बंगाल में अंग्रेजों का आगमन | Bengal Me Angrejon Ka Aaagman

 

बंगाल में अंग्रेजों का आगमन | Bengal Me Angrejon Ka Aaagman

बंगाल में अंग्रेजों का आगमन | Bengal Me Angrejon Ka Aaagman

 

  • 1633 से पूर्व अंग्रेजों का आगमन उस समय हुआ जब उड़िसा के मुगल सूबेदार ने उन्हें हरिहरपुर और बालासौर में अपनी फैक्ट्री खोलने की अनुमति दी। 
  • शुजा की सूबेदारी में अंग्रेजी व्यापार को बहुत अधिक लाभ हुआ। उन्होंने शोरेरेशम तथा चीनी का व्यापार आरम्भ किया। 
  • 1657 में उन्होंने हुगली में भी एक फैक्ट्री खोली। 1658 में मीर जुमला बंगाल का सूबेदार नियुक्त हुआ। उसने अंग्रेजों पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिए। इसका परिणाम यह हुआ कि 1658 से 1663 अंग्रेजों को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा। 
  • 1663 में मीर जुमला की मृत्यु के बाद शाइस्ता खाँ बंगाल का सूबेदार बना। इसके काल में एक बाद फिर से अंग्रेजों को व्यापारिक सुविधाएं प्राप्त होने लगी। इस काल में बंगाल में स्थापित अंग्रेजों की तीन फैक्ट्रियॉहुगलीकासिम बाजार की फैक्टी के प्रमुख चारनॉक ने अंग्रेजी व्यापारिक केन्द्र के लिए हुगली के स्थान पर सुतनैति को चुना जिससे कलकत्ता की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ। 
  • सुतनैति में आबादी के बढ़ने से अंग्रेजों ने इस बस्ती के क्षेत्रफल को बढ़ाने की दृष्टि से समीप के दो अन्य गाँव कालिकाता और गोविन्दपूर खरीद लिया। कलकत्ता का निर्माण इन तीनों गॉवों को मिलाकर ही हुआ। 
  • अंग्रेजी व्यापार को अधिक प्रोत्साहन मिला। 1791 के शाही आदेश से जिसके अनुसार कस्टम शुल्क तथा अन्य देय करों के स्थान पर अंग्रेज केवल 3000 रुपए अदा करने पर बंगाल में अपना कर मुक्त व्यापार कर सकते थे। 
  • मुर्शिद कुली खाँ ने जब बंगाल की सत्ता संभाली तो उसे अंग्रेजों को ही जाने वाली यह असाधारण रियायत से परेशानी होने लगी। 
  • अतः 1713 में उसने अंग्रेजों से सारी रियायतें छीन ली और यह आदेश जारी किया कि अब से उन्हें भी सामान्य व्यापारियों के समान ही कर और सीमा शुल्क अदा करने पड़ेंगे। इस पर अंग्रेजों ने तत्कालीन मुगल बादशाह फर्रुखसियर के पास जॉन सुरमन के नेतृत्व में एक शिष्टमण्डल भेजा। 
  • इस प्रयास के परिणामस्वरुप 1717 ई0 में एक फरमान जारी हुआजिसके अन्तर्गत सीमा शुल्क मुक्त व्यापार करने के से लिए अंग्रेजों की फैक्ट्री के प्रमुख द्वारा दस्तक जारी किया जाता था। फ
  • रमान के अनुसार कम्पनी ही अपने व्यापार के लिए दस्तक जारी कर सकती थीपरन्तु कम्पनी के अधिकारियों ने अपने व्यक्तिगत हित के लिए भी इसका दुरुपयोग किया। फरमान के अनुसार कम्पनी को यह विशेष छूट केवल आयात एवं निर्यात अर्थात विदेशी व्यापार पर ही मिल सकती थीलेकिन छूट कम्पनी एवं उसके अधिकारियों ने गलत तरीके से इसका इस्तेमाल देशी व्यापार के लिए भी किया। 
  • अतः हम देख सकते हैं कि अंग्रेजों को बंगाल से कितना अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त हो रहा था।
  • 1740 में जब अलीवर्दी खाँ ने अपनी स्वाधीनता की घोषणा की तब भी वह अपनी मनमानी करते रहे। अलीवर्दी खॉ ने जानबूझकर अंग्रेजों की मनमानी के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया। उसका विचार था कि व्यापारियों को दबाना उसकी प्रतिष्ठा के खिलाफ हैपरन्तु यह भी सत्य है कि अलीवर्दी खाँ अंग्रेजों की नौसैनिक शक्ति से भयभीत था। 
  • अलीवर्दी खाँ ने अंग्रेजों को कभी किलेबंदी की अनुमति नहीं दी। उसका कहना था तुम लोग सौदागर होतुम्हें किलों की क्या जरुरत। जब तक तुम मेरी हिफाजत में हो तुम्हें किसी दुश्मन का डर नहीं हो सकता।

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