नेहरू के साम्प्रदायिक राजनीतिक विचार | पंडित जवाहरलाल नेहरू के साम्प्रदायिकता सम्बन्धी विचार | Nehru Ke Rajnitik Vichar

नेहरू के के राजनीतिक विचार | पंडित जवाहरलाल नेहरू के साम्प्रदायिकता सम्बन्धी विचार | Nehru Ke Rajnitik Vichar


पंडित जवाहरलाल नेहरू के साम्प्रदायिकता सम्बन्धी विचार

 

  • नेहरू जी ने भारत की तत्कालीन राजनीतिक स्थिति को ध्यान में रखकर विचारों का प्रतिपादन किया था इसी कड़ी में उन्होंने सबसे पहले धर्म और राजनीति के संबंध को निर्धारित करने का एक प्रयास किया। उन्होंने संकीर्ण धार्मिकता का विरोध करते हुए साम्प्रदायिकता को राष्ट्रीय एकताअखंडता के लिए घातकहिंसा व अलगांव को बढ़ाने वाली कहा। इसलिए उन्होंने धर्म की नैतिक मान्यताओं को स्वीकार करते हुए एक धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना पर बल दिया।

 

  • अंग्रेजों की फुट डालों और राज करों की नीति के कारण भारत के दो प्रमुख धर्मों हिन्दू और मुस्लिम के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए थे इसके अलावा मुस्लिम लीग की गतिविधियों ने साम्प्रदायिकता की आग को बढ़ाने में घी का काम किया। साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली एवं साम्प्रदायिकता के आधार पर आरक्षण से दो समुदायों के बीच व्यापक दूरियां बढ़ गई थी। पंडित नेहरू इस स्थिति से बहुत अधिक विचलित हुए और दोनो धर्मों के बीच साम्प्रदायिकता सौहार्द बढ़ाने पर बल दिया।

 

जवाहरलाल नेहरू के अनुसार साम्प्रदायिकता का अर्थ एवं प्रकृति

 Q.  नेहरू के साम्प्रदायिकता को किस प्रकार समझने का प्रयास किया ?


साम्प्रदायिकता का अर्थ एवं प्रकृति

  • धार्मिक कट्टरता एवं धर्म के नाम पर स्वार्थ सिद्धी का प्रयास करना साम्प्रदायिकता है। यह घृणाहिंसावैमनस्य और संकीर्णता को बढ़ावा देती है। साम्प्रदायिकता एवं प्रतिक्रियावादी एवं समाज विरोधी भावना है। यह उन्हीं प्रकार के तत्वों को अपनी ओर आकर्षित करती हैजो धर्म की आड़ में राष्ट्रवाद की भावना और सामाजिक प्रगति के मार्ग में अवरोध पैदा करती है।

 

  • प्राचीन काल से ही भारत में अनेक धर्मों का अस्तित्व रहा है और यहां धार्मिक सहिष्णुता की भावना हमेशा विद्यमान रही है। अशोक महान का यहा तक कहना था कि पड़ौसी के धर्म का उसी प्रकार सम्मान करो जिस प्रकार आप अपने धर्म का सम्मान करते है। धर्म के नाम पर भारत में कभी युद्ध नहीं हुए। यह तो योरोपीय समाज की देन है। 


  • भारत विश्व के चार महत्वपूर्ण धर्म हिन्दूबौद्धजैनसिक्ख धर्म की कर्मभूमि रही है। ईसाई और मुसलमान भी यहां सदियों से रहते आए है। सभी के बीच आपसी सहयोग अपने आप में एक मिसाल हैं। लेकिन चंद स्वार्थी तत्वों के कारण हमारी धार्मिक सौहार्द की प्रवृत्ति को काफी धक्का लग रहा है और लगता साम्प्रदायिकता हमारी राष्ट्रीय एकता व अखंडता के लिए अभिशाप सिद्ध हो रही हैजिसे रोकने के उतरोत्तर प्रयासों के बावजूद यह भावना और अधिक विकराल रूप धारण करती जा रही है। साम्प्रदायिकता रूपी नाग ने हमारे सांस्कृतिक मूल्यों भाई-चारे पारस्परिक सौहार्द को डस लिया है। इसके चलते दोनों सम्प्रदायों की स्थिति समुद्र के उन दो तटों के समान है जो आपस में कभी मिल हीं नहीं सकते है।

 

  • साम्प्रदायिकता के आधार पर भारत के विभाजन ने धर्म के नाम पर हजारों बेगुनाह लोगों का खून बहाया। वो नजारा मानव की बर्बरता को सिद्ध करने वाला था। पण्डित नेहरू ने भारतीय संविधान और सरकार के द्वारा बनाये जाने वाली नीतियों में साम्प्रदायिक सौहार्द बनाये रखने की कोशिश कीताकि स्वतंत्र भारत में साम्प्रदायिकता के जहर को नष्ट किया जा सके । 


  • लेकिन दुर्भाग्य हमारा है और हमारे समाज का जो साम्प्रदायिकता की आग की लपटें आज तक जल रहा हैइसे रोकना होगा और सामाजिक सौहार्द को प्रोत्साहित कर पण्डित नेहरू के सपनों को साकार करना होगा अन्यथा हमारा समाज नरकमय बनकर मृत्यु के अंतिम पड़ाव पर पहुंच जाएगा।

  

नेहरू ने साम्प्रदायिकता के निवारण के कौन से उपाय बताये हैं?

नेहरू के अनुसार साम्प्रदायिकता निवारण के उपाय:

हिन्दू + मुस्लिम + सिक्ख + ईसाई + जैन (राष्ट्रीय एकताखण्डता एवं संप्रभुता सुरक्षित)

 

  • आपसी भाईचारे की भावना को प्रोत्साहन।  
  • समस्त धार्मिक असमानताओं का अन्त । 
  • प्रगति के लिए सहायक साधनों के रूप में।  
  • प्राचीन भारतीय संस्कृति की पहचान को बनाये रखने में मददगार। 

 

साम्प्रदायिकता की विकराल समस्या से समाज को मुक्ति दिलाने के लिए नेहरू ने अथक प्रयास किए ताकि दोनो समुदायों के बीच सौहार्द का नवीन युग संचालित हो सके। इसके लिए उन्होनें निम्नलिखित सुझाव दिए- 

 

1 संविधान सभा

  • साम्प्रदायिक समस्या का निवारण व्यापक मताधिकार के आधार पर निर्वाचित संविधान सभा द्वारा होना चाहिए। भारत के लोग ही एक मात्र अपने भाग्य के निर्णायक हैं।

 

2 साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का अंत

  • अंग्रेजों ने साम्प्रदायिकता को बढ़ाने के लिए 1909 के अधिनियम में साम्प्रदायिकता निर्वाचन प्रणाली मुसलमानों के लिए शुरू की थी। जिनका कांग्रेस हमेशा से ही विरोध कर रही थी। पंडित नेहरू इसके पूर्ण उन्मूलन के पक्षधर थे और संविधान में इस प्रकार के प्रावधान नहीं होने का पक्ष लिया।

 

3 अल्संख्यकों में भय की भावना दूर करना

  • नेहरू जी का मानना था कि साम्प्रदायिकता का निवारण शक्ति के बल पर नहीं हो सकता। इसके लिए मुसलमानों में जो भय की भावना व्यापत है उसे दूर करना होगा। उन्हें आत्मनिर्भर बनाना होगा तथा उन तत्वों को कुचलना होगाजो इस भावना को बढ़ा रहे है।

 

4 गरीबी उन्मूलन

  • नेहरू जी के अनुसार साम्प्रदायिकता का मूल कारण गरीबी है।बेरोजगारीभूखमरीशोषणआर्थिक विषमता आदि इसके लिए उत्तरदायी है। भारत के अल्पसंख्यक इन पीड़ाओं से ग्रस्त है। अतः उन्हें समाज की समान धारा में शामिल करने के लिए इस दिशा में ठोस कदम उठायें।

 

5 समानता पर बल

  • यदि साम्प्रदायिकता का स्थायी समाधान करना है तो धर्म सहित अन्य किसी आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए और सभी को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराये जायें। इसी को दृष्टिगत रखते हुए संविधान के अनु, 14-18 के बीच समानता का मूल अधिकार शामिल किया गया।

 

6 धार्मिक संगठनों के विरूद्ध कठोर कार्यवाही

  • साम्प्रदायिक बढ़ने का प्रमुख कारण यह है कि कथित तौर पर अपने आपको धर्म का संरक्षक कहने वाले संगठन इसी आड़ में सामप्रदायिकता को बढ़ावा देते है और लोगों की संकुचित मानसिकता को प्रोत्साहन देते है। अतः इस प्रकार के संगठनों के विरूद्ध कठोर कदम उठाना चाहिए।

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