वर्साय की सन्धि | वर्साय की सन्धि के दोष | वर्साय सन्धि का औचित्य

 वर्साय की सन्धि के दोष
वर्साय की सन्धि की विफलता और द्वितीय विश्वयुद्ध

वर्साय सन्धि का औचित्य


वर्साय सन्धि की समीक्षा Review of Versai Treaty

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पराजित जर्मनी ने 28 जून 1919 के दिन वर्साय की सन्धि पर हस्ताक्षर किये।

वर्साय की सन्धि (एक कलुषित दस्तावेज)-

  • पेरिस के शान्ति समझौते का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग वर्साय की सन्धि थी। इसके आलोचकों ने इसे एक अन्यायपूर्ण और कलुषित दस्तावेज कहा है । 
  • सन्धि मित्र - राष्ट्रों के वास्तविक उद्देश्यों का पर्दाफाश करती है। 
  • जवाहरलाल नेहरू का मत था, "मित्र-राष्ट्र घृणा और प्रतिशोध की भावना से भरे हुए थे और वे मांस का पौंड ही नहीं चाहते थे अपितु जर्मनी के अर्धमृत शरीर से खून की आखिरी बूँद तक ले लेना चाहते थे।" 
  • इस प्रकार जर्मन ही नहीं, अन्य देशों के विचारकों ने भी वर्साय की सन्धि को अन्यायपूर्ण माना है। फिर भी अनेक राजनीतिज्ञों ने इस सन्धि की प्रशंसा की थी। गेथोर्न हार्डी का मत था कि " ऐसे आदर्शस्वरूप की शान्ति-सन्धि आज तक कभी नहीं की गयी।"

वर्साय की सन्धि के दोष

1 एक विश्वासघाती सन्धिः

  • वर्साय की सन्धि को जर्मन जाति ने एक अत्यन्त अन्यायपूर्ण सन्धि माना है। उनका इसके विरुद्ध सर्वाधिक प्रबल तर्क यह था कि उन्होंने विल्सन के 14 सूत्रों के आधार पर आत्मसमर्पण किया था। परन्तु वर्साय की सन्धि में मित्र-राष्ट्रों ने उन सिद्धांतों की नितान्त अवहेलना पर पराजित राष्ट्रों के साथ विश्वासघात किया है।
  • सन्धि पर हस्ताक्षर करते समय जर्मन प्रतिनिधिमण्डल के नेता ने स्पष्ट रूप से कहा था, "हमारे प्रति फैलायी गयी घृणा से हम आज सुपरिचित हैं। मेरा देश दबाव के कारण आत्मसमर्पण कर रहा है, परन्तु जरमनी कभी नहीं भूलेगा कि यह अन्यायपूर्ण सन्धि है।"

2  एक आरोपित सन्धिः 

  • वर्साय की सन्धि एक आरोपित सन्धि थी क्योंकि जर्मनी को उससे संबंधित वार्ताओं में भाग लेने का अवसर प्रदान नहीं किया गया और उसे जर्मनी से तलवार की नोक पर स्वीकार कराया गया। 
  • सन्धि का प्रारूप इस धमकी के साथ जर्मन प्रतिनिधियों को दिया गया कि यदि उन्होंने उसे 5 दिन के अंदर स्वीकार नहीं किया तो युद्ध पुनः प्रारंभ कर दिया जायेगा। 
  • स्पष्ट है कि मित्र-राष्ट्र जर्मनी पर एक कठोर सन्धि बलात् लादने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे, यहाँ तक कि जर्मनी के साथ उदार व्यवहार के प्रबल समर्थक लायड जार्ज तक का कथन था, “ये शर्ते युद्ध में वीरगति पाने वाले सैनिकों के रक्त से लिखी गयी हैं। हमको भगवान के आदेश को कार्यान्वित करना चाहिए। हमें यह देखना चाहिए कि जिन लोगों ने इस युद्ध को प्रारंभ किया वे फिर कभी ऐसा करने की स्थिति में न हो सकें। 
  • जर्मन कहते हैं कि वे इन पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे, उनके समाचारपत्र और राजनीतिज्ञ भी यही कहते हैं, किन्तु हम कहते हैं- सज्जनो! तुम्हें हस्ताक्षर करने होंगे। यदि तुम वर्साय में ऐसा नहीं करते हो तो तुम्हें बर्लिन में ऐसा करना होगा।"

3  एक कठोर और अपमानजनक सन्धिः

लेनसिंग ने वर्साय की सन्धि की शर्तों को अपरिमित रूप से कठोर और अपमानजनक कहा है। 

लैंगसम के अनुसार

"इसने जर्मनी के यूरोपीय प्रदेश के आठवें भाग तथा 65 लाख जनसंख्या को कम कर दिया। इसने उसे उसके समस्त उपनिवेशों तथा विदेशी विनियोगों से वंचित कर दिया। उसकी 15% कृषि योग्य-भूमि, 12% पशु तथा लगभग 10% कारखाने छिन गये। उसके व्यापारी जहाज 57 लाख टन से घटकर 5 लाख टन रह गये। उसकी नौ सेना जो पहले केवल ब्रिटेन से ही कम थी, बिल्कुल नष्ट कर दी गयी और उसकी स्थल सेना घटाकर फ्रांस की सेना का 117 कर दी गयी। उसे अपने कोयले के 2/5 भाग से, लोहे के 2/3 भाग से, जस्ते के 7/10 भाग से तथा आधे से अधिक सीसे से हाथ धोना पड़ा। उपनिवेशों के छिन जाने से उसे बड़ी मात्रा में रबड़ और रेशेदार पदार्थों की हानि हुई। क्षतिपूर्ति के लिए उसने कोरे चैक पर हस्ताक्षर कर दिये।"

4  व्यक्तिगत जर्मन सम्पत्ति का अधिग्रहण

  • व्यक्तिगत जर्मन सम्पत्ति का अधिग्रहण वर्साय की सन्धि की एक अविवेकपूर्ण मौलिकता थी।
  • 1919 तक यह अन्तर्राष्ट्रीय विधि का एक सर्वमान्य नियम था कि शत्रु राष्ट्रों की सरकारी सम्पत्ति जब्त कर ली जाती थी। परन्तु उनके नागरिकों की व्यक्तिगत सम्पत्ति के विरुद्ध ऐसी कोई कार्यवाही नहीं की जाती थी। 
  • परन्तु वर्साय की सन्धि के द्वारा मित्र राष्ट्रों ने अपने क्षेत्र में स्थित जर्मन व्यक्तिगत सम्पत्ति को जब्त कर लिया और जर्मन सरकार को अपने नागरिकों को उसका मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी बना दिया।

पारस्परिकता का अभावः

  • वर्साय की सन्धि पारस्परिकता और समानता पर आधारित नहीं थी। यह एक ऐसी सन्धि थी जिसके द्वारा पराजित राष्ट्रों पर निःशस्त्रीकरण, उपनिवेशों का त्याग, संग्रहालयों की लूट की वापसी आदि अनेकानेक ऐसी व्यवस्थाएँ लाद दी गयीं जो विजयी राष्ट्र पर लागूनहीं की गयी।
  • जर्मनी नेताओं पर युद्ध अपराध के मुकदमे चलाये गए परन्तु युद्ध के नियमों का उल्लंघन करने वाले मित्र राष्ट्रीय नेताओं पर नहीं। 
  • जर्मनी को राष्ट्र-संघ की सदस्यता से भी वंचित कर दिया गया। 
  • विल्सन के 14 सूत्र जहाँ उनके विपक्ष में थे। वहाँ तो लागू कर लिए गये परन्तु जहाँ पक्ष में थे वहाँ उनकी अवहेलना कर दी गयी। जनरल स्मट्स के अनुसार वर्साय की सन्धि राजनीतिज्ञों की शान्ति थी, जनता की नहीं।

6  प्रतिशोध के प्राचीन सिद्धांत पर आधारितः 

  • वर्साय की सन्धि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के नवीन सिद्धांत पर आधारित न होकर प्रतिशोध के प्राचीन सिद्धांत पर आधारित थी। इस प्रकार वर्साय की सन्धि में अनेकानेक दोष थे।
  • यह न केवल अन्यायपूर्ण और अमानवीय कही जाती है, अपितु विश्वासघाती, आदर्शहीन और स्वार्थपूर्ण भी कही जाती है। 
  • इसकी कठोरता ने न केवल जर्मनी के वाईमार गणतंत्र के भविष्य को प्रारंभ से ही अंधकारमय कर दिया, अपितु अनेकानेक छोटे राष्ट्रों की रचना कर यूरोप की शान्ति के स्थायित्व की सम्भावना को भी नष्टप्राय कर दिया।

वर्साय सन्धि का औचित्य (Appropriateness of versai Treaty)

  • जहाँ अनेक विद्वानों ने वर्साय की सन्धि की कटु आलोचना की है मित्र-राष्ट्रीय नेताओं तथा गेयोनं हार्डी, लिप्सन, जेसप आदि अनेक विद्वानों ने इस मत का खण्डन किया है कि वर्साय की सन्धि अन्यायपूर्ण थी। इन विद्वानों का पहला तर्क यह है कि वर्साय की सन्धि में 14 सूत्रों का उल्लंघन नहीं किया गया।
  • गेयोनं हार्डी का मत है कि विल्सन के 14 सूत्रों में केवल चार (5वां, 7वां, 8वां, 13वां) ही जर्मनी से सम्बन्धित थे और इन चारों का पालन किया। 
  • दूसरा तर्क यह है कि विल्सन के सिद्धांत शान्ति समझौते के आधार नहीं थे। 
  • मित्र राष्ट्रों ने अपने 5 नवम्बर, 1918 के पत्र में यह स्पष्ट कर दिया था कि "समुद्रों की स्वतंत्रता" के सिद्धांत को मान्यता नहीं दी जाएगी तथा जर्मनी मित्र राष्ट्रों को हुई अति की पूर्ति करेगा। 
  • तीसरा तर्क यह था कि विल्सन के सिद्धांत परस्पर विरोधी थे, अत: उनका पूर्णरूप से पालन असम्भव था। 
  • चौथा तर्क यह था कि जर्मनी ने स्वयं रूस के साथ 3 मार्च, 1918 को की गयी वेस्ट लिटोवस्क की सन्धि के द्वारा अत्यन्त कठोर तथा अन्यायपूर्ण व्यवहार किया था, अत: वह उदार व्यवहार का अधिकारी नहीं था। 
  • पांचवां तर्क यह था कि जर्मन अधिनायक हिटलर ने न केवल वर्साय की 'आरोपित' सन्धि का उल्लंघन किया, अपितु उन सन्धियों का भी उल्लंघन किया जो जर्मनी ने बाद में स्वेच्छा से स्वीकार की थी। 
  • अतः उसे विश्वासघात की दुहाई देने का कोई अधिकार नहीं था। परन्तु जहाँ वर्साय की सन्धि के पक्ष में बहुत कुछ कहा जा सकता है, वहाँ यह दुखद तथ्य स्वीकार नहीं किया जा सकता कि जर्मन प्रतिनिधियों के साथ अत्यन्त पमानजनक तथा अन्यायपूर्ण व्यवहार किया गया था। 
  • जर्मन प्रतिनिधिमण्डल के नेताओं विदेश मंत्री हान्न मुइलर तथा उपनिवेश मंत्री जोहान्नेस बेल के साथ बन्दियों का-सा व्यवहार किया गया, तथा उन्हें पेरिस के समीप वर्साय के राज-प्रसाद के उसी शीशमहल में सन्धि पर हस्ताक्षर करने के लिए विवश किया गया, जहाँ इससे 50 वर्ष पूर्व प्रशा के राजा को जर्मन सम्राट घोषित किया था।
  • ई.एच. कार के शब्दों में, "इन अनावश्यक अपमानों से जर्मनी में अत्यन्त दूरगामी मनोवैज्ञानिक परिणाम हुए। उन्हीं के कारण आरोपित शान्ति की धारणा ने लोगों के मन में घर कर लिया और जर्मनों में यह विश्वास सामान्य रूप से फैल गया कि उपरोक्त परिस्थितियों में जर्मनी से कराये गये हस्ताक्षर उस पर नैतिक रूप से बन्धनकारी नहीं हैं।"

वर्साय की सन्धि की विफलता और द्वितीय विश्वयुद्ध
(Defeat of Versai Treaty and IInd World War)

  • वर्साय की सन्धि की गणना विश्व की सर्वाधिक कम सफल सन्धियों में की जाती है। स्थायी शान्ति की स्थापना के उद्देश्य से की गयी इस सन्धि के ठीक 20 वर्ष 2 माह 4 दिन बाद द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया।
  • यह 20 वर्ष की अवधि भी यूरोपीय इतिहास का एक अत्यन्त अशान्त युग था। यह कहा गया है कि 1919 से 1939 तक का यूरोपीय इतिहास वर्साय की प्रधान भूल को सुधारने के प्रयत्नों का इतिहास है।
  • वास्तव में इस अवधि में वर्साय की सन्धि का लगभग सम्पूर्णतः खण्डन हो गया, इसकी भूलों का भी, इसकी सफलताओं का भी। इसकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि राष्ट्र-संघ की स्थापना थी। 
  • 1939 तक राष्ट्र-संघ एक प्रभावहीन संस्था रह गया। क्षतिपूर्ति से संबंधित अध्याय शनैः-शनैः विफल हो गया। निःशस्त्रीकरण संबंधी अध्याय को हिटलर ने भंग कर दिया।
  • मार्च1938 में आस्ट्रिया का जर्मनी के साथ एकीकरण कर दिया। 
  • सितम्बर, 1938 में कोस्लोवाकिया का अंग-भंग कर दिया, तथा मार्च 1939 में हिटलर ने बोहेमिया और मोराविया पर अधिकार कर लिया। अन्त में जब उसने वर्साय की सन्धि की पोलिश गलियाए संबंधी व्यवस्थाओं को भंग करने के उद्देश्य से पोलैण्ड पर आक्रमण किया तब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। मार्शल फौच का यह कथन सत्य सिद्ध हुआ कि यह (वर्साय की सन्धि) शान्ति नहीं अपितु बीस वर्ष के लिए युद्ध-विराम है।"
  • इस प्रकार वर्साय की सन्धि के उन्मूलन की प्रक्रिया का अन्त द्वितीय विश्वयुद्ध में हुआ। 
  • वर्साय की सन्धि को प्रायः द्वितीय विश्व युद्ध के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है। यह कहा जाता है कि यह सन्धि इतनी अपमानजनक थी कि इससे जर्मन जनता के हृदयों में प्रतिशोध की ज्वाला भड़का दी। 
  • इस सन्धि से संबंधित होने के कारण जर्मन में वाईमार गणतंत्र का चिरस्थायी होना असम्भव हो गया। क्षतिपूर्ति की रकम की अधिकता ने जर्मनी और यूरोप की अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया तथा ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी जिससे हिटलर के उदय का मार्ग प्रशस्त हो गया। 
  • इस संधि ने निःशस्त्रीकरण को एकपक्षीय बनाकर उसकी सफलताओं की आशाओं को समाप्त कर दिया। इस सन्धि की रचना के रूप में राष्ट्र-संघ प्रारंभ से ही एक कलंकित संस्था हो गयी और अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को चिरस्थायी बनाने का यह यंत्र अपनी उपयोगिता खो बैठा। 
  • इस सन्धि ने जर्मनी के साथ कठोर व्यवहार कर तथा इटली और जापान की आकांक्षाओं की पूर्ति न कर रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी के बीज बो दिये। 
  • इसने यूरोप में आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, लैटविया, इस्टोनिया, लिथुआनिया, हंगरी आदि अनेक ऐसे छोटे राष्ट्रों की सृष्टि कर दी जो जर्मन और रूस के विरुद्ध अपनी रक्षा करने में असमर्थ थे। यही अन्तर्राष्ट्रीय अशान्ति का कारण बन गए। 
  • अपने अनेक दोषों के बावजूद वर्साय की सन्धि विश्व के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। आत्मनिर्णय के सिद्धांत की स्वीकृति, नि:शस्त्रीकरण की आवश्यकता की अनुभूति तथा राष्ट्रसंघ की स्थापना इस सन्धि की महत्त्वपूर्ण सफलताएँ थीं। 
  • यह सन्धि अत्यन्त कठोर और बहुत अंशों में अन्यायपूर्ण थी, परन्तु वर्साय की सन्धि के निर्माताओं ने न केवल जर्मनी का विध्वंस नहीं किया अपितु अपनी शर्तों की कठोरता को कम करने के लिए दो उपायों की व्यवस्था भी की। पहला तो क्षतिपूर्ति आयोग की नियुक्ति थी जो उसकी हर्जाने की राशि को कम कर सकता था और दूसरा राष्ट्र-संघ था जो उसके अन्याय को हटा सकता था। 
  • परन्तु इतना होते हुए भी वर्साय सन्धि की गणना बुद्धिमत्तापूर्ण शान्ति सन्धियों में नहीं की जा सकती। इसमें अनेक गम्भीर दोष थे। वह अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सहयोग के आधुनिक सिद्धांतों के अनुकूल नहीं थी। 
  • यह ठीक ही कहा गया है कि इस सन्धि के द्वारा चिरस्थायी शान्ति की स्थापना का एक स्वर्णिम अवसर खो दिया गया।

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