गौतम बुद्ध द्वारा किया गया प्रचार कार्य |ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने क्या किया | Gautam Budh Ke Prachar Karya

ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने क्या किया 
गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म 
गौतम बुद्ध द्वारा किया गया प्रचार कार्य |ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने क्या किया  | Gautam Budh Ke Prachar Karya



गौतम बुद्ध द्वारा किया गया प्रचार कार्य 

  • ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध अपने ज्ञान का प्रचार करके अपने पाये आदर्श को संसार में फैलाना चाहते थे। सबसे पहले वे अपने उन पाँच पुराने साथियों से मिलना चाहते थे जो उन्हें पथभ्रष्ट समझकर छोड़कर चले गये थे। उनसे मिलने वे सारनाथ पहुँचे और पहला उपदेश उन्हीं साथियों को दिया। उनका प्रथम उपदेश धर्मचक्रप्रवर्तन के नाम से विख्यात है।
  • इसके पश्चात् अपने साथियों के साथ बुद्ध वाराणसी गये और वहां एक धनी सेठ के पुत्र को तथा अन्य अनेक लोगों को अपना शिष्य बनाया। वाराणसी से बुद्ध राजगृह पहुँचे। उस समय मगध में अनेक आचार्य तथा धर्मप्रचारक घूम-घूम कर जनता में अपने सिद्धांतों का प्रचार किया करते थे। उनके सिद्धांतों का खंडन करने तथा अपने विचारों की श्रेष्ठता स्थापित करने में बुद्ध को बहुत समय लगाकिन्तु अन्त में उन्हें सफलता मिली और अनेक व्यक्ति उनके शिष्य बन गये।
  • राजगृह में ही मगधनरेश बिम्बसार ने बुद्ध का उपदेश सुनकर बौद्धधर्म को स्वीकार किया। अब उन्होंने चारों ओर घूम-घूम कर राजा से लेकर रंक तक सभी प्रकार के व्यक्तियों को अपना अनुयायी बनाना शुरू किया। इन व्यक्तियों में सारीपुत्र तथा मौदगल्यायनउपाली सेठ अनाथपिंडक तथा अजातशत्रु अधिक प्रसिद्ध थे। 
  • राजगृह के अतिरिक्त बुद्ध ने गयानालन्दापाटलिपुत्र आदि स्थानों का भी भ्रमण किया। 
  • कोशल में अनार्थपिंडक के सहयोग तथा सहायता से उन्हें वहां अपना पैर जमाने का अच्छा मौका मिल गया। उसने अपार धन खर्च करके बुद्ध के लिए श्रावस्ती में जेतवन नामक एक विहार बनवा दिया। राजा प्रसेनजीत ने उनके उपदेशों को ध्यान से सुना।
  • एक बार बुद्ध कपिलवस्तु भी गये और अपने परिवार के अनेक सदस्यों को जिसमें उनका पुत्र राहुल तथा विमाता महाप्रजापति गौतमी सम्मिलित थींअपना अनुयायी बनाया। 
  • वैशाली में भी बुद्ध ने कुछ समय बिताया। वहीं पर उन्होंने गौतमी के अनुरोध करने पर भिक्षुणियों का एक संघ बनाने की आज्ञा दे दी। 
  • मल्ल लोगों ने बुद्ध के उपदेशों का स्वागत नहीं कियाफिर भी कुछ मल्ल उनके शिष्य हो गये।
  • कौशाम्बी के राजा उदयन ने भी प्रारम्भ में बुद्ध की शिक्षाओं के प्रति विशेष रूचि नहीं दिखलायी। उसकी एक रानी अवश्य उनकी शिष्या हो गयी। 
  • पश्चिम में बुद्ध मथुरा तक गये। अवन्ति के राजा प्रद्योत ने भी एक बार उन्हें आमंत्रित किया किन्तु वहां वे न जा सके। अपने एक शिष्य को उन्होंने भेजाजिसने अवन्ति में कुछ लोगों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी। 
  • इस प्रकार चौआलीस वर्ष तक अपने धर्म का प्रचार करके तथा अजातशत्रुउदयनप्रसेनजीत आदि अनेक राजाओंराजकुमारोंसेठ-साहूकारों तथा साधारण वर्ग के व्यक्तियों को बौद्ध मतावलम्बी बना कर हिरण्यवती नदी के तट पर कुशीनगर के समीप अस्सी वर्ष की आयु में 483 ईसवी पूर्व में उन्होंने " महापरिनिर्वाण" प्राप्त किया।
  • उनके शरीर की भस्मी को आठ जातियों ने आपस में बाँट कर उन पर अलग-अलग स्तूप बनवाया कुशीनगर में जिस स्थान पर महात्मा बुद्ध को महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था वहां उनकी एक विशाल मूर्ति की स्थापना की गयी। यह मूर्ति आज भी विद्यमान है। 
  • कुशीनगर भी बौद्धों का एक अति पवित्र तीर्थ स्थान है। वहां जाकर बौद्ध यात्री महात्मा बुद्ध की विशाल मूर्ति तथा महापरिनिर्वाण स्थल के दर्शन करते हैं। 
  • कपिलवस्तु के समीप ही साल वृक्षों के वन में लुम्बिनी वन नामक स्थान भीजहां महात्मा बुद्ध ने जन्म लिया था. बौद्धों के लिए अति पवित्र स्थल बना हुआ है।


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