बौद्ध धर्म का पतन के क्या कारण थे | बौद्धधर्म का पतन | Baudh Dharm Ka Patan

बौद्ध धर्म का पतन क्यों हुआ
बौद्ध धर्म का पतन के क्या कारण थे
बौद्ध धर्म का पतन के क्या कारण थे | बौद्धधर्म का पतन | Baudh Dharm Ka Patan

 बौद्धधर्म का पतन , भारत में बौद्ध धर्म का पतन

बौद्धधर्म का उत्थान जितनी शीघ्रता से हुआ था उतनी ही शीघ्रता से उसका पतन भी हो गया। इस धर्म का इतना अधिक पतन हुआ कि शीघ्र ही भारत से लोप हो गया। ग्यारहवीं शताब्दी के उपरांत बौद्धधर्म का नाम भारत के इतिहास में उपलब्ध ही नहीं होता। इसके पतन के भी अनेक कारण थे। 


बौद्ध धर्म का पतन के प्रमुख  कारण

राजकीय संरक्षण का अन्त 

  • बौद्धधर्म की उन्नति और द्रुत गति से प्रचार में भारतीय राजाओं से बड़ी सहायता मिली थी। लेकिन यह स्थिति हमेशा के लिए कायम नहीं रही। आगे चलकर बौद्धधर्म राज्याश्रय से वंचित हो गया और राजकीय आश्रम ब्राह्मणधर्म को प्राप्त होने लगा। अतएव ब्राह्मण धर्म बढ़ने लगा और बौद्धधर्म का पतन प्रारम्भ हुआ। कुषाणों के उपरांत हर्ष और पाल सम्राटों के अतिरिक्त शेष सभी सम्राटों ने हिन्दू धर्म को ही प्रोत्साहन दिया। 


हिन्दू धर्म का उत्थान 

  • हिन्दू धर्म में जो शिथिलता उत्पन्न हो गयी थी वह उत्साही प्रचारकों की लगन से जाती रही। शंकराचार्यकुमारिल भट्टरामानन्द और प्रभाकर आदि उच्च कोटि के धुरन्धर विद्वानों ने सम्पूर्ण भारत का एक कोने से दूसरे कोने तक भ्रमण करके बौद्ध धर्माचार्यों विद्वान भिक्षुओं आदि से शास्त्रार्थ कर स्थान स्थान पर उन्हें पराजित कर जनसाधारण को अपनी ओर आकर्षित करना आरम्भ कर दिया। बड़े-बड़े सम्राट और धनी मानी व्यक्ति हिन्दू धर्म का भारी आदर-मान करने और इसे हर प्रकार के प्रोत्साहन प्रदान करने लगे। फलतः हिन्दू धर्म के पुनरूत्थान ने बौद्ध धर्म को पतनोन्मुख करके उसे निस्तेज डाला।

 

आंतरिक मतभेद

  • बौद्धधर्म के पतन का सबसे बड़ा कारण उसमें आंतरिक मतभेद था। महात्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद बौद्ध धर्म की एकता समाप्त हो गयी और वह कई शाखाओं में विभक्त हो गयाजिनमें सैद्धान्तिक मतभेद थे। इस मतभेद के कारण पारस्परिक ईर्ष्या बढ़ने लगी और लोगों का विश्वास बौद्ध धर्म से उठने लगा।

 

चिन्तकों तथा दार्शनिकों का अभाव 

  • बुद्ध की मृत्यु के उपरान्त बौद्ध धर्म में कोई बड़ा चिन्तक तथा सुधारक नहीं उत्पन्न हुआ। इसके परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म में धीरे-धीरे जो दोष आने लगेवे बढ़ते गये उनके सुधार का कोई प्रयत्न नहीं किया गया। फलतः बौद्ध धर्म निरन्तर पतनोन्मुख होता गया।

 

बौद्ध संघ में भ्रष्टाचार 

  • समय के साथ-साथ बौद्ध मठ चरित्रहीनता के अड्डे बन गये थे। ये संघ धर्म संघ होने के बजाय भिक्षुकों के पारस्परिक विवाद और कलह के घर बन गये। भिक्षु और भिक्षुणियों ने सुख और वैभव का जीवन बिताना आरम्भ कर दिया था। इस चरित्रहीनता की अवस्था में वे ब्राह्मणों के सामने उपयोगी बन कर नहीं। रह सकते थे। अतः परिणाम यह हुआ कि लोगों का इन पर से विश्वास उठने लगा। उनकी प्रेरणा शक्ति समाप्त हो चली थीअतः लोगों में वे घृणा की दृष्टि से देखे गये। हीनयान और महायान शाखाओं के भिक्षु परस्पर खुलेआम लड़ने लगे। इस आन्तरिक मतभेदों ने बौद्धधर्म को भारी हानि पहुँचाई। यह सत्य है कि समय-समय पर बौद्ध परिषदों ने इस पारस्परिक फूट को समाप्त करने का यत्न कियाकिन्तु इस यत्न का परिणाम कुछ भी नहीं निकला। 


संघ में स्त्रियों का प्रवेश

  • आरम्भ में बौद्ध ने स्त्रियों के संघ में प्रवेश को स्वीकार नहीं किया था। वे इसे उचित नहीं मानते थेपरन्तु परिस्थितियों से विवश होकर उन्हें स्त्रियों को संघ में प्रविष्ट करने की अनुमति देनी पड़ी। फिर भीउन्होंने स्त्रियों के संघ प्रवेश के साथ अपने आचरण सम्बन्धी कठोर नियमों को सम्बद्ध कर दिया थाजिसके कारण भिक्षु और भिक्षुणियों को अलग-अलग रहना पड़ता था और उनका नैतिक पतन एक तरह से असम्भव था। परन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात् स्त्रियों का संघ प्रवेश सरल हो गया। फलतः आचरण सम्बन्धी कठोरता जाती रही। 
  • यह भिक्षुओं के आचरण तथा संयम के लिए बड़ा घातक सिद्ध हुआ। विहारों का शुद्ध तथा सात्विक जीवन समाप्त हो गया उनमें विलासिता और व्यभिचार का समावेश हो गया।

 

अन्य धर्मों के साथ प्रतिद्वन्द्विता

  • बौद्धधर्म की अवनति का एक अन्य कारण अन्य धर्मों के साथ इसकी प्रतिद्वन्द्विता बतलायी जाती है। जैनशैववैष्णव आदि प्रतिस्पर्धी धार्मिक सम्प्रदायों से संघर्ष में बौद्धधर्म सफल नहीं हुआ। जैनधर्म तथा बौद्धधर्म आपस में बहुत मिलते-जुलते थे। कुछ अंशों में जैनधर्म के आदर्श बौद्धधर्म के आदर्शों से अधिक उच्च थे। अतएव बहुत से लोगों को जैनधर्म ने भी अपनी ओर आकृष्ट किया। प्रकार जैनशैव तथा वैष्णव धर्मों का बौद्धधर्म पर घातक प्रभाव पड़ा।

 

मिथ्याडम्बरों का प्रवेश

  • बौद्धधर्म की सफलता का कारण महात्मा बुद्ध के बोधगम्य एवं सरल उपदेश थे। लेकिन बाद में लोग बुद्ध के उपदेशों को भूल गये। धर्म की पुरानी सरलता खत्म हो गयी और उसमें ढकोसला तथा मिथ्याचार का समावेश हो गया। बुद्ध ने धार्मिक जीवन के इन्हीं दोषों का विरोध किया थापरन्तु कालान्तर में उन्हीं के धर्म में इनका समावेश हो गया। इसके परिणामस्वरूप बौद्धधर्म कुछ ही वर्षों में शिथिल तथा जर्जर हो गया।

 

राजपूतों का उत्कर्ष 

  • आठवीं शती से बारहवीं शती तक उत्तरी भारत का बहुत कुछ भाग राजपूत राजाओं के अधिकार में आ चुका था जिन्हें युद्ध और रक्तपात में आनन्द मिलता था। बुद्ध का अहिंसा मार्ग उनके लिए उपयोगी नहीं था। अतएवउन्होंने संघर्षमय हिन्दू धर्म को ही प्रोत्साहित किया। परिणामस्वरूप उत्तरी भारत में बौद्ध धर्म सर्वथा लुप्त हो गया। इधर दक्षिण भारत ने भी ब्राह्मण धर्म को अपनाया। अत: बौद्धधर्म के पैर वहाँ भी नहीं जम सके। 

मुसलमानों का प्रहार

  • बौद्ध मठ धन तथा स्वर्ण से परिपूर्ण थे। इस धन के आकर्षण ने मुसलमान आक्रमणकारियों को इनकी और खींचा और उसने अनेक विहारों को गिराकर धन निकाल लिया। इसी धन के कारण ही मुसलमानों ने बौद्ध मठों को निशाना बनाया और विशाल धनराशि को लूट कर ले गये। इस प्रकार मुस्लिम विजेताओं ने भी बौद्धधर्म को कड़ी चोट पहुँचायी मुसलमान मूर्तिपूजकों से घृणा करते थे। बौद्धों की कोई सैनिक शक्ति नहीं थी। अतः मुस्लिम आक्रमणकारियों के सम्मुख वे टिक नहीं सके। इस प्रकार के झगड़ों में बहुत से बौद्ध मौत के घाट उतार दिये गये। इनमें से कुछ बौद्ध तो मुसलमान बन गये और कुछ उत्तर के पहाड़ों की ओर भाग गये। इस प्रकार मुसलमानों के आक्रमण ने बौद्धधर्म पर घातक प्रहार किया।

 

देवत्व की स्थापना

  • महात्मा बौद्ध ने ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया था। देवत्व को उन्होंने प्रोत्साहन नहीं दिया। परन्तु हिन्दू धर्म से प्रभावित हो जाने के कारण बौद्ध धर्म में भी देवत्व की स्थापना हो गयी और देवताओं की पूजा आरम्भ हो गयी। बाद में बौद्धों ने स्वयं बुद्ध को अवतार और ईश्वर का रूप मानना आरम्भ कर दिया। बुद्ध की मूर्ति बनने लगी तथा उसकी पूजा होने लगी। बौद्ध धर्म पर इसका प्रभाव यह पड़ा कि साधारण जनता इसे भी हिन्दू धर्म का ही अंग समझने लगी और उसका इसके प्रति कोई अलग से आकर्षण नहीं रहा। इस प्रकार यद्यपि बौद्धधर्म के पतन के अनेक कारण उपलब्ध होते हैं किन्तु वास्तविक कारण संघ की शिथिलताअव्यवस्था तथा बौद्ध भिक्षुकों का पतित चरित्र ही माना जा सकता है। जिससे धर्म प्रचार के कार्य में विघ्न उत्पन्न हुए तथा जनता को इस धर्म की ओर से अरुचि होने लगी। भारत से इस धर्म का सर्वथा लोप हो गयायद्यपि जिन देशों में इसका प्रचार हुआ था वहाँ आज भी इसके अवशेष प्राप्त होते हैं तथा विश्व के अनेक भागों में बौद्धधर्म अभी तक प्रचलित है। 

  • कुछ समय पूर्व ही भारत में बौद्धधर्म को पुनः जीवित करने का प्रयास किया गया है तथा भारत में एक महाबोधि संस्था का निर्माण भी किया गया है जिसके द्वारा बौद्धधर्म का जीर्णोद्धार करने का प्रयत्न किया जा रहा है। प्राचीन बौद्ध तीर्थ स्थानों में धर्मशालाविहारऔषधालय तथा पुस्तक भवन भी निर्मित किये गये हैं तथा सारनाथ में विशेष रूप से यह धर्म के प्रसार का कार्य प्रारम्भ किया गया है। इसके अतिरिक्त श्रावस्तीकुशीनगर तथा बोधगया में भी नवनिर्वाण का निर्माण करके इस धर्म के पुनरूद्धार के लिए अथक प्रयास किया जा रहा है।

Also Read...






No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.