कौटिल्य के अनुसार युद्ध के प्रकार |Types of war according to Kautilya

 षाड्गुण्य सिद्धांत का  भाग - शत्रु का अपकार करना विग्रह

कौटिल्य  के अनुसार युद्ध के प्रकार |Types of war according to Kautilya


  • कौटिल्य ने स्पष्ट किया है कि युद्ध के लिये एक शक्तिशाली सेना आवश्यक है । उसने सेना के चार अंग बताये है- पैदल सैनिकहाथीघोड़ेरथ आदि। कौटिल्य उक्त चारों में हाथी पर अधिक बल देता था। सैनिकों की भर्ती के संबंध में वह वंशानुगत सैनिकों को अधिक महत्व देता था। वह क्षत्रियों को अधिकाधिक सेना में रखने का पक्षधर था। यदि संख्या कम हो तो वह वैश्य एवं शूद्रों को भी शामिल करने पर बल देता है। 

  • कौटिल्य ने विजय प्राप्त करने के लिये तीन प्रकार के बल को आवश्यक बताया। ये नैतिक बलअर्थ बल तथा कूटनीतिक बल है। इसमें से वह नैतिक बल अथवा उत्साह शक्ति पर अधिक बल देता था। 

कौटिल्य  के अनुसार युद्ध के प्रकार  

कौटिल्य ने युद्ध के निम्न प्रकार बताये है-

 

1.प्रकाश युद्ध

  • यह युद्ध किसी देश या समय को निश्चित कर किया जाता है। 


2.लूट युद्ध

  • यह छोटी सेना को बड़ा दिखाकर किया गया युद्ध है। इसमें किलों को जलानालूटपाट करनाधावा बोलना आदि शामिल है।

 

3.तूष्णी युद्ध

  • विष या औषधि के माध्यम से शत्रु को नाश करने का तरीका तूष्णी युद्ध कहलाता है।


 कौटिल्य के अनुसार युद्ध का उपयुक्त समय

  • कौटिल्य ने युद्ध की व्यापक योजना प्रस्तुत की है। उसने वर्ष के बारह महीनों का विश्लेषण कर उचित समय का वर्णन किया है उनका मानना था कि युद्ध में अधिक समय लगने की स्थिति में पौष मेंमध्यम समय लगने की स्थिति में चैत्र मेंअल्प समय लगने पर जेठ युद्ध का श्रेष्ठ समय है। वह वर्षाकाल को युद्ध के लिये घातक मानता है। यदि भू-प्रदेश अनुकूल है तथा युद्ध टाला नहीं जा सकता तो इस समय भी युद्ध किया जा सकता है।


 कौटिल्य  के अनुसार युद्ध का प्रबंध तथा नियम

युद्ध का प्रबंध तथा नियम:

  • कौटिल्य युद्ध के व्यापक प्रबंध का पक्षधर था। वह मानता था कि युद्ध भूमि में सभी आवश्यकता की पूर्ति का प्रबंध युद्ध से पूर्व कर लेना चाहिए। यह सभी प्रबंध में तैयार रहना चाहिए। इसमें आवश्यक औषधि सामग्रीवैद्यखाने पीने की सामग्री रसोइयों तथा सैनिकों को खुश करने वाली महिलायें भी शामिल है। कौटिल्य युद्ध मैदान के कुछ नियम तय करता युद्ध भूमि है। उसकी मान्यता है कि युद्ध में घायल सैनिकोंभागते सैनिकों तथा आत्मसमर्पण करने वाले सैनिकों पर प्रहार नहीं करना चाहिए। भयभीत एवं गिरे हुए मनोबल वाले सैनिकों को भी नहीं मारना चाहिए।

 

कौटिल्य  के अनुसार विजयी राजा के प्रकार

कौटिल्य ने विजीगीषु राजा के तीन प्रकार बताये है- 

1.धर्मविजयी 

  • धर्मविजयी गौरव एवं प्रतिष्ठा के लिये विजय प्राप्त करना चाहता है।वह शत्रु द्वारा आत्मसमर्पण करने से संतुष्ट हो जाता है। 


2.लोभ विजयी:- 

  • लोभ विजयी वह राजा होता है जो भूमि एवं धन दोनों देने से संतुष्ट हो जाता है। 3.असुर विजयीः- असुर विजयी राजा वह होता है जो आसुरी प्रवृतियों से युक्त होता है। इसमें वह धन भूमिप्राण तथा स्त्री आदि को पाकर ही संतुष्ट होता है।

 

षाड्गुण्य सिद्धांत का भाग - यान आत्म सर्मपण करना संश्रय


यान - 

यान का अर्थ होता है आक्रमण। इस नीति को तभी अपनाया जाता है जब यह लगे कि उसकी सैनिक शक्ति मजबूत है तथा बिना आक्रमण किये को नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है।कौटिल्य ने अपनी पुस्तक में यान का व्यापक वर्णन किया है। 


षाड्गुण्य सिद्धांत का  भाग - आसन या तटस्थता

यह वह अवस्था है जिसमें उचित समय की प्रतीक्षा में राजा चुपचाप तटस्थ होकर बैठा रहता है। यह अपने को मजबूत करते हुए शत्रु पर आक्रमण करने के साही समय की प्रतीक्षा है। कौटिल्य ने आसन के दो प्रकार बताये है:- 

1.विग्रह आसन 

2.संघाय आसन

 

विग्रह आसनः

  • जब विजीगीषु( विजयी ) और शत्रु दोनों ही सन्धि करने की इच्छा रखते है तथा परस्पर एक दूसर को नष्ट करने की शक्ति न रखते हो तो कुछ काल युद्ध कर चुप बैठ जाते है।

 

संधाय आसन

  • जब दोनों राजा एक संधि कर चुपचाप बैठ जाते है तो उसे संधाय आसन कहते है।

 

संश्रयः 

  • यह एक प्रकार का आश्रय या शरण है जो कमजोर राज्य बलवान राजा के यहां लेता है। यह तभी होता है जब राजा बेहद कमजोर हो तथा अपनी रक्षा करने में में असमर्थ हो।

 

द्वैधीभावः 

  • द्वैधीभाव की नीति से कौटिल्य का आशय एक राज्य के प्रति संधि तथा दूसरे के प्रति विग्रह नीति को अपनाने की नीति है। यह राष्ट्रीय उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक से सहायता लेने तथा दूसरे से लड़ने की नीति है। वह विशेष परिस्थितियों में विशेष नीति अपनाने का पक्षधर था। विदेश नीति के संचालन में वह सामदामदण्डभेद आदि की नीति के अपनाने का पक्षधर था। इन चारों में वह साम (समझाना) दाम (पैसे देना) से श्रेष्ठ है तथा भेद (फूट डालना) दण्ड (युद्ध से) श्रेष्ठ है।
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