मध्य प्रदेश वन सम्पत्ति | MP Ki Van Sampati

 मध्य प्रदेश वन सम्पत्ति

मध्य प्रदेश वन सम्पत्ति | MP Ki Van Sampati

 

वन सम्पत्ति से मध्यप्रदेश सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की आमदनी होती है। वनों से प्राप्त होने वाली सम्पदा को दो भागों में बाँटा जा सकता है।

 

1. मुख्य संपदा 

2. गौण संपदा

 

1. मुख्य संपदा :

वनों की मुख्य सम्पदा के अंतर्गत इमारती लकड़ी से प्राप्त होने वाले वन वृक्ष शामिल हैं जैसे सागौन, साल, हल्दू, धौल, शीशम सेमल आदि। मध्यप्रदेश को प्रतिवर्ष लगभग 50 करोड़ रुपये की आय वनों द्वारा प्राप्त लकड़ियों से होती है ।

 

सागौन वन :- सागौन वन काली मिट्टी वाले क्षेत्र में पाये जाते हैं। सागौन वनों के लिये 75 से 125 सेमी. वर्षा पर्याप्त होती है । सागौन की लकड़ी में एक ग्रेन होती है, जिसके कारण सागौन की लकड़ी से बने सामान में सुन्दरता आ जाती है । होशंगाबाद के बोरी घाटी में सर्वाधिक बहुतायत से सागौन वन पाये जाते हैं।

 

साल वन :- मध्यप्रदेश के लाल और पीली मिट्टी वाले क्षेत्र में पाये जाते हैं। साल वनों के लिये औसत 12.5 से.मी. वर्षा वाला क्षेत्र चाहिए. ये वन अधिक घने होते हैं । साल की लकड़ी का निर्माण स्लीपर बनाने में किया जाता है।

 

बाँस :- बाँस 75 सेमी. या अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में पाया जाता है । मध्यप्रदेश में डैन्ट्रोकैलमस स्ट्रिक्ट्स प्रकार का बाँस पाया जाता है। मध्यप्रदेश में 50 लाख नेशनल टन बाँस का भण्डार है। बाँस की लुगदी से कागज का निर्माण भी किया जाता है । ओरियन्ट पेपर मिल अमलाई और नेपानगर अखबारी कागज के कारखाने में बाँस का प्रयोग बहुतायत से किया जा रहा है।

 

2. गौण सम्पत्ति :-


गौण सम्पत्ति के अंतर्गत लाख, तेंदू का पत्ता, कत्था, हरा, विभिन्न प्रकार के गोंद, दवाओं के लिये पौधे तथा विभिन्न प्रकार की घास प्रमुख हैं । गौण वस्तुओं के उत्पादन हेतु लाइसेंस उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिनसे वन विभाग निर्धारित शर्तों के साथ निश्चित धनराशि प्राप्त करता है। वनों से प्राप्त होने वाले गौण उत्पादों पर कई उद्योग आधारित हैं ।

 

खैर वृक्ष :- खैर वृक्ष का उपयोग कत्था बनाने में किया जाता है । पाचन तंत्र की गड़बड़ियों में खैर के वृक्ष उपयोगी हैं । जबलपुर, सागर, दमोह, उमरिया और होशंगाबाद में खैर के वृक्ष पाये जाते हैं। मध्यप्रदेश में शिवपुरी तथा बानमौर में कत्था बनाने का एक-एक कारखाना है। इन कारखानों को शिवपुरी, श्योपुर तथा गुना के वनों से खैर की लकड़ी प्राप्त होती है ।

 

लाख :- मध्यप्रदेश में प्रतिवर्ष 40000 टन लाख का उत्पादन होता है । लाख मध्यप्रदेश में मंडला, जबलपुर, सिवनी, शहडोल तथा होशंगाबाद के वनों में पाया जाता है । मध्यप्रदेश में उमरिया में लाख बनाने का एक सरकारी कारखाना है । इसके अतिरिक्त भी अन्य कारखाने हैं जिनमें सीड, लाख और शेख बनता है। 

हर्रा :- मध्यप्रदेश में हर्रा निकलने के अनेक कारखाने हैं। हर्रा का प्रयोग चर्म शोधन में किया जाता है इससे चमड़ा साफ करने का एक लोशन बनाया जाता है। हर्रा फल में 35 से 40 प्रतिशत तक चर्मशोधक तत्व होते हैं हर्रा मुख्यत: छिंदवाड़ा, बालाघाट, मंडला, श्योपुर, शहडोल के वनों में प्राप्त होता है।

 

तेंदूपत्ता :- तेंदूपत्ते से बीड़ी बनाने का उद्योग मुख्यत: सागर, जबलपुर, शहडोल एवं सीधी, दमोह, गुना, रीवा में संकेदीकृत है, देश के बीड़ी पत्ता उत्पादन का लगभग 60 प्रतिशत मध्यप्रदेश में प्राप्त होता है। तेंदुपत्ता व्यवसाय में राज्य के 10 लाख आदिवासी मजदूर कार्यरत हैं .

1988 से मध्यप्रदेश में तेंदूपत्ता के संदर्भ में नवीन नीति अपनाई गई, जिसमें बिचौलियों के माध्यम से तेंदूपत्ता एवं अन्य वनोपज संग्रहण की प्रथा समाप्त कर दी गई।


भिलाला :- भिलाला स्याही और पेंट बनाने के काम में आता है। छिंदवाड़ा में इसका एक कारखाना है।

 

गोंद :- गोंद साधारणतया बबूल, धावड़ा, सेनियल आदि वृक्षों से प्राप्त होता है खाने के अतिरिक्त गोंद का प्रयोग पेंट उद्योग, पेपर प्रिन्टिंग, दवा उद्योग, कास्मेटिक आदि में होता है ।


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