WTO के प्रमुख समझौते | Major Agreement of WTO in Hindi

 

WTO के प्रमुख समझौते | Major Agreement of WTO in Hindi


WTO के प्रमुख समझौते

 

WTO के  व्यापार से संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकार (Trade Related Aspects of Intellectuai Property Rights - TRIPs)

 

  • जब कोई व्यक्ति विशेष अथवा निजी संस्था अपने बौद्धिक बल के द्वारा व्यापारिक हितों के लिए किसी उत्पाद को उत्पन्न करती हैतो वह बौद्धिक संपदा की श्रेणी में आता है। उदाहरणार्थ दवाइयांकिताबेंपेंटिंगनई तकनीक आदि। बौद्धिक संपदा अधिकार के अन्तर्गत इन वस्तुओं अथवा उत्पादों का संरक्षण विशिष्ट व्यापारिक चिह्नों (Trade Marks) एवं पेटेंट (Patents) के द्वारा एक निश्चित समय किया जाता है एवं इनके व्यापार से होने वाला लाभ उक्त व्यक्ति अथवा संस्था को ही प्राप्त होता है। 

 

  • ट्रिप्स के तहत् सदस्य देशों को कानूनी रूप से बौद्धिक अधिकारों के पेटेंट का पालन करना होता हैजिनमें कॉपी राइट अधिकारऔद्योगिक संरचनाभौगोलिक संकेतकसर्किट डिजाइनदवाइयांट्रेड मार्कनए वस्तुओं एवं पादकों के उत्पादन के एकाधिकार सम्मिलित हैं। ट्रिप्स विवाद के निपटारे के लिए विवाद निपटान संस्था के रूप में भी कार्य करता है। 


ट्रिप्स के तहत् बौद्धिक संपदा अधिकार के 7 प्रकार हैं

 

1 ) एक नए उपयोगी एवं अप्रचलित आविष्कार के लिए किसी व्यक्ति को सामान्यतः 20 वर्षों के लिए पेंटेट प्रदान किया जा सकता है। 20 वर्षों तक इस आविष्कार से होने वाला वाणिज्यिक लाभ उक्त व्यक्ति को प्रदान किया जाता है। पेटेंट अधिकार के बदले में आविष्कारक 20 वर्षों के उपरान्त वस्तु के उत्पादन पर अपना एकाधिकार समाप्त मानकर आम जनता के लिए उसके व्यापारिक प्रयोग की अनुमति प्रदान करता है। पेटेंट आविष्कारकर्ता एवं नए आविष्कारों को प्रोत्साहित करता है। इससे अनुसंधान एवं विकास का कार्य अनवरत रूप से जारी रहता है।

 

  • WTO के अन्तर्गत वस्तु एवं प्रक्रिया दोनों पर ही पेटेंट प्रदान किया जा सकता है। वस्तु पेटेंट के अन्तर्गत किसी वस्तु को बनाने के प्रत्येक प्रक्रिया का पेटेंट उसके आविष्कारक को प्रदान कर दिया जाता हैजिससे उस वस्तु को निरपेक्ष संरक्षण प्राप्त होता है। जबकि प्रक्रिया पेटेंट के अन्तर्गत एक ही वस्तु को बनाने की अलग-अलग प्रक्रियाओं का पेटेंट अलग-अलग आविष्कारकों को दिया जा सकता है। अतः इसमें एक ही वस्तु बनाने के लिए अलग-अलग तकनीकी एवं प्रक्रियाओं को संरक्षण प्राप्त होता है। इसके अन्तर्गत रिवर्स इंजीनियरिंग संभव है एवं एक ही वस्तु को बनाने की कई प्रक्रियाओं की खोज होती है। इसी की सहायता से विकाशील देश महंगी दवाइयों को सस्ते दामों पर बेचते हैंजिसका मुख्य उदाहरण भारत है। ट्रिप्स के अन्तर्गत बस्तु पेटेंट केवल खाद्यदवाइयांऔषधियां एवं रसायन को प्राप्त होते हैं। यह पेटेंट 20 वर्षों के लिए मान्य होता हैविकासशील देशों को ट्रिप्स के अनुबंधों को मानने के लिए 10 वर्षों का समय दिया गया हैजबकि विकसित देशों ने इस 1995 ई. से मान लिया है।

 

2 ) किसी रचनात्मक कार्य के लिएजैसे पेंटिंगकिताबेंफिल्मेंसंगीतसाफ्टवेयर आदिकॉपी राइट्स प्रदान किए जाते हैं। कॉपी राइट प्राप्त करने वाला व्यक्ति या संस्था एक निश्चित समय के लिए उक्त रचनात्मक कार्यों का व्यापारिक उत्पादन एवं वाणिज्यिक उपयोग करता है।

 

3 ) व्यापारिक चिह्न (Trade Mark) एक ऐसा चिह्न हैजो किसी उत्पाद या सेवा को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करता है एवं उसके व्यापारिक हितों की रक्षा करता है।

 

4 ) एक औद्योगिक रचना अधिकार किसी औद्योगिक वस्तु के आकारबनावट आदि के दुरुपयोग को रोकता है एवं उसकी विशिष्ट पहचान को बनाए रखता है (हवाई जहाजों एवं मोटर कारों के डिजाईनफर्नीचर एवं टेक्सटाइल ) |

 

5 ) इन्ट्रिगेटेड सर्किट की रूपरेखा।

6 ) व्यापार संबंधी गुप्त सूचना ।

 

7 ) भौगोलिक संकेतक (GI) के अन्तर्गत वस्तुत: कुछ ऐसे प्रसिद्ध उत्पादों को लिया जाता हैजो किसी क्षेत्र विशेष में ही उत्पन्न होते हैं और उनका उत्पादन उसी भौगोलिक परिस्थिति में संभव है, जैसे भारत में बासमती चावलदार्जीलिंग चायकाँचीपुरम सिल्कअल्फान्सो आमनागपुर संतरेकोल्हापुरी चप्पलबीकानेरी भुजियाआगरा पेठामैसूर के चंदन आदि। इसके तहत् पेटेंट ऐसी समूह या संस्था को प्रदान किए जाते हैंजो इन उत्पाद के हितों की रक्षा कर सके। यह पेटेंट किसी व्यक्ति को प्रदान नहीं किया जाता। मुख्यतः 10 वर्षों के लिए यह पेटेंट दिया जाता है। यह उत्पाद कृषिगतप्राकृतिक या विनिर्मित (Manufactured) हो सकता है। विनिर्मित उत्पाद का प्रसंस्करण (Processing) उसी क्षेत्र विशेष में होना चाहिए। उत्पाद की सभी विशेषताएं भी उसमें निहित होनी चाहिए।

 

  • 1999 में संसद ने भौगोलिक वस्तु संकेतक अधिनियम (Geographical Indications of Goods) पारित कियाजिसमें भौगोलिक क्षेत्र विशेष के वस्तुओं को संरक्षण दिया गया। इसका क्रियान्वन पेटेंटडिजाइन एवं ट्रेडमार्क महानियंत्रक (Controller General of Patents, Designs and Trade Marks) द्वारा करवाया जाएगाजो भौगोलिक संकेतक के रजिस्ट्रार भी हैं। भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री चेन्नई में स्थित है। इसी प्रकार पेटेंट एक्ट, 2005 भी लागू किया गयाजिसमें खाद्य पदार्थदवाइयां एवं रसायन आदि के पेटेंट संबंधी प्रावधान WTO के ट्रिप्स अनुबंध के अनुसार रखे गए हैं।

 

WTO के व्यापार संबंधी निवेश उपाय (Trade Related Investment Measures TRIMs) 


ट्रिम्स का सम्बन्ध कुछ शर्तों या प्रतिबन्धों से हैजिन्हें किसी देश के द्वारा अपने देश में विदेशी विनियोगों के सम्बन्ध में लगाया जाता है। विकासशील देशों ने ट्रिम्स का प्रयोग बहुत अधिक किया। टिम्स के सम्बन्ध में समझौतों में यह व्यवस्था है कि कोई भी सदस्य देश कोई ऐसे ट्रिम्स को लागू नहीं करेगाजो WTO के अनुच्छेद की व्यवस्था करने के विरुद्ध हो। 1991 के पूर्व भारत में ट्रिम्स का प्रयोग किया जाता थालेकिन वर्तमान में उनमें से अधिकांश नियम समाप्त कर दिए गए हैं।

 

  • वस्तुओं में व्यापार के बहुपक्षीय समझौते (Multilateral Agreements on Trade in Goods MATG) 
  • सेवाओं एवं व्यापार का सामान्य संझौता (General Agreement on Tariffs and Trade GATT )
  •  व्यापार के बहुपक्षीय समझौते (Plurilateral Trade Agreements PTA)

 

WTO के  कृषि से संबंधित मुद्दे (Issue Related with Agriculture )

 

उरूग्वे दौर (1986-94) की वार्ता के बाद से ही कृषि प्रमुख विषय बनकर उभरा। जब 1994 में मराकाश संधि पर हस्ताक्षर हुएतब विकासशील देशों ने कई मुद्दों पर अपना विरोध प्रकट किया। जिन पर दोहा दौर के पश्चात् भी गतिरोध बना हुआ है। इसके मुख्यत: 3 आधार हैं । 

 

1) घरेलू सहायता (Domestic Help ) 

  • इसके अन्तर्गत उन सभी सब्सिडियों को रखा गया हैजिससे किसानों को बीजखाद्यउर्वरकऊर्जाएवं पानी उपलब्ध या जाता है। इन सब्सिडियों को 3 भागों में बांटा गया हैजिन्हें एम्बर बाक्सब्ल्यू बाक्स एवं ग्रीन बाक्स का नाम दिया गया है।

 

a) एम्बर बाक्स (Amber Box )

  •  इसके अन्तर्गत वे सभी सब्सिडियां आती हैंजिनसे उत्पादन एवं व्यापार प्रभावित होता हैजैसे- भारत में दी जाने वाली न्यूनतम समर्थन मूल्यऊर्जाउर्वरककीटनाशक एवं सिंचाई के लिए दी जाने वाली सब्सिडी दोहा दौर की बैठक में तय किया गया है कि विकासशील देश अपने कुल कृषि उपज का 10 प्रतिशत एवं विकसीत देश कुल कृषि उपज का 5 प्रतिशत ही सब्सिडी प्रदान कर सकते हैंपरन्तु विकासशील देशों के गतिरोध के कारण इन प्रावधानों को 2016 तक स्थगित कर दिया गया है।

 

b) ब्ल्यू बाक्स (Blue Box ) 

  • प्रत्येक ऐसी सब्सिडी जो एम्बर बाक्स के सीमाओं का उल्लंघन करती हैवह ब्ल्यू बाक्स सब्सिडी के अन्तर्गत आती है। इसीलिए इसे शर्तों के साथ एम्बर बाक्स सब्सिडी कहते हैं। इनमें शर्तें इस प्रकार रखी जाती है कि यह उत्पादन को प्रभावित होने से रोके। इसके अन्तर्गत कृषकों को उत्पादन नियंत्रण करने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी एवं सरकार द्वारा दी जाने वाली सीधी सहायता राशि भी सम्मिलित होती है। वर्तमान में इसमें खर्च की जाने वाली राशि की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

 

c) ग्रीन बाक्स (Green Box ) 

प्रत्येक ऐसी सब्सिडी जो उत्पादन को प्रभावित नहीं करती हैवह ग्रीन बाक्स सब्सिडी के अन्तर्गत आती है। यह एक वृहद बाक्स हैजिसके अन्तर्गत निम्नलिखित सब्सिडियां आति हैं -

 

i) खाद्य सुरक्षा हेतु सार्वजनिक संग्रहण (Public Storage for Food Security )  

ii) कीट एवं बीमारी रोकथाम उपाय (Pest & Disease Control) | 

iii) अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास (Research & Technology Development) 

iv) पर्यावरण संरक्षण (Envrionment Conservation)। 

v) फसल बीमा (Crop Insurance ) 

 

विकासित देशों द्वारा ग्रीन बाक्स के अन्तर्गत रखी गई उपरोक्त सब्सिडियों में बड़े पैमाने पर नकद राशि कृषकों को दी जाती हैजिससे उनके उत्पाद सस्ते एवं विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक रूप से बेहतर हो जाते हैं। विकासशील देशों द्वारा इसका पुरजोर विरोध किया गया है। दोहा दौर की वार्ता के पश्चात् कई देशों ने इसे हटाने का आग्रह किया हैक्योंकि यह गरीब देशों के उत्पादों को बाजार से बाहर कर देता है।

 

जी33 यह 33 विकासशील देशों का समूह है। ये देश इंडोनेशिया की अगवाई में WTO से ऐसे नियमों को बनाने में प्रयासरत् हैंजिससे उनके कृषि उत्पाद विश्व बाजार में विकसित देशों के कृषि उत्पादों से प्रतिस्पर्धा कर सके एवं घरेलू स्तर पर उपलब्ध मांगों को भी पूरा कर सके। ये WTO के कृषकों को उनकी कृषि उपज का अधिकतम 10 प्रतिशत सब्सिडी देने के नियम का विरोध करते हैं एवं चाहते हैं कि सब्सिडी का मूल्यांकन 1986-88 के मूल्य सूचकांक आधारित न होकर वर्तमान समय के मूल्य सूचकांक पर आधारित हो एवं उसमें मुद्रास्फिति को भी शामिल किया जाए।

 

2 ) निर्यात सब्सिडी (Export Subsidies )

  •  इसके अन्तर्गत विकसित देशों को उनके द्वारा दी जाने वाली सब्सिडियों को उस स्तर तक घटाना होता हैजिससे किसी वस्तु के अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े एवं विकासशील देशों द्वारा उत्पादित वस्तु प्रतिस्पर्धा में बनी रहे।

 

3 ) बाजार उपलब्धता (Market Access)

  •  इसके अन्तर्गत प्रत्येक देश को अपने बाजार को अन्य देशों के कृषि उत्पादों के लिए खोलनासीमा शुल्क में कटौती करना तथा मुक्त व्यापार की ओर अग्रसर होना शामिल है।


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