमें कई पीढ़ी के लोग एक साथ एक छत के अंदर रहते हैं तथा उनकी सामान्य संपत्ति, सामान्य संस्कृति एवं सामान्य निवास होता है। संयुक्त परिवार को प्रायः तीन भागों में बांटा जाता है। 

 

(क) मिताक्षरा संयुक्त परिवार

  • बंगाल व असम को छोड़कर संपूर्ण भारत में पाए जाते हैं। इसमें पुत्र के पिता की संपत्ति पर जन्म से ही अधिकार हो जाता है। इसके प्रणेता विज्ञानेश्वर हैं।

 

(ख) दायभाग संयुक्त परिवार

  • बंगाल व असम में पाए जाते हैं। इसमें पिता की मृत्यु या उसके देने के बाद ही पुत्र का संपत्ति पर अधिकार होता है। इसके प्रणेता जीमूतवाहन हैं। 

 

(ग) विस्तृत परिवार 

  • यह संयुक्त परिवार का ही एक भेद है, जिसमें मूल परिवार के अलावा पति-पत्नी के रिश्तेदार भी सम्मिलित रहते हैं। आज की परिस्थिति कुछ भिन्न है, व्यक्ति अलग अलग दूर स्थानों में नौकरी करते हुए भी अपने परिवार (संयुक्त परिवार) के धार्मिक क्रिया-कलापों में हिस्सा बंटाते हैं। इस प्रकार से उनका अपने परिवार के प्रति एक प्रकार का भावनात्मक लगाव बना रहता है। जिसके कारण भी हम इन्हें परिवार कहते हैं।

 

विवाह के आधार पर परिवार के मुख्यतः दो प्रकार हैं

 

(क) एक विवाही परिवार 

  • इसमें एक पुरूष का एक स्त्री से विवाह होता है आधुनिक सभ्य समाजों में एक विवाही परिवार ही मुख्यतः पाए जाते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 भी एक पति व एक पत्नी की अनुमति देता है।

 

(ख) बहु विवाही परिवार 

इस प्रकार के परिवार में एक पुरूष कई औरतों से विवाह करता है - या एक औरत कई पुरूषों से यौन संबंध रख सकती है। प्रायः इस प्रकार के परिवार आदिम समाजों में पाए जाते हैं। इसक दो स्वरूप हैं

 

(1) बहुपति विवाही परिवार इस प्रकार के परिवार में एक स्त्री के अनेक पति होते हैं। इसके दो भेद हैं- 

 

(क) भ्रातृक बहुपतिविवाही- 

  •  परिवार इसमें सभी पति आपस में भाई होते हैं। नीलगिरि की - टोडा व जौनसार की खस तथा मालाबार तट की नायर जनजाति में पाया जाता है।


(ख) अभ्रातृक बहुपति विवाह 

  • परिवार इसमें कोई आवश्यक नहीं कि सभी पति आपस में - भाई ही हों। टोडा व नायन में इस प्रकार का परिवार देखने को मिलता है।

 

(2) बहुपत्नी विवाही परिवार - इसमें एक पुरूष की अनेक पत्नियां रहती हैं नगा, गोंड, बैगा इत्यादि जनजातियों में इस प्रकार के परिवार पाए जाते हैं।

 

लिंटन ने संबंध के आधार पर परिवार के दो भेद किए हैं

 

(क) विवाह संबंधी परिवार 

  • जिनमें पति पत्नी के बीच के संबंध पाए जाते हैं। इनकी प्रकृति अस्थायी होती है।

 

(ख) रक्त संबंधी परिवार 

  • इस प्रकार के परिवारों में रक्त संबंधी व्यक्ति रहते हैं तथा विवाह व धन की अपेक्षा रक्त पर ज्यादा जोर दिया है। भारत में संयुक्त परिवार इसी श्रेणी में हैं। डब्ल्यू. एल. वार्नर ने परिवार को दो भागों में विभाजित किया है

 

(क) जन्ममूलक परिवार

  •  यह वह परिवार है जिसमें व्यक्ति पैदा होता है। बच्चों के लिए उसके माता-पिता का परिवार (जन्ममूलक) परिवार कहा जाएगा।

 

(ख) प्रजननमूलक परिवार

  • जिस परिवार को युवक-युवतियां विवाह कर स्थापित करते हैं, उसे प्रजननमूलक परिवार कहा जाता है।

 
जिमरमैन ने परिवार के तीन प्रकार बताते हैं-

 

(क) न्यासिता परिवार 

  • जब किसी परिवार के अंतर्गत व्यक्तिगत स्वार्थ की तुलना में समस्त में परिवार का स्वार्थ सर्वोपरि हो जाता है तो ऐसे परिवार को न्यासिता का परिवार कहा जाता है। भारतीय संयुक्त परिवार एवं विस्तृत परिवार न्यासिता परिवार के बहुत ही उपयुक्त उदाहरण हैं।

 

(ख) अतिलघु परिवार

  • जब परिवार में सदस्यों का अपना स्वार्थ सर्वोपरि हो जाता है तो उसे अतिलघु परिवार कहा जाता है। इसे व्यक्तिवादी परिवार भी कहा जाता है।

(ग) घरेलू परिवार 

  • यह उपरोक्त दोनों परिवार के बीच की स्थिति है। यहां व्यक्ति के स्वार्थ एवं परिवार के स्वार्थ में एक समझौता की स्थिति होती है।

 

बर्गेस एवं लॉक ने दो प्रकार के परिवार की चर्चा की

 

संस्थागत परिवार 

  • ऐसा परिवार जिसमें सदस्यों का व्यवहार लोकाचारों तथा जनरीतियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है तो इसे संस्थागत परिवार कहते हैं।

 

साहचर्य परिवार 

  • दांपत्य, स्नेह एवं एकात्मकता पर आधारित परिवार को साहचर्य परिवार कहते हैं। इस प्रकार के परिवारों की मुख्य विशेषता विवाहित युग्म का साहचर्यात्मक जीवन बिताने की मनोकामना है। विवाहित युग्म स्थायी वैवाहिक बंधनों की अपेक्षा परिवर्तनशील मैत्रीवत संबंधों में रहना अधिक पसंद करते हैं।

 

परिवार के प्रकार्य

 

जॉर्ज पीटर मुर्डाक, जिन्होंने 250 समाजों का अध्ययन किया तथा परिवार को एक सार्वभौमिक संस्था कहा ' मुर्डाक परिवार के चार कार्यों को महत्वपूर्ण मानते हैं

 

(i) आर्थिक कार्य 

(ii) प्रजनन संबंधी कार्य 

(iii) धार्मिक और पालन पोषण का कार्य 

(iv) शैक्षिक कार्य

 

ऑगबर्न तथा निमकॉफ ने परिवार के निम्नलिखित कार्यों का उल्लेख किया है

 

  • स्नेह एवं प्रेम संबंधी कार्य
  • आर्थिक कार्य 
  • मनोरंजन संबंधी कार्य 
  • पालन-पोषण अथवा रक्षा संबंधी कार्य 
  • धार्मिक कार्य 
  • शिक्षा संबंधी कार्य 


रीक परिवार के कार्यों को चार भागों में बांटते हैं

 

  • वंश वृद्धि 
  • समाजीकरण 
  • यौन आवश्यकताओं की पूर्ति और नियंत्रण 
  • आर्थिक कार्य 


सामान्य रूप से हम परिवार के कार्यों की विवेचना निम्नलिखित रूप में कर सकते हैं

 

परिवार के जैविकीय प्रकार्य

 

  • यौन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति 
  • संतानोपत्ति का कार्य 
  • प्रजाति का विकास

 
परिवार के शारीरिक सुरक्षा के कार्य

 

  • भोजन, निवास, एवं वस्त्र की व्यवस्था 
  • बच्चों का पालन-पोषण 
  • सदस्यों की शारीरिक रक्षा

  

परिवार के मनोवैज्ञानिक प्रकार्य

 

  • श्रम विभाजन 
  • आय का प्रबंध 
  • संपत्ति का प्रबंध 
  • उत्तराधिकार

 

परिवार के सामाजिक प्रकार्य

 

  • (क) परिवार सदस्यों को एक निश्चित स्थिति प्रदान करता है। 
  • (ख) परिवार सदस्यों का समाजीकरण करता है 
  • (ग) परिवार मानव सभ्यता को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाता है 
  • (घ) परिवार सदस्यों पर आवश्यक नियंत्रण रखता है 
  • (घ) परिवार सदस्यों को भविष्य के निर्णय लेने में सहायता देता है 


(5) परिवार के शैक्षिक कार्य 

(6) परिवार के सांस्कृतिक कार्य

(7)परिवारक के राजनीतिक कार्य 

(8) परिवार के धार्मिक कार्य 

(9)परिवार के मनोरंजनात्मक कार्य

 

परिवार के महत्वपूर्ण स्वरूप

 

उभयवाही परिवार 

  • जिस परिवार में संतान का माता-पिता दोनों के संबंधियों के साथ समान रूप से संबंध रहता है, उभयवाही परिवार कहलाता है। जैसे एक व्यक्ति अपने दादा-दादी और नाना-नानी से समान रूप से संबंधित होता है।

 

सम्मिश्रण परिवार

  • दो या अधिक मूल परिवारों से निर्मित एक ऐसा परिवार जिसका निवास एक ही स्थान पर एकल रूप में होता है, सम्मिश्रण परिवार कहलाता है। इसमें विस्तृत परिवार अथवा बहुपत्निक एवं बहुपतिक परिवार सम्मिलित होते हैं। यह यौगिक परिवार से मिलता-जुलता है।

 

यौगिक परिवार

  • बहुविवाह के आधार पर बने परिवार को यौगिक परिवार कहा गया है। इसमें दो या दो से अधिक केंद्रीय (मूल) परिवार किसी एक सामान्य निवास स्थान में साथ-साथ रहते हैं। यह परिवार साझा पति या पत्नी के द्वारा जुड़ा होता है। बहुधा बहुपत्नी विवाह की प्रणाली में जोड़ने वाला यह व्यक्ति पति होता है।

 

दांपतिक या दांपत्यमूलक परिवार

  • ऐसा परिवार जिसमें रक्त संबंधों की अपेक्षा पति-पत्नी के संबंधों को अधिक महत्व एवं प्राथमिकता दी जाती है, दांपत्यमूलक परिवार के नाम से जाना जाता है। विवाह के आधार पर निर्मित इस प्रकार के परिवार की रचना पति-पत्नी तथा उनकी अविवाहित आश्रित संतानों द्वारा होती है। यदि इनके साथ अन्य संबंधी (दंपत्ति के माता-पिता या भाई-बहन आदि) भी रहते हैं तो उनकी स्थिति महत्वहीन होती है। ऐसे परिवार में पति-पत्नी एवं बच्चों के संबंध प्रकार्यात्मक रूप में प्राथमिक होते हैं तथा अन्य व्यक्ति उनके मात्रा सहयोगी या गौण होते हैं। इसे लघु या जैविक परिवार भी कहते हैं।

 

द्विस्थानीय परिवार 

  • ऐसे परिवार जिसमें विवाहोपरांत पति-पत्नी साथ-साथ नहीं रहते हैं, अपितु वे अलग-अलग उन्हीं परिवारों में रहते हैं जिनमें उनका जन्म हुआ है। लक्षद्वीप व केरल के कुछ भागों में यह परिवार देखने को मिलता है। ऐसे परिवारों में पति केवल रात बिताने के लिए अपनी पत्नी के घर जाता है किंतु दिन में जीविकोपार्जन करने के लिए पुनः अपने जन्म के परिवार में लौट आता है।


उभयस्थानिक विस्तारित परिवार 

  • जब विवाह के पश्चात पुत्र अथवा पुत्री अपने मूल परिवार में ही रहते हैं, तब इस प्रकार के उभयस्थानिक परिवार का जन्म होता है। इस प्रकार के बंधन सूत्र पिता तथा पुत्र अथवा माँ और पुत्री के बीच होता है।

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