मुगलकालीन स्थापत्य कला एवं चित्रकला| Mughal architecture and painting

मुगलकालीन स्थापत्य कला एवं चित्रकला 
Mughal architecture and painting
मुगलकालीन स्थापत्य कला एवं चित्रकला| Mughal architecture and painting



सामान्य परिचय 

 

  • मुगलकालीन स्थापत्य कला एवं चित्रकला मध्यकालीन भारत में विकसित सांस्कृतिक समन्वय की जीवन्त प्रतीक हैं।
  • मुगल शासक, कला के विभिन्न पक्षों के न केवल संरक्षक तथा पोषक थे अपितु स्वयं कला के पारखी भी थे। उनके शासनकाल में स्थापत्य कला व चित्रकला के क्षेत्र में विभिन्न कला तत्वों का समावेश कर उनकी विशिष्ट शैलियों (इण्डो-इस्लामिक) का विकास किया गया जो कि कला मर्मज्ञों की दृष्टि में अनुपम हैं। 
  • मुगल काल की कला में मौलिकता से अधिक सौन्दर्य की पराकाष्ठा तक पहुंचने के प्रयास किए गए और इसके लिए कलाकारों ने भारत की ही नहीं अपितु विश्व की अनेक स्थापित कला शैलियों के तत्वों को आत्मसात किया। 
  • हुमायूं का मकबरा, फ़तेहपुर सीकरी में बुलन्द दरवाज़ा, जामा मस्जिद तथा दीवान-ए-खास, आगरा के लाल किले की प्राचीर, अकबर का मकबरा, जहांगीर का मकबरा, एत्मात्-उद्-दौला का मकबरा, मोती मस्जिद, दिल्ली के लाल किले में दीवान-ए-खास, दिल्ली की जामा मस्जिद, ताज महल और बीबी का मकबरा मुगल काल की सबसे प्रसिद्ध इमारते हैं। उद्यान-योजना, जल-स्रोत की निकटता, भव्य प्रवेश द्वार, ज्यामितीय समरूपता, मीनारें, गुम्बद, सीढ़ियों की कतारें और मुख्य भवन का प्रायः एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित होना, अलंकरण हेतु - जाली का काम, लाल पत्थर पर संगमरमर की पच्चीकारी (इनले वर्क) तथा संगमरमर पर बहुमूल्य पत्थरों की पच्चीकारी (पीत्रा दुरा), मुगल स्थापत्य कला की पहचान मानी जा सकती हैं। 
  • इस्लाम में जीवित प्राणियों का चित्रण निषिद्ध होने के कारण दिल्ली सल्तनत काल में चित्रकला का विकास नहीं हो सका किन्तु मुगल शासक चित्रकला के पोषक थे। औरंगज़ेब को छोड़कर सभी मुगल बादशाहों ने चित्रकारों को संरक्षण देकर चित्रकला को प्रोत्साहित किया। मुगलकालीन चित्र कला पर ईरानी, तुर्की, चीनी, यूनानी, रोमन और भारतीय चित्रकला शैलियों का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। मुगल बादशाहों में जहांगीर चित्रकला का सबसे बड़ा पोषक था। प्राकृतिक रंगों के प्रयोग के लिए विख्यात उसके शासनकाल की चित्रकला अपनी मौलिकता, कल्पनाशीलता और विषयों की विविधता के कारण उन्नति के शिखर तक पहुंच गई थी।
  • अब्दुर्रहीम खानखाना और दाराशिकोह भी चित्रकला के पोषक थे। मुगल लघुचित्रों में प्राकृतिक दृश्य, पशु पक्षी का चित्रण, आखेट तथा दरबार का चित्रण, हिन्दू पौराणिक कथानकों पर आधारित चित्र तथा व्यक्ति चित्र प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। मुगल चित्रकला धर्म-निर्पेक्ष चित्रकला का प्रतिनिधित्व करती है।

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