लोकसाहित्य का इतिहास लेखन |लोक साहित्य का वर्गीकरण बुन्देलखंड | Lok Sahitya Bundelkhand

लोकसाहित्य का इतिहास लेखन ,लोक साहित्य का वर्गीकरण बुन्देलखंड

लोकसाहित्य का इतिहास लेखन |लोक साहित्य का वर्गीकरण बुन्देलखंड | Lok Sahitya Bundelkhand


 

लोकसाहित्य क्या है 

  • लोकसाहित्य मौखिक परम्परा का साहित्य है, अतएव उसके रचना-काल का निर्धारण कठिन है। दूसरे, उसके रचनाकार का पता नहीं चलता। यदि किसी लोकगीत में कवि की छाप (नाम) मिल है, तो उसकी खोजकर रचना-काल जानना भी कठिन है। इतना अवश्य है कि जिन लोकगीतों का लिखित रूप हस्तलिखित पांडुलिपियों में मिल जाता है, उसके रचनाकार का नाम ज्ञात होने से और जिस ग्रन्थ से लिए गए हैं, उसका रचना काल मिलने से उन लोकगीतों के समय का पता चल जाता है। उदाहरण के लिए, लोकमुख में जीवित 'गेंदलीला' कविवर प्रेमदास गहोई की रचना है, जिसका रचना काल 1797 है।

 

ऐतिहासिक लोकगाथाओं और कथागीतों का रचना-काल

  • ऐतिहासिक लोकगाथाओं और कथागीतों का रचना-काल उस ऐतिहासिक घटना अथवा उन पात्रों के उस विशिष्ट कार्य के बाद ही माना जाएगा। 
  • हरदौल बुन्देला के विष-पान की ऐतिहासिक घटना संवत् 1685 या 1688 मानी गई है, तो हरदौल के कथागीत उसके बाद के ही हैं। 
  • इसी तरह अमानसिंह या प्रानवली कौ राछरौ अमानसिंह के राज्यकाल (संवत् 1809-15) में अथवा बाद में लोकप्रचलित हुआ। 
  • जो लोकगाथाएँ केवल 'मुगल' का उल्लेख करती हैं, उनका प्रचलन उत्तर मध्ययुग का मानना उचित है। रानी दुर्गावती के जस लोकगीत अकबर-काल के ही हैं । 
  • आसफ खाँ ने 1553 ई में पहला आक्रमण किया था, फिर दुबारा युद्ध गढ़ा से 12 मील की दूरी पर मंडला तरफ की एक पहाड़ी के पास हुआ, जहाँ वह पराजित हुआ, लेकिन उसकी सेना आने पर दुर्गावती पराजित हुई और उसने कटार मारकर आत्महत्या कर ली थी। दूसरे शब्दों में दुर्गावती के वलिदान होने पर और अकबर की मत्यु (1605 ई.) के पूर्व ही इन गीतों की रचना हुई थी।
 

लोकगाथाओं और कथागीतों का काल निर्धारण 

  • कभी-कभी लोकसंस्कृति के वस्त्र, आभूषण, ॐ गार प्रसाधन आदि भी मोटे तौर पर - काल निर्धारित कर देते हैं। 
  • लोकभाषा का शब्द भी अपनी आयु बता देता है। 
  • लोकवाद्यों के प्रचलन के इतिहास से भी किसी लोकवाद्य का जन्म-काल ज्ञात हो जाता है। 
  • हथियार के प्रचलन कई सूत्र भी रचना का काल निर्धारण कर देते हैं। 
  • आज के अल्हैतों के पाठों में बड़गैन बन्दूक से लेकर आधुनिक रिवाल्वर तक प्रयुक्त हुए हैं। जबकि 'आल्हा' लोकगाथाओं के प्रचलन तक बारूद का आविष्कार नहीं हुआ था। 
  • चार्य हजारीप्रसाद द्विवदी ने कथानकरूढ़ियों के प्रचलन को काल-निर्धारण का साधन माना है।

 

  • राम, कृष्ण, शिव, हनुमान आदि देवों को लेकर रचे गए लोकगीत मध्ययुग के भक्ति आन्दोलन से प्रभावित रहे हैं, लेकिन देवीगीत आदिकाल के हैं, क्योंकि उनकी रचना प्राकृत - के गाहा गीतों की लय पर आधारित है। 


  • लोकगीत की रचना में प्रायोजित स्वरों से भी काल निर्धारण संभव है। बुन्देलखंड के दिवारी, सखयाऊ फाग जैसे लोकगीत अपभ्रंश के दूहा या दोहा पर आध होने के कारण आदिकालीन सिद्ध होते हैं।

लोकसाहित्य की परख 

  • लोकसाहित्य की परख तभी परिपक्व कही जा सकती है, जब उसका मूल्यांकन तत्कालीन परिप्रेक्ष्य में हो। उदाहरण के लिए, एक लोकगीत की पंक्ति है- 'महुआ लगत लुचई सें प्यारो, क्या यह पंक्ति हर काल के लिए उपयुक्त है ? गाँव के लिए महुआ हर आदमी को उपलब्ध है, पर लुई के लिए वह तरसता रहता है। इस कारण सामान्यतः महुआ लुचई से अधिक प्रिय हो ही नहीं सकता। वस्तुतः यह पंक्ति अकाल के समय की है, जब अनाज किसी भी कीमत में नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में महुआ सबसे प्यारा लगेगा ही। आशय यह है कि लोकसाहित्य भी साहित्य है, इसलिए उसके परखाव में इतिहास और परिस्थिति-बोध जरूरी है।

 

  • इतिहास लेखन का दूसरा उपयोग यह है कि साहित्य और लोकसाहित्य एक ही काल और - परिस्थिति में किस दिशा की ओर अग्रसर हो रहे हैं। अगर साहित्य की शास्त्रीयता रूढ़िबद्ध होकर जकड़ने लगती है, तो लोकसाहित्य उसे मुक्ति दिलवाकर पुनः ताजा करता है। तीसरे, लोकसाहित्य का इतिहास लोकमन का इतिहास प्रतिबिम्बित करता है, लोकभाव का विकास दर्शाता है और लोकदर्शन की गतिशीलता एवं लोक विवेक की क्रमिक प्रगति स्पष्ट करने की क्षमता रखता है। साथ-ही-साथ लोक के यथार्थ का चित्रांकन करते हुए लोकमूल्यों की रैखिक गति प्रदर्शित करता है।

 

लोक साहित्य का वर्गीकरण-बुन्देलखंड

 

बुन्देलखंड जनपद जितना विशाल है, उतना ही समृद्ध भंडार है लोकिसाहित्य का । इसी प्रकार यहाँ के लोक की विविधता के कारण लोकसाहित्य भी विविधता के रंगों से रंजित है। मोटे तौर पर लोकसाहित्य की सम्पदा का वर्गीकरण निम्नानुसार किया जा सकता है

 

विधागत वर्गीकरण

 

  • लोककाव्य, जिसमें लोकगीत और लोकगाथाएँ, दोनों सम्मिलित हैं।
  • लोककथा
  • लोकनाट्य 
  • लोकोक्ति, जिसमें कहावतें और पहेलियाँ सम्मिलित हैं।

 

लोक साहित्य का विषयगत वर्गीकरण

 

  • पारिवारिक-सामाजिक लोकसाहित्य 
  • ऐतिहासिक राजनीतिक लोकसाहित्य 
  • औद्योगिक-आर्थिक लोकसाहित्य
  • लोकोत्सवी धार्मिक लोकसाहित्य 
  • लोकरंजक लोकसाहित्य 
  • रीतिरिवाज- संस्कृति परक लोकसाहित्य 
  • लोकोक्ति नीति -परक लोकसाहित्य 

 

लोकसाहित्य की परम्परा और इतिहास की खोज में विधागत वर्गीकरण ही सुविधाजनक है। 

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