ब्रिटिश शासन के समय भूमि राजस्व बंदोबस्त | British Kaal Me Rajsav Prabandhan

ब्रिटिश शासन के समय  भूमि राजस्व बंदोबस्त

ब्रिटिश शासन के समय  भूमि राजस्व बंदोबस्त | British Kaal Me Rajsav Prabandhan


 

जमींदारी या स्थायी बंदोबस्त

  • लॉर्ड कार्नवालिस का एक महत्वपूर्ण योगदान बंगाल में 1793 का भूमि राजस्व का स्थायी बंदोबस्त था। 1765 में कंपनी को बंगाल का दीवानी अधिकार मिला और उसके बाद 25 वर्षों तक राजस्व का बंदोबस्त प्रतिवर्ष हुआ करता था किन्तु उसी समय से स्थायी बंदोबस्त की बात उठाई जाती रही थी।

 

  • 10 जनवरी, 1790 को बंगाल के राज्यपाल ने दस वर्ष पर बंदोबस्त करने की बात उठाई। इसके तीन वर्ष उपरांत कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने इसकी अनुमति दी और 22 मार्च, 1793 को इसे स्थायी बंदोबस्त बनाया गया। यह रेगुलेशन नाम से जाना जाता है क्योंकि 1 मई को कलकत्ता सुप्रीम काउंसिल ने कई रेगुलेशन पारित किए थे और ये सभी कार्नवालिस संहिताके नाम से जाने जाते हैं।

 

  • इस नयी संहिता के मुताबिकजमींदारों को भू-स्वामी माना गया । भू राजस्व को निश्चित किया गया। सरकार को बढ़ा हुआ राजस्व नहीं दिया गया और न ही जमींदारों को राजस्व भुगतान में कोई रियायत दी गई।

 

  • कार्नवालिस का मानना था कि इन उपायों से जमींदार अधिक से अधिक प्रयास उपज बढ़ाने तथा बंजर भूमि को कृषि योग्य बनाने में करेगा और सरकार को एक निश्चित आमदनी नियत समय पर बिना समय बर्बाद किए मिलती रहेगी। यह जमींदारी वंशानुगत बनाई गई किंतु इसमें कृषकों के हितों की बात ताक पर रखकर उन्हें बड़े जमींदारों की मर्जी पर छोड़ दिया गया।

 

  • गवर्नर जनरल के विचारों का उनके ही परामर्शदाताओंविशेषकर जॉन शोर तथा चार्ल्स ग्रांट ने विरोध किया। जॉन शोर चाहते थे कि पहले एक पूर्ण सर्वेक्षण होना चाहिए और उसके पश्चात् बंदोबस्त होना चाहिएचार्ल्स ग्रांट का मानना था कि जमीन पर जमींदारों के स्वामित्व को मानने से पहले पूर्व के रिकार्डों का अध्ययन जरूरी है। जॉन शोर जो कार्नवालिस के पश्चात् गवर्नर जनरल बनाउसे ही स्थायी बंदोबस्त के परिणामों को देखना पड़ा जिसका विरोध उसने बड़े हो खुले स्वर में किया था।

 

  • स्थायी बंदोबस्त का सबसे बुरा असर सामाजिक अराजकता के रूप में परिणत हुआ। कृषकों के भू स्वामित्व का नाशपुराने तथा नये घरानों में तनावअनुपस्थितता जमींदारीजमीन बेचने की बाध्यतायथोचित न्यायालय का अभावपुलिस व्यवस्था का अभावस्थानीय लोगों का बड़े पदों से दूर रहनाव्यापार से वाणिज्य का पतन और उद्योग धंधों पर बुरा असर- सभी मिलकर बहुत ही बुरी सामाजिक स्थिति को जन्म देने में सहायक बने। ऐसे हालात में जमींदार पूर्णतः विफल रहे। अपने आप में सुधार लाने की बजाय जमींदार ज्यादा उत्पादकहीन तथा शोषक बने ।

 

  • यह स्थायी बंदोबस्त एक कठिन अभ्यास था जिसके पीछे बहुत से कारक काम कर रहे थे और उनमें कार्नवालिस का सतही विचार एक प्रमुख था जो यथार्थ काफी दूर था । कार्नवालिस ने न सिर्फ इस व्यवस्था को वैधानिक मान्यता दीबल्कि राजस्व की वसूली को कठोर तथा कठिन बना दिया। उसके विचार ब्रिटेन के शासक वर्ग के विचार से मिलते थे जो तात्कालिक लाभ की बात सोचते थे और बंगाल की सामाजिक वास्तविकता से कोसों दूर थे। 


  • बंदोबस्त पूर्णत: व्यावसायिक तथा आर्थिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर किया गया था। किंतु इसके कारण भविष्य में राजस्व की वसूली में अत्यधिक कमी आई। प्रशासनिक स्तर पर इसे सफल बनाने के लिए एक मज़बूत तथा विस्तृत संस्था की ज़रूरत थी। लेकिन इस बंदोबस्त ने इन सब चीज़ों पर ध्यान नहीं दिया जिसके कारण भारत के एक सामाजिक वर्ग में दुविधा और संदेह पैदा होता रहा।

 

रैयतवाड़ी बंदोबस्त

 

  • कार्नवालिस का स्थायी बंदोबस्त बंगाल में लागू करते ही यह प्रश्न उठने लगा कि कंपनी द्वारा अधिकृत क्षेत्रों में भी इसे लागू किया जाए। तीसरे मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान से बारामहल तथा डिन्डीगुल प्राप्त करनेउत्तरी सरकार का 1794 में जागीर के रूप में समापन आदि ने इन प्रश्नों को पुनः उठाया। 
  • 1799 में तंज़ौर तथा कोयम्बटूर तथा 1801 में मालाबार और आरकट के नवाब के राज्य का मद्रास प्रैज़ीडेन्सी में विलय हुआ। इस क्षेत्र में भूराजस्व के बंदोबस्त के लिए अलेक्जैन्डर रीड तथा लावलेन पलेस की नियुक्ति हुई। थॉमस मुनरो रीड का एक सहायक था। सन् 1800 में मुनरो का तबादला कनारा से हटाकर हैदराबाद के निज़ाम द्वारा छोड़े गए दक्कन के जिलों में किया गया ।

 

  • जबकि ये सारे पदाधिकारी भूराजस्व की समस्या का समाधान ढूंढ़ने में व्यस्त थेउसी समय गवर्नल जनरल लॉर्ड वेलेजली ने यह आदेश दिया कि बंगाल की स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था को मद्रास प्रेजीडेन्सी में लागू किया जाए। इस आदेश की अवमानना की गई क्योंकि उस समय तक मुनरो और उसके सहायक अनुभव प्राप्त कर चुके थे तथा वे बंगाल के स्थायी बंदोबस्त से हुईपरेशानियों से परिचित थे। इन्होंने अपने स्थानीय विचार को रखना चाहा। 
  • तत्कालीन मद्रास का गवर्नर विलियम बैंटिंक इस सुझाव के प्रति आकर्षित हुआ और उसने ज़मींदारी बंदोबस्त को कुछ समय तक रोकने के लिए कहा। 1808 में मुनरो द्वारा प्रस्तावित ग्राम पंचायत आधारित रैयतवारी बंदोबस्त को स्वीकृति दे दी गई। रैयतवाड़ी व्यवस्था के प्रबल समर्थक मुनरो थे। 1908 09 के करीब रैयतवाड़ी व्यवस्था को अधिकांश जिलों में लागू किया गया। जबकि हडसन गांव के साथ बंदोबस्त करने के खिलाफ थे।

 

  • 1818 में बड़े भूस्वामियों का दमनन्यायिक अदालतों की स्थापना तथा राजस्व व्यवस्था में सुधार लाया गया था लेकिन इससे काफी हानि भी उठानी पड़ी। 1820 में जैसे ही मुनरो गवर्नर बना उसने रैयतवाड़ी व्यवस्था को पूरे मद्रास प्रैज़ीडेन्सी में लागू किया। उसने हर मौके को तलाश कर जहां तक हो सका पुरानी भूराजस्व की व्यवस्था को हटाकर रैयतवाड़ी बंदोबस्त को लागू किया ।

 

  • मुनरो की इस व्यवस्था का मुख्य लक्षण यह था कि सरकार द्वारा ज़मीन पर लगान अब हमेशा के लिए तय हो चुका था और कृषकों को यह आज़ादी थी कि जमीन पर लगाया गया लगान ज्यादा लगने पर वे इच्छानुसार ज़मीन को ले सकें या छोड़ सकें। मुनरो ने राजस्व निर्धारण को करीब-करीब आधे से घटाकर पैदावार के एक-तिहाई के बराबर निश्चित कियाकुछ स्थितियों में पैदावार का एक-तिहाई संपूर्ण आर्थिक ( किराये के बराबर था और इस प्रकार यह व्यवस्था भी शोषण पर आधारित थी। अन्य दो कारकों ने भी स्थिति को गंभीर बनाए रखा। पहला यहकि किसानों को पैदावार होने या न होने पर एक निश्चित पैसा देना ही पड़ता था। दूसरेलगान या स्थानीय निकायों की सहायता से निर्धारित नहीं किया गया था जैसा कि उत्तर-पश्चिम री प्रांतों में हुआ थाबल्कि लगान का निर्धारण कम वेतन भोगीअधिकारियों द्वारा कराया गया था जो न्यायसंगत नहीं था। मुनरो को इसका श्रेय जाता है कि उसने अपने सात साल के प्रशासन में इस बंदोबस्त से उठने वाली सभी बुराइयों को दूर किया।


  • बंबई क्षेत्र में मराठों द्वारा चलाई जा रही राजस्व वसूली के पद्धति को अपनाया गया । ज़िलों को देसाइयों के हवाले किया गया तथा गांव को पटेलों के हवाले कर या उसके एजेंटजिन्हें मामलतदार कहा जाता था, उनको अपने प्रयास से देसाइयों से अधिक से अधिक राजस्व वसूली करने को कहा जाता था। 


  • 1819 के बाद रैयतवाड़ी व्यवस्था को इन क्षेत्रों में भी लागू किया गया और तल्ती या ग्रामीण लेखापाल की नियुक्ति बंबई सरकार द्वारा सीधे की गई। इन लोगों ने देसाई तथा पटेल के स्थान लिए। मद्रास तथा बंबई प्रेज़ीडेन्सी मे रैयतवाड़ी व्यवस्था पूर्णत: लागू थी जबकि बरारअसमबर्मा तथा कुर्ग में स्थानीय परिस्थिति को देखते हुए कुछ संशोधन कर इस व्यवस्था को लागू किया गया।

 

महलवाड़ी बंदोबस्त 

  • 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में यह प्रश्न उठने लगा कि विजित प्रांतों तथा समर्पित प्रांतों में किस तरह का भूराजस्व बंदोबस्त लागू किया जाए। समर्पित प्रांतों में अवध के नवाब तथा फैजाबाद के नवाब का नाम उल्लेखनीय है और विजित प्रांतों में मराठों के ऊपर लॉड लेक की 1803 की विजय संदर्भित है जो बाद में उत्तर-पश्चिम प्रांत के नाम से जाना गया।

 

  • बोर्ड ऑफ कमिश्नर्स के कहने पर हाल्ट मैकेंज़ी ने 1819 में एक प्रारूप तैयार किया जिसके अनुसार हर गांव का सर्वेक्षण और निरीक्षण के पश्चात बंदोबस्त करना था। इस काम को पूरा करने के लिए अधिकारों के दस्तावेज़ को तैयार किया गया जिसमें गांव के समुदायों का प्रतिनिधत्व करने वाले गांव के प्रधान 'लम्बरदारकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। 


  • 1821 में सभी पक्षों पर विचार करने के पश्चात बंगाल व्यवस्था को छोड़ दिया गया और मैकेंजी का सुझाव नई बंदोबस्त प्रणाली का आधार बना जो महलवाड़ी बंदोबस्त के नाम से जाना गया। 


  • संक्षेप मेंउसका विचार था कि भूराजस्व को एक - संतुलित दर पर लगाया जाए। जमीन पर सामूहिक अधिकार वाले पूरे गांव समुदाय के ज़मींदारों या कृषक मालिकों के साथ बंदोबस्त व्यवस्था की जाए। ज़मींदार या ताल्लुकदार जो ज़मीन पर अपने अधिकार को समझते थेउनको सरकार की ओर से मुआवजा दिया गया और इसे बाद में गांव में नियुक्त नए जमींदारों से वसूल किया गया। यह बंदोबस्त हर एक गांव तथा हर एक महल के साथ करना था इसीलिए इसे महलवाड़ी बंदोबस्त कहते हैं। इस बंदोबस्त का आधार सम्पूर्ण उत्पादन से कृषि खर्च तथा मज़दूरी घटाने के बाद बचे उत्पादन के आधार पर होना निश्चित हुआ।

 

  • 1822 के रेगुलेशन VII के अनुसार यह बंदोबस्त असफल घोषित हुआ क्योंकि अधिकारों के दस्तावेज़ बनाने का काम पूरा नहीं हो सका, प्रत्येक क्षेत्र में होने वाली फसल का अनुमान लगाना काफी कठिन साबित हुआसरकार द्वारा फसल के उत्पादन का 80 प्रतिशत राजस्व के रूप में लेना असंभव प्रतीत हुआ। 
  • विलियम बेंटिंक का 1833 का IX रेगुलेशन बाद में बंदोबस्त का आधार बना। इसके मुताबिक सरकार ने कुल उत्पादन का दो तिहाई राजस्व के रूप में लिया। इस बंदोबस्त के लागू होने में पूरे तीस साल लगे। उत्तर पश्चिम प्रांत के लैफ्टीनेंट गवर्नर आर० एम० बर्ड ने इस बंदोबस्त को लागू किया और इसीलिए उनको उत्तरी भारत के भूबंदोबस्त का पिता कहा जाता है। कालांतर में यह व्यवस्था मध्य प्रांतपंजाब इत्यादि क्षेत्रों में लागू हुई।

विषय सूची :- 

ब्रिटिश राज(शासन) का भारत पर का आर्थिक प्रभाव

ब्रिटिश शासन के समय  भूमि राजस्व बंदोबस्त

भारतीय रेल के विकास के चरण

ब्रिटिश शासन में कृषि का वाणिज्यीकरण

भारतीय  उद्योगों का पतन  एवं आधुनिक उद्योगों का विकास

भारत में सांस्कृतिक टकराव तथा सामाजिक परिवर्तन

भारत में पश्चिमी शिक्षा और आधुनिक विचार का प्रयोग

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