गोंड़ जनजाति उत्पत्ति विषयक अवधारणा |मण्डला के गोंड़ शासक एक संगठक के रूप में | Gond Utpatti Avdharna

गोंड़ जनजाति उत्पत्ति विषयक अवधारणा 

मण्डला के गोंड़ शासक एक संगठक के रूप में

गोंड़ जनजाति उत्पत्ति विषयक अवधारणा |मण्डला के गोंड़ शासक एक संगठक के रूप में | Gond Utpatti Avdharna



मण्डला के गोंड़ शासक एक संगठक के रूप में

 

  • कुछ गोंड़ शासक बेहतर संगठक थे। संग्राम साहि ने राज्य का विस्तार कियाव्यवस्था सुदृढ़ की । सिंचाई एवं पीने के लिए ताल तलैया का निर्माण कराया। सोने के सिक्के चलाये । सुरक्षा की दृष्टि से कई किलों का निर्माण कराया। 


  • हिरदे शाह ने हिरदेनगढ़ तालुका में कई मितव्ययी एवं अच्छे किसानलोधी एवं कुर्मियों को बसाया। उसने एक लाख से अधिक आम के पेड़ लगवाए । गढ़ा के समीप गंगा सागर नामक जलाशय का निर्माण कराया। उसने अपनी नई राजधानी मण्डला से हटाकर रामनगर में बसायी । इसके बनाये विभिन्न गढ़ोंतालाबोंकिलोंमंदिरों के अवशेष अभी भी मिलते हैं। सबसे प्रमुख बात यह है कि जनता संतुष्ट थी और कहीं भी गोंड राज के प्रति जनता के विरोधविद्रोह या बगावत के साक्ष्य नहीं मिलते।

 

निष्कर्षतः 

गोंड़ जनजाति का इतिहास काफी समृद्ध,  एक बृहद क्षेत्र पर इन्होंने सिर्फ शासन स्थापित किया अपितु शताब्दियों तक उसे बनाए एवं बचाए रखे। दुनिया के इतिहास के महनतम राजवंश भी शायद ही इतने वर्षों तक अपनी अपने वंश की सत्ता को स्थायीत्व प्रदान कर सके हैं। इस बृहद् कालखण्ड में अन्य जातियों के साथ इनके सामाजिकवैवाहिकआर्थिक एवं युद्ध के संबन्ध रहे हैं। बाध्य समाज में हो रहे विविध हलचलों के प्रति समानुकूल अनुक्रिया इनके द्वारा व्यक्त की गईसाथ ही अपने समाज की विशिष्टता एवं मूल्य को भी संरक्षित रखा गयालेकिन कालक्रमानुसार जहां आर्थिक उपादान के साधनों में एवं मानवीय सोच में परिवेश के पश्चात् शेष समाज आर्थक रूप से उन्नति करते गए इनकी उत्तरोत्तर अवनति होती गई।

 

गोंड़ जनजाति उत्पत्ति विषयक अवधारणा

 

  • भारत के प्राचीन एवं परम्परागत साहित्य में कहीं भी गोंड़ शब्द का वर्णन नहीं मिलता। इस समुदाय के लोग भी अपने को गोंड़ नहीं अपितुकोयतोर कहते हैंऔर अपना परिचय गोंड़ जनजाति के रूप में न देकर अपनी उपजाति के नाम के साथ कोयतोर शब्द लगा देते हैं। 


रशल और हीरालाल (1935) के अनुसार,

"गोंड़ एवं उनकी उपजातियाँ स्वयं की पहचान कोयतोर या कोय शब्द से करती हैंजिसका तात्पर्य मनुष्य या पर्वतवासी मनुष्य होता है।” 


आर पी. मिश्रा (1978) ने कोयतोर का अर्थ 

  • वन मनुष्य या बन्दर की सन्तान लगाया । अन्य विद्वान यथा डॉ. प्रकाश चरण प्रसाद (2001), डॉ. प्रमोद दुबे (2000) भी गोंड़ जनजाति का सम्बन्ध रामायण में वर्णित राम - सेना बालिसुग्रीवहनुमानअंगद आदि से जोड़ा है। 


डॉ. घनश्याम गुप्त (1978) के अनुसारकोयतूर शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है 

काको -माँ की माँ 

तादो -पिता का पिता

 

अर्थात् समान फसल वर्गग्राम भूमिदेवगोत्रदेवता वाला समूह अबूझमाड़ी गोंड़ों का संभवतः सबसे प्राचीन वर्ग हैंऔर बस्तर में पाया जाता हैजिसमें निम्न लिखित 06 विशेषताएँ होती हैं। वे सब कोयतोर में शामिल हैं। 

 

1. उन्दी कोड़ताउन्दी काडिंग -एक समान त्योहार ( फसल -पर्व)  

2. करसाड़ - पेन का उत्सव एक समान 

3. कड़ती -गोत्र भंग निषेध का नियम एक समान 

4. कसेर गायता- पुजारी और पूजा एक समान

5. कोला- घर में देव कोना या देवस्थान एक समान

6.कल कल्क जागा - पत्थरों से पूर्ण भूमि (निवास)

 

जाति या जनजातीय समुदाय को संबोधित करने के लिए गोंड़ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम मुगल इतिहासकारों द्वारा किया गया। 

गियर्सन ( 1931 ) का कथन है कि मध्यभारत से लेकर पूर्वी घाटों और हैदराबाद तक जहां कहीं भी गोंड अपनी भाषा का प्रयोग करते हैंअपने को कोया या कोयतोर कहते हैं । 

मद्रास और हैदराबाद की सरकारी रिपोर्टों में इसकी समकक्ष ध्वनियों के समीपवर्तीय नाम का प्रयोग किया है। मध्यप्रांत के तद् विषय साहित्य में हर स्थान पर इसके लिए स्थानीय हिन्दुओं ने आदिवासी नाम दिया है। 

भारत में सरकारी अधिकारियों ने धीरे धीरे सभी कोयतोर लोगों को - गोंड़ जाति कहना शुरू कर दिया। 

स्टीफन हिस्लप (रिचर्ड टेम्पल, 1866) की राय में गोंड़ या गुण्ड शब्द

  • स्टीफन हिस्लप (रिचर्ड टेम्पल, 1866) की राय में गोंड़ या गुण्ड शब्द कोंड या कुण्ड का अपभ्रंश है। 
  • कोंड शब्द तेलगू भाषा के कोंड़ा से निकला हैजिसका अर्थ पर्वत या पहाड़ होता है। इस प्रकार गोंड शब्द पर्वत में रहने वाले या पर्यायवाची माना गया है। 
  • डॉ. घनश्याम गुप्त (1998) इस उत्पत्ति का तर्कशून्य मानते हैंऔर लिखते हैंकि "अनेक शब्द जैसेगेडा (जंगल)गरिया (पत्थरों के ढेर के रूप में पूजे जाने वाले देवी देवता) और गुडा (सुअर वाड़ा या शूकर बलि) ये तीनों ऐसे प्रतीकात्मक शब्द हैंजो जंगल के लिए प्रयुक्त होते ।
  • भारत में असंख्य वन हैंतथा उतनी ही वनवासी जनजातियाँजो गेडा निवासी हैंअपने देवी देवताओं को गरिया रूप में पूजते हैंऔर सुअर पालन करते हैंया उनक बलि देते हैंअर्थात् गुडाधारी हैंऔर इसी कारण वे गोंड़ कहे जाते

 

  • उच्चारण में समानता के कारण विभिन्न विद्वानों ने जनजातीय सन्दर्भ में गोंड शब्द की उत्पत्ति का अनुमान लगाया है। इसी आधार पर कुछ अन्य विद्वानों ने (अग्रवालरामभरोसे) गौर (क्षत्रिय एवं ब्राह्मणों का एक गोत्र) तथा गौड़ (ब्राह्मणों एवं कायस्तों की एक टाईटिल) से इनका सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास किया है। सुल्तानपुर के क्षत्रियों का एक गोत्र का नाम भी गोंड़ है ।

 

गोंड़ों के वर्ग भेद

 

फुक्स के अनुसारमंडला में गोंड़ों के चार वर्ग पाये जाते हैं। ये वर्ग हिन्दू वर्ण व्यवस्था से प्रभावित है। फुक्स (1860) के गिनाए  चार वर्ग निम्नलिखित हैं 

1. देव गोंड़ ये एक दम शाकाहारी भोजन करते हैं। तथा छुआ छूत मानते हैं।

2. सूर्यवंशी गोंड़ ये अपनी उत्पत्ति सूर्य से मानते हैं 

3. सूर्यवंशी देव गोंड़ ये सूर्यवंशी देव गोंड़ ही हैंकिन्तु इनकी उत्पत्ति का स्थान देव गढ़ माना जाता है । 

4. रावण वंशी गोंड़ रावणवंशी गोंड़ मद्यपान तथा सुअरों की बलि देते हैं ।

 हिस्लोप (1866) के अनुसारराजगोंड़

  • हिस्लोप (1866) के अनुसारराजगोंड़ जिन लकड़ियों से भोजन बनाते हैंउन्हें पवित्र करने के लिये पहले उन पर पानी छिड़क लेते हैं। राजगोंड़गोंड़ों की सामाजिक व्यवस्था में सर्वोच्च स्थान रखते हैं। राजगोंड़उच्च वर्ग के हिन्दुओं के समान ही यज्ञोपवीत धारण करते हैं।

 

  • एक ओर राजगोंड़ों में सांस्कृतिक परिवर्तन की दर काफी तीव्र थी तो दूसरी तरफ बस्तर के माड़िया और मुड़िया लोगों में आदिवासी सांस्कृतिक स्थायित्व का बोध होता है। शेष लोग इन दोनों स्तरों के बीच पाए जाते हैं। विकास के स्तरों का यह अंतर विभिन्नताक्षेत्रीय समूहों के भौगोलिक एकाकीपनसभ्यता के आदान प्रदान की स्थिति एवं पर्यावरणीय संसाधन पर आधारित हैं। 


  • फुक्स (1960) के अनुसार गोंड़ों का सामाजिक संगठन दो विभिन्न प्रणालियों पर आधारित है। ये प्रणालियाँ क्रमशः कुलगत एवं क्षेत्रीय हैं। गोंड़ों ने कुलगत सीमा प्रणाली को किन्हीं अंशों तक समूचे गोंडवाना में संशोधित कर लिया था और वह कालान्तर में आज की 'गढ़प्रणाली के रूप में राजपूतों के प्रभाव से विकसित हुईजो गोंड़ क्षेत्र में सैनिक अथवा भू-स्वामियों के रूप में स्थाई रूप से रहने लग गए थे। हिन्दुओं के सांस्कृतिक प्रभाव से राजगोंड़ या खटोलिया तो उच्च वर्ग में सम्मिलित हो गएकिन्तु सामान्य या धुरगोंड़ों को हिन्दू समाज के निचले स्तर में हीं मान्यता मिल पाई।

 

गोंड़ों का क्षेत्रीय विभाजन

 

निवास स्थान की दृष्टि से गोंड़ों के कई भेद माने जाते हैं। रामभरोसे अग्रवाल, 1961)

 

  • माड़िया - बस्तर के पहाड़ी गोंड़ बस्तर की हल्बी बोली में माड़ शब्द का अर्थ पहाड़ होता है। 
  • मुड़िया बस्तर के मैदानी गोंड । 
  • खटुलहा - खटोला गाँव से विस्तारित या विस्थापित गोंड़ 
  • लांजिहा - लांजी के गोंड़ 
  • लारहिया छत्तीसगढ़ के गोंड़ (धुर गोंड़मुड़ियागोंडअमान गोंड़ ) 
  • आदिलाबाद - राजगोंड 
  • वारंगत - कोया गोंड़ 
  • मड़लहा - मण्डला के गोंड 
  • गेता - चांदा ( महाराष्ट्र ) 
  • गट्टा या गोट्टा - चांदा के पहाड़ी गोंड

 

मध्यप्रदेश शासन द्वारा स्वीकृत गोंड़ों के उपभेद

 

1. अगरिया 2. अरख 3. अरेख 4. असुर 5. बड़ी माड़िया 6. बड़ा माड़िया 7. भरोला 8 भिम्मा 9. भूता 10 कोयला भूत 11. कोयला भूती 12 भर 13 वायसन हार्न माड़िया 14 छोटा माड़िया 15. दंडामी माड़िया 16 धुर 17. धुर्वा 18 धूलिया 19. दोरला 20. गायनी 21. धोवा 22. गत्रा 23. गत्ती 24 ता 25. गोड़ गोवारी 26. हिल माड़िया 27. कन्दा 28 कलंग 29. खटोला 30 कोइतार 31 कोया 32. खिरवार 33. खिरवारा 34. कुचामी माड़िया 35. कुचाकी माड़िया 36. मन्नेवार 37. माध्या 38. माना 39. मोगिया 40 मोटया 41. मुड़िया 42. मुरिया 43. नागारची 44. नागवंशी 45 ओझा 46. राज 47. सोनझरी झेरक 48 याटिका 49. योट्या 50. बड़े माड़िया 51. दरोई।

 

गोंड जनजाति का इतिहास सारांश 

  • गोंड जनजाति का इतिहास काफी समृद्ध है। एक बृहद् क्षेत्र पर इन्होंने केवल शासन स्थापित किया अपितु शताब्दियों तक उसे बनाए एवं बचाए रखा। दुनिया के इतिहास के महानतम राजवंश भी शायउ ही इतने वर्षों तक अपनी अपने वंश की सत्ता को स्थायित्व प्रदान कर सके हैं। इस बृहद कालखण्ड में अन्य जातियों के साथ उनके सामाजिकवैवाहिकआर्थिक एवं युद्ध के संबन्ध रहे हैं। बाध्य समाज में हो रहे विविध हलचलों के प्रति समानुकूल अनुक्रिया प्रतिक्रिसर इनके द्वारा व्यक्त की गई साथ ही अपने समाज की विशिष्टता एवं मूल्य को भी संरक्षित रखा गया। 
  • लेकिन कालक्रमानुसार जहां आर्थिक उपाउान के साधनों में एवं मानवीय सोच में परिवर्तन के पश्चात् शेष समाज आर्थिक रूप से उन्नति करते गए उनका उत्तरोत्तर अवनति होती गई ।

विषय सूची 

MP-PSC Study Materials 
MP PSC Pre
MP GK in Hindi
MP One Liner GK
One Liner GK 
MP PSC Main Paper 01
MP PSC Mains Paper 02
MP GK Question Answer
MP PSC Old Question Paper

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.