महासागरों में पाये जाने वाले संसाधन | Resources found in Oceans

 महासागरों में पाये जाने वाले संसाधन 

Resources found in Oceans

महासागरों में पाये जाने वाले संसाधन  Resources found in Oceans


 

महसागरों में पाये जाने वाले संसाधनों को दो भागों में बांटा जा सकता है- सजीव संसाधन एवं निर्जीव संसाधन। 

सजीव संसाधन
  • सजीव संसाधन को समुद्री जीवों से प्राप्त किया जाता है जिसमें मुख्य है, मोती, प्रवाल तथा औषधियां।

निर्जीव संसाधन
  • निर्जीव संसाधनों के दो रूप हैं ऊर्जा तथा खनिज। समुद्र से प्राप्त होने वाले खनिजों या पदार्थों की दो श्रेणिया हैं- 
  • वृहत् संघटक जिसमें क्लोरीन, सोडियम, मैग्नेशियम, सल्फर, कैल्शियम, पोटैशियम आदि आते हैं तथा लघु संघटक जिसमें कार्बन, सिलिकन, फास्फोरस, आयोडीन, लौह, तांबा, चांदी तथा सोना सम्मिलित हैं। 
  • वृहद संघटक जहां बहुतायत में समुद्र में पाये जाते हैं वहीं लघु संघटक की उपलब्धता बहुत कम होती है। आयोडीन जल तथा स्थल दोनों में सभी कशेरूकी जीवों में थायराइड ग्रंथि में पाया जाता है। कुछ समुद्री शैवालों से आयोडीन व्यावसायिक तौर पर प्राप्त किया जाता है । लौह, तांबा सोना व चांदी अल्प मात्रा में समुद्र के पानी में मौजूद रहते हैं।

 

समुद्री जीव संसाधन आकलन :Marine Resources Assessment

  • समुद्र में अनेकानेक प्रकार के जीव पाये जाते हैं । इन संसाधनों के आकलन के लिए 1987 में समुद्री जीव संसाधन आकलन कार्यक्रम शुरू किया गया था। 
  • कोच्चि स्थित समुद्री जीव संसाधन और पारिस्थितिकी केंद्र इस कार्यक्रम को अमल में ला रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत समुद्री जीव संसाधन संबंधी जानकारी के आकलन, पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में समुद्री जीव संसाधनों के पर्याप्त दोहन की रणनीतियां इत्यादि तैयार की जाती हैं।
  • इसी आकलन कार्यक्रम के अंतर्गत केरल के तट पर वर्ष 2005 में 150 से 822 मीटर की गहराई में 'स्नोपसिस सायनियां तथा 'कोलोकांगर' जैसी मछली की नई जातियां पाई गयी हैं। 

समुद्री सजीव संसाधनों का आकलन (Marine Living Re- 1 Resources Assessment, MLR)

  • कार्यक्रम के अंतर्गत सर्वेक्षण, मूल्यांकन एवं दोहन पर विचार किया जाता है । साथ ही, भारतीय ईईजेड के जीवन-संसाधनों के प्रबंधन हेतु "इको-सिस्टम मॉडल का विकास, वातावरणीय परिवर्तनों पर एमएलआर प्रतिक्रिया पर अध्ययन आदि भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित हैं। इन अध्ययनों में (फोर्व) (Fisher- ies Oceangraphic Resource Vessel., FORV) सागर संपदा का पूरी तरह उपयोग किया गया है। वर्तमान में डीप सी फिशरी, टूना संसाधन, हानिकारक शैवालीय पुंज (Blooms). समुद्री स्तनधारी, पर्यावरण एवं उत्पादकता पैटर्न पर अध्ययन किया जा रहा है।

 

  • इसके अतिरिक्त भारतीय महाद्वीपीय ढाल में मत्स्य संसाधनों का सर्वेक्षण नामक परियोजना के अंतर्गत भारतीय सामुद्रिक अनुसंधान पोत सागर सम्पदा द्वारा अंडमान के गहरे समुद्री क्षेत्र में केकड़ा और चिंगट के अथाह भंडार का पता लगाया गया है। जहरीले शैवाल पुष्पों के अध्ययन की एक अन्य परियोजना के अंतर्गत माइक्रोफ्लोरा नामक शैवाल की 152 किस्मों का पता लगाया गया है।

समुद्री निर्जीव संसाधन Marine non-living resources

  • समुद्री निर्जीव संसाधनों में सबसे प्रमुख हैं खनिज संसाधन। महासागरों की वास्तविक गहराई और सम्पदा के बारे में प्रामाणिक जानकारी पिछले करीब सौ सालों से ही मिलनी शुरू हुई है।
  • इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध अन्वेषक जलयान ' चैलेंजर' ने 1872 और 1876 के बीच प्रमुख महासागरों की यात्राएं करके प्रमुख सागर-तल से बहुत सारी नई चीजें खोज निकाली थीं। इस ऐतिहासिक अभियान के दौरान ही पहली बार महासागर के तल से विविध धातुओं से बने हुए पिंड ऊपर लाए गए थे। 'चैलेंजर' के एक वैज्ञानिक जॉन मरे ने उन धातु पिंडों को बहुधात्विक नोड्यूल नाम दिया। तब से महासागरों की तली में मिलने वाले बहुधात्विक पिंडों के लिए यह नाम रूढ़ हो गया।

 

  • भारत का समुद्र तट 7500 किमी. से भी अधिक लम्बा है और उसकी सीमा में 1265 द्वीप समाहित है। इसके एकाधिकार आर्थिक क्षेत्र 20 लाख वर्ग किलोमीटर का है और इसकी द्वीपीय सीमाएं तट से 350 समुद्री मील तक है। भारत सरकार ने सागर सम्पदा पर अनुसंधानों की महत्ता को ध्यान में रखते हुए 1981 में महासागर विकास विभाग की स्थापना की थी। इसी के साथ ही बहुधात्विक नोड्यूल्स कार्यक्रम एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की भांति शुरू किया गया।

 

बहुधात्विक पिंड : Polymorphic Body

  • समुद्र में पाये जाने वाले बेशकीमती बहुधात्विक पिंड का अधिकांश भाग धात्वीय ऑक्साइडों का बना होता है जिसमें आयरन तथा मैंगनीज की प्रमुखता होती है । इसके अतिरिक्त अपेक्षाकृत कम मात्रा में निकिल, कोबाल्ट, तांबा, सीसा, बेरियम, मोलिब्डेनम, वेनेडियम, क्रोमियम तथा टाइटेनियम जैसी बहुमूल्य धातुएं भी उपस्थित होती हैं। इन पिंडों का इतना अधिक महत्त्व लोहा या मैग्नीज नहीं बल्कि इन्हीं अल्प मात्रा वाली बहुमूल्य धातुओं के कारण है। आज विश्व के अनेक उद्योग इन धातुओं के बिना एक कदम नहीं चल सकते।

 

  • भारत पहला ऐसा विकासशील देश है जिसने बहुधात्विक पिंडों की न केवल खोज की बल्कि उसके दोहन में भी सफलता गात की। 26 जनवरी, 1981 को वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् के अनुसंधान पोत 'गवेषणी' ने पहली बार हिंद महासागर की अतल गहराइयों से बहुधात्विक पिंडों को निकालने में सफलता प्राप्त की । इस सफलता के साथ ही विकसित राष्ट्रों के एकाधिकार वाले इस क्षेत्र में भारत ने भी अपना स्थान बना लिया। परिणामस्वरूप भारत को 1982 में इस क्षेत्र में प्रमुख निवेशक का स्थान प्राप्त हुआ। इंटरनेशनल सीबैड अथॉरिटी के प्रीपेरेटरी कमीशन द्वारा भारत को अगस्त, 1987 में हिन्द महासागर में 1,50,000 वर्ग किमी. खनन क्षेत्र आवंटित किया गया।

 

  • बहुधात्विक नोड्यूल्स कार्यक्रम के अंतर्गत पिंडों की खोज के अतिरिक्त इसके खनन की प्रौद्योगिकी का विकास, खनन का पर्यावरणीय प्रभाव, पिंडों की खोज एवं सर्वेक्षण तथा पिंडों का निष्कर्षण कुल चार कार्यक्रम हैं।

 

  • राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) पर गहरा समुद्र प्रौद्योगिकी तथा महासागर खनन समूह पर समुद्र की तलहटी से समुद्र बहुधात्विक नोड्यूल्स और अन्य जलगत पदार्थों के खनन की प्रौद्योगिकी विकसित करने का उत्तरदायित्व है। जलगत खनन हेतु प्रौद्योगिकी विकास के एक हिस्से के रूप में उथली तलहटी में खनन की एक प्रणाली को अभिकल्पित और विकसित किया गया तथा 451 मीटर की गहराई पर इसका दूसरी बार सफल परीक्षण किया गया।

 

  • धातु विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिदिन 500 किलोग्राम बहुधात्विक नोड्यूल्स को अन्य तरीके से प्रसंस्करित करने वाले एक अर्ध-निरंतर प्रायोगिक संयंत्र की शुरुआत मार्च 2003 में की गयी है। उदयपुर में हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में लगाए गए इस संयंत्र का उद्देश्य नोड्यूल्स से धातुओं के निष्कर्षण के लिए विकसित प्रक्रिया पैकेज को प्रभावित करना है। धातुओं के निष्कर्षण हेतु आरआरएल (वी) द्वारा विकसित प्रक्रिया का सफल परीक्षण किया जा चुका है तथा अन्य संगठनों के है। प्रक्रिया माध्यमों के परीक्षण तथा धातु निष्कर्षण में सुधार के लिए गतिविधियां चलाई जा रही हैं। विभाग ने केंद्रीय हिंद महासागर बेसिन से 120 टन नोड्यूल्स भी प्राप्त करने में सफलता पाई है जिनका, उपयोग धातु कर्मीय प्रदर्शन अभियानों के लिए किया जा रहा है ।
  • भारत के समुद्री तट के किनारे काली बालू का अनोखा भंडार है। ऐसी काली बालू कन्याकुमारी के तटवर्ती क्षेत्र से लेकर महाराष्ट्र के तटवर्ती क्षेत्र में फैली हुई है जिसमें इलमिनाइट रूटाइल, सिरकान, मोनोसाइट, मैग्नीसाइट और गार्नेट जैसे खनिज मौजूद हैं। आने वाली नई सदी में इन खनिजों की आवश्यकता बढ़ने वाली है। इंडियन रेअर अर्थ कम्पनी इलमिनाइट, सिरकान और रूटाइल का उत्पादन काले बालू से ही करती है।

 

समुद्र से ऊर्जा : Energy from the Sea

  • ऊर्जा परम्परागत तथा गैर परम्परागत दोनों रूपों में समुद्र से प्राप्त होती है। पेट्रोलियम परम्परागत ऊर्जा का उदाहरण है जबकि तापीय ऊर्जा लहरों से प्राप्त ऊर्जा गैर परम्परागत ऊर्जा का स्रोत है। इसके अतिरिक्त मीथेन, हाइड्रेट इत्यादि समुद्र से बड़ी मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है जिसे ऊर्जा में रूपांतरित किया जा सकता है। भारत में समुद्र तट से काफी दूर 20 मीटर की गहराई में से प्रति वर्ष पेट्रोलियम का कम से कम तीन करोड़ टन निष्कासन होता है ।

 

  • समुद्र में कुल 97.2 प्रतिशत जल है। इस जल पर पड़ने वाली सौर ऊर्जा का मान 0 .51x10 किवा प्रतिघंटा प्रतिवर्ष है । समुद्र की ऊपरी सतह पर सौर ऊर्जा का ताप 30 डिग्री सेंटीग्रेड होता है जो क्रमशः गहराई में कम होते-होते 10 डिग्री से. तक हो जाता है। अध्ययनों द्वारा यह निष्कर्ष प्राप्त किया गया है कि 12 डिग्री से. के तापमान पर 50 टेरावाट बिजली प्राप्त की जा सकती है। समुद्र तल से ताप ऊर्जा के उत्पादन की तकनीक पहली बार 1881 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक जेकवेस डी आर सोनोवाल ने इजाद की थी। तब उसने अपने संयंत्र से पहली बार 14 डिग्री से. तापमान पर 22 किवा. विद्युत उत्पादन कर सबको चमत्कृत कर दिया था।

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