भोजन के कार्य | Food Role in Human Life in Hindi

 
भोजन के कार्य | Food Role in Human Life in Hindi

भोजन के कार्य Work of Food

 

जीवित रहने के लिए मनुष्य का भोजन ग्रहण करना अनिवार्य है। भोजन के अभाव में मनुष्य का शरीर अत्यन्त कमजोर एवं रोग ग्रस्त हो जाएगा। 


शरीर में भोजन के कई कार्य होते हैं जिन्हें निम्न रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है:

 

1. शारीरिक कार्य 

2. सामाजिक कार्य 

3. मनौवैज्ञानिक कार्य

 

 

1. भोजन के शारीरिक कार्य

 

भोजन मनुष्य की 'भूखको शान्त करता है: 

  • मनुष्य बिना भोजन कोई भी कार्य करने में समर्थ नहीं है। एक जटिल शारीरिक प्रक्रिया के उपरान्त व्यक्ति को भूख का अनुभव होता है। हमारा पाचन तन्त्र मस्तिष्क तक यह संदेश भेजता है कि हमें शारीरिक कार्यों हेतु आहार लेने की आवश्यकता है। मस्तिष्क इस संदेश की पहचान भूख के रूप में कर लेता है। तदोपरान्त हमारे शरीर में भूख का तीव्र अनुभव होता है। ऐसे समय में यदि व्यक्ति को आहार प्राप्त हो तो उसकी भूख शान्त हो जाती है एवं वह संतोष का अनुभव करता है। आहार न मिलने की स्थिति में व्यक्ति में अन्य लक्षण जैसे सिर दर्दकमजोरीजी मिचलाना आदि अनुभव होने लगते हैं।

 

ऊर्जा प्रदान करना: 

  • विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के संचालन के लिए एवं क्रियाशील जीवन जीने के लिए मनुष्य को ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा मनुष्य को भोजन में निहित पोषक तत्वों जैसे कार्बोहाइड्रेटवसा एवं प्रोटीन से प्राप्त होती है। यह पौष्टिक तत्व शरीर में ऑक्सीकृत होकर शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं। यह ऊर्जा शरीर की ऐच्छिक एवं अनैच्छिक क्रियाओं के सफल संचालन एवं सम्पादन हेतु आवश्यक है। चलनाउठनादौड़ना आदि मांसपेशीय गतिविधियाँ ऐच्छिक क्रियाओं के अन्तर्गत आती है। अनैच्छिक क्रियाएँ जो शरीर में स्वतः ही सम्पादित होती हैं जैसे हृदय का धड़कनाश्वसन तन्त्रपाचन तन्त्र आदि आन्तरिक अंगों का सुचारु रूप से कार्य करना।

 

  • एक ग्राम कार्बोहाइड्रेट से 4 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। चूँकि हमारे आहार में सर्वाधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट तत्व उपस्थित होता हैअतः हमारे शरीर को सर्वाधिक ऊर्जा कार्बोहाइड्रेट द्वारा प्राप्त होती है। साथ ही यह सुपाच्य भी होता है। एक ग्राम वसा से हमें 9 किलो कैलोरी ऊर्जा तथा 1 ग्राम प्रोटीन से 4 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।

 

शरीर का निर्माण एवं ऊतकों की टूट-फूट की मरम्मत: 

  • भोजन का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य है शरीर का निर्माण करना। शरीर की आधारभूत न्यूनतम इकाई कोशिका के निर्माण हेतु प्रोटीनजल एवं अन्य पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता होती है। शरीर निर्माण का कार्य जन्म से पूर्व ही प्रारम्भ हो जाता है एवं तब तक चलता रहता है जब तक व्यक्ति का पूर्ण शारीरिक विकास नहीं हो जाता तथा व्यक्ति सम्पूर्ण लम्बाई एवं भार प्राप्त नहीं कर लेता। शरीर में कई बार ऊतकों की टूट-फूट होती रहती है। इनके पुनः निर्माण हेतु भी पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता होती है।


  • वयस्क व्यक्ति के शरीर में पौष्टिक तत्वों की माँग केवल शारीरिक वृद्धि हेतु नहीं अपितु शारीरिक क्रियाओं को सुचारु बनाए रखने हेतु एवं ऊतकों की टूट-फूट की मरम्मत हेतु भी होती है। शैशवावस्थाबाल्यावस्था एवं किशोरावस्था में पौष्टिक तत्व शरीर निर्माण का कार्य सम्पादित करते हैं। शरीर निर्माण करने वाले प्रमुख पौष्टिक तत्व हैंप्रोटीनखनिज लवण एवं जल प्रत्येक कोशिका के निर्माण के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है। कोशिकाओं में होने वाली कई रासायनिक प्रक्रियाओं में भी प्रोटीन का विशेष स्थान है। शरीर निर्माण की दृष्टि से कैल्शियमफास्फोरसमैग्नीशियमलौह लवण एवं आयोडीन जैसे खनिज लवण महत्वपूर्ण हैं।

 

शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करना: 

  • भोजन में उपस्थित पोषक तत्व शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करते हैं। विटामिनखनिज लवण एवं प्रोटीन वे पोषक तत्व हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करते हैं। विटामिन एवं खनिज लवण सुरक्षात्मक पोषक तत्व के रूप में जाने जाते हैं। किसी विशेष विटामिन अथवा खनिज लवण की कमी से शरीर में रोग उत्पन्न हो सकते हैं जैसे विटामिन 'की कमी के कारण रतौंधीलौह लवण की कमी से एनीमिया रोग आदि। यदि आहार द्वारा शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटामिन एवं खनिज लवण प्राप्त हों तो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है ।

 

शरीर की विभिन्न महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को नियंत्रित करना: 

  • पोषक तत्व शरीर की विभिन्न महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं जैसे रक्त का थक्का जमनाअम्ल- क्षार संतुलन को नियंत्रित करनाजल एवं इलैक्ट्रोलाइट सन्तुलन बनाए रखना आदि। इसके अतिरिक्त पोषक तत्व शरीर के तापमान को स्थिर बनाए रखने में एवं व्यर्थ पदार्थों के उत्सर्जन के लिए भी आवश्यक हैं।

 

2. भोजन के सामाजिक कार्य

 

  • मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है एवं भोजन सामाजिकता का माध्यम है। हमारे समाज में अधिकांश विशेष अवसरों में रीतियों एवं परम्पराओं के अनुसार भोजन बनाया एवं परोसा जाता है। धार्मिक पर्वों जैसे होलीदीवालीईद आदि में लोग भाँति-भाँति के पकवान बनाते हैं एवं इनके माध्यम से अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। भोजन व्यक्तियों को साथ लाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी है। जैसे पार्टीपिकनिक आदि आयोजनों में व्यक्ति अपने परिवार एवं मित्रों के साथ भोजन ग्रहण करता है । 


  • साथ में भोजन ग्रहण करने से अधिकांश वातावरण आनन्दमय एवं प्रफुल्लित हो जाता है। अतिथियों के स्वागत में हम विशेष भोजन परोसते हैं। जब हम किसी रोगी से मिलने जाते हैं तो साथ में फल आदि ले जाते हैं। मित्रों एवं रिश्तेदारों के घर आवागमन पर हम उनकी पसन्द एवं रुचि का भोजन परोसते हैं। हमारे मित्र कई बार हमें नये खाद्य पदार्थ चखने एवं अपने आहार में सम्मिलित करने का सुझाव देते हैं। विशेष भोज एवं व्रत आदि धार्मिक आस्थाएं तथा भोजन आपस में घनिष्ट रूप से सम्बन्धित हैं।


  • भोजन के माध्यम से लोग अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा दर्शाते हैं तथा विवाहजन्मदिन आदि शुभ अवसरों पर खास भोजन परोसते हैं। स्पष्ट रूप से भोजन कई सामाजिक कार्यों के सम्पादन में सहायता करता है।

 

3. भोजन के मनोवैज्ञानिक कार्य

 

  • भोजन भावनाओं को व्यक्त करने का भी माध्यम है। किसी को भोजन ग्रहण करने के लिए आमंत्रण देना अतिथि के प्रति सम्मान एवं मित्रता प्रदर्शित करता है। परिचित स्वाद व्यक्ति को संतोष प्रदान करते हैं। गर्म पेय पदार्थ कुछ क्षणों के लिए व्यक्ति की थकान दूर कर देते हैं। 


  • माता अपने बच्चों की पसन्द का भोजन परोस कर उनके प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शित करती है। गृहणी को स्वयं के द्वारा बनाए गए भोजन की प्रशंसा सुनकर खुशी मिलती है। यह सभी भावनायें भोजन के माध्यम से व्यक्त की जाती है। व्यक्ति अपनी खुशी भी भोजन के माध्यम से व्यक्त करते हैं।

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