ऋग्वैदिक युग वन लाइनर सामान्य ज्ञान | Rigvedik One Liner GK in Hindi

 

ऋग्वैदिक युग वन लाइनर सामान्य ज्ञान

Rigvedik One Liner GK in Hindi


  • आर्य मध्य एशिया से भारत की ओर आए। इनका मूल निवास स्थान आल्प्स पर्वत के पूर्वी क्षेत्र में यूरेशिया में था। यह बात आनुवंशिक आधार पर सिद्ध हो चुकी है।
  • आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुचारण था, कृषि का स्थान गौण था।
  • आर्य लोगों के जीवन में घोड़े का सबसे अधिक महत्त्व था। घोड़े की तेज़ गति के कारण आर्य अलग-अलग दिशाओं में फैले थे।
  • ऋग्वेद सबसे पहला और प्राचीनतम ग्रन्थ है। भारत में आर्यों की जानकारी इसी से मिलती है। इसमें आर्य शब्द का 36 बार उल्लेख हुआ है।
  • ऋग्वेद में दस मंडल या भाग हैं, जिनमें मंडल 2 से 7 तक प्राचीनतम अंश हैं। प्रथम और दसवाँ मंडल सबसे बाद में जोड़े गए हैं।
  • अवेस्ता ईरानी भाषा का प्राचीनतम ग्रन्थ है। ऋग्वेद की अनेक बातें अवेस्ता से मिलती हैं। दोनों ग्रन्थों में बहुत-से देवताओं और सामाजिक वर्गों के नाम समान हैं।
  • सिंधु आर्यों की सबसे प्रमुख नदी थी। ऋग्वेद में सिंधु और उसकी पाँच सहायक नदियों का नामोल्लेख है। सरस्वती उनके द्वारा उल्लेखित दूसरी महत्त्वपूर्ण नदी थी, इसे नदीतम अर्थात् सर्वश्रेष्ठ नदी कहा गया था।
  • आर्य लोगों ने जहाँ पहले निवास किया, वह प्रदेश सप्त सिंधु के नाम से प्रसिद्ध हुआ और इसमें अफगानिस्तान का भाग भी पड़ता है।
  • आर्यों की शवदाह प्रथा के प्रचलन के साक्ष्य मध्य एशिया में दक्षिण तजाकिस्तान, पाकिस्तान की स्वात घाटी, पिराक क्षेत्र और गोमल (गोमती) घाटी में भी लगभग 1500 ई.पू. के मिलते हैं।
  • आर्य नाम का उल्लेख अनातोलिया (तुर्की) में उन्नीसवीं से सत्रहवीं सदी ई.पू. के हिट्टाइट अभिलेख में, ईराक में 1600 ई.पू. के कस्साइट अभिलेख में तथा सीरिया में मितन्नी अभिलेखों में मिलता है।
  • ऋग्वेद में दस्यु यहाँ के मूल निवासियों को कहा जाता था। आर्यों के जिस राजा ने उन्हें पराजित किया, वह त्रसदस्यु कहलाया। ऋग्वेद में दस्यु हत्या शब्द का बार-बार उल्लेख मिलता है। दस्यु लोग लिंग पूजा करते थे।
  • ऋग्वेद में इन्द्र को पुरंदर कहा गया है, जिसका अर्थ है दुर्गों को तोड़ने वाला। इन्द्र आर्यों के प्रमुख देवता थे।
  • आर्य लोग हर जगह इसलिए जीते गए क्योंकि उनके पास अश्वचालित रथ थे और उन्होंने पश्चिम एशिया और भारत में पहले-पहल इन रथों को प्रचलित किया था। उन्होंने काँसे के बेहतर हथियारों का भी प्रयोग किया था।
  • पंचजन आर्यों के पाँच कबीलों का समुदाय कहलाता था। ये आपस में लड़ते रहते थे। और कभी-कभी आर्योत्तर जनों का सहारा भी लेते थे।

  • दाशराज्ञ युद्ध भारत कुल के राजा सुदास और दस राजाओं के बीच हुआ था। यह युद्ध परुष्णी नदी जिसे आज रावी नदी के नाम से जाना जाता है, के तट पर हुआ था। इसमें राजा सुदास की जीत हुई और इस प्रकार आगे चलकर हमारे देश का नाम भारतवर्ष भरत कुल के नाम पर पड़ा
  • इस काल में गाय सबसे उत्तम धन मानी जाती थी। आर्यों की अधिकांश लड़ाईयाँ गायों को लेकर हुई हैं। ऋग्वेद में युद्ध का पर्याय गाविष्टि (गाय का अन्वेषण) है।
  • आर्य लोग नगर में नहीं रहते थे, वे गढ़ बनाकर मिट्टी के घर वाले गाँवों में रहते थे।
  • ऋग्वैदिक काल में राजा का पद आनुवंशिक हो चुका था। वह राजन् (राजा) कहलाता था, परंतु उसके हाथ में असीमित अधिकार नहीं थे। उसे कबायली संघटनों से सलाह लेनी पड़ती थी। कबीले की आम सभा जो समिति कहलाती थी, यह अपने राजा को चुनती थी।
  • ऋग्वेद में कुल के आधार पर बहुत से संघटनों का उल्लेख मिलता है, जैसे सभा, समिति, विदथ और गण। इनमें से सभा और समिति महत्त्वपूर्ण थे। राजा को इनका समर्थन आवश्यक होता था।
  • इस काल में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। वे यज्ञ, सभा और विदथ में भाग लेती थीं।
  • इस काल में तांबे या काँसे के अर्थ में अयस्शब्द का प्रयोग होता था। उन्हें धातु कर्म की जानकारी थी। आर्य लोगों में बढ़ई, रथकार, बुनकर और कुम्हार आदि शिल्पियों के उल्लेख मिलते हैं।
  • इस काल में हरियाणा में भगवानपुरा नामक स्थल की और पंजाब में तीन स्थलों पर चित्रित धूसर मृदभांड के अवशेष पाए गए हैं। इनका काल ऋग्वेद के समकालीन है।
  • ऋग्वेद में अग्नि, इन्द्र, वरुण, और मित्र आदि देवताओं की स्तुतियाँ संगृहीत हैं।
  • ऋग्वेद में इन्द्र को बादल का देवता माना गया है। अग्नि का स्थान दूसरा है। वे लोग मानते थे कि अग्नि में डाले जाने वाली आहुतियाँ धुआँ बनकर आकाश में जाकर अंततः देवताओं को मिल जाती हैं।
  • पशुपति को हड़प्पा काल का मुख्य देवता माना गया है न कि ऋग्वैदिक काल का। अतः ऋग्वेद में पशुपति की स्तुति का वर्णन नहीं मिलता।
  • ऋग्वेद काल में बाल विवाह का प्रचलन नहीं था। इस काल में विवाह की आयु 16-17 वर्ष थी। विधवा विवाह का प्रचलन भी था.
  • इस काल में रोमन समाज की तरह पितृतंत्रात्मक व्यवस्था का प्रचलन था। निरन्तर युद्ध होने के कारण लोग हमेशा वीर पुत्रों की कामना करते थे।
  • इस काल में अदिति और उषा, जो प्रभात समय का प्रतिरूप है, की पूजा होती थी। परंतु प्रार्थना में देवियों को देवताओं की तुलना में प्रमुख स्थान प्राप्त नहीं था।
  • ऋग्वेद में किसी तरह के न्यायाधिकारी का उल्लेख नहीं है। यहाँ समाज विरोधी हरकतों को रोकने तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिये गुप्तचर रखे जाते थे।
  • ऋग्वैदिक काल में अधिकारी विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े थे। चरागाह या बड़े जत्थे का प्रधान व्राजपति कहलाता था।
  • परिवारों के प्रधानों को कुलपा कहा जाता था।
  • ग्रामणी आरम्भ में छोटी-सी कबायली लड़ाकू टोली का मुखिया होता था। बाद में जब ऐसी टोलियाँ स्थिरवासी हो गई, तब ग्रामणी सारे गाँव का मुखिया हो गया।
  • उल्लेखनीय है कि व्रात, गण, ग्राम और सर्ध आदि नाम से विभिन्न कबायली टोलियाँ लड़ाई लड़ती थी। इस काल में कबायली ढंग का शासन था, जिसमें सैनिक तत्त्व प्रबल होता था।
  • ऋग्वेद में परिवार के लिये गृहशब्द का प्रयोग होता था। इसमें माता, पिता, पुत्र, दास आदि के अलावा अन्य और भी लोग आते थे। उस समय पृथक कुटुंबों की स्थापना की दिशा में पारिवारिक संबंधों का विभेदीकरण बहुत अधिक नहीं था। कुटुंब एक बड़ी सम्मिलित इकाई थी।
  • ऋग्वेद में कबीले के लिये दूसरा महत्त्वपूर्ण शब्द विश्का प्रयोग होता था। विश् को लड़ाई के उद्देश्य से ग्राम नामक टोलियों में बाँटा गया था। ऋग्वेद में इसका उल्लेख 170 बार हुआ है। उल्लेखनीय है कि ऋग्वेद में जनशब्द एक बार भी नहीं आया है।
  • वैदिक काल के लोग देवताओं की उपासना आध्यात्मिक उत्थान या जन्म-मृत्यु के कष्टों से मुक्ति के लिये नहीं करते थे। वे अपने देवताओं से संतति, पशु, अन्न, धान्य और आरोग्य आदि पाने की कामना से करते थे।
  • इस संस्कृति में देवताओं की उपासना की मुख्य रीति स्तुति-पाठ करना और यज्ञ-बलि अर्पित करना था। इस काल में स्तुति-पाठ पर अधिक ज़ोर था। यह सामूहिक भी होता था और अलग-अलग भी।
  •  इस काल में पुरोहितों को दक्षिणा में गाय और दासियाँ दी जाती थी। भूमि का दान नहीं होता था। इस काल में लोग गाय चराने, खेती करने और रहने के लिये भूमि पर अधिकार करते थे, परंतु भूमि निजी संपत्ति नहीं होती थी। आरंभिक आर्यों का निवास पूर्वी अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत में पंजाब और हरियाणा में था।
  • ऋग्वेद में पुरोहित विश्वमित्र ने लोगों को आर्य बनाने के लिये गायत्री मंत्र की रचना की थी
  • ऋग्वेद में व्यवसाय के आधार पर समाज में वर्ण व्यवस्था का आरम्भ हुआ था, परंतु यह बहुत कड़ा (कट्टर) नहीं था। चतुर्थ वर्ण शूद्र कहलाता था। वह ऋग्वेद के अंत में दिखाई पड़ता है। क्योंकि इसका वर्णन दशम् मंडल में है, जो सबसे बाद में जोड़ा गया है।

  ऋग्वैदिक युग  देवता शक्तियाँ

  • इन्द्र : वर्षा का देवता
  • वरुण : जल का देवता
  • मारुत : आंधी का देवता
  • सोम : वनस्पतियों का देवता   
Read Also.. 

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.