गैर-सरकारी संगठन क्या है | NGO Kya Hai

 गैर-सरकारी संगठन क्या है NGO Kya Hai

गैर-सरकारी संगठन क्या है NGO Kya Hai


 एन.जी.ओ क्या होते हैं  What is a non-government organization


  • गैर-सरकारी संगठन स्वैच्छिक संगठन के नाम से प्राचीन काल से ही अस्तित्व में रहे हैं। इतिहासकारों के अनुसार स्वैच्छिक संगठन का इतिहास रोटरी (1839), बाद में रोटरी इण्टरनेशनल (1905) के जिक्र से प्रारम्भ होता है। 
  • अनुमान है कि 1914 तक विश्व भर में 1,083 स्वैच्छिक संगठन थे, जो दासताएं, महिलाओं के मताधिकार, निशस्त्रीकरण आदि जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे थे। 
  • वर्तमान काल में प्रचलित अवधारणा की दृष्टि से गैर-सरकारी संगठन का उद्भव 1945 माना जाता है जब संयुक्त राष्ट्र संघ अस्तित्व में आया। 
  • संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने चार्टर के अध्याय 10 के अनुच्छेद 71 में सलाहकार की भूमिका निभाने वाले उन संगठनों को गैर-सरकारी संगठन कहा है जो न तो सरकारी होते थे और न ही राज्य सलाहकार के सदस्य। 
  • अंर्तराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन (NGO) की पहली परिभाषा 27 फरवरी, 1950 को Ecosoc के 288 ( X ) में की गई। इसके अनुसार

 "कोई भी अंर्तराष्ट्रीय संगठन जो एक अंतर्राष्ट्रीय संधि द्वारा स्थापित नहीं है के रूप में की गई है।" 


यूरोप में गैर-सरकारी संगठन

  • बीसवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों के दौरान विश्व समाजवादी व्यवस्था के बिखरने, सोवियत संघ के धराशायी होने, गुटनिरपेक्ष देशों के बेजान बनने तथा नवउदारवाद- आधारित भूमण्डलीकरण के अभियान के जोर पकड़ने के साथ गैर-सरकारी संगठनों का महत्व बढ़ा है और पश्चिम के देश विशेष कर अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली आदि से धन और पथ-प्रदर्शन प्राप्त होने लगे। कहना होगा कि औपनिवेशिक काल में ईसाई धर्म प्रचारक संस्थाएं जो भूमिका निभाते थे वह अब पश्चिमी देशों द्वारा वित्त पोशित गैर-सरकारी संगठन निभाने लगे हैं।

 

भारत  में गैर-सरकारी संगठन

  • भारत में दान एवं सेवा की धारणा पर आधारित नागर समाज ( सिविल सोसायटी) का लंबा इतिहास रहा है। मध्यकालीन युग में ही सांस्कृतिक संवर्धन, शिक्षा स्वास्थ्य और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत पहुंचाने वाले अनेक स्वंयसेवी संगठन सक्रिय थे। 
  • उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में राष्ट्रीय चेतना का विस्तार भारत के कोने-कोने में जा पहुंचा और सामाजिक राजनीतिक आंदोलनों में स्वंय सेवा के माध्यम से अपने को स्थापित करने का स्वैच्छिक संगठनों ने रास्ता अपनाया। इस प्रकार के प्रयासों से कुछ प्रमुख प्रारम्भिक उदाहरण फ्रैंड इन नीड सोसायटी(1858), प्रार्थना समाज(1864), सत्यशोधक समाज( 1873 ), आर्य समाज(1875), द इण्डियन नेशनल कांग्रेस (1887), नेशनल काउंसिल फार वीमेन इन इण्डिया(1875) आदि प्रमुख थे।। 
  • यद्यपि भारत में स्वैच्छिक संगठनों की भरमार थी लेकिन आधिकारिक तौर पर देखा जाये तो इसकी शुरुआत 1860 में अग्रेजों द्वारा बनाये गये सोसाइटी रजिस्टेशन एक्ट' से होती है। प्रारम्भ में इस क्षेत्र में क्रिश्चियन मिशनरीज का बोलबाल रहा।
  • 1905 में सर्वेन्टस ऑफ इण्डिया' नाम पहली सेकुलर गैर-सरकारी संगठन गठित किये जाने का जिक्र इतिहास के पन्नों में दर्ज है। 
  • स्वतंत्रता के पश्चात जब भारत सरकार द्वारा समाज कल्याण की भूमिका को वैकल्पिक एवं पूरक प्रयासों के तौर पर महत्वपूर्ण माना गया। पहली पंचवर्षीय योजना के दौरान साफ तौर पर कहा गया कि किसी भी प्रकार के सामाजिक एवं आर्थिक पुनर्निमार्ण के कार्य में गैर-सरकारी संगठनों की अग्रणी भूमिका रहेगी और सरकार इनके प्रयासों को पूर्ण करने में पूरा-पूरा सहयोग करेगी।
  • 1953 में सामाजिक विकास कार्यों से जुड़ी गतिविधियों को गैर-सरकारी संगठन की मदद से अंजाम देने के लिए सरकार द्वारा केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड का गठन किया गया। इस प्रकार की अधिकारिक मान्यता एवं फंडिंग के बाद तो गैर-सरकारी संगठनों की संख्या भारत में निरन्तर बढ़ती चली गयी। 
  • 1958 में बड़ी स्वैच्छिक संस्थाओं के संघ के तौर पर "एसोशिएशन फार वाल्युमुन्टरी एजेन्सीज फार रूरल डेवलपमेंट" (अवार्ड) का गठन किया गया 1
  • 965-66 और 1966-67 में पड़े सुखे के दौरान राहत कार्यों के लिए कई अर्न्तराष्ट्रीय स्वंयसेवी संगठनों ने भारत में प्रवेश किया और वे यहीं के होकर रह गये। 
  • 1980 के दशक में स्वैच्छिक संगठनों के स्वरुप में काफी विशिष्टता आने लगी और स्वैच्छिक सेवा का आंदोलन तीन प्रमुख समूहों में विकसित हो गया। 

गैर-सरकारी संगठन का पहला समूह

  • पहले समूह में वे पारम्परिक विकास मूलक स्वैच्छिक संगठन आते हैं जो किसी एक गांव या गांवों के समूह में जाकर साक्षरता कार्यक्रम चलाते है किसानों के फसलों के प्रयोग हेतु प्रोत्साहित करते है। पशुधन की इन प्रजातियों को पालने के लिए ग्रामीणों को तैयार करते हैं जो अधिक लाभ दे सकते हैं। बुनकरों और अन्य ग्रामीण शिल्पकारों को अपना उत्पाद बाजार में बेचने के लिए ले जाने को प्रेरित करते है जैसे अन्य कार्य करते है।
  • वास्तव में यदि देखा जाए तो ये संगठन अपने चुनिंदा क्षेत्र में उसी समुदाय का हिस्सा बन जाते हैं। मध्य भारत में बाबा आम्टे द्वारा कुष्ठ रोगियों के लिए शुरू किया गया संगठन इस प्रकार के स्वैच्छिक संगठनों का उत्तम उदाहरण है।

 

गैर-सरकारी संगठन का दूसरा समूह

  • गैर-सरकारी संगठन का दूसरा समूह उन संगठनों को कहा जा सकता है जिन्होंने किसी विशेष क्षेत्र में गहन अनुसंधान किया और फिर सरकार पर प्रभाव डालकर अथवा न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर लोगों के जीवन में सुधार लाने का काम किया है। "सेंटर फॉर सांईस एण्ड इनवायरमेंटइस प्रकार संगठन का उदाहरण है।

 

गैर-सरकारी संगठन का तीसरा समूह

  • तीसरा समूह उन स्वंय सेवकों का है जो अपने आप को अन्य गैर-सरकारी संगठनों की अपेक्षा सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में देखते हैं। 
  • स्पष्ट है कि इन वर्ग के स्वैच्छिक संगठन कुछ सीमा तक आंदोलन जैसी गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं नर्मदा बचाओं आंदोलन इस प्रकार के संगठनों का सर्वोतम उदाहरण है। 


  • गैर-सरकारी संगठनों के क्षेत्र में 1990 का दशक व्यवस्थित बंदोबस्त का दौर माना जाता है। अब दुसरे देशों से आने वाला पैसा सीधे तौर पर सरकार, एन0जी0ओ0 नेटवर्क और बड़े कार्पोरेट एन0जी0ओ0 को जाने लगा जिससे गैर-सरकारी संगठनों की कार्यशैली और दृष्टिकोण में भारी परिवर्तन आया है। अब ये संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमों की अनदेखी करने लगे वे अपने प्रेषित मूल उद्देश्यों तक सीमित नहीं रहते बल्कि सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन के हर क्षेत्र में हस्तक्षेप करने लगे हैं । 
  • वित्तपोशण करने वाले उनके संचालन और पथ-प्रदर्शन में मुख्य भूमिका अदा करते हैं। इस प्रकार गैर-सरकारी संगठन के क्रिया-कलापों पर उनकी विदेशी वित्तपोशकों के तार कारपोरेट सेक्टर, विशेषकर बहुराष्ट्रीय निगमों और अपनी सरकारों से जुड़े होते हैं और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने हितों को साधने का प्रयास करते हैं। 
  • वर्तमान काल में सिविल सोसायटी और गैर-सरकारी संगठन, राज्य की भूमिका को कम करने तथा बाजार विशेषकर मुक्त बाजार की को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने की कोशिश करते हैं।
  • अब तो राजनैतिक गतिविधियों में भी गैर-सरकारी संगठन बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे हैं। उदाहरणार्थ भ्रष्टाचार उन्मूलन के अन्ना हजारे द्वारा चलाये गये आंदोलनों में गैर-सरकारी संगठन की भूमिका महत्वपूर्ण रही है

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