भारतीय संविधान के स्रोत | Sources of Indian Constitution in Hindi

 भारतीय संविधान के स्रोत

Sources of Indian Constitution in Hindi


भारत के संविधान एक व्यवहारिक संविधान

  • भारत के संविधान सभा ने जिस संविधान का निर्माण किया वह मौलिक न होकर व्यवहारिक है। अर्थात; भारतीय संविधान निर्माताओं ने मौलिक संविधान की रचना न करके संसार के विभिन्‍न संविधानों के अच्छे गुणो को ग्रहण करके एक व्यवहारिक संविधान की रचना की है। इसके कुछ आलोचकों ने भारतीय संविधान को उधार का थैला, भानुमति के कुनबे की तरह गड़बड, कैंची और गोंद की खिलवाड़'' आदि अनेक नामों की संज्ञा दी है। 
  • संविधान निर्माताओं ने इस बात को स्पष्ट कर दिया था कि वे नितान्त स्वतन्त्र रूप से या एकदम नए सिरे से संविधान लेखन नहीं कर रहे। उन्होंने जान-बूझकर यह निर्णय लिया था अतीत की उपेक्षा न करके पहले से स्थापित ढाँचे तथा अनुभव के आधार पर ही संविधान को खड़ा किया जाय। 
  • भारत के संविधान का एक समन्वित विकास हुआ। यह विकास कतिपय प्रयासों के पारस्परिक प्रभाव का परिणाम था। स्वाधीनता के लिए छेड़े गये राष्ट्रवादी संघर्ष के दौरान प्रतिनिधिक एवं उत्तरदायी शासन संस्थाओं के लिए विभिन्‍न मांगे उठाई गयी। और अंग्रेज शासकों ने बडी कंजूसी से समय-समय पर थोड़े-थोड़े संवैधानिक सुधार किए।
  • प्रारम्भिक अवस्था में यह प्रक्रिया अति अविकसित रूप में थी, किन्तु राजनीतिक संस्थान-निर्माण, विशेष रूप से आधुनिक विधानमण्डलो का सूत्रपात 1920 के दशक के अंतिम वर्षों में हो गया था।
  • वास्तव में, संविधान के कुछ उपबन्धों के स्रोत तो भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी तथा अंग्रेजी राज के शैशवकाल में ही खोजे जा सकते है।

 

भारतीय संविधान के देशी अथवा भारतीय स्रोत

  • भारतीय संविधान के राज्य के नीति-निर्देशक तत्वो के अन्तर्गत ग्राम पंचायतों के संगठन का उल्लेख स्पष्ट रूप से प्राचीन भारतीय स्वशासी संस्थानों से प्रेरित होकर किया गया था। 73 वें तथा 74 वें संविधान संशोधन अधिनियमों ने उन्हें अब और अधिक सार्थक तथा महत्वपूर्ण बना दिया है। 
  • मूल अधिकारों की मांग सबसे पहले 1998 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में की गयी थी। 
  • भारत के राज्य-संघ विधेयक में, जिसे राष्ट्रीय सम्मेलन ने 1925 में अंतिम रूप दिया था, विधि के समक्ष समानताअभिव्यक्ति, सभा करने और धर्म पालन की स्वतन्त्रता जैसे अधिकारों की एक विशिष्ट घोषणा सम्मिलित थी।
  • 1927 में कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसमें मूल अधिकारों की मांग को दोहराया गया था। 
  • सर्वदलीय सम्मेलन द्वारा ।928 में नियुक्त मोतीलाल नेहरू कमेटी ने घोषणा की थी कि भारत की जनता का सर्वोपरि लक्ष्य न्याय सीमा के अधीन मूल मानव अधिकार प्राप्त करना है। उस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का भावी संविधान अपने स्वरूप में संघीय होगा। उसमें देशी रियासतों अथवा भारतीय राज्यों को अलग से अस्तित्व नहीं मिलेगा तथा उन्हें संघ में शामिल होना होगा।
  • नेहरू रिपोर्ट में संसदात्मक शासन प्रणाली अपनाये जाने का प्रावधान था। नेहरू कमेटी की रिपोर्ट में जो उन्नीस मूल अधिकार शामिल किए गये थे, उनमें से दस को भारत के संविधान में बिना किसी खास परिवर्तन के शामिल कर लिया गया।
  • 1931  में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में पारित किए गये प्रस्ताव में न केवल मूल अधिकारों का बल्कि मूल कर्तव्यों का भी विशिष्ट रूप से उल्लेख किया गया था। इसमें वर्णित अनेक सामाजिक तथा आर्थिक अधिकारों को संविधान के नीतिनिर्देशक तत्वों में समाविष्ट कर लिया गया था। 
  • मूल संविधान में मूल कर्तव्यों का कोई उल्लेख नहीं था किन्तु बाद में 1976 में संविधान (42 वां) संशोधन अधिनियम द्वारा इस विषय पर एक नया अध्याय संविधान में जोड़ दिया गया था।
  •  भारतीय संविधान पर 1935 के भारत के शासन अधिनियम का प्रभाव सर्वाधिक परिलक्षित होता है। राबर्ट एल. हार्डग्रेव के अनुसार भारतीय संविधान के अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे है जो ।935 के अधिनियमसे या तो अच्छरश: ले लिए गये है या फिर उसको थोड़ा-बहुत संशोधन करके परिवर्तन कर दिया गया है। 
  • डॉपंजाबी राव देशमुख ने तो यहाँ तक कह दिया है कि नवीन संविधान 1935 का भारत शासन अधिनियम ही है। इसमे केवल वयस्क मताधिकार को जोड़ दिया गया है।
  • वर्तमान संविधान के कुछ मुख्य उपबन्ध थे जो 1935 के अधिनियम के मुख्य सिद्धान्तों से समानता रखते है, जैसे संविधान में सूचियों के आधार पर शक्ति विभाजनद्विसदनात्मक विधानमण्डल की व्यवस्था, राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने की व्यवस्था, राज्यपाल पद की व्यवस्था आदि।
  • अनुच्छेद 25, 256,352,356 इत्यादि 935 के भारत शासन अधिनियम के ही समान है।

 

भारतीय संविधान के विदेशी स्रोत

देशी स्रोतों के अलावा संविधान सभा के सामने विदेशी संविधानों के अनेक नमूने थे जिनसे अच्छी बातों को अपनाया गया जैसे- 

  • ब्रिटेन के संविधान से संसदीय प्रणाली, विधि-निर्माण प्रक्रिया तथा एकल नागरिकता को ग्रहण किया गया। न्यायिक आदेशों तथा संसदीय विशेषाधिकारों के विवाद से सम्बन्धित उपबन्धों के परिधि तथा उनके विस्तार को समझने के लिए अभी भी ब्रिटिश संविधान का सहारा लेना पडता है। 
  • आयरलैण्ड के संविधान से राज्य के नीतिनिर्देशक तत्व राष्ट्रपति के चुनाव के लिए  निर्वाचक मण्डल तथा राज्यसभा एवं विधान परिषद में साहित्यकला, विज्ञान तथा समाजसेवा इत्यादि के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त व्यक्तियों का मनोनयन करने की परम्परा को ग्रहण किया गया है। 
  • अमेरिका के संविधान से मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन, संविधान की सर्वोच्चता, स्वतन्त्रतान्यायपालिका, संघवाद, राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया इत्यादि गुण को ग्रहण किया गया है। राष्ट्रपति में संघ की कार्यपालिका तथा संघ के रक्षा बलो का सर्वोच्च समादेश निहित करना और उपराष्ट्रपति को राज्य सभा का पदेन सभापति बनाने के उपबन्ध अमेरिकी संविधान पर आधारित थे। 
  • आस्ट्रेलिया के संविधान से प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची का प्रावधान, केन्द्र और राज्य के मध्य सम्बन्ध तथा शक्तियों के विभाजन को ग्रहण किया गया था। 
  • कनाडा के संविधान से संघीय शासन व्यवस्था के गुण को ग्रहण किया गया तथा संघ शब्द के स्थान पर यूनियन शब्द का प्रयोग किया गया है।
  • रूसी संविधान से नागरिको के मूल कर्तव्यों को ग्रहण किया है। 
  • जर्मनी के संविधान से आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति के मौलिक अधिकार सम्बन्धित शक्तियों को ग्रहण किया गया है। 
  • जापान के संविधान से विधि द्वारा राष्ट्रपति क्रियाविधि सिद्धान्तों का प्रावधान जिसके आधार पर भारतीय सर्वोच्च न्यायालय कार्य करता है। 
  • दक्षिण अफ्रीका के संविधान से संविधान संशोधन की प्रक्रिया की विधि को ग्रहण किया गया था। 

संविधान के अन्य स्त्रोत के अन्तर्गत संसद द्वारा पारित कानून, राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश, संसद द्वारा निर्मित कुछ प्रमुख कानून, संविधिया जो संविधान के अभिन्‍न अंग बन गए है इनमें प्रमुख है भारतीय जन प्रतिनिधि अधिनियम 1950 एवं 1951 राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति निर्वाचन अधिनियम, 1950, भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955-56 तथा जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1988 इत्यादि।

भारत में कुछ परम्पराए भी संविधान के विकास में संयोगी रही है। जैसे - संविधान के अनुसार कार्यपालिका शक्तियां राष्ट्रपति में निहित है परन्तु परम्परा यह है कि यह मंत्रिमण्डल के परामर्श से ही कार्य करता है। इस परम्परा को 42 वें संविधान संशोधन, 976 द्वारा संविधान का अंग बना दिया गया कि राष्ट्रपति को मंत्रीमण्डल की सलाह मानना बाध्यकारी है। दूसरा राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर सकता है किन्तु ऐसा वह प्रधानमंत्री की सलाह से ही करेगा, तीसरा राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है। संविधान लागू होने से अब तक भारत में संविधान में 100 से अधिक संशोधन हो चुके है भारत में संविधान का एक प्रमुख स्त्रोत वे न्यायिक निर्णय है जो सर्वोच्च न्यायालय में समय-समय पर दिए है। भारतीय संविधान के विभिन्‍न स्रोत है तथा इसे संसार के अनेक देशों के संविधान से ग्रहण किया गया है लेकिन भारतीय संविधान को पूर्णरूपेण अन्य संविधानों की नकल भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि हमारा संविधान दूसरे देशों के संविधान का अन्धानुकरण नहीं है किन्तु उनकी अच्छी बातों को ग्रहण करके उन्हें भारतीय परिस्थितियों के अनूकूल ढ़ाला गया है।

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