प्रतिनिधि लोकतंत्र के मौलिक सिद्धांत |Fundamental Principles of Representative Democracy

प्रतिनिधि लोकतंत्र के मौलिक सिद्धांत

प्रतिनिधि लोकतंत्र के मौलिक सिद्धांत |Fundamental Principles of Representative Democracy
 

प्रतिनिधि लोकतंत्र के मौलिक सिद्धांत


1 लोकप्रिय संप्रभुता

 

इसका अर्थ होता है कि सभी जन सत्ता का अंतिम स्रोत जनता होती है और सरकार वह कार्य करती है जो जनता चाहती है। चार प्रमुख शर्तों को लोकप्रिय संप्रभुता के अंतर्गत देखा जा सकता है। :

 

  • जनता की चाहत की सरकारी नीतियों में झलक होती है। लोग राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेते हैं। 
  • सूचना उपलब्ध होती है और वाद-विवाद किया जाता है। 
  • बहुमत का शासनअर्थात नीतियाँ बहुसंख्यक जनता की चाहत के आधार पर निर्धारित की जाती हैं ।

 

2 राजनीतिक समानता

 

  • इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को बिना जातिरंगमतलिंग या धर्म के भेदभाव के आधार पर जन मामलों का निर्वहन करने में समान अधिकार प्राप्त होता है। लेकिन राजनीतिक विचारकों का मत था कि आर्थिक संदर्भ में ज्यादा असमानता अंततः राजनीतिक असमानता को जन्म दे सकती है।
  • रॉबर्ट डॉल समस्या को इन शब्दों में व्यक्त करते हैं "यदि नागरिक आर्थिक संसाधनों में असमान हैं... तो वे राजनीतिक संसाधनों में भी असमान होंगेऔर राजनीतिक समानता को प्राप्त करना असंभव होगा"। 
  • आधुनिक समाज में खास सूचना के नियंत्रण में असमान प्रभाव तथा चुनाव प्रचार में आर्थिक सहायता का है। यह असमान प्रभाव पूर्ण लोकतंत्र की प्राप्ति में एक सख्त रोड़ा है। 
  • अरस्तु के अनुसार लोकतंत्र के चलन के लिए एक आदर्श समाज वह थाजिसमें कि एक वृहद मध्यवर्ग हो- बिना एक अभिमानी और धनी तथा एक असंतुष्ट निर्धन वर्ग के. 

 

3 राजनीतिक स्वतंत्रता

 

  • इस सिद्धांत के अनुसारलोकतंत्र में नागरिकों की बुनियादी स्वतंत्रताओं जैसे कि बोलने कीमेलजोल करने कीविचरण और विवेक के प्रयोग में सरकार के हस्तक्षेप से रक्षा की जाती है। 
  • यह कहा जाता है कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र को अलग नहीं किया जा सकता है। स्वशासन की अवधारणा सिर्फ मतदान के अधिकारसार्वजनिक दफ़्तर चलाने के अधिकार तक ही सीमित नहीं हैबल्कि अभिव्यक्ति का अधिकार किसी राजनीतिक दलहित समूह या सामाजिक आन्दोलन का सदस्य बनने के अधिकार भी इसके अंतर्गत आते हैं।

 

लोकतंत्र के विरुध मुख्य आलोचनाएँ

लोकतंत्र के संचालन में तथापियह उभर कर सामने आया है कि स्वतंत्रता इसका एक आवश्यक भाग होने की अपेक्षा इसके द्वारा खतरा महसूस कर सकती है। निम्न लोकतंत्र के विरुध मुख्य आलोचनाएँ है :

 

अ) बहुसंख्यक निरंकुशता स्वतंत्रता को चुनौती देती है: 

  • बहुसंख्यकता निरंकुशता का अर्थ है बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों की स्वतंत्रताओं और अधिकारों का दमन । यह माना जाता है कि अनियंत्रित बहुसंख्यक शासन अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए कोई स्थान नहीं छोड़ता है ।

 

  • फिर भीबहुसंख्यकों की निरंकुशता के आतंक को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा सकता है। राबर्ट डॉल बताते हैं कि इस अवधारणा के पक्ष में कोई प्रमाण नहीं मिलता है। कि जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों को राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया के वैकल्पिक अवस्थाओं के अंतर्गत अधिक सुरक्षा प्राप्त होती है।

 

ब) लोकतंत्र बुरे निर्णय लेता है : 

  • कुछ आलोचकों का मत है कि प्रतिनिधि लोकतंत्रस्वभावतः बहुसंख्यकता का प्रतीक होता हैऔर इसलिए पूर्ण नहीं होता है। उनका कहना है कि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि प्रतिनिधि लोकतंत्र सदैव ही अच्छे निर्णय लेगा है। बहुसंख्यक अल्पसंख्यक के ही समान अज्ञानीनिर्दय और लापरवाह हो सकता है और अविवेकी या अयोग्य नेताओं द्वारा भ्रमित किया जा सकता है।

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