विवाह का अर्थ एवं परिभाषाएं,उद्देश्य एवं प्रकार | विवाह की उत्पत्ति के सिद्धांत| Marriage Definition Origin an Aim in Hindi

विवाह का अर्थ एवं परिभाषाएं,उद्देश्य एवं प्रकार  विवाह की उत्पत्ति के सिद्धांत

विवाह का अर्थ एवं परिभाषाएं,उद्देश्य एवं प्रकार | विवाह की उत्पत्ति के सिद्धांत| Marriage Definition Origin an Aim in Hindi


सामान्य परिचय 

  • इस आर्टिकल में में हम विवाह, परिवार एवं धर्म का विस्तार से अध्ययन करेंगे। विवाह से तात्पर्य है जब दो विषम लिंगियों को समाज द्वारा सामाजिक मान्यता प्राप्त हो जाती है बच्चे पैदा करने की उसे विवाह कहा जाता है। परिवार एवं विवाह समाज की वो सामाजिक संस्थाएं हैं जो समाज को पोषण एवं आगे बढ़ाती हैं। विवाह के अनेक रूप होते हैं जैसेः एक विवाह, बहुविवाह आदि। विवाह के रूप जैसे अंतर्विवाह यानि किसी व्यक्ति का अपनी जाति, प्रवर या समूह में ही विवाह होता है उसे अंतर्विवाह कहते हैं । इसके विपरीत बहिर्विवाही से तात्पर्य किसी व्यक्ति का अपने गोत्र या गांव के बाहर विवाह होता है उसे बहिर्विवाही कहते हैं। तथा सभी धर्मों में विवाह के अपने-अपने नियम हैं एवं प्रकार हैं। विवाह से ही परिवार की उत्पत्ति होती है। यह समाज एवं एक व्यक्ति के लिए प का कार्य करता है। विश्व के प्रत्येक समाज में परिवार रूपी संस्था पाई जाती है। वो किसी भी रूप में हो। परिवार की उत्पत्ति से संबंधित विभिन्न सिद्धांत हैं, जो परिवार के विकास को बताते हैं।


  • परिवार के विभिन्न प्रकार हैं जैसे-एकल परिवार, संयुक्त परिवार विस्तृत परिवार इत्यादि । परिवार का महत्वपूर्ण प्रकार्य समाज में व्यक्तियों का लालन-पालन एवं समाजीकरण करना है। इस इकाई में तीसरा तथ्य धर्म है धर्म की उत्पत्ति भय से हुई है अर्थात जिससे मानव डरता है। उसकी लगता है। धर्म के अपने सिद्धांत हैं। मार्क्स का सिद्धांत, मैक्स वेबर का सिद्धांत । 

 

विवाह का अर्थ एवं परिभाषाएं

 

  • विद्वानों की ऐसी मान्यता है कि व्यक्ति की यौन संबंधी आवश्यकता ने विवाह नामक संस्था को जन्म दिया तथा विवाह ने परिवार और नातेदारी को। इस प्रकार विवाह द्वारा यौन आवश्यकता की पूर्ति को सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है। 


  • विवाह एक सार्वभौमिक संस्था है जो प्रायः सभी समाजों में पाई जाती है, अंतर सिर्फ इसके स्वरूप को लेकर है। किसी-किसी समाज में विवाह यौन संतुष्टि के लिए नहीं किया जाता बल्कि संपत्ति के बंटवारे को रोकने के लिए भी किया जाता है। उदाहरण के लिए नगा जनजाति में पुत्र द्वारा सगी मां को छोड़कर पिता की अन्य विधवा पत्नियों से विवाह ।

 

लूसीमेयर के अनुसार विवाह की परिभाषा 

  •  'विवाह स्त्री पुरुष का ऐसा योग है जिससे जन्मा बच्चा माता-पिता की वैध संतान माना जाता है।'

 

बोगार्डस के अनुसार विवाह की परिभाषा 

  • विवाह स्त्री पुरुष का पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने की संस्था है । 

 

मजूमदार एवं मदन के अनुसार विवाह की परिभाषा 

  • 'विवाह संस्था में कानूनी या धार्मिक आयोजन के रूप में उन सामाजिक स्वीकृतियों का समावेश होता है जो विषम लिंगियों की यौन क्रिया और उससे संबंधित सामाजिक, आर्थिक संबंध में सम्मिलित होने का अधिकार प्रदान करती है।

 

इस प्रकार स्पष्ट है कि विवाह समाज द्वारा स्वीकृत एक सामाजिक संस्था है। यह दो विषम लिंगी व्यक्तियों को यौन संबंध स्थापित करने के अधिकार प्रदान करती है। विवाह संबंध बहुत ही व्यापक होते हैं। इनमें एक-दूसरे के प्रति भावात्मक लगाव, देखभाल, सहायता व एक-दूसरे को निरंतर एक दूसरे को सहारा देना सम्मिलित है। विवाह के पश्चात उत्पन्न संतान को ही वैध माना जाता है।

 

विवाह का उद्देश्य

 

मुर्डाक ने विश्व के 250 समाजों के अध्ययनोपरांत विवाह के तीन उद्देश्यों का उल्लेख किया

 

  • यौन संतुष्टि 
  • आर्थिक सहयोग 
  • संतानों का समाजीकरण एवं लालन-पालन

 

विवाह के प्रकार समाजशास्त्र  के अनुसार 

 

विभिन्न समाजों में पाए जाने वाले विवाह के स्वरूपों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है

 

1 एक विवाह

 

  • एक विवाह में एक समय में एक पुरूष एक ही स्त्री से विवाह करता है। वर्तमान में एक विवाह को विवाह का सर्वश्रेष्ठ रूप समझा जाता है। वेस्टमार्क ने एक विवाह को ही विवाह का आदि स्वरूप माना है।'

 

एक विवाह दो प्रकार का होता है:

 

  • क्रमिक एक विवाह:- इस प्रकार के विवाह में एक समय में एक से ही संबंध होता है परंतु वह किसी एक को छोड़कर या मृत्यु के बाद दूसरे से विवाह कर लेता है।

 

  • एकल विवाहः- एकल परिवार में केवल एक स्त्री का विवाह एक ही पुरूष से होता है। किसी एक की मृत्यु के बाद भी वह दूसरा विवाह नहीं करते।

 

2 बहु विवाह

 

जब एकाधिक पुरूष अथवा स्त्रिायां विवाह बंधन में बंधते हैं तो ऐसे  विवाह को बहु-विवाह कहते हैं। बहु-विवाह के प्रमुख चार रूप पाए जाते हैं।

 

  • (क ) बहुपति विवाह - एक स्त्री का कई पतियों के साथ विवाह बहुपति विवाह कहलाता है। बहुपति विवाह के भी दो रूप पाए जाते हैं।

 

  • (1) भ्रातृक बहुपति विवाह (Fraternal Polyandry)- इस प्रकार के विवाह में पति आपस में भाई होते हैं उदाहरणस्वरूप- खस, टोडा एवं कोटा जनजाति

 

  • (2) अभ्रातृक बहुपति विवाह (Non Fraternal Polyandry)- इस प्रकार विवाह में पति आपस में भाई नहीं होते हैं जैसे- नाया।

 

वेस्टमार्क के अनुसार लिंग अनुपात का असंतुलित होना ही बहुपति विवाह का कारण है। समनर कनिंघम एवं डॉ. सक्सेना बहुपति विवाह के लिए गरीबी को मुख्य कारण मानते हैं।

(

ख) बहुपत्नी विवाह (Polygamy)- 

ऐसा विवाह जिसमें एक पुरूष एकाधिक स्त्रियों से विवाह करता है। उदाहरणस्वरूप नगा, गोंड, बैगा, भील, टोडा, लुशाई, नंबूदिरी ब्राह्मण में ऐसा विवाह पाया जाता है। यह भी विभिन्न प्रकार के होते हैं।

 

(1) द्वि-पत्नी विवाह (Biogamy) -

  • स प्रकार के विवाह में एक पुरूष एक साथ दो स्त्रियों से विवाह करता है। कई बार पहली स्त्री के संतान न होने पर दूसरा विवाह कर लिया जाता है जैसे आरगेन व एस्किमो जनजातियों में यह प्रथा प्रचलित है।

 

(2) समूह विवाह ( Group Marriage ) 

  • समूह विवाह में पुरुषों का एक समूह स्त्रियों के एक समूह से विवाह करता है और समूह कपल में प्रत्येक पुरूष समूह की प्रत्येक स्त्री का पति होता है। विवाह की प्रारंभिक अवस्था में यह स्थिति रही होगी, ऐसी उद्विकासवादियों की धारणा है।

 

विवाह की उत्पत्ति के सिद्धांत

 

मैकाइवर का कहना है कि उत्पत्तियां सदैव अस्पष्ट होती हैं। इसके बारे में सिर्फ अनुमान या कल्पना ही की जा सकती है। विवाह की उत्पत्ति के संबंध में निम्न विचार प्रचलित हैं

 

विवाह की उत्पत्ति का मार्गन का उद्विकासीय सिद्धांत -

 

मार्गन का मत है कि विवाह संस्था का विकास हुआ है। समाज की प्रारंभिक अवस्था में विवाह नामक संस्था का अभाव था। प्रारंभ में समाज में यौन साम्यवाद की स्थिति थी। पुरूष को किसी भी स्त्री से यौन संबंध स्थापित करने की स्वतंत्रता थी। धीरे-धीरे मानव समाज के विकास के साथ ही विवाह संस्था का क्रमिक विकास हुआ है जिसकी मुख्य निम्न अवस्थाएं हैं।

 

  •  समूह विवाह 
  • सिंडेस्मियन विवाह 
  • व्यवस्थित विवाह

 

बैकोफन ने विवाह की उत्पत्ति की तीन अवस्थाओं का उल्लेख किया है

 

  • बहुपति विवाह 
  • बहुपत्नी विवाह 
  • एक विवाह

 

 विवाह की उत्पत्ति का वेस्टमार्क का सिद्धांत -

 

  • वेस्टमार्क का कहना है कि मनुष्य पशु से भिन्न होता है। मनुष्य में अपनत्व एवं ईर्ष्या की भावना पाई जाती है इसलिए जिसके साथ वह एक बार यौन संबंध स्थापित कर लेता था तो उसको अपना मानता था। इसलिए एक विवाह मानव समाज में विवाह का स्थायी रूप था और है। बहुपति या बहुपत्नी विवाह तो केवल वैवाहिक आदर्श का उल्लंघन मात्र है।

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