भोपाल के दर्शनीय स्थल | Tourist Point in Bhopal
भोपाल के दर्शनीय स्थल Tourist attraction in Bhopal
- मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को छोटे-बड़े कई ताल होने के कारण झीलों की नगरी भी कहा जाता है।
- यह शहर ऐतिहासिकता और आधुनिक नगर नियोजन का नायाब नमूना है माना जाता है कि 11 वीं सदी में इस नगर को राजा भोज ने बताया था बाद में इसकी नींव एक प्रतापी अफगान सैनिक दोस्त मोहम्मद ने 1707- 1740 में डाली थी।
- भोपाल के इतिहास में कई बहादुर बेगम के शासन भी शामिल जिन्होंने 1819 से 1926 तक हुकूमत की पूरी इस्लामिक दुनिया दुनिया में केवल भोपाल ही ऐसा राज्य था जहां बेगम ने राज्य कियाl
भोपाल ताल Bhopal Tal
- बड़े तालाब के निर्माण का श्रेय धार के राजा भोजपुरिया जाता है यह तालाब मालवा के होशंग शाह ने द्वारा 1405-34 में नष्ट किया गया था.
- बड़ा तालाब या भोज ताल या भोज ताल भोपाल की जीवन रेखा है और मनोरंजन का साधन थी क्योंकि इससे ना केवल शहर केवल शहर के बड़े हिस्से को पेयजल की आपूर्ति होती है वरन 85 के गांव में खेतों की सिंचाई भी होती है .
- एक तरफ श्यामला पहाड़ी है जिस पर मुख्यमंत्री निवास सहित अनेक शासकीय भवन आवासी कॉलोनी या या और होटल स्थित है. आंचलिक विज्ञान केंद्र राष्ट्रीय मानव संग्रहालय जनजाति संग्रहालय राज्य संग्रहालय और वनविहार जैसे दर्शनीय स्थल भी इस पहाड़ी पर है.
- बड़े तालाब के एक छोटे हिस्से में मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम द्वारा बोट क्लब संचालित किया जाता है. जहां वह चलित अथवा पद चालित नाव में पैर में पैर नाव में पैर अथवा पद चालित नाव में पैर में पैर नाव में पैर का मजा लिया जा सकता है .
- पर्यटन निगम द्वारा बड़े तालाब में क्रूज़ (छोटा जहाज) भी चलाया जाता है।
- बड़े तालाब के दूसरे किनारे पर बनी वीआईपी रोड पर असंख्य लोग घूमने आते हैं रेत घाट से लेकर लालघाटी चौराहे तक साडे 5 किलोमीटर लंबी है .सड़क सन 1992 में बनवाई गई थी इसे भोपाल का मरीन ड्राइव भी कहा जाता है . यह सड़क कोह ए फिजा पहाड़ी की तलहटी में है .
- सन 2011 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा राजा भोज का शताब्दी वर्ष मनाया गया तब बड़े तालाब में एक बड़े बुर्ज पर राजा भोज की प्रतिमा स्थापित की गई।
ममोला बाई और तकिया टापू
- ममोला बाई एक राजपूत महिला थी जिसे एक लड़ाई में जीत के बाद भोपाल के दूसरे नवाब मोहब्बत खान को सौंप दिया गया था.
- ममोला बाई ने इस्लाम अपना लिया था लेकिन नाम नहीं बदला उसकी कोई संतान नहीं थी किंतु दो सौतेले बेटों ने उसे सगे बेटों की तरह पाला।
- ममोला बाई ने तकरीबन 50 साल तक भोपाल का शासन संभाला ममोला काफी उदार महिला थी और गरीबों का बहुत ख्याल रखा करती थी इसलिए उन्हें लोग ममोला मां या ममाँ जी साहिबा के नाम से पुकारते थे। कहां जाता है कि ममोला बाई जब बीमार पड़ी तो चिराग अली शाह नामक एक संत ने उनकी उम्र 10 साल बढ़ाने के लिए लगातार प्रार्थना की सातवें दिन चिराग अली की मृत्यु की मृत्यु हो गई और ममोला भाई स्वस्थ स्वस्थ हो गई।
- चिराग अली को बड़े तालाब में स्थित टापू में दफनाया गया यहाँ पे आज तकिया टापू के नाम से जाना जाता है.
- ममोला बाई की मृत्यु 80 साल की उम्र में 1795 में हुई।
- ममोला बाई की कब्र इस्लाम नगर में उसके पति यार मोहम्मद की कब्र के आसपास है लेकिन इसमें थे किसी पर भी कोई पत्थर यह कोई प्रमाण ममोला बाई के नाम का नहीं है।
सैर सपाटा
- मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम द्वारा सेवनिया गोंड गांव के के प्रेमपुरा घाट पर विकसितकनिक स्थल है. यह मनोरंजन स्थल 24.56 एकड़ में फैला हुआ है। सस्पेंशन ब्रिज ,ग्लास व्यूप्वाइंट संगीतमय फव्वारा, फूड जोन ,वाटर सफारी यहां के प्रमुख आकर्षण हैं।
भदभदा बांध
- इस बांध का निर्माण 1965 में बड़े तालाब की जल ग्रहण क्षमता क्षमता को बढ़ाने के लिए किया गया था. इस पर निर्मित 12 फाटक कलियासोत नदी के जल प्रभाव को नियंत्रित करते हैं ।
- भारी वर्षा की स्थिति में यह फाटक खुलने पर मोटी धारा और तेज आवाज निकलती उसको देखने के लिए सैलानियों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
शिमला कोठी एवं सईद मंजिल
- श्यामला हिल्स स्थित कोठी का निर्माण सन 1913- 14 में जनरल ओबेदुल्ला खान खान ने अपने निवास के रूप में करवाया था ।
- लगभग 12 एकड़ परिसर में स्थित या भवन ब्रिटिश स्थापत्य पर आधारित तत्कालीन आधुनिक भवनों में अत्यंत सुंदर भवन है।
- यह कोठी दो भागों में है दो भागों में है पूर्व की ओर का भाग शिमला कोठी और और पश्चिम का भाग सईद मंजिल कहलाता है।
गांधी भवन
- भोपाल की श्यामला पहाड़ी पर गांधी भवन की स्थापना सन 1969 में एक सार्वजनिक न्यास गठित कर दी गई थी ।
- इस भवन में महात्मा गांधी की प्रदेश यात्रा के चित्रों की एक प्रदर्शनी है ।
- साथ ही यहां गांधी साहित्य से समृद्ध पुस्तकालय भी है ।
- इसके खुले आंगन में गांधी जी समाधि का प्रतिरूप स्थापित किया गया है।
कमलापति महल
- भारत में मुगल साम्राज्य के पतन के बाद चकला गिन्नौर में 750 गांव सम्मिलित थे।
- उस समय यहाँ गोंड राजा निजाम शाह का राज्य था जिसकी सात रानियां थी इन्हीं में से एक कृपाराम गोंड की पुत्री कमलापति भी थी । जिन्होंने भोपाल में बड़े तालाब के किनारे यह महल बनवाया था।
- 18 वीं शताब्दी के प्रारंभ की शताब्दी के प्रारंभ की तत्कालीन स्थापत्य का यह अद्भुत उदाहरण है एवं नगर का प्रथम स्मारक भी है यह दो मंजिला महल लाखोरी ईटों से निर्मित है जो कि वर्ष 1989 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है।
मोती मस्जिद
- पुराने भोपाल में मोती मस्जिद की बुनियाद करीब 150 साल पहले रखी गई थी इसका निर्माण कुदसिया बेगम की बेटी सिकंदर जहां बेगम ने 1860 में करवाया था।
- उनके घरेलू नाम मोती बीवी के कारण इस मस्जिद का नाम मोती मस्जिद रखा गया इस के पूर्वी छोर पर स्थित लाल को मोतिया के पार पूर्वी छोर पर स्थित लाल को मोतिया के पार लाल को मोतिया के पार के पार के नाम से जाना जाता है।
जामा मस्जिद
- पुराने भोपाल के चौक बाजार में स्थित इस मस्जिद का निर्माण सन 1837 में तत्कालीन शासक नवाब कुदसिया बेगम द्वारा करवाया गया था।
- यह मस्जिद इस्लामिक स्थापत्य एवं वास्तुकला की बेहतरीन नमूना है ।
- एक ऊंचे चबूतरे पर बनी जामा मस्जिद में दो ऊंची मीनार हैं और 3 बड़े सफेद गुम्बद है जो बहुत दूर से भी दिखाई पड़ते हैं, मस्जिद के मुख्य भाग में संगमरमर लगाया गया है।
सदर मंजिल
- 1898 में इस इमारत का निर्माण तत्कालीन नवाब शाहजहां बेगम ने करवाया था।
- वर्ष 1921 में में नवाब शाहजहां बेगम की मृत्यु के बाद उनकी एकमात्र पुत्री नवाब सुल्तान जहां ने सदर मंजिल को रियासत के दरबार हाल के रूप में परिवर्तित कर दिया था।
- इस मंजिल में भारत के विभिन्न राज्यों की जनजाति संस्कृति की झलक देखी जा सकती है ।
- सदर मंजिल की पच्चीकारी दिल्ली के लाल किला स्थित दीवाने खास के सामान है।
- 1953 में डॉ शंकर दयाल शर्मा के मुख्यमंत्री काल में इस दरबार में भोपाल शहर की नगरपालिका स्थापित की गई गई थी।
- हाल ही में भोपाल नगर पालिक निगम का दफ्तर यहां कहीं और स्थानांतरित कर दिया गया कर दिया गया है ताकि इस ऐतिहासिक इमारत को पुराने स्वरूप में वापस लाया जा सके।
शौकत महल
- शहर के बीचों बीच बसे हुए चौक के प्रवेश स्थान पर स्थित शौकत महल वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है।
- पश्चिमी स्थापत्य शैली के मुहावरे में बनी इमारत में अनेक वास्तु शैलियों का मेल है।
- भारतीय शिल्प कला और मुगल शैली को मिलाकर मिलाकर इसे अनूठा रुप दिया है।
गौहर महल
- यह महल बड़े तालाब के किनारे लगभग 4.65 एकड़ के क्षेत्र में वीआईपी रोड पर स्थित है ।
- इस तीन मंजिला महल का निर्माण भोपाल राज्य की तत्कालीन शासिका कुदसिया बेगम उर्फ गोहर बीवी के द्वारा करवाया गया था।
- महल का स्थापत्य हिंदू एवं मुगल शैली का है इसमें दीवाने आम दीवाने खास नामक दो भाग हैं।
- यह भवन अब हथकरघा और हस्तशिल्प प्रदर्शनियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
फतेहगढ़ किला
- दोस्त मोहम्मद खान ने अपनी पत्नी फतेह बीवी के नाम पर इस किले का नाम फतेहगढ़ का किला रखा।
- उसने रियासत के झंडे को भी फतेह निशान नाम दिया।
- इस किले की नींव का पहला पत्थर 30 अगस्त 1726 को रायसेन के काजी मोहम्मद मोअज्जम द्वारा रखा गया।
- दोस्त मोहम्मद खान और उसके परिवार ने धीरे-धीरे फतेहगढ़ को अपना मुख्य निवास स्थान बना लिया बना लिया । बाद में फतेहगढ़ रियासत में भोपाल गांव को भी मिला लिया गया।
मस्जिद ढाई सीढ़ी
- फतेहगढ़ के बुर्ज के ऊपरी हिस्से में एक छोटी सी मस्जिद है इस मस्जिद में इबादत स्थल तक जाने के लिए ढाई सीढ़िया ही हैं इसलिए इसे ढाई सीढ़ी की मस्जिद कहा जाता है ।
- कहा जाता है कि फतेहगढ़ किले पर तैनात रक्षा कर्मियों को नमाज अदा करने की सहूलियत देने के लिए यह मस्जिद बनाई गई थी।
दोस्त मोहम्मद खान एवं फतेह बीबी का मकबरा
- भोपाल राज्य के संस्थापक सरदार दोस्त मोहम्मद खान और उनकी पत्नी बीवी का मकबरा गांधी मेडिकल कॉलेज परिसर में स्थित है।
- इसका निर्माण उनके पुत्र यार मोहम्मद खान ने 1742 ई. में कराया था।
- ऊंची वर्गाकार जगत पर निर्मित यह मकबरा 12 फीट ऊंची चार दीवार से घिरा है जिसके चारों कोनों पर मीनारें एवं तीन और प्रवेश द्वार हैं।
- आठ तंबू पर आधारित यह मकबरा चारों ओर खुला है, मुख्य मकबरे के चारों ओर संगमरमर की जालीदार दीवार है।
- मकबरे के पात्र में संगमरमर की एक मोटी जालीदार वर्दी में दोस्त मोहम्मद खान की पत्नी फ़तेह बीवी की कब्र विद्यमान है।
ताजमहल
- भोपाल के शाहजहानाबाद स्थित ताजमहल नामक नामक भवन का निर्माण शाहजहां बेगम द्वारा सन 18 71 में अपने निवास हेतु राजभवन के रूप में प्रारंभ किया गया था जो वर्ष1884 में पूर्ण हुआ।
- 6 मंजिले इस भवन का आकर्षक प्रवेश द्वार द्वार लदा ओदार स्वरूप का है। इसमें 120 कमरे तथा 8 विशाल कक्ष थे जिनका रंग संयोजन एक दूसरे से बिल्कुल दूसरे से बिल्कुल अलग था और इनकी साज सज्जा तथा फर्नीचर भी थे
- भवन के अंदर लाल किले व व शालीमार बाग में बनी इमारत की नकल की गई थी।
- भवन निर्माण में विभिन्न प्रकार की मेहराबों स्तंभों एवं गुंबदों का प्रयोग हुआ है।
- इसका निर्माण पूरा होने पर इसमें 3 वर्षों तक का समय लगा था यह भवन परवर्ती मध्यकालीन समन्वय वादी स्थापत्य का अच्छा उदाहरण है ।
6 दरवाजे
- दोस्त मोहम्मद खान ने रियासत की सुरक्षा के लिए चौहद्दी याने चारों तरफ दीवारें भी भी दीवारें भी भी बनवाई थी शत्रु कभी भी इस किले को जीत नहीं पाए.
- फतेहगढ़ किले में शहर से बाहर आने जाने के लिए 6 दरवाजे बनाए गए थे। इनके नाम थे गिन्नौरी जो गिन्नौरगढ़ की ओर की ओर ओर जाता था बुधवारा, इतवारा, जुमेराती पीर और इमामी इमामी।
- गिन्नौरी और इमामी दरवाजे को छोड़ बाकी के नाम दिनों पर रखा गया था लेकिन इमामी दरवाजे का नाम इसलिए रखा गया था क्योंकि यहां से मोहर्रम के ताजिए निकलते थे।
बड़ा बाग के मकबरे एवं के मकबरे एवं बावड़ी
- बड़ा बाग का निर्माण का निर्माण 30.23 एकड़ में नवाब कुदसिया बेगम ने अपने ससुर वजीर मोहम्मद खान की याद में कराया था।
- उन दिनों यह वजीरबाग कहलाता था वजीर मोहम्मद भोपाल राज्य के छठवें शासक थे इनकी दो पत्नियां थी जिनकी कब्र वर्गाकार ऊंची चौकी पर निर्मित है।
- कुदसिया बेगम के पति नवाब नजर मोहम्मद खान का देहांत होने पर उन्हें इसी बाग में दफन कर उनका मकबरा बनवाया गया था तब इसका नाम नजर बगिया पड़ गया ।
- कुदसिया बेगम के निधन पर उन्हें उनके पति के मकबरे के निकट दफनाया गया था ।
- यह शहर का सबसे बड़ा बाग था इस कारण इसे बड़ा बाग नाम दिया गया। इसी बाग में लाल पत्थरों से निर्मित तीन मंजिला सुंदर बावड़ी बावड़ी है।
नवाब सिद्दीकी हसन का मकबरा
- नवाब सिद्दीक हसन खान का जन्म 14 अक्टूबर 1832 को बरेली उत्तर प्रदेश में हुआ था वह अरबी फारसी और उर्दू के विद्वान थे ।
- सन 1859 में बेगम शाहजहां ने उन्हें भोपाल रियासत का इतिहास विद नियुक्त किया और सन 1871 मैं अपनी ताजपोशी के बाद उन्हें सूबे का मुख्य सचिव बनाया आगे चलकर दोनों ने विवाह कर लिया कर लिया।
- 26 मई 1890 को नवाब का इंतकाल हो गया बेगम शाहजहां ने उनकी याद में संगमरमर मकबरा बनवाया जो भोपाल टॉकीज के पास स्थित है।
ताजुल मस्जिद
- नवाब शाहजहां बेगम ने 1877 ईस्वी में अपने राजमहल के निकट दुनिया की बड़ी मस्जिद बनाने का इरादा किया तब उनके खजाने स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी।
- इस मस्जिद का वास्तुविद अल्लारखा था।
- यह मस्जिद ऊंची जगत पर बनी बनी है इसका विशाल प्रांगण इसके भव्यता को दर्शाता है इसका मुख्य द्वार 74 फीट ऊंचा है इसके अतिरिक्त उत्तरी भाग में जनाना हिस्सा है जिसमें पर्दा नशीन महिलाएं नमाज अदा कर सकती हैं.
- रामगढ़ के पश्चिम में इबादत भवन है जिसमें स्तंभों पर आधारित 9 प्रवेश द्वार 27 खोखले घुमाने वाले स्तम्भ है, यह मस्जिद विश्व की तीसरी बड़ी मस्जिद के रूप तीसरी बड़ी मस्जिद के रूप बड़ी मस्जिद के रूप में शुमार होती है।
हमीदिया लाइब्रेरी लोकायुक्त भवन
- वर्ष 1911 में ईदगाह पहाड़ी के नीचे तत्कालीन नवाब सुल्तान जहां बेगम ने अपने तीसरे पुत्र नवाब हमीदुल्लाह खान के नाम पर इस लाइब्रेरी लाइब्रेरी की स्थापना की थी ।
- सन 1912 में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने इसका उद्घाटन किया था बाद के वर्षों में इस भवन में भोपाल स्टेट काउंसिल की बैठक होने लगी थी स
- 1952 में भोपाल राज्य विधान सभा का गठन हुआ और हमीदिया लाइब्रेरी का यह यह भवन भोपाल राज्य की विधानसभा के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।
- 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश के गठन के बाद इस भवन में राज्य का सामान्य प्रशासन विभाग स्थापित किया गया था जिसके कारण इतने आज भी GAD भवन कहा जाता है ।
- वर्तमान में यहां लोकायुक्त कार्यालय स्थापित है इसी परिसर में विशेष पुलिस स्थापना का भी कार्यालय है।
भोपाल गेट शहीद स्मारक
- यह अष्टकोणय मेहराब दार दरवाजा पत्थरों से निर्मित है इसमें ऊपर एक कक्ष है जहां पहुंचने के लिए सीढ़ियां हैं।
- यह दरवाजा किले की उस दीवार एक भाग है जो पहले ईदगाह को जाती थी एवं बेनजीर महल तक पहुंचती थी ।
- वर्ष 1997 में इसे शहीद स्मारक रूप में घोषित किया गया जिसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से संबंधित छोटा संग्रह प्रदर्शित किया गया है।
बेनजीर महल
- बेगम शाहजहां ने अपने हम नाम मुगल बादशाह शाहजहां की तरह ही भव्य निर्माण करवाने में रुचि रखते थे।
- सन 1875 में उन्होंने अपनी ग्रीष्मकालीन आरामगाह के लिए बेनजीर भवन का महल का निर्माण कराया
- अंग्रेजी के H आकार की इस इमारत की खासियत यह थी कि इससे लगकर तीन तालाब सीढ़ीदार शैली में बनवाए गए थे यानी जब सबसे ऊपर वाला मोतिया तालाब भर जाता तो उसका पानी इसके बीच में स्थित नूर महल तालाब में चला जाए और फिर नीचे मुंशी हुसैन का तालाब में ।
- मोतिया तालाब भी इस तरह बनाया गया था कि महल के आसपास की पहाड़ी से बहकर आने वाला पानी उसमें जमा हो जाता यह तीनों तालाब गर्मियों में महल को ठंडा बनाए रखते थे तापमान नियंत्रण प्रणाली का यह एक यह एक का यह एक यह एक एक बेहतरीन उदाहरण है।
- सन 1909 में भोपाल यात्रा के दौरान लॉर्ड मिंटो और उनकी पत्नी के साथ बेनजीर महल में ही ठहरे थे।
गोलघर
- नवाब शाहजहां बेगम ने यह अनोखी इमारत गुप्त दान करवाने के मकसद से बनवाई थी लेकिन उनके शासनकाल में जब ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की ताजपोशी का समय आया तो उन्हें एक अनूठा तोहफा देने के लिए बेगम को एक तरकीब सूझी उन्होंने गोलघर के मुख्य कक्ष में सोने चांदी के बाल के तार तार के बाल के तार तार और मुलायम कपड़े की कतरन में डलवा कर उसमें बहुत सारे पक्षी छुड़ा बहुत सारे पक्षी छुड़ा दिए कुछ समय बाद जब जब वह कमरा खोला गया तो उन्हें तारों और कपड़ों से बने खूबसूरत घोसले मिले मिले जिसमें से एक महारानी को भेंट किया गया।
- इस गोलाकार भवन में 32 दरवाजे हैं ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां हैं।
- मूल रूप से इसमें पश्चिमी शैली का बगीचा था जिसे जन्नत बाग के नाम से जाना जाता था.
- सन 2013 में गोलघर को राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा नगर संग्रहालय का रूप दे दिया गया है।
मनुआ भान की टेकरी
- भोपाल में लालघाटी स्थित गुफा मंदिर के समीप की पहाड़ी को मनुआभान की टेकरी के नाम से जाना जाता है।
- मनुआभान राजा भोज का दरबारी था जो विभिन्न प्रकार के हाव-भाव और वेश बदलकर उनका बदलकर उनका मनोरंजन करता था । बाद में उन्होंने अपना यह स्वभाव त्याग दिया और भगवत सिद्धि में लीन हो गया और मतुंगचार्य कहलाया।
- उसी के नाम पर टेकरी का नाम पड़ा जो अब अब मनुआ भान टेकरी कहलाती है ।
- यह टेकरी समुद्र तल से 1300 फीट ऊंची हैं जहां से पूरा नगर दिखाई देता है यहां पर जैन श्वेतांबर मंदिर में स्थित है।
गुफा मंदिर
- यह लालघाटी के करीब पहाड़ी पर स्थापित है यह गुफा सन 1830 में नवाब कुदसिया बेगम के काल में प्रकाश में आई थी।
- सन 1901 में इसमें शिवलिंग में स्थापित कर पूजा पाठ प्रारंभ हुआ वर्ष 1953 में या हनुमान प्रतिमा स्थापित की गई।
- सन 1960 में मंदिर के आसपास विस्तार करके स्थान का विकास किया गया।
- वर्तमान में यहां एक विशाल परिसर है तथा संस्कृत महाविद्यालय का संचालन भी हो रहा है।
मिंटो हाल पुराना विधानसभा भवन
- 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश बनने के बाद मध्यप्रदेश विधानसभा का अपने वर्तमान रूप में पुनर्गठन हुआ। इस पुनर्गठन में विंध्य प्रदेश, मध्य भारत, महाकौशल और भोपाल राज्य की विधानसभाओं को शामिल किया गया।
- राज्य के पुनर्गठन के कुछ पहले सितंबर 1956 में ही नई एकीकृत विधानसभाओं के भवन के लिए भोपाल की एक खूबसूरत इमारत मिंटो हाल का चुनाव कर लिया गया था ।
- वर्ष 1990 तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो इस भवन में ठहरे थे इसलिए इस भवन को मिंटो हाल के नाम से जाना गया।
- 1946 में इसमें इंटर कॉलेज की स्थापना हुई जो बाद में हमीदिया कॉलेज के रूप में जाना गया।
- हमीदिया कॉलेज इस इमारत में 1956 तक लगता रहा।
- 1 नवंबर 1956 से यह भवन विधानसभा के रूप में परिवर्तित हुआ तब से लेकर अगस्त 1996 तक यह भवन मध्य प्रदेश की 40 वर्ष तक संसद यात्रा और मध्य प्रदेश के के प्रदेश के के लोकतांत्रिक इतिहास का साक्षी बना रहा।
सेंट्रल लाइब्रेरी
- पुराने शहर में भारत टाकीज चौराहे के पास लाल पत्थरों से निर्मित इस भवन का निर्माण सन 1960 में भोपाल राज्य के नवाब सुल्तान जहां बेगम ने किंग एडवर्ड म्यूजियम स्थापित करने के लिए कराया था ताकि राज्य के शासकों को विभिन्न अवसरों पर मिले नजराना उपहारों को प्रदर्शित किया जा सके इस म्यूजियम का उद्घाटन सन 1909 में वायसराय लॉर्ड मिंटो ने किया था बाद में सन 1955 मैं मौलाना आजाद सेंट्रल लाइब्रेरी की स्थापना इसमें की गई।
लक्ष्मी नारायण मंदिर
- यह मंदिर गंगा प्रसाद बिड़ला के सहयोग से हिंदुस्तान चैरिटी ट्रस्ट द्वारा बनवाया गया द्वारा बनवाया गया हैं।
- इसका शिलान्यास 3 दिसंबर 1960 संवत को तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू ने किया था ।
- मंदिर में लक्ष्मी नारायण भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा 15 नवंबर 1964 को की गई थी , जिसका उदघाटन मुख्यमंत्री पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र ने किया था।
- इस मंदिर में भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की मूर्ति पूर्व दिशा में स्थित है। मंदिर के बाहर एक शंख रखा है , जो भगवान विष्णु का प्रिय माना जाता है। मंदिर में भगवान शंकर का शिवलिंग और दक्षिण मुखी हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है।
- मूर्तियों की स्थापना मंदिर बनने के एक वर्ष बाद की गयी थी। राजस्थान के कुशल कारीगरों द्वारा बनाए गए इस मंदिर में गीता के श्लोक -ऋग्वेद के मंच रैदास और कबीर की वाणी ,साथ ही सूर और तुलसी के दोहे अंकित है।
- मंदिर में बुद्ध ,नानक और भगवान महावीर की भी मूर्तियां द्वारा दीवार पर अंकित है।
बिड़ला संग्रहालय
- लक्ष्मी नारायण मंदिर की स्थापना के कुछ वर्ष पश्चात सन् 1961 में ट्रस्ट ने कला तथा संस्कृति के उन्नयन हेतु मंदिर से संलग्न एक संग्रहालय का प्रस्ताव रखा, जो सन् 1971 में 1971 में स्थापित हुआ।
- संग्रहालय के भू तल का संपूर्ण क्षेत्र कला-वीथिकाओं के लिए है ।पहली मंजिल पर कार्यालय , पुरातत्व विभाग , वाचनालय, प्रतिकृति - निर्माण कक्ष आदि हैं। हैं। मुख्य रूप से यहां उत्खनन तथा सर्वेक्षण से प्राप्त सामग्री प्रदर्शित की गई है , जैसे , प्रस्तर- शिल्प, पाषाणकालीन उपकरण, मृणमूर्तियां ,मृण पात्र , प्रागैतिहासिक चित्रकला के उल्लेखनीय उदाहरण आदि। ये सभी कृतियां भोपाल तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में फैली विपुल पुरातत्वीय संपदा का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- इस क्षेत्र के मुख्य रूप से आशापुरी (रायसेन) ,हिंगलाजगढ़ (मंदसौर), अंतरा (शहडोल), वाराहखेड़ी (रायसेन), समसगढ़ (भोपाल ), बटेसर ,नेवरी आदि से प्राप्त पुरातत्वीय सामग्री उल्लेखनीय है। संग्रहालय में प्रदर्शित प्रस्तर- प्रतिमाएं, गुप्त , गुर्जर-प्रतिहार, राष्ट्रकूट, कलचुरी, चंदेल तथा परमार कला का प्रतिनिधित्व करती है और यह छठी शताब्दी से लेकर 13 शताब्दी ईस्वी तक की है। नांदनेर (होशंगाबाद), कोटरा ( देवास), तथा गिलौलीखेड़ा (मुरैना) से प्राप्त उत्खनन सामग्री भी संग्रहालय से प्रदर्शित है।
नया विधानसभा भवन
- सन् 1980 तक यह महसूस किया जाने लगा था की विधानसभा से जुड़े कामकाज के फैलाव को देखते हुए एक ऐसी इमारत की जरूरत है जिसमें सभी सहूलियते तथा पर्याप्त जगह हो।
- 14 मार्च 1981 को तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष श्री बलराम जाखड़ द्वारा नए विधानसभा भवन का शिलान्यास संपन्न हुआ।
- अरेरा पहाड़ी पर 17 सितंबर ,1984 को इस नए भवन का निर्माण प्रारंभ हुआ और उद्घाटन दिनांक 3 अगस्त , 1996 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा के कर कमलों से हुआ।
- भवन का नाम का नाम "इंदिरा गांधी विधान भवन" रखा गया है।
- इस भवन का डिजाइन विख्यात वस्तुविद चार्ल्स कोरिया ने तैयार किया है ।
- नवग्रहो की तरह भवन के भी नौं घटक है। यह सभी एक केंद्र के इर्द-गिर्द रचे गए है ।
शौर्य स्मारक
- देश की सुरक्षा में जीवन बलिदान करने वाले शहीदों की पावन स्मृति को बनाए रखने के लिए अरेरा हिल्स पर लगभग 12 एकड़ में मध्य प्रदेश शासन ने शौर्य स्मारक का निर्माण किया है।
- यह शहीदों की राष्ट्र सेवा से प्रेरित जीवन यात्रा का रूपायन है। इसमें जीवन-मृत्यु , युद्ध -शांति, मोक्ष-उत्सर्ग जैसे कठिन अनुभवों को सरल और सहज तरीके से प्रदर्शित करने के लिए आकार, रंग-रूप, सामग्री, तकनीक का रोचक ताना-बाना बुना गया है।
- शौर्य स्मारक में एक संग्रहालय का भी निर्माण किया गया है। यहां सेना और सैनिकों से संबंधित चित्रों और अन्य वस्तुओं के जरिए सौंदर्यीकरण करण का जिम्मा संस्कृति विभाग को सौंपा गया है।
समसगढ़
- भोपाल से कोई 22 कि .मी. की दूरी पर स्थित है ,समसगढ़ ।
- 11 वीं-12 वीं सदी का एक ऐतिहासिक , प्राचीन समृद्ध नगर रहा है। इसकी पहचान करीब 70 साल पहले जैन मुनियों द्वारा की गई है। यहां विभिन्न धर्मों की नक्काशीदार प्रतिमाएं बिखरी हैं। इसके अलावा परकोटे हैं। इसके अलावा परकोटे , कुएं , बावड़ीयों और खेत-खलिहानों में मिली मूर्तियां आज भी जीवंत और प्रासंगिक है।
- समसगढ़ संबंधित ऐसा कोई ठोस अभिलेख तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन यहां मिले अवशेषों से इसके समृद्धि और ऐतिहासिक महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है।
- किसी समय में यह में सुव्यवस्थित नगर रहा होगा , ऐसा पुरातत्वविदों का मानना है । पहाड़ियों से घिरा हुआ यह गांव एक रमणीय स्थल है।
- यहां सबसे अधिक जैन धर्म से संबंधित अवशेष पाए गए हैं। यहां जैन धर्मावलंबियों द्वारा पूजा - अर्चना की जाती है।
- राज्य पुरातत्व विभाग के समसगढ़ के शिव मंदिर , बावड़ीओ , धरमपुरी की बारादरी छत्री और न्यू पॉइंट सहित प्रदेश के एक दर्जन प्राचीन स्मारकों में तथा पुरातत्वीय स्थलों को संरक्षित घोषित किया है।
इंदिरा गांधी
राष्ट्रीय मानव संग्रहालय
वर्ष 1970 मैं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अधिवेशन में देश
के विख्यात मानवविज्ञानी डॉ. सचिन रॉय ने एक ऐसे संग्रहालय की परिकल्पना की जो
संग्रहालय की परिकल्पना की जो , मानव की उत्पत्ति से
विकास तक के सभी पहलुओं को प्रदर्शित कर सके। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती
इंदिरा गांधी ने उनके इस परिकल्पना को धरातल पर उतारने की ठानी। जिसके परिणामस्वरूप
वर्ष 1977 में दिल्ली में बहावलपुर हाउस में राष्ट्रीय मानव
संग्रहालय की शुरुआत हुई। प्रारंभ में इसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन
शिक्षा विभाग का एक संस्थान बनाया गया वर्ष 1979 में इसे भोपाल में स्थानांतरित किया गया। बाद में
इसे संस्कृति विभाग तथा मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्तशासी
संस्थान का दर्जा दिया गया।
तत्कालीन मध्यप्रदेश
सरकार द्वारा इसे भोपाल के महत्वपूर्ण क्षेत्र विशाल भोपाल ताल के सामने स्थ्ति
श्यामला हिल्स में लगभग 200 एकड़ के विशाल भूभाग
आवंटित किया गया जहां से वर्तमान में यह संग्रहालय कार्यरत है। जबकि देश के
दक्षिणी क्षेत्रों में विशेष कार्य करने के लिए संग्रहालय का दक्षिण क्षेत्रीय
केंद्र , मैसूर में वर्ष 2001 में
स्थापित किया गया है, जो विरासत का दर्जा
पा चुके वेलिंगटन हाउस में कार्यरत है । देश के अन्य भागों में यह संग्रहालय अपने
क्षेत्रीय केंद्र स्थापित करने के लिए प्रयासरत है।
संग्रहालय की
स्थापना के मूल उद्देश्यों में राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना , नव संग्रहालय आंदोलन द्वारा देश की संग्रहालय
आंदोलन द्वारा देश की सांस्कृतिक वैविध्य को आम जनता के सामने लाना आदि है और अपने
उद्देश्यों के अनुरूप कार्यरत इस संग्रहालय को एक 'जीवंत
संग्रहालय' भी कहा जा सकता है, जिसमें जहां एक ओर मानव की उद्विकास की गाथा को
दर्शाती मुक्ताकाश एवं अंतरंग प्रदर्शनीयां या बनाई गई है है तो वहीं दूसरी ओर
पुरापाषाणकाल में मानव के जीवन को प्रदर्शित करते शैलाश्रय भी हैं ।
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