ब्रिटिश शासन में भारतीय उद्योगों का पतन एवं आधुनिक उद्योगों का विकास | British Shasan Me Bharat Ke Udyog

ब्रिटिश शासन में भारतीय  उद्योगों का पतन  एवं आधुनिक उद्योगों का विकास

ब्रिटिश शासन में भारतीय  उद्योगों का पतन  एवं आधुनिक उद्योगों का विकास | British Shasan Me Bharat Ke Udyog



ब्रिटिश शासन में भारतीय  उद्योगों का पतन

 

हथकरघा बुनाई एवं कताई उद्योग सिल्क एवं ऊन उद्योगकच्चे वर्तनशीशाकागजधातुचमड़ा एवं रंगाई उद्योग ब्रिटिश नीतियों से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।


भारतीय हथकरघा की बुरी स्थिति के निम्न कारण थे-  

  • अंग्रेजों द्वारा एकतरफा मुक्त व्यापार की नीति अपनाकर विदेशी वस्तुओं को लाना। 
  • रेलवे के निर्माण से ब्रिटिश उत्पादकों को देश के सुदूर गांवों तक अपनी वस्तुओं को पहुंचाने में सुविधा हुई। 
  • इंस्ट इंडिया कंपनी एवं इसके सेवकों द्वारा बुनकरों को अपने लागत मूल्य से कम में अपनी वस्तुएं बेचने के लिए बाध्य करना। 
  • यूरोपीय बाजारों में भारतीय वस्तुओं पर अत्यधिक आयात कर एवं आयात पर कई अन्य प्रतिबंध लगाए जाने के कारण भारतीय उत्पादकों द्वारा यूरोपीय बाजार खो देना । 
  • शहरी हथकरघा के मुख्य खरीदार भारतीय शासकों का धीरे धीरे लुप्त हो जाना। 
  • कच्चे माल के निर्यात की ब्रिटिश नीति के कारण इनके दामों में वृद्धि। 

भारतीय उद्योगों के पतन के निम्न कारण थे

 

  • शहरों और गांवों की जनसंख्या में कमी हुई जो अपने उत्पादकों के लिए मशहूर थी। 
  • आधुनिक उद्योगों में कमी के कारण बेरोजगारी में वृद्धि हुई। 
  • पूरे देश में कृषि एवं घरेलू उद्योगों की एकता खत्म हो गई जिससे आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था नष्ट हो गई। 
  • कारीगरों के बेकार हो जाने से कृषकों की संख्या बढ़ी और प्रति व्यक्ति भूमि पर दबाव बढ़ा।

 

कृषि का स्थायित्व एवं पतन- 

  • कृषि पर दबाव बढ़ने एवं सामंतीकरण के कारण भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े हो गएजिसके कारण कृषि का विकास करना कठिन हो गया। कृषि के विकास के लिए साधनों और सहायता की कमी का मुख्य कारण कृषकों का अत्यंत गरीब होना था। सरकार तथा जमींदारों द्वारा निष्ठुर लगान वसूली और सरकार द्वारा लोक निर्माण एवं कृषि विकास के क्षेत्र में सौतेले व्यवहार के कारण कृषि की स्थिति में और गिरावट आई।

 

ब्रिटिश शासन में आधुनिक उद्योगों का विकास

 

मशीनों पर आधारित उद्योग- 

  • भारत में मशीन युग की शुरुआत 1850 ई० में सूती वस्त्र उद्योगजूट उद्योग एवं कोयला उत्खनन उद्योग के साथ हुई। अन्य यांत्रिकीय उद्योगों का विकास जैसे कि चावलआटा एवं लकड़ी मिलेंचमड़ाऊनी वस्त्रकागजचीनीलोहा एवं स्टील उद्योग इत्यादि उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य एवं बीसवीं शताब्दी के बीच शुरू हुआ। इन उद्योगों की स्थापना से भारत में आधुनिक उद्योगों का विकास हुआ। 

बागान उद्योग 

उन्नीसवीं शताब्दी में बागान उद्योग का विकास जैसे कि अफीमचाय और कॉफीब्रिटिश भारतीय आर्थिक इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। 

विदेशी पूंजी के भारत में आकर्षित होने के निम्न कारण थे- 

 

  • उच्च लाभ की आशा अत्यंत सस्ते श्रमिकों की उपलब्धता। 
  • सस्ते एवं तैयार कच्चे माल की सुविधा। 
  • भारत एवं इसके पड़ोसी देशों द्वारा कई वस्तुओं के लिए तैयार बाजार उपलब्ध कराना।
  • कई भारतीय वस्तुएं जैसे कि जूट एवं मैंगनीज की विश्व में मांग। 
  • उपनिवेशक सरकार एवं अधिकारियों द्वारा सभी प्रकार की मदद देने की इच्छा।


भारतीय आधुनिक उद्योगों पर भारतीय पूंजी के बजाय विदेशी पूंजी के प्रभावी होने के निम्न कारण थे - 

  • ब्रिटिश उद्यमियों द्वारा अन्य ब्रिटिश मशीन सप्लायरनौकापरिवहन विभाग कंपनियोंबैंकोंसरकारी अधिकारियों तथा राजनैतिक नेताओं के साथ अपने अच्छे संबंध होने का उपयोग करना । 
  • भारतीय पूंजी के बदले में विदेशी पूंजी को प्रोत्साहित करने की सरकारी नीति । 
  • सरकार की रेलवे नीति के द्वारा भारतीय उद्यमियों के प्रति भेदभावजिसके अंतर्गत विदेशी वस्तुओं का आयात एवं वितरण आसान एवं सस्ता था परंतु भारतीय वस्तुओं का वितरण अधिक कठिन एवं महंगा था। 


भारतीयों को विदेशियों द्वारा संचालित उद्योगों से निम्न लाभ एवं हानियां 

  • भारतीयों को केवल अप्रशिक्षित नौकरियों की प्राप्ति का लाभ था। लेकिन इससे प्राप्त लाभ उससे प्राप्त हानि से अधिक थाजिसमें भारतीय श्रमिकों को बहुत कम पैसे पर लंबे समय तक काम करना पड़ता था। 
  • इसके लगभग सभी तकनीकी कर्मचारी विदेशी थे और उनके द्वारा प्राप्त वेतन का बड़ा भाग विदेश चला जाता था।
  • ये कम्पनियां लगभग अपनी सभी मशीनें एवं उपकरण विदेशों से  खरीदती थीं। 


भारतीय औद्योगिक विकास की निम्न विशेषताएं थीं

 

  • भारतीय उद्योगों का कम विकास करना और इसके द्वारा देशी हथकरघा के उत्पादन एवं रोजगार दोनों की तुलना में हुई क्षति को पूरा करने में असमर्थता। भारतीय औद्योगिक विकास की इस स्थिति का मुख्य कारण सरकार द्वारा इसकी प्रारम्भिक अवस्था में आर्थिक मदद एवं सुरक्षा न प्रदान करनाकृत्रिम रूप से भारतीय उद्योगों का विकास कम करना एवं रोकना था। 
  • भारी एवं पूंजीगत वस्तुओं के उद्योगों की अनुपस्थिति जिसके बिना उद्योगों का तीव्र एवं स्वतंत्र विकास नहीं हो सकता था। 
  • यह क्षेत्रीय असंतुलन से भी प्रभावित था। भारतीय उद्योग देश के कुछ क्षेत्रों एवं शहरों में ही केंद्रित था। इस प्रकार आर्थिक विकास ने न सिर्फ क्षेत्रीय विभिन्नता को जन्म दिया बल्कि राष्ट्रीय अखंडता को भी प्रभावित किया। 
  • नए सामाजिक वर्गों का विकास तथा जन्म- इस सीमित औद्योगिक विकास के कारण देश में नए सामाजिक वर्गों की उत्पत्ति हुई। ये औद्योगिक पूंजीपति वर्ग एवं मजदूर वर्ग थे। इनकी संख्या हालांकि भारतीय जनसंख्या में अत्यंत कम थीकिंतु ये एक नई तकनीकआर्थिक संगठन की नई प्रणालीनए सामाजिक संबंधों तथा नए विचारों का प्रतिनिधित्व करते थे।

 

यातायात एवं संचार के साधनों का विकास - 

ब्रिटिश भारत एवं संचार के विकास हेतु निम्नलिखित कदम उठाए गए

 

  • नदियों में वाप्पचलित जहाजों का उपयोग। 
  • सड़कों का निर्माण तथा सुधार 
  • रेल प्रणाली का प्रयोग। 
  • आधुनिक डाक एवं टेलीग्राफ प्रणाली का प्रयोग।

विषय सूची :- 

ब्रिटिश राज(शासन) का भारत पर का आर्थिक प्रभाव

ब्रिटिश शासन के समय  भूमि राजस्व बंदोबस्त

भारतीय रेल के विकास के चरण

ब्रिटिश शासन में कृषि का वाणिज्यीकरण

भारतीय  उद्योगों का पतन  एवं आधुनिक उद्योगों का विकास

भारत में सांस्कृतिक टकराव तथा सामाजिक परिवर्तन

भारत में पश्चिमी शिक्षा और आधुनिक विचार का प्रयोग

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